Kashish - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

कशिश - 2

कशिश

सीमा असीम

(2)

बड़ी प्यारी लग रही हो ! उनके यह शब्द उसके कानों मे गूंजने लगे ! क्या वो वाकई मे खूबसूरत लग रही है ! वो आइने के सामने जाकर खड़ी हो गयी ! स्काई ब्लू कलर के फ्रॉक सूट में उसके चेहरे का रंग तो बहुत निखर आया था पर न होठो पर लिपिस्टिक न आंखो में काजल कुछ भी तो नहीं बचा था उसके पास !

चलो कोई नहीं, आज यूं ही रहने देती हूँ !

वो अपने बाल सुलझा कर नीचे मैस हाल में आ गयी ! वहाँ पर राघव पहले से मौजूद थे वे गुलाबी रंग की हाफ्र बाँहों की शर्ट ब्लेक पैंट हाथ में चमकती हुई गोल्डन चैन वाली घड़ी पहने हुए थे !

चलो फटाफट से नाश्ता कर लो फिर सेशन शुरू होने वाला है ! वे उसकी तरफ मुखातिब होते हुए बोले !

वो मुस्कुरा कर बोली, जी ठीक है सर ! उसकी ये मुस्कुराने की आदत बड़ी खराब है हर बात पर मुस्कुरा देगी ! जबकि मुस्कुराने का लोग न जाने क्या अर्थ लगा लेते हैं !

तब तक प्रकाश भी आ गए थे सुनो पारुल ये हैं राघव जी यह इस सेमिनार के डाइरेक्टर हैं ! अरे यह डायरेक्टर साहब हैं वो तो इनको एवयेंई समझ रही थी लेकिन एक बात तो थी कि उनके अंदाज ने उस पर प्रभाव तो डाला था !

नाश्ते में सब्जी पूरी, अंडा ब्रेड, सूजी का हलवा और कटा हुआ आम और पपीता था ! इतनी सुबह कुछ भी खाने का मन तो नहीं था फिर भी उसने दो ब्रेड की स्लाइस लेकर उनपर ब्टर लगाया प्लेट में कुछ टुकड़े कटे हुए आम और पपीते के रखे और वहाँ पर पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गयी !

पूरा हाल भर चुका था सब लोग लगभग आ चुके थे ! अलग अलग प्रदेश और भाषा के लोग ! किसी को जानती नहीं थी सो चुपचाप से अपना नाश्ता करने लगी !

जिनसे कंघा लिया था वे स्वयं उसके पास आकर खड़े हो गए और बातें करने लगे ! वे केरल से आए थे और किसी स्कूल में टीचर थे !

आधे घंटे के बाद सब लोग कॉनफेरेन्स हाल में पड़ी अपनी अपनी सीटों पर बैठ गए ! बातचीत से उत्पन्न हुआ कोलाहल गाइड के आते ही शांत हो गया ! तीन गाइड और एक डाइरेक्टर अपनी सीट पर बैठ गए और फिर दीप प्रज्वलित करके सभी लोगो का इण्ट्रोडक्शन राउंड हुआ ! सभी लोग अधिकतर अहिंदी भाषी थे वे थोड़ी टूटी फूटी भाषा में हिन्दी बोल रहे थे लेकिन उनकी हिन्दी के प्रति लगन ही उनको यहाँ तक खींच लाई थी ! दो घंटे तक चले इस सत्र में केवल एक दूसरे का परिचय ही हो पाया था कि चाय का समय हो गया !

चाय, बिस्किट और नमकीन !

थोड़ी देर मे जब सब लोग फिर से हाल में आ गए तो केरल से आए बेहद स्मार्ट कमल जी जिनका रंग भले ही काला था परंतु उनके मुस्कुरा कर बात करने का ढंग बहुत ही मनमोहक था !

डा कमल वे सच में कमल के समान खिले हुए व्यक्तित्व के स्वामी थे ! उन्होने अपनी बात कहानियों के माध्यम से इस तरह से रखी कि कब तीन घंटे गुजर गए पता ही नहीं चला ! लंच ब्रेक में उनसे बात करने का मन कर रहा था लेकिन पारुल ने चुपचाप से अपना ध्यान खाने पर लगा दिया !

दो सब्जी, दाल, सलाद, पापड़, रोटी, चावल और मखाने की खीर ! खीर बहुत स्वादिष्ट थी उसने सिर्फ दो कटोरी खीर खाई और अपने कमरे में चली गयी ! सभी लोग आराम करने को अपने अपने कमरे में चले गए थे ! कमरे में आकर भी उसका मन डॉ कमल की तरफ ही लगा रहा ! कितना अच्छा बोलते हैं ! शाम को पाँच बजे के करीब शहर के स्थानीय दार्शनिक स्थलों पर घूमने को वे लोग एक वॉल्वो में सवार हो गए ! सबसे पहले गंगा जी के दर्शन करने को पहुंचे ! इतना सुंदर मनोरम पावन तट ! गंगा जी के अंदर पाँव डालकर सभी लोग सीढ़ियो पर बैठ गए थे और राघव जो इस सेमिनार के डाइरेक्टर भी थे, अपने आई पैड को ऑन करके फोटोस क्लिक करने में लगे हुए थे ! ज़ोर से ठट्ठे मारकर हँसना और सिगरेट पर सिगरेट फूंकते हुए वो पूरी तरह से एक बेफिक्र इंसान की छवि क्रिएट कर रहे थे ! खैर उसे क्या करना ?

वहाँ आसपास बहुत सी दुकानें भी थी सो पारुल ने सोचा कि यहाँ से थोड़ा समान खरीदा जा सकता है उसने वहाँ से उठकर जाने का उपक्रम किया !

अरे मैडम कहाँ जा रही हैं ? एकदम से राघव जी बोल पड़े !

कहीं नहीं जी, बस यहाँ से अपने लिए कुछ खरीद लेती हूँ जो चीजें बेहद जरूरी हैं !

पैसे हैं तेरे पास ?

हाँ जी मैंने प्रकाश जी से ले लिए थे !

रुक जा, अकेले मत जाओ, भटक जाओगी ! मैं संग चलता हूँ ! कितनी परवाह है इनके मन में किसी अनजान लड़की के लिए ! पारुल ने मन में सोचा !

एक परवाह ही तो इंसान को अपना या पराया बना देती है!

हाथ में आई पैड पकड़े शान से अकड़ कर चलते हुए वे पहली बार मन को एक अच्छे इंसान लगे थे ! मैं इन्हें क्या समझ रही थी और यह क्या निकले ! सच में इंसान को बरतने के बाद ही कोई धारणा बनानी चाहिए ! हाँ तुम साथ आ गए तो अब भला कैसे भटकूंगी ! वो मन में सोचकर हंसी !

शेड के नीचे लगी वो दुकान वहाँ की सबसे अच्छी दुकानों में से एक थी ! वहाँ पर जाकर खड़े हो गए और बोले तुझे जो भी कुछ लेना है यहाँ से ले ले ! बात करने के ढंग में ऐसा लगता है न जाने कब से जानते हैं हालांकि वो दुकान वहाँ पर बनी अन्य दुकानों से बेहतर तो थी परंतु ऐसी नहीं कि मेकअप का ब्रांडेड सामान मिल सके !

क्यों भई क्या हुआ ? क्या सोच रही है पसंद नहीं आ रहा है ?

नहीं नहीं, सब सही है !

तो फिर ले ले, जो भी लेना है !

मना भी नहीं कर पा रही थी और कुछ ले भी नहीं पा रही थी ! क्या कहे इनसे !

शायद वे उसके मन कि बात समझ गए थे ! चल यहाँ से रहने दे शहर के अंदर किसी दुकान से दिला दूंगा ! अब यहाँ से खाली क्या जाना, चल ऐसा कर यह बिंदी का एक पैकेट ले लेते हैं !

और एक खूबसूरत स्टोन वाली बिंदी का पैकेट उठाकर उसे देते हुए बोले, लो यह ले लो ! ठीक है न ?

हाँ बहुत सुंदर है ! उसे क्या पता था कि वे उसको बिंदी का पैकेट नहीं बल्कि उसे उसकी किस्मत दे रहे थे !

पारुल ने अपने पास से पैसे देने चाहे पर वो पहले ही उसको दस रुपये का नोट दे चुके थे ! वो मात्र दस रुपए नहीं थे यह तो इतने थे कि उनसे उसका पूरा सर्वस्व खरीदा जा सके और वाकई उन्होने उसका पूरा सर्वस्व ही उस गंगा तट पर खरीद लिया था !

जो छवि उनके प्रति मन में बनी थी, अब वो नहीं रही थी ! यह बिंदी दिलाने से नहीं बल्कि उन्के मन में उसके प्रति सहायता करने के भाव ने, उसके लिए सोचने के भाव ने ! क्योंकि आज के दौर में कब कोई किसी के लिए सोचता है !

प्रकाश ने उसे उधार रुपए तो दिये लेकिन हक के साथ कुछ करने का नहीं सोचा ! जबकि वे उसको कितने समय पहले से जानते हैं !

रात को डिनर के वक्त भी राघव ने उसके साथ ही खाना खाया और सुबह नाश्ते में क्या खाना है बता दो वही बन जाएगा !

जो भी आप चाहे ! वो थोड़ा शरमा कर बोली थी !

जब कमरे में आई तो देखा पापा की कई मिस काल पड़ी हुई है ! ऐसे ही छ्ह दिन कब गुजर गए पता ही नहीं चला !

दो दिन बचे थे एक दिन शहर के आसपास के दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए और दूसरा दिन समापन का फिर घर वापसी !

आज उस पहाड़ी स्थल पर दर्शन के लिए जाना था जहाँ का मौसम बहुत ठंडा था इसलिए उसने आज ब्लेक जींस और व्हाइट कलर का टॉप पहना हुआ था उस पर जैकेट डाल ली ..कानों मे बड़े बड़े व्हाइट ईएयरीङ्ग्स उसके चेहरे की शोभा को बढ़ा रहे थे ! जब तैयार होकर उसने अपने चेहरे को आईने में देखा तो वो खुद पर ही मोहित हो गयी !

रास्ते में जब सबको कुछ हल्का फुल्का खाने के लिए मूँगफली चने दिये गए तो उसे भी देने के लिए जब राघव उसके पास आए तो उसने अपनी दोनों हथेलियाँ जोड़कर उनके सामने कर दी !

हे भगवान ! कैसा जमाना आ गया है कि हाथ फैलाते शर्म नहीं आती ! अगर आंचल होता तो झोली भरकर मिलता और हाथ भी नहीं फैलाने पड़ते !

बस में बैठे सब लोग उनकी बात सुनकर हँस पड़े और उसे शर्म का अहसास हुआ ! उसने सोच लिया अब चाहे कुछ भी पहने वो गले में स्टॉल जरूर डालेगी !

बस में अंताक्षरी चल रही थी कभी कोई अपने किस्से सुनाने में मगन था लेकिन वो इन सब चीजों में पार्टीसिपेट ही नहीं कर पा थी क्योंकि यह उसकी पहली पहाड़ी यात्रा थी तो उसका मन बड़ा कच्चा कच्चा हो रहा था ! पारुल जैसे ही बाहर की तरफ झाँकती उसे उल्टियाँ आनी शुरू हो जाती ! पूरा सफर उल्टियों में ही कट गया और अब इतनी ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही थी कि वॉल्वो से बाहर निकल कर कुछ भी देखने और घूमने का मन ही नहीं हो रहा था !

