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कशिश - 29

कशिश

सीमा असीम

(29)

वाह संग्रहालय, हाँ ठीक है !चलिए पर न, एक भी क्षण गबाए बिना उसने एकदम से कह दिया ! क्योंकि अँधा क्या चाहे दो आँखे और उसे तो राघव का साथ चाहिए किसी भी तरह से भी मिले !

वो एक बेहद खूबसूरत संग्रहालय था ! दीवारों पर सुन्दर भित्ति चित्र बने थे और एक एक चीज ऐसे करने सजी हुई वहां की पुराने ज़माने की कलात्मकता को दर्शा रही थी ! कितनी देर तक राघव एक एक चीज के बारे में बताते रहे ! कितना अच्छा लगता है जब राघव उससे बातें करते हैं और सिर्फ उससे ही कहते रहते हैं, समझाते रहते हैं, न जाने क्या क्या, कितना ज्ञान है इनको, हर चीज के बारे में, हर शहर को, प्रदेश को इतनी बारीकी से जानते हैं कि पूछो ही मत ! इतनी अच्छी तरह से हर बात को बताते और समझाते हैं कि जो बात समझ में न आने को हो, वो भी समझ आ जाती है !

चलो अब वापस चले पारुल, बहुत देर हो गयी है ! राघव ने बड़े प्यार से उससे कहा !

हाँ हाँ चलिए ! पर वापस जाने का बिलकुल भी मन नहीं था फिर भी उसके प्यार से बोलने पर वो भी उस पर निसार होती हुई बोली !

पारुल कल गांव चलना है ! सुबह जल्दी निकलेंगे !

हाँ ठीक है और भी कोई जाए तो उसे भी ले लेंगे !

हाँ हाँ क्यों नहीं ! उसने थोड़ा बुझे स्वर में कहा क्योंकि वो चाहती है राघव सिर्फ उसके साथ रहे और सिर्फ उससे ही बात करे हालांकि वो जानती है कि यह सोचना गलत है लेकिन प्रेम में गलत और सही का कुछ ध्यान कहाँ रहता है !फिर अगर प्रेम बांध ले, जकड़ ले तो प्रेम स्वार्थी है प्रेम मुक्त करता है खुला आकाश देता है ! तभी सच्चा प्यार है लेकिन इस मन को यह सब समझाना कितना मुश्किल है !

सुबह जाने के लिए राघव ने जीप बुलाई थी ! उसमें आराम से दस लोग जा सकते थे ! यह राघव भी न प्रेम का मतलब ही नहीं समझता है ! न जाने कैसे अहसास मन में भरता रहता है ! हे ईश्वर, इसे बुद्धि देना ! पारुल ने अपने दोनों हाथ हवा में उठाते हुए कहा ! जीप होटल के गेट पर आकर खड़ी हो गयी थी ! सबसे पहले तलत फैजान के साथ निकली और पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गयी ! यह कल जाने के लिए मना कर रही थी ! अब अचानक रात भर में ऐसा क्या हुआ जो यह फैजान के साथ जा रही है ! कल सुबह फैजान पारुल से भी बात कर रहा था लेकिन पारुल को उसकी बातें समझ नहीं आयी उसने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया, तभी यह तलत के पास चला गया था और उसके साथ बातों में लग गया था ! दोनों खूब देर तक हँसते मुस्कुराते हुए बातें करते रहे थे ! वैसे कितनी अजीब सी बात उसने पारुल से कही थी कि इस दुनिया में इंसान सिर्फ तीन चीजों के लिए जीवित है ! खाना, पीना और सेक्स, कितनी गन्दी बाते करता है, यह बातें उसे समझ ही नहीं आयी थीं ! न उसकी बातें, न ही उसका नजरिया और न उसका उसे देखने का तरीका ! उफ़ कितने गंदे, गंदे लोग इस दुनिया में भरे पड़े हैं जिनको खाने पीने और सिर्फ सेक्स के अलावा कुछ नजर नहीं आता ! यही लोग तो गंदगी फैलते हैं समाज में, देश में, दुनिया में ! क्राइम इनकी बजह से ही बढ़ रहे है ! आतंक में भी ऐसे ही लोगो का हाथ होता है !

यह राघव कहाँ गए ! वे तो सबसे पहले निकल कर आते हैं और आज अभी तक नहीं आए ! पारुल ने इधर उधर नजरें घुमाई, देखा सामने से हाथों में पैकेट पकडे चले आ रहे हैं ! अच्छा कल जो वादा किया था उस लड़की से सामान लेन के लिए वही से आ रहे हैं ! यह वाकई बहुत ज्यादा फ़ास्ट हैं और मेनका मैडम कहीं नहीं दिख रही ? क्या वे नहीं गयी ? मन में सवाल सा पैदा हुआ ! शायद पीछे हो क्योंकि राघव के पास दुगुना सामान लग रहा था ! बैठो जल्दी से मैं अभी सामान कमरे में रखकर आता हूँ, वे करीब आते हुए बोले !

