Pariyo Ka ped - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

परियों का पेड़ - 19

परियों का पेड़

(19)

चाँद का झूला

जब राजू को यह सवाल ज्यादा परेशान करने लगा तो उसने परी माँ से पूछना ही बेहतर समझा - "उस चाँद वाली बुढ़िया का रहस्य पता है आपको ? आखिर कहाँ चली गयी होगी आज ?"

परी माँ ने बताया – “राजू ! तुम्हारी चाँद वाली बुढ़िया की तो हमेशा के लिए छुट्टी हो गई है |”

“हाँय.....! भला ऐसा क्यों ?” – राजू ने आश्चर्य से पूछा |

परी माँ ने कहा – “जब से तुम मनुष्यों के पाँव सचमुच चाँद पर पड़े हैं, तब से उस बुढ़िया की पोल खुल गई है | वह अचानक ही गायब हो गई है | यहाँ से भी और नई बनने वाली किस्से - कहानियों से भी | वैसे भी कोई एक ही जगह पर रोज बैठ कर कितना चरखा कातेगा ? .....और कात भी लेगा तो अकेले रहकर उस सूत का करेगा क्या ? फिर यहाँ तो कपास भी नहीं मिलता, इतना सूत किस चीज से कातेगा ?”

“हाहा....हाहा....|” - परीरानी की बात पर राजू अनायास ही हँस पड़ा |

परीरानी आगे कहने लगी – “यह तो तुमने भी पढ़ा होगा कि मनुष्यों की खोज में भी यहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखा | इसके ज़्यादातर हिस्सों में तो अभी सिर्फ गड्ढे, घाटियां और धूल-धक्कड़ ही दिखती है | यहाँ पीने के लिये पानी तक उपलब्ध नहीं है | आखिर वो बुढ़िया ऐसे वातावरण में कितने दिनों तक जीवित बचती ? आखिर वो कोई परी तो थी नहीं | है न ?”

राजू ने फिर एक बार ठहाका लगाया – “ हाहा......हाहा ......| आप भी बड़ी मजेदार बातें करती हैं परी माँ |”

राजू कुछ सोचकर आगे फिर से पूछ पड़ा – “लेकिन एक बात और बताइये | ये आपका झूले वाला चाँद तो बड़ा साफ सुथरा और जगमग दिख रहा है | न घाटी न गड्ढे, न धूल – धक्कड़ ? भला यह कैसे ?”

राजू के चेहरे पर जिज्ञासा की ऐसी परछाइयाँ देखकर परी रानी भी खिल-खिलाकर हँस पड़ी | उसके हँसने से उसके मोतियों जैसे दाँत चमचमा उठे | जैसे लाखों चमकते हुए सितारे बिखर गये हों | राजू चमत्कृत सा देखता रह गया |

परी रानी मुसकुराते हुए कहती जा रही थी – “ राजू ! तुम्हें सच बताऊँ ? ये धरती वाला असली चाँद नहीं, बल्कि उसकी प्रतिकृति है | उसका छोटा भाई समझो इसे | पृथ्वी और अन्य ग्रहों के पास ऐसे अनेक छोटे – मोटे चाँद हैं, जिनकी लगातार खोज होती रहती है | तुम्हारी धरती के वैज्ञानिक इस खोज में बहुत आगे हैं | तुम्हारी धरती के चाँद की तरह ही ये हमारे परीलोक का चाँद है | ये भी सूरज की रोशनी से ही चमकता है | यहाँ भी बहुत कुछ धरती के चाँद जैसा ही है |”

“हमारे और आपके चाँद में कुछ भी अन्तर नहीं है?” – राजू ने जिज्ञासा प्रकट की|

परी रानी कहने लगी – “अन्तर बस इतना है कि धरती वाले चाँद पर बहुत से मनुष्य अब भी आसानी से नहीं पहुँच पाते | इसीलिए वहाँ के वातावरण को अपने रहने योग्य अभी तक नहीं बना पाये | जबकि हम लोग हर जगह आसानी से आ-जा सकते है | इसलिये हमने अपने चाँद को पिकनिक स्पॉट अर्थात पर्यटन स्थल की तरह विकसित कर लिया है | अब हमने तुम्हें यहाँ बुलाया था तो तुम्हारे लिए कुछ विशेष व्यवस्था भी तो करनी थी | सो, इस चाँद पर ही तुम्हारे लिए झूला डलवा दिया | सफाई तो हमेशा चलती ही रहती है | तभी तो वस्तुएँ हों या धरती का टुकड़ा, सभी साफ - सुथरी ही अच्छी लगती है | सफाई के तमाम फायदे होते हैं, यह तो तुम जानते ही हो | इसीलिए परियों से जुड़ी हर वस्तु इतनी साफ – सुथरी और सुन्दर दिखती है |”

“अच्छा ? तो यहाँ.......?” – राजू ने शायद कुछ और पूछने के लिये मुँह खोला ही था कि परी रानी हँसकर बोली - “अरे छोड़ो भी राजू ! चलो, अब इस झूले पर झूला झूलो और जमकर मस्ती करो | सफाई के बारे में बाकी सवाल अपने स्कूल की अध्यापिका से कर लेना | समझे ?”