क्यो क्या हुआ तुझे ? तेरा मुंह क्यों उतरा हुआ है भूख लगी है !

नहीं जी घबरा रहा है !

चल देखते हैं अगर कहीं पर मेडिकल की शाप दिखी तो दवा दिला देंगे !

वहाँ पर वो नेचुरल वाटर फाल देखकर थोड़ी देर को जी का घबराना रुक गया था ! बेहद रमणीय स्थल था इतना खूबसूरत कि वहाँ से जाने का मन भी न करे ! सब लोग खाना खा रहे थे सूखे आलू पूरी और अचार ! यही पैकेट उसे भी मिला लेकिन अंदर से कुछ भी खाने की कोई इच्छा ही नहीं !

वो एक साइड में जाकर खड़ी हो गयी ! सभी लोग उससे पुछने लगे क्या हुआ तुझे कुछ खाना नहीं है ?

अरे छोड़ो, रहने दो, मत पुछो इससे, इसने दान ही नहीं किया है तो खाएगी कहाँ से ! उनकी बात सुनकर सब लोग हँस पड़े ! अब तक उसके मन में उनके प्रति एक मज़ाकिया किस्म के हंसमुख व्यक्ति की छवि बन चुकी थी ! वैसे हम जैसे जैसे इंसान को बरतते जाते हैं उसके लिए अपने मन मे धारणा बनाते जाते हैं क्योंकि इंसान को बरतने के बाद ही उसे अच्छे से समझा जा सकता है !

बेहद हंसमुख और खुशदिल इंसान जिसे हर किसी के सुख दुख की एक बराबर सी फिक्र लगी हुई थी और पूरी तरह से सबका ख्याल रख रहे थे ! न जाने कैसे किसी का भी दुख समझ जाते थे ! अगर वो न आती तो एक बहुत ही प्यारे इंसान से मिलने से वंचित रह जाती !

तभी उसे याद आया कि वो तो यहाँ आने का कभी सोच ही नहीं पाती, अगर उसे प्रकाश ने न कहा होता या फिर आने के लिए इतना आग्रह न किया होता !

प्रकाश ने जब वहाँ आने के लिए उससे कहा था तो उसने साफ मना कर दिया था कि नहीं वो नहीं आना चाहती ! घर में कोई भी उसे अकेले आने की इजाजत ही नहीं देगा और वो आज तक कभी कहीं अकेले गयी ही नहीं है !

तो क्या हुआ अकेले आओगी तभी तो दुनियाँ देख पाओगी अपनी खुली आजाद आँखों से ! लेकिन न जाने क्यों उसका खुद का मन भी जाने का नहीं था !

ठीक है जैसा भी होगा वो आपको बता दूँगी उस समय ऐसा कहकर उसने प्रकाश को टाल दिया !

चलो अपनी तैयारी रखना ! कितने महीने पहले ही वे उसको बार बार याद दिलाते रहे थे !

उस दिन जब वो माल में यूं ही घूम रही थी कि प्रकाश का फोन आ गया !

हैलो, कहाँ हो तुम ?

जी मैं माल में शॉपिंग कर रही हूँ !

क्या खरीद लिया ?

अभी तक तो कुछ भी नहीं, कुछ समझ ही नहीं आया !

तुम्हें कुछ समझ क्यों नहीं आता ? हर समय कंफ्यूज क्यो रहती हो ?

पता नहीं क्यों ?

अच्छा यह बताओ, यहाँ कब पहुँच रही हो ?

कहाँ पर ?

अरे तुम यह भी भूल गयी ? कितने दिनों पहले तुम्हें बता दिया था !

ओहह ! अब उसे ध्यान आया ! अरे आप वहाँ पहुँच भी गए ?

क्यों नहीं पहुंचता ! तुम्हारी तरह लापरवाह तो नहीं हूँ न !

ओहह सॉरी ! मैं तो बिल्कुल भूल ही गयी, मेरे दिमाग से निकल गया था !