जी ! वे सरपट दौड़ते हुए से चले गए ! पारुल ने देखा, तलत ने फैजान का हाथ अपने हाथ में ले रखा है और उसके साथ न जाने क्या घुसुर पुसुर बातें कर रही है !

लगता है तलत को फैजान की बातें समझ आ गयी क्योंकि हंसी तो फंसी !

पारुल जीप के अंदर बैठ गयी थी, राघब भी लपकते हुए से आये और ड्राइवर के पास वाली सीट पर बैठ गए ! यह राघव भी न एक तरह से मन के हीन हैं ! तभी तो मेरे मन की कोई भी बात समझते ही नहीं हैं ! मत समझने दो, जाओ उसे अपने ऊपर ही थोड़ा गुस्सा आया ! न जाने कैसे इंसान से प्यार कर बैठी, बुद्धू कहीं की, कुछ लोग और भी आये, वे सब बैठ गए तो राघव बोले, चल भाई जल्दी से चल देर न कर !

अरे मेनका मैडम तो आयी ही नहीं उसने सोचा, पूछ लूँ फिर खुद को ही बोली, हुंह जाने दो, मुझे क्या करना !

मेनका मैडम बीमार वे नहीं जा पायेगी तभी मैं सामान भी दुकान से ले आया ! राघव एकदम से बोले !

ओहो ! यह तभी इतना सामान पकडे लिए चले आ रहे थे ! यह मेरे होकर भी मेरे नहीं हैं और किसी के न होकर भी सबके हैं ! हे ईश्वर, मेरी मदद कर उसकी समझ से परे है सब कुछ समझ से परे !!

ये आँखें बंद करके क्या बुदबुदा रही है ! सुन पारुल !

वो चौंकी, जी कुछ भी तो नहीं, बस यूँ ही !

सुनो यह बताओ तुमने कभी पहाड़ी गांव देखा है !

जी नहीं, मैंने मैदानी इलाके वाले गांवों को भी बस दूर से ही देखा है कभी करीब जाकर देखने का मौका ही नहीं मिला !

चलो फिर तुम आज पहाड़ी गांव को करीब से देखना ! जीकर और महसूस करके भी देखना ठीक है न !

जी !

हे भगवान इतना बोलने के बाद सुनने को मिला सिर्फ जी ! कहकर बड़े जोर से खिलखिला कर हँसे राघव ! एकदम जिंदादिली से जीने वाले इंसान लेकिन इनकी कुछ आदते बिलकुल पसंद नहीं ! पर क्या कर सकते हैं ! हम किसी दूसरे को कभी नहीं बदल सकते हैं ! हाँ, खुद को बदलना बेहद आसान है और खुद को बदलने से हो सकता है सामने वाला भी आसानी से बदल जाए ! जीप चलने लगी थी स्पीड बमुश्किल १५ या २० ! यहाँ पहाड़ों पर इससे ज्यादा तेज नहीं चल सकती है ! बस ज्यादा हुई तो २५ या ३० तक हाँ सर अपने बिलकुल सही पहचाना क्योंकि हर मोड़ बेहद खतरनाक है वैसे अगर तू मुझे चलने को दे दे तो मैं तुझसे बढ़िया चला कर दिखा दूंगा !

हाँ आपको देखजकर मुझे लग रहा है ! वे दोना बातों में मस्त थे और पारुल पहाड़ों की खूबसूरती देखने में लगी थी ! यह पहाड़ इतने प्यारे क्यों होते है, हरे भरे फल फूल जड़ी बूटियों से लदे ! यूँ ही जन्मों से शांत खड़े अपनी ही किस्मत पर कभी कभार पिघल उठते हैं !

उसने देखा सब अपनी अपनी बातों में मस्त हैं, कोई पहाड़ों की खूबसूरती की फोटोग्राफी करके, कोई अपनी बातों में तल्लीन और कोई यहाँ आकर भाव विभोर हुआ जा रहा था !

हाँ तलत और फैजान दोनों एक दूसरे का हाथ पकडे हुए बैठे हैं और अभी तक बड़े हल्के हल्के बातें कर रहे हैं !