“ऊँsssss?? हाँ.....हाँ .....|” – राजू ने हड़बड़ाकर कर स्वीकृति में सिर हिलाया और फिर झूले में लगी एक गद्देदार आसन पर बैठ गया |

परी रानी ने हवा में एक इशारा किया | तत्काल दो बौने प्रकट हुए और झूले को हिलाने लगे | झूला पहले आगे – पीछे को धीरे - धीरे डोला | फिर उसकी गति तेज होने लगी | राजू को ठंडी ताजी हवा के झकोरे महसूस हुए तो उसका मन उमंग से भर गया | वह चंद्रासन पर बैठे – बैठे ही प्रतीकात्मक पींगे मारने लगा | जबकि झूले को तो बौने ही झुला रहे थे | राजू तो बस मस्ती के लिये दिखावे में हिल - डुल रहा था |

बहरहाल, झूला धीरे – धीरे तेज होने लगा | जैसे – जैसे राजू की पींगे बढ़ती गई, झूला ऊँचे, फिर और ऊँचे पर उठता चला गया | आखिर में एक बार उसने एक पींग इतनी ज़ोर से मारी कि उसका झूला सबसे ज्यादा ऊँचाई पर चला गया | झूला इस बार इतनी ऊँचाई तक पहुँच गया था कि वह सीधे बादलों के घर में जा घुसा |

फिर क्या था ? झूले के घुसते ही बादलों के घर में हड़कंप मच गया | पहले तो राजू को डराने के लिये वे बादल खूब उमड़े – घुमड़े | जमकर गरजे भी | लगा कि अभी नन्हें राजू को अपनी मूसलाधार बारिश करके धरती पर बहा ले जायेंगे | लेकिन राजू भी अब डरने वाला नहीं था | उसने भी अपने अनोखे पंखों को वहाँ ज़ोरों से फड़फड़ा कर मानो तूफान खड़ा कर दिया | फिर अपने दोनों हाथों को फैला कर बादलों को तितर - बितर करना शुरू कर दिया |

इससे बादलों की गरजने – बरसने वाली सेना देखते ही देखते छिन्न – भिन्न होने लगी | जिस रास्ते से भी राजू का झूला गुजरा, उधर का मैदान साफ होता चला गया | राजू को बादलों की भागम-भाग और हड़कम्प देखकर बड़ा मजा आया |

वह खुशी में चहकता हुआ कहने लगा – “बादलों ! वैसे तो तुम लोग मुझे स्कूल से आते हुए, मना करने के बाद भी कई बार खूब भिगो चुके हो बच्चू ! लेकिन आज जब मैं तुम्हारे घर में घुस आया हूँ, तो तुम्हारी सिट्टी – पिट्टी गुम हो गई | आज मुझसे नहीं बचोगे तुम लोग |”

राजू ने अति उत्साह में तितर – बितर होकर भागते हुए बादलों के दो टुकड़ों को दोनों हाथों में कसकर पकड़ लिया और जमकर ठहाका लगाया – “अब बोलो बच्चू ! हाहाहाहा .....कहाँ जाओगे बचाकर ?”

राजू की खुशियों भरी किलकारी बादलों के पूरे नगर में गूँज गई थी | उन सबकी घिग्घी बँधी जा रही थी | डर के मारे दोनों बादल के टुकड़े भी रूआँसे हुए जा रहे थे | लग रहा था कि बस अभी बुक्का फाड़कर रोने लगेंगे | ढेरों टेसुए बहा देंगे | लेकिन राजू को उनके ऊपर जरा भी दया नहीं आयी थी |

जब झूला नीचे की ओर वापस आने लगा तो राजू वहीं से चिल्लाया – “देखो परी माँ! आज मैंने इन शैतान बादलों को पकड़ लिया है | ये अक्सर मुझे मना करने के बावजूद भी बुरी तरह भिगो देते थे | आज मैं भी इनकी सारी हेकड़ी निकाल दूँगा |”

नीचे आते ही परी रानी के इशारे पर झूला रुक गया | राजू कूद कर झूले से उतरा और सीधे उनके सामने जा पहुँचा | खुशी से चीखते हुए बोला – “परी माँ ! लो पकड़ो इन शैतानों को | इनको तगड़ी सजा देना | आप जो चाहे वो सजा देना | मुझे वक्त – बेवक्त इन्होंने खूब भिगोया है | परेशान किया है | एक बार तो इनके जबर्दस्ती भिगो देने से मुझे जुकाम हो गया था और मेरी नाक गीली होकर बहने लगी थी | उसे पोंछते – पोंछते मेरी कमीज की आस्तीन भी गंदी और बदबूदार हो गयी थी | इन्हीं की वजह से पिताजी से मुझे डांट भी पड़ गयी थी | सो, आज इनको नहीं छोड़ना | हाँ ......नई तो |”

राजू उत्साह के साथ – साथ बाल सुलभ उत्तेजना से भी भर गया था | परी रानी ने देखा तो मुस्कराये बिना न रह सकी | कहने लगी – “इधर लाओ, कहाँ हैं मेरे राजू को वक्त बे-वक्त परेशान करने वाले बदमाश बादल ?”

परी रानी ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाये तो राजू ने किसी खेलने वाली गेंद की तरह हाथ में पकड़े हुए बादलों को परी रानी की ओर उछाल दिया | लेकिन यह क्या? परी रानी के हाथों तक तो कुछ भी नहीं पहुँचा | जब तक परी रानी कुछ पूछती, तब तक दोनों बादलों के टुकड़ों ने रो – रो कर अपने को पिघला लिया था | अथवा यूँ कहें कि राजू को अपने आँसुओं से भिगो कर रख दिया था |

“अरे - अरे, यह क्या ? वो बदमाश बादल कहाँ गये ? ” - परी रानी ने आश्चर्य जताते हुए पूछा |

“परी माँ! वो दोनों बदमाश तो मुझे फिर से भिगो कर भाग गये | .....आज भी ....बुहूहूहू |” – राजू भी शर्मिंदगी भरी खिसियाहट से रूआँसा सