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कशिश - 31

कशिश

सीमा असीम

(31)

पारुल और राघव कमरे में आ गए थे ! आज राघव में उसे अपने गले से लगते हुए कहा क्या तुझे मुझ पर भरोसा नहीं है जो हर समय तेरी नजरे सवाली बनी रहती हैं ?

हाँ है न, लेकिन तब, जब तुम मेरे करीब होते हो तो ! सिर्फ मेरे साथ ही रहा करो न, सिर्फ मेरे बनकर !

लेकिन कैसे संभव है ? राघव ने उसके माथे को प्रेम से चूमते हुए कहा !

अच्छा अब तुम अभी मेनका मैम के कमरे में जाओ नहीं तो वे तुम्हें सूंघती हुई यही आ जाएँगी और उनकी सवालियां बातें तुम्हे परेशान कर देंगी ! राघव मुस्कुराते हुए बोले और हाँ जल्दी आ जाना !

मुझे चाय पीनी थी तेरे हाथ की बनी हुई ? बेहद नर्म और प्यारे लहजे में राघव बोले !

हाँ भाई, अभी जाकर आती हूँ और हाँ सुनो क्या मेनका मैम को भी साथ लेती आऊं ?

ले आना वे भी पी लेंगी और पारुल जब बाहर जाने को मुड़ी तभी राघव ने उसे एक बार फिर से अपनी बाहों में भर लिया और उसके गलों पर चुंबनों की बौछार कर दी, कितना प्रेम उमड़ आया था ! मानों पूरा समुन्दर ही लहराता हुआ उसके द

दामन में सिमट आया हो !

अरे अब छोड़ो भी, जाने दो मुझे ! आप भी न, अगर प्यार करेंगे तो इतना कि सागर की गहराई भी कम पड जाए और नहीं करेंगे तो तपते रेगिस्तान में दो बून्द पानी को भी तरस जाए !

मेरा प्यार तो ऐसा ही है पारुल, क्या करूँ ?

लेकिन यह सही नहीं है न! तुम मुझे ऑस की बून्द जैसा ही भले प्यार करो लेकिन रोज करते रहो, जिससे मेरे नेह की रसधार प्रवाहित होती रहे ! यह क्या कि कभी तो तड़पुं तपते हुए सूखे रेत में और कभी समुन्दर में नहा लूँ !

हे ईश्वर तू भीi न, मुझे चुप करा लेती है अपने तर्क से !

मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा !

यार तू हमेशा सच ही कहती है !

अब चलो चाय पीते हैं !

हाँ ठीक है ! पारुल मुस्कुराई !उसे पता था उसकी किसी भी बात का उन पर कोई भी असर नहीं होने वाला है ! वे तो वही करेंगे जो उनका मन करेगा खैर वो हमेशा यूँ ही बेपनाह प्रेम करती रहेगी ! रोज नियम से अपने प्रेम की रसधारा में डुबोती रहेगी ! पारुल कमरे से बहार निकल गयी और राघव बैड पर बैठ गए थे ! शाम का अँधेरा घिरने लगा था ! बदल पहाड़ियों पर मंडरा रहे थे, वे भी कहीं आश्रय तलाश रहे थे, किसी पहाड़ी को अपना आशियाना बनाना के लिए फिर उसी पर अपने गीले अस्तित्व के साथ लेटे रहेंगे, भिगोते रहेंगे, पहाड़ियों का दामन ! शुष्क पहाड़ियां फिर हरिया उठेंगी और उनमें फूल खिल उठेंगे ! मेनका मैम आराम से कम्बल ओढ़े सो रही थी ! उनको जगाने का मन नहीं किया ! कितनी गहरी नींद में हैं ! चलो इनको सोने दो ! कहीं इनकी तबियत ख़राब तो नहीं है ! उसे चिंता हुई फिर सर को झटका, कितना निरर्थक सोचती है ! वे सही हैं ! बस आराम कर रही हैं ! अब चाय का क्या करूँ ? छोड़ो थोड़ी देर मैं भी सो जाती हूँ फिर बाद में चाय पी लेंगे और वो भी कम्बल लेकर बेड पर लेट गयी और जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला !

पारुल, पारुल, उठो ! अभी डिनर का समय हो गया है ! मेनका मैम की आवाज उसके कानो में गूंज रही थी !

वो जल्दी से उठी ! देखा रात के नौ बज रहे हैं ! ओह्ह इतनी देर तक सोई रही ! मैं कितनी लापरवाह हूँ ! वहां राघव परेशान हो रहे होंगे और यहाँ मैं चैन से सोती रही ! पारुल ने सोचा !

