Pariyo Ka ped - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

परियों का पेड़ - 14

परियों का पेड़

(14)

परीलोक का द्वार

फिर राजू की यह हालत देखकर बौनों ने एकबारगी ही अपनी हँसी रोक दी | जैसी किसी गाड़ी के पहिये ‘इमरजेंसी ब्रेक’ लगाकर रोक दिये गये हों | इस अनपेक्षित हँसी का दौर एकाएक ही रुक जाने से वहाँ कुछ देर को अनपेक्षित सन्नाटा सा छा गया | अब तक तीनों बौने एक के पीछे एक सावधान की मुद्रा में खड़े हो गये थे | एकदम चुप शान्त | शून्य की ओर कान लगाये हुए, जैसे किसी का संकेत या आदेश समझने का प्रयास कर रहे हों |

राजू समझ ही नहीं पाया कि इस ‘लाफिंग एक्सप्रेस’ के पहिये अचानक ही थम क्यों गये थे ? लेकिन उन बौनों की यह अप्रत्याशित शरारत बन्द होने और सतर्क होने की प्रतिक्रिया पर भी वह मुस्कराये बिना न रह सका |

कई क्षणों का यह सन्नाटा तब टूटा, जब सबसे आगे खड़े एक बौने ने राजू के सामने आदाब बजाने के अंदाज में झुक कर एक लम्बी सलामी दी | फिर कहने लगा – “हमारे लिये क्या हुक्म है, मेरे शहजादे ?”

“ओह ! क्क..कुछ नहीं, कुछ नहीं |” – राजू के मुँह से किसी आदेश के बोल न फूटे | सिर्फ जबान को होठों पर फिरा कर रह गया |

राजू की इस प्रतिक्रिया से बौने ने पता नहीं क्या अनुमान लगाया ? राजू उसे समझ न सका | किन्तु इसके बाद उस बौने ने कुछ कदम बाँयी ओर खिसक कर किसी बंदर की तरह गुलाटी मारी | फिर वह इतना ऊँचा उछला था कि उसके हाथ परियों के पेड़ की शाखाओं तक छू गये |

गुलाटी मारकर ऊँचा उछलने से पहले उसके दोनों हाथ खाली थे | मगर जब वह नीचे आया और जमीन पर सीधा खड़ा हुआ, तो उसके दोनों हाथों में चाँदी के एक – एक लम्बे गिलास चमक रहे थे | वह भी बेहद खुशबूदार शर्बत से लबालब भरे हुए | राजू को बड़ा आश्चर्य हुआ | क्योंकि गुलाटी मारने के बावजूद शर्बत की एक बूँद भी नीचे जमीन पर नहीं गिरी थी | भला कैसे ?

लेकिन उसे ज्यादा सोचने का मौका ही नहीं मिला | अब तक उस बौने ने राजू के सामने उन चाँदी के गिलासों में भरा शर्बत पेश कर दिया था | वह बड़ी ही लज्जतदार भाषा में कह रहा था – “लीजिये मेरे शहजादे ! गुलाबों और सत्रह प्रकार के अर्कों से बना हुआ यह मीठा, ठंडा, ताजगी और बेमिसाल स्वाद से भरा हुआ शर्बत – ए - खास अर्थात विशेष पेय पदार्थ आपके लिए पेश है |”

इन गिलासों में शर्बत की खुशबू महसूस करते ही राजू को बड़ी तेज प्यास महसूस होने लगी थी | अतः उसने न चाहते हुए भी एक गिलास हाथ में थाम लिया | लेकिन पीने से पहले एक पल को हिचकते हुए सोचने लगा – “न जाने यह बौने कौन हैं ? ....और यह शर्बत कैसा है ? मैं इन अजनबियों के हाथ से इसे पियूँ या न पियूँ ?”

