Aekant nahi akelapan books and stories free download online pdf in Hindi

एकान्त नहीं अकेलापन

देखते ही देखते बादलों ने सूरज को अपनी आगोश में ले लिया। अंधेरा छा गया, बादलों की गर्जन सुनाई देने लगी। घनघोर काली घटा छा गयी।

इधर एक घटा उसके मन के भीतर भी छा रही थी, अंधकार बढ़ता ही जा रहा था, अंतर्मन में विचारों के बादल उमड़ घुमड़ रहे थे।
कब... कहाँ... क्यों... और कैसे... इन प्रश्नों का कोई औचित्य नहीं रह गया था। सिर्फ औऱ सिर्फ एक ही प्रश्न सामने खड़ा था... अब आगे क्या??
बेहद प्यार करने वाला पति, निखिल...जिसकी चाहत और जरूरत दोनों ही वह थी, जो उस पर जान छिड़कता था। शादी के बाद कितनी खुश थी ममता... समय मानो पंख लगाकर उड़ रहा था... दो प्यारे प्यारे बेटे... आदित्य और अर्णव...

निखिल कॉलेज में प्रोफेसर था। उसी के कॉलेज में कंप्यूटर विभाग की गेस्ट फैकल्टी शबीना से निखिल की घनिष्ठता कब प्यार में बदली, कोई जान नहीं पाया।
"जान मैं मजबूर हूँ... शबीना को नहीं छोड़ सकता.. घर और बच्चों की जिम्मेदारी पूरी करूँगा.. " और वो दूसरे शहर में ट्रांसफर करा के शबीना के साथ रहने लगा।

ममता एकबारगी तो टूट ही गई। फिर बच्चों के लिए खुद को संभाला, निखिल घर आता, घुलमिल कर रहता, बच्चों की फीस, घरखर्च सब वही संभालता... पर हाँ ममता के बेडरूम में उसका प्रवेश निषिद्ध हो चुका था। ममता ने परिस्थिति से समझौता कर लिया था। सब कहते एक दिन जरूर लौट आएगा... आखिर पराई लड़की कितना साथ निभाएगी... बच्चों से घर से लगाव तो है ही... ममता सुनकर चुप रह जाती।

दोनों बेटों की शादी धूमधाम से हुई। निखिल ने सारी रस्मे निभायी, खर्च भी जी खोल कर किया।
बेटे नौकरी के चलते दूसरे शहर में सेटल हो गए। लाख उनके कहने पर भी ममता ने अपना घर नहीं छोड़ा, अध्यात्म की ओर झुकाव तो पहले से था... अब किताबें पढ़कर पुरानी यादों के साथ जिंदगी गुजर रही थी।
अचानक एक दिन निखिल सामने आकर खड़ा हो गया... बोला "सुबह का भूला शाम को घर लौट आया है..." उसकी आशा के विपरीत ममता ने उसे बिठाया। चाय लेकर आई और टी वी चालू कर दिया। वह बहुत सी बातें करना चाह रहा था, माफी मांगना चाह रहा था, परन्तु ममता उसकी उपेक्षा कर रही थी।
बात करना तो दूर उसकी तरफ देख भी नहीं रही थी।

काफी देर बाद बहुत हिम्मत करके वो बोला... "जान मुझे मेरी गलती का एहसास है, मुझे माफ़ करदो... मुझे स्वीकार कर लो..."

बहुत सोच विचार कर ममता आसमान की ओर देखती हुई बोली...
"तुम्हे याद है जब बच्चे छोटे थे और सासू माँ हमारे साथ थी तब हम एकांत के लिए तरसते थे..."

"हाँ हाँ जान मुझे सब याद है.. देखो अब फिर से सिर्फ तुम मैं और ये एकांत..." वो चहककर बोला।

"जब तुम चले गए थे और बच्चे मुझे खुश करने के कारण ढूंढते थे... ढेरो बातें करते.. मुझे अकेला नहीं रहने देते थे... तब सबके साथ रहकर भी अकेलापन महसूस होता था... " ममता शून्य में निहारती बोले जा रही थी।
"अकेलापन सालता है, एकांत नहीं...और अब सबके जाने के बाद मुझे बहुत मुश्किल से ये एकांत मिला है... अब यही मेरा साथी है... इसमें किसी का दखल मुझे बर्दाश्त नहीं होगा..."

अचानक ही तेज़ बारिश शुरू हो गयी... बाहर भी और मन के भीतर भी....

©डॉ वन्दना गुप्ता
मौलिक