ठीक है फिर अब याद दिला दिया, जल्दी से तैयार होकर आ जाओ !

एकदम से कैसे? पहले घर से परमीशन लेनी होगी ! घरवाले ऐसे भेजने को भी राजी नहीं होंगे, जब तक उनको सब बातें और चीजें पता नहीं होंगी !

हे ईश्वर, यह लड़की कितनी बातें बनाती है !

अरे सच ही तो कह रही हूँ कहते हुए वो मुस्कुरा दी थी !

अभी आपको थोड़ी देर में फोन करती हूँ !

रुको पारुल ! एक मिनट जरा डायरेक्टर साहब से बात करो !

जी !

हैलो !

जी नमस्कार सर !

नमस्ते जी, नमस्ते जी ! क्यों इतनी देर से परेशान हो रही है ? आ जाओ यहाँ आकर बहुत कुछ सीखने को ही मिलेगा !

जी !

ठीक है, कल तक आ जाना !

उनकी आवाज में न जाने कैसा जादू सा था कि वो उनको मना ही नहीं कर पाई !

जी, आती हूँ !

केवल उनके इन चंद शब्दों ने उस पर ऐसा जादू सा किया कि वो जाने का मन बना बैठी ! उनकी आवाज अपनी तरफ खींच रही थी जैसे चुंबक लोहे को अपनी तरफ खींचता है ठीक वैसे ही ! घर आकर बैग निकाल कर कपड़े लगाए और मम्मी से सब बता कर बोली !

मम्मी जाने दो प्लीज ! ऐसा मौका बार बार नहीं मिलेगा !

पहले पापा से बात करो !

मम्मी आप पापा से बात कर लो न !

ठीक है पहले मेरी वहाँ पर किसी से फोन पर बात कराओ !

खुशी से चहकते हुए पारुल ने प्रकाश का फोन नं मिला लिया !

हाँ पारुल क्या बात है ? आ रही हो न ?

आप जरा डायरेक्टर जी से बात करा दीजिये ! मेरी मम्मी को बात करनी है !

ओके अभी कराता हूँ !

मम्मी भी ना जाने कैसे पूरी तरह से बात को समझ गयी ! अब पापा को मना लेना मम्मी का बाएं हाथ का काम था !

यह एक सरकारी कार्यक्रम है जहाँ पर उन बच्चों को बुलाया जाता है जिनको लिखने पढ़ने का शौक हो और वे आगे लेखन में कुछ करना चाहते हैं खासतौर से हिंदी को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है और अहिन्दी भाषी लोगों को ज्यादातर बुलाया जाता है ! मम्मी ने पापा को बताया था ! सुनो, जाने दो न पारुल को इसे भी तो लेखन में कितना शौक है, कुछ सीख कर ही आएगी बड़े प्यार से मम्मी ने पापा को समझाया ! वो जाने को तैयार हो गयी ! सब कुछ अनायास ही हुआ ! कहते हैं न, जब कुछ अच्छा होना होता है तो यूं ही अचानक से हो जाता है !

ना जाने कौन सी वो शक्ति थी जो उसे अपनी तरफ खींच रही थी ! उसे यूं महसूस हो रहा था जैसे कोई पुकार रहा है, आवाजें लगा रहा हैं !

और वो बिना डोरी किसी चुम्बकीय शक्ति से खींची चली जा रही थी ! आज तक कभी भी ऐसा नहीं हुआ ? ये क्या हो रहा है उसे ? मन इतना क्यों बेचैन है ?

उसे जाना ही होगा क्योंकि अगर वो नहीं गयी तो यह मन प्राण कहीं अनंत में उड़ जाएंगे !

कोई उसका इंतज़ार कर रहा है वहाँ ! लेकिन कौन ? यह उसे नहीं पता था !

प्रकाश तो इतने दिनों से कह रहे थे पर वो उनकी बात को बराबर टाले जा रही थी ! आज एक घंटे के अंदर कैसे सब तैयारी हो गयी !

***