Kashish - 35 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

कशिश - 35 - अंतिम भाग

कशिश

सीमा असीम

(35)

ओह्ह यह उसे क्या हो जाता है ?

वो उसके प्यार में इतना मदहोश हो जाती है ! उसे कुछ भी होश ही नहीं रहता ! वो अपने आसपास से बेखबर होकर सिर्फ राघव को ही याद रख पाती है !

हे ईश्वर, उसे सद्बुद्धि दे ! वो अपनी इन गलतियों की वजह से ही अक्सर दुखी होती है ! राघव उसे दुःख नहीं देता है, वो स्वयं अपने लिए दुखों का पहाड़ खड़ा कर लेती है ! क्या करे वो ? कैसे खुद पर सब्र करे और कैसे जिए ? राघव के साथ होते हुए उसे दुरी बनाकर ! राघव की घूरती हुई नजरों का सामना करने से अच्छा है की यह ज़मीं फट जाए और वो उसमें समां जाए क्योंकि राघव के गुस्से का सामना करना उसके वश की बात नहीं है !

रास्ते जगह-जगह खराब है, कहीं कोई पहाड़ भुरभुरा कर गिर पड़ा है, कहीं, ऊपर ढलानों से बड़ी तेज बहती हुई नदी, सड़क के दूसरे ओर के खड्ड में गिर रही है।

कहीं कोई महिला सड़क के किनारे पत्थर तोड़ रही है ! उसका बच्चा उसके पेट से बंधा है और वो बड़ी तल्लीनता के साथ अपने काम में लगी हुई है ! तवांग नदी के किनारे बसा यह मठ बौद्धों का प्रसिद्ध मठ है। 300 साल पहले बने इस मठ को बौद्ध भिक्षु अंतरराष्‍ट्रीय धरोहर मानते हैं। इस मठ से पूरी तवांग घाटी का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। इसे दूर से देखो तो यह मठ किसी दुर्ग जैसा लगता है। इसके प्रवेश द्वार का नाम 'काकालिंग' है जो देखने में झोपडी जैसा प्रतीत होता है और इसकी दो दीवारों के निर्माण में पत्थरों का प्रयोग किया गया है ! इन दीवारों पर की गई खूबसूरती चित्रकारी लोगों को खासा अट्रैक्‍ट करती है।

अब बारिशों की बौछारें युगलबंदी कर रही थी और भीगने से बचने के लिए अभी लोग उन पेड़ों की छाया तले खड़े हो रहे थे जो मठ के विशाल प्रांगण में लगे हुए थे ! मठ के अंदर छोटे बड़े बौद्ध भिक्षु लाइन से बैठ कर पूजा कर रहे थे ! बेहद शांत और मन को सकूँ देने वाला अहसास हो रहा था ! मन कर रहा था कि सदा के लिए यहीं पर ठहर जाएँ !

सुदूर भारत का यह पहाड़ी प्रदेश वाकई एक नायाब तोहफा है, कुदरत का एक अनमोल करिश्मा है ! एक अपरिचित अनकही दास्तां सी आँखों के सामने परत दर परत खुलने लगी थी और हठात स्मृति में दस्तक दे बैठी, !

अरुण यह मधुमय देश हमारा, यहाँ पहुँच अंजान पथिक को मिलता एक सहारा”। प्रसाद जी ने शायद ये पंक्तियां भारत भूमि के इसी सुदूर प्रांत के लिए लिखी होंगी।

, अपने इस महती विशाल शस्य श्यामल और पुण्य देश की भूमि को लंबाई और चौड़ाई के आकार में साक्षात अपनी आँखों से देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं था ! यहाँ पहाड़ी भूमि पर लाल लाल मिट्टी, इसके अति उर्वर होने का संकेत करती हुई, अपनी सारी की सारी ऊर्जा देखने वालों की आँखों में झोंक कर उसे आत्मविमोहित सी करने लगती है !

पहाड़ी प्रदेश की महिलायें इतना कठिन काम अपने नाजुक शरीर के साथ कैसे कर लेती हैं, कैसे सब संभाल लेती है ! पारुल उन महिलाओं को देखती, कभी खुद को देखती ! उससे तो इतना कठिन काम नहीं हो सकता फिर यह कैसे कर लेती हैं शायद इनकी और उसकी परवरिश, रहन सहन आदि का अंतर होगा अन्यथा एक महिला का शरीर दूसरी महिला से अलग तो हो नहीं सकता है !

अरे पारुल क्या सोच रही है ? मेनका मैम ने टोंका !

मैम वो कौन सी कविता है ? वो तोड़ती पत्थर ? पारुल ने पूछ ही लिया !

मेनका जी के बोलने से पहले ही राघव बोलने लगे ! अरे यार तुझे वो कविता तक याद नहीं है ! कैसे पढाई की है और न जाने क्या क्या कहते हुए राघव को अनसुना करते हुए पारुल ने अपनी नजरे गाडी की खिड़की से बाहर की तरफ गडा दी ! कितना प्यारा और खूबसूरत नजारा ! इतने ऊँचे ऊँचे पर्वत श्रंखलाएँ, नदी झरने, पेड़, आखिर क्या नहीं है यहाँ, जो प्रकृति को और भी रमणीय बनाता हो ! बस अगर कुछ कमी है तो सिर्फ यह कि दूर दूर तक कोई पंछी नजर नहीं आता ! इंसान भी बहुत काम दिखते है !

यहाँ पर प्रकृति अपनी ध्यानमग्न अवस्था में शांत होकर किसी तपस्विनी की तरह से बैठी हुई है ! यहाँ आकर कुछ लोग इसे परेशान करते हैं ! इसके साथ छेड़छाड़ करते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि प्रकृति एक दिन अपने ऊपर किये गए अत्याचारों का बदला जरूर लेती है वो किसी को माफ़ नहीं करती ! अगर उसे प्रेम करोगे तो वो दुगुना करके प्रेम लौटा देती है और नफरत चार गुना करके !

अरे ओ मेरे भाई अब वापस कब चलने का विचार है ? सुन नहीं रही हो क्या, यहाँ से निकलना भी है !

जी ठीक है ! पारुल ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया !

वहाँ से निकल कर गेस्ट हाउस की कैंटीन में सबने खाना खाया ! ठंड से काँपते हुए वह गरम गरम स्वादिष्ट खाना बड़ा स्वाद लग रहा था ! लकड़ी की सुंदर नक्काशी से कलात्मक तरीके से सजा हुआ वो सरकारी गेस्ट हाउस में थोड़ी देर आराम करने के बाद यहाँ के मार्केट से जो भी शॉपिंग करना हो तो कर लेना ! पहले थोड़ी देर आराम कर लो ! बेमन से पारुल कमरे में आकर बैठ गयी लेकिन मन बाहर ही रह गया था ! उसी समय फोन की घंटी बज उठी !! चलो देख लेती हूँ किसका फोन है ..

हेलो !

पारुल !

आप कौन !

अरे मैं प्रकाश बोल रहा हूँ ! नंबर सेव नहीं किया था !

ओह्ह प्रकाश आप, फोन फॉर्मेट हो गया था तो सारे नंबर चले गए और आप कैसे हो ? इतने दिनों के बाद मेरी याद कैसे आ गयी ?

मैं तो हमेशा ही याद करता हूँ बस तुम्हारे फोन का इन्तजार कर रहा था कि कब आपको हमारी याद आये !

अच्छा !

आई लव यू पारुल, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ! मुझे स्वीकार कर लो मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता,मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ !

,,,,,

बोलो पारुल,कुछ तो बोलो ?

कैसी बातें कर रहे हैं आप ? क्या पता नहीं हमारे परिवार में शादी ब्याह की बातें लड़कियां नहीं बड़े लोग करते हैं !

तो मैं तुम्हारे पापा से बात करूँगा और तुम्हारा हाथ मांग लूंगा ! बोलो तुम्हारे घर कब आऊं ?

अभी तो मैं आउट ऑफ़ सिटी हूँ !

कहाँ हो ?

एजुकेशनल ट्रिप है !

कब आओगी ?

कल वापसी है !

बताया भी नहीं, मैं भी साथ आ जाता !

बॉयज अलाव नहीं थे १

ओह्ह, मिस यू पारुल तुम जल्दी आ जाओ ! मैं तुमसे शादी करके अपना घर बसाना चाहता हूँ !

ठीक है बाद में बात करती हूँ,ओके बाई,,

बाई पारुल, लव यु !

ओफ्फो, यह प्रकाश भी न, मेरा दिल नहीं धड़कता इनके नाम से और यह शादी करना चाहते हैं !