जी अभी उठ रही हूँ कहते हुए जल्दी से कम्बल एक किनारे करके उठकर खड़ी हो गयी ! उसे डर लग रहा था कि अब राघव उसकी दाँट लगाएंगे ! कि चाय बनाकर पिलाने का वादा करके भूल गयी ! तुम्हें इतना सा ख्याल तक नहीं है ! तुम क्या प्यार निभा पाओगी ! प्रेम निभाना कोई बच्चो का खेल नहीं है ! कितना सोचती है ! हर बात पर खुद ही सवाल और जवाब करती रहेगी ! उसने वाशरूम में जाकर आँखों पर पानी के छींटे मारे और कैंटीन की तरफ चली गयी ! जहाँ मेनका मैम पहले ही राघव के पास जाकर बैठ गयी थी ! यह मेनका मैं भी न, इन्हें भी राघव के आलावा कोई और जगह नहीं मिलती है ! हमेशा उनके पास ही जाकर बैठ जाती हैं ! सीने में जैसे कोई धुआं सा उठा ! जाने क्या जल रहा है अंदर की जलन सी मचने लगी ! ओह्ह ये कैसी आग है जो सीने में धधक उठती है, जब भी राघव को किसी दूसरी महिला या लड़की के पास बैठे या बात करते हुए देखती हूँ ! समझ नहीं आता, क्यों है ऐसा ? पर हमेशा ऐसा ही होता है!

अरे पारुल क्या सोच रही है ? खाना नहीं खाना है !

आज चाय तो रह गयी, मैं कमरे में जाते ही ऐसा सोया की होश ही नहीं रहा शायद थकन की बजह से, अगर यह मेनका जी नहीं आती तो मैं सुबह ही उठता और सीधे तवांग पहुंच कर ही चाय शाय पीता !

अरे यह भी सो गए थे ? चलो मैं बच गयी ! पारुल ने मन में सोचा ! वाकई हम अपने मन में कितनी गलतफहमियां पाल लेते हैं जबकि सब कुछ अपने तरीके से सही ही होता रहता है ! यह प्रकृति सच में हमेशा हमारे साथ होती है और जो कुछ भी करती है हमारे भले के लिए ही करती है फिर क्यों इतनी चिंता और फ़िक्र ? पारुल मुस्कुराई और राघव की बराबर वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गयी !

यूँ प्रेम का होना किसी कमल के खिलने के सामान ही होता है और कमल का खिलना एक बहुत बड़ा वरदान है और ईश्वर का सशक्त हस्ताक्षर भी और उनका आभार भी की खिलना कमल का और महकना मन का ! दोनों ही ईश्वरीय सत्ता से भरपूर हैं ! आज उसने अपने मन के भीतर झाँका, वाकई ईश्वर अगर कहीं है, तो स्वयं के भीतर ही है और हर कण कण में है ! कहीं दूर जाने की जरुरत ही नहीं है ! अगर वो हमारे मन में और आसपास है !

अरे ओ देवी जी, क्या सोच कर मुस्कुरा रही हैं ? हमें भी तो पता चले,

कुछ नहीं भई, बस यूँ ही ! वो मुस्कुरा के बोली !

यूँ ही मतलब यूँ ही !

अरे यूँ ही वयूं ही छोड़ो और खाने पिने का देखो वैसे भी आज शाम की चाय तो गुल हो ही चुकी है ! रात का खाना तेरे सोचने और यूँ ही के चक्कर में गुल हो जायेगा ! कहते हुए राघव ने जोर का ठहाका मारा ! उन दोनों की बातें सुनती हुई मेनका मैम भी हंस दी जबकि वे अंदर से कुढ़ कर जल रही होंगी क्योंकि उन्हें कहाँ सुहा रहा होगा पारुल का राघव के साथ खुलकर हंसना और मुस्कुराना ! एक लड़के ने टेबल पर खाना लाकर सजा दिया था ! दाल, मिक्स सब्जी, पनीर, सलाद और रोटियां ! खाने की बड़ी सुगन्धित खुशबु उड़ रही थी और भूख ने अपना आसन छोड़ कर दिल और दिमाग में आकर अड़डा जमा दिया और जब तक तृप्त नहीं हो जाएगा मन, तब तक इसी तरह से हाहाकार होता रहेगा !

चल आ जा पारुल ! राघव ने कहा और टेबल पर जाकर बैठ गए !

यार सूप लेकर तो आओ, पारुल को बहुत पसंद है ! उन्होंने लड़के को आवाज लगते हुए कहा !

सर आज सूप तो नहीं बना है !

क्यों नहीं बना ? क्या तुम्हें पता नहीं है खाने से पहले सूप सर्व करते हैं ? वे बड़े गुस्से में बोले !

हे भगवन यह राघव भी न, बहुत गुस्सा करते हैं रहने दीजिये न राघव, आज मेरा सू प पीने का बिलकुल मन नहीं है ! मैं खाना खाउंगी ! बहुत तेज भूख लग रही है ! चल तुझे आज माफ़ किया क्योंकि पारुल को भूख लगी है और सूप पीने की इच्छा नहीं है ! चल बेटा एक काम कर, खाना खाने के बाद एक एक कप काफी पिला देना ! उनके लहजे में थोड़ी नरमी आ गयी थी ! जी ठीक है सर !

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