न जाने क्यों उनका प्रेम प्रेम न लगकर कोई समझौते जैसा लग रहा था क्योंकि कल यही फैजान पारुल को अपनी बातों में उलझाने की कोशिश कर रहा था और अब यह सब ! वाकई आज के युग में प्रेम भी कम्प्यूटरीकृत हो गया है ! पल भर में लिखा और अगले पल डिलीट ! वाह जी वाह यह कमाल का युग ! इस युग को मेरा नमन, वंदन !

देख पारुल पहाड़ो पर धूप उतर रही है !

उतर रही है ? मतलब अभी सुबह को तो चढ़ती है न ?

अरे यह पहाड़ हैं ! यहाँ सुबह को उतरती है और शाम को चढ़ती है ! देखो ध्यान से तुम्हें उतरती हुई दिखाई देगी !

जी ! पारुल ने बड़े ध्यान से देखते हुए कहा !

हाँ सच में धूप ऊपर से नीचे की तरफ आ रही थी ! राघव के ज्ञान पर पारुल का मन नतमस्तक हो गया था ! यह कितना कुछ जानते हैं ! इनको सब कुछ पता होता है ! न जाने कहाँ से सीखा है ! जी चाहा पूछ लूँ उसके सोचने से पहले ही निकिता बोल पाई !

सर आपको यह सब बातें कैसे पता हैं ?

बेटा यह सब अनुभव की बातें है ! हर इंसान धीरे धीरे सब सीख जाता है !

करीब दो घंटे के पहाड़ी सफर के बाद सोमोरा गाँव आ गया ! इस गाँव का सम्मोहन हमें यहाँ तक खींच लाया था ! बाग़ हरियाली और दूर दूर पर बने हुए घर हर घर के आगे पेड़ पौधे लगे हुए एक घर से दूसरे घर को देखा जा सकता है लेकिन वहां तक पहुँचने में करीब आधा पौन किलोमीटर चलने के बाद पहुंचा जा सकता है !

अरे तलत, तू भी आयी है ?

हाँ जी, मेरा भी मन हुआ और मैं चली आई !

ठीक किया, अच्छा चल, इस पेड़ से जितने चाहें सेब तोड़ ले ! घर के सामने ही लगा हुआ था सेब का पेड़ ! उस पर लगे हुए फलों को देखते हुए राघव ने कहा

अरे सर, इस पर तो दोचार सेब ही लगे हैं !

हाँ तो क्या हुआ जितने हैं, वही तोड़ ले !

जी ठीक है ! उसने तोड़ने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही ! तब तक वहां पर गांव के छोटे छोटे बच्चे आस पास आकर खड़े हो गए थे ! छोटे छोटे प्यारे प्यारे गोल मटोल से बच्चे जिनकी उम्र पांच से दस या ग्यारह बरस के करीब रही होगी ! वे बड़े ध्यान से सब लोगों को देख रहे थे ! राघव उन से बात करने लगे तभी घर के अंदर से एक महिला निकल कर आयी जिसकी गोदी में एक साल का बच्चा था और वो प्रेग्नेंट थी ! उसने अपनी पांच साल की बच्ची को आवाज लगते हुए कहा, नीकु जरा यहाँ पर कुर्सियां दाल दो, इन लोगों को बैठने के लिए !

अरे नहीं बहन, हम लोग बैठेने नहीं, बस गांव घूमने लाये हैं !

बैठिये न आप लोग ! हम आप सबके लिए चाय बनाते है !

नहीं बहन, चाय रहने दो ! अभी तो हम सब यह सेब खाना चाहते हैं !

उसने जल्दी से गोदी के बच्चे को जमीं पर बिठाया और एक लड़के को पेड़ पर चढ़ा कर सेब तुड़बा लिए फिर उन्हें प्लेट में काट कर लोगों को दे दिए ! पारुल देख रही थी कि बच्चे को जमीं पर बिठाने के बाद भी वो शांत रहा और वो आठ नौ साल का बच्चा कितनी आसानी से पेड़ पर चढ़ गया ! सब कुछ अलग सा लग रहा था ! अभी वे कटे हुए सेब खा ही रहे थे कि एक छोटा सा बच्चा दौड़ता हुआ आया और अपने हाथ में पकड़ी हुई एक नीले रंग की बड़ी सी पन्नी राघव के हाथ में पकडाते हुए कहा, ये आपके लिए !

अरे इसमें क्या है बेटा ? ओह्ह इतने सरे सेब ! वे उसे खोल कर देखते हुए बोले, तुम कहाँ से लाये ?

हमारे घर के पेड़ों से ? वो बच्चा थोड़ा शरमाता हुआ बोला !

हम लोग बातें ही करते रहे और वो बच्चा अपने घर से सेब भी तोड़ कर ले आया ! कितने निर्दोष होते हैं बच्चे, बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी चाह के अपना प्यार और अपनापन लुटा देते हैं !

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