उसके उदास लबों पर मुस्कराहट आ गयी ! वो तो राघव से प्यार करती है और प्रकाश उसे,वैसे हमें जो प्यार करे हमें उससे ही शादी करना चाहिए, उससे नहीं जो जिससे हम प्यार करें ! पर सच में प्रकाश उसे चाहता है ! मैं क्या करूँ ? अपने दिल को कैसे समझा लूँ,? कुछ समझ नहीं आ रहा है ! पारुल ने एक गहरी स्वांस ली !

आई लव राघव, राघव आई लव यू ! उसका दिल जोर से पुकार उठा, राघव मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ मैं किसी और की नहीं हो सकती कभी भी नहीं !

बाहर से हलकी सी किसी के क़दमों की आहट उसके कानों में पड़ी ! कौन है बाहर, सब लोग तो थक कर सो गए हैं ! देखती हूँ, कौन है ? नींद तो आ ही नहीं रही है दिल का करार और मन का सकूँ सब खो गया है और राघव को उसकी जरा भी परवाह नहीं, आँख से आंसू छलक उठे ! दिल में तेज हूक उठी और आँखों से आंसू बहने लगे !

राघव तुम बहुत निर्दयी हो, सच में बहुत ही ज्यादा !

अपने बहते हुए आंसुओं के साथ ही वह बाहर निकल आयी, सामने ही राघव खड़े थे, अभी मैं इनको याद कर रही थी और यह आ भी गए, सच में दिल से दिल को राह होती है ! वो एकदम से राघव के सीने से लग गयी और फफक के रो पड़ी, यह तुम क्या कर रही हो कोई आ गया तो फालतू में यहाँ पर बहुत बदनामी हो जायेगी ! कब समझोगी कि प्यार एक भावना है कोई दिखाबा नहीं है !

राघव तुम्हें अपने नाम के बदनाम होने की पड़ी है और यहाँ मेरी जान निकली जा रही है !

मैं तुमसे दूर नहीं रह सकती, मैं तुमसे एक पल को भी दूर नहीं जाना चाहती हूँ !

हाँ पारुल, मैं भी तुम्हें चाहता हूँ, बहुत प्यार करता हूँ, तुम्हारे सिवा मेरे ख्यालों में तक कोई और नहीं ! आई लव यू पारुल ! राघव ने भी उसे अपने सीने से कस कर चिपका लिया ! जैसे कोई चीज अपने दिल में जज्ब कर रहा हो, अपने से कभी भी दूर न करने के लिए !

मैं घर चलकर सबसे पहले अपने घरवालों से बात करूँगा और तुम्हे सदा के लिए अपना बना लूंगा !

तुम सच कह रहे हो न राघव ! पारुल के गले से हर्ष मिश्रित रुंधी हुई आवाज निकली !

हाँ बिलकुल सच, कहते हुए राघव ने अपने हाथ से उसकी आँखों से बहते हुए आंसू पोंछ दिए !

चलो जाओ, अब थोड़ी देर आराम कर लो फिर बाजार घूमने चलना है !

नहीं राघव, तुम मुझसे दूर मत जाओ, मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ सिर्फ तुम्हारी ! इस आवाज के साथ ही बहुत तेज गर्जना हुई मानों बादल फट रहे हो, क्या हुआ है देख कर आता हूँ, नहीं राघव तुम कहीं मत जाओ ! मुझे बहुत डर लग रहा है !

कैसा डर, मैं हूँ न !

हाँ तुम ही तो मेरे हो, सिर्फ मेरे ! वो और कसकर उसके सीने से लग गयी, राघव ने उसके माथे को चूम लिया !

हाँ मैं तेरा ही हूँ सिर्फ तेरा ! तुमसे कभी दूर नहीं जाऊंगा ! हम सदा साथ रहेंगे ! हम दो नहीं एक है ! तभी बहुत तेज आवाज के साथ सामने वाला पहाड़ उस बिल्डिंग पर गिरा ! पल भर में सब पहाड़ के नीचे समां गया ! इस तरह की घटनाएँ पहाड़ों पर स्वाभाविक हैं लेकिन ऐसी तबाही पहली बार हुई थी जब पूरी बिल्डिंग इन्सानों के साथ पहाड़ों की भेंट चढ़ गयी !

वे एक हो गए थे हमेशा के लिए, प्रकृति ने उनको इस तरह से मिला दिया पल भर को भी कहीं एक दूसरे से दूर न जाना पड़े !

सीमा असीम, बरेली