वह इसी उलझन में पड़ा था, तभी उसे फिर से वही मखमली और मधुर आवाज सुनाई दी – “इसे पी लो राजू ! यह शर्बत खास तुम्हारे लिए ही है |”

इस बार राजू पहचान गया | यह अदृश्य आवाज उसी परी रानी की थी, जिसने उसे परियों के पेड़ तक आने का आमंत्रण दिया था |

परी रानी की आवाज पहचानते ही प्यास से बेहाल राजू पूरा शर्बत एक ही साँस में गटक गया | लेकिन शायद उसका मन नहीं भरा था | अतः बौने के हाथ में थमे दूसरे गिलास को देखते हुए वह अब भी होठों पर जीभ फिराता ही रहा | उसका यह हाल देखकर दूसरे बौने भी मुस्करा उठे | तब आगे खड़े बौने ने मुसकुराते हुए दूसरा गिलास भी राजू के आगे बढ़ा दिया | फिर तो बिना देर किये राजू इस दूसरे गिलास का शर्बत भी फटाफट गटक गया |

शर्बत पीते ही उसकी सारी प्यास गायब हो गई और शरीर में अनोखी ऊर्जा का संचार होने लगा | जैसे किसी हहराती हुई नदी की सैकड़ों लहरें, विद्युतीय तरंगों पर सवार होकर उसकी नसों में सिर से पैरों तक तूफान की तरह समाती चली गयी हों | अपनी ठंडक और ताजगी से उसके शरीर को नवजीवन भरी ऊर्जा दे गयी हों | बड़ा ही अनोखा अनुभव था ये | सचमुच वह जादुई शर्बत था | इतना स्वादिष्ट और अनोखा शर्बत उसने अपने जीवन में पहले कभी नहीं पिया था | उसकी सारी थकान अब जाने कहाँ छूमंतर हो चुकी थी |

अब राजू फुर्ती से उठकर खड़ा हो गया | उसने चारों ओर अपनी गर्दन घुमा - घुमा कर देखने का प्रयास किया | शायद उसकी नजरें परी रानी को खोज रही थी | अब तक कई बार उसने परी रानी की आवाज यहाँ सुना था | लेकिन वह जादुई आवाज कहाँ से आ रही थी ? वह समझ नहीं पाया था | उसे तो अब तक सिर्फ ये बौने ही दिखे थे |

वह चारों ओर आश्चर्यपूर्वक खोज रहा था | तभी सामने खड़े बौनों के ठीक पीछे से आवाज आयी – “किसे खोज रहे हो राजू ?”

ये बड़ी अपनत्वपूर्ण और जानी – पहचानी सी आवाज थी |

राजू आवाज की ओर पलटा तो आश्चर्यचकित रह गया |

उसने पहचानने का प्रयास किया - यह वही परी रानी थी, जो कल रात उसे राह दिखाने लायी थी | वही सुंदर दमकता हुआ चेहरा, चमकते हुए आभूषण और कीमती वस्त्रों वाली | सिर पर रत्नों से जड़ा मुकुट और हाथ में जादुई छड़ी लिये हुए | वह उन बौनों के ठीक पीठ पीछे कब और कहाँ से आ गयी थी ? कुछ समझ नहीं आया |

राजू का सिर चकरा कर रह गया था | लेकिन उसे इस बार भी कुछ सोचने का अवसर नहीं मिला | परी रानी उसकी उँगली पकड़ कर बोली – “राजू ! ये मैं ही हूँ | यहाँ परियों के पेड़ पर बसे परी लोक की रानी और तुम्हारी परी माँ |”

“ओह, परी माँ!” – कहते हुए राजू परी रानी से बुरी तरह लिपट गया |

राजू की आँखों से झर – झर आँसू बहने लगे थे | लेकिन यह खुशी के आँसू थे | यात्रा की मुश्किलों के नहीं | यह तो परी माँ से मिलन के आँसू थे, ……जो उसकी माँ की यादें लेकर आई थी | ……..उसकी माँ के जैसा प्यार और दुलार लेकर आयी थी | कुछ पलों के लिए ही सही, लेकिन कई वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद मिलने वाली हजार खुशियाँ लायी थी |

परी रानी ने भी झट से राजू को गोद में उठा लिया | हृदय से चिपका लिया | खूब चूमा, दुलार किया | शायद राजू को उसकी सगी माँ जैसा ही प्यार किया | राजू निहाल हो गया | कुछ देर बाद पूरी तरह संतुष्ट होकर वह परी माँ की गोद से नीचे उतरा |

तब परी माँ ने पूछा – “अब चलें राजू ?”

“कहाँ ?” – राजू ने प्रतिप्रश्न किया |

“वहीं, जहाँ पहुँचने के लिए तुम इतनी दूर तक आये हो ?”

“जरूर परी माँ! परीलोक देखना तो मेरा कब का सपना है |”

“लेकिन जरा एक क्षण को रुकना |” – राजू ने जिज्ञासा से परी रानी की ओर देखा |

अब परी रानी ने अपनी जादुई छड़ी को सीधा किया | फिर सामने खड़े हुए राजू के चारों ओर घुमा दिया | फिर धीरे से बुदबुदाई – “जादुई छड़ी कर छू मंतर, जो जल्द मिटा दे ये अन्तर | चल दिखा दे अपना चमत्कार, राजू बन जाये राज कुमार |”

परी का संकेत होने की देर थी | इसके साथ ही वहाँ मानो बिजली कौंधी | प्रकाश की किरणों का एक तेज झमाका हुआ | राजू का पूरा शरीर एक पल के लिये चारों ओर से उभरी तेज रोशनी से नहा उठा | फिर राजू को अपना शरीर कुछ भारी – भारी सा लगने लगा | जैसे किसी ने उसके शरीर पर अचानक ही कोई बोझ डाल दिया हो | उसने एक पल को, एक प्रकार की बेचैनी भी अनुभव की थी | लेकिन जैसे ही वापस अपने शरीर उसकी नजर पड़ी तो वह चौंक गया | वह अपने आपको फटी – फटी आँखों से देखता और सोचता ही रह गया |

यह क्या ? उसके मैले कुचैले और पुराने कपड़े जाने कहाँ गायब हो गए थे? उन कपड़ों की जगह अब उसके शरीर पर भारी, सुंदर और रेशमी कपड़े सज गए थे | शानदार शेरवानी और पाजामा | बाँये कन्धे पर नया – नवेला सितारों जड़ा, सोने चाँदी के तारों की कढ़ाई से जगमगाता हुआ दुपट्टा | गले में सफ़ेद मोतियों की चमकती हुई माला | सब कुछ असली राजकुमार जैसा | ठीक वैसा ही, जैसा कि वह अब तक राजा – रानी की कहानियों में सुनता आया था |

अपने कपड़ों को देखते हुए राजू की नजर नीचे पैरों तक चली गयी | वहाँ नजर पड़ते ही उसकी आँखें चुंधिया गई | उसके पैरों में चमचमाती हुई, लम्बी नोकदार सुनहले रंग की जड़ाऊ जूतियाँ दमक रही थी | वह बुदबुदाया - “अरे वाह ! ये तो सोने की जूतियाँ लगती हैं |”

सिर झुकते ही उसे अपना सिर भी कुछ भारी – भारी सा लगा था | जैसे उस पर किसी ने वजनदार गठरी लाद दी हो | वह फिर बुदबुदाया – “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है ?”

राजू ने इसका रहस्य जानने के लिये अपना हाथ ऊपर करके सिर पर टटोलने की कोशिश की | अब जो वस्तु उसके हाथ में स्पर्श हुई, उसे टटोल कर वह और ज्यादा हक्का – बक्का रह गया | उसने धीरे से वह वस्तु संभालते हुये उतार कर अपने हाथों में ले ली, फिर उसे पहचान कर फटी – फटी आँखों से देखता ही रह गया |

राजू के सिर पर राखी हुई यह भारी वस्तु सोने से बना और हीरे – मोती से जड़ा हुआ एक मुकुट था, जो अपनी अनोखी आभा से चमचमा रहा था | राजू ने बार – बार उस मुकुट को उलट – पुलट कर देखा | वह उसके बहुमूल्य सौन्दर्य को देखता ही रह गया | उसमें जड़े हुए रत्नों से प्रकाश की सतरंगी किरणें फूट रही थी | उसको ऐसी चमक - दमक वाला राजसी मुकुट कभी अपने सिर पर रखा हुआ मिलेगा, ऐसा तो राजू ने सपनों में भी नहीं सोचा था | साक्षात देखना तो बड़ी दूर की बात थी |

तब परी रानी ने बड़े प्यार से राजू के हाथ से वह मुकुट अपने हाथ में लिया और फिर से उसके सिर पर रख दिया | अपने दोनों हाथों से उसकी बलैयां लेते हुए बोली – “मैं वारी जाऊँ | मेरे राजू को किसी की नजर न लगे | एकदम परीलोक का राजकुमार लग रहा है |”

----------क्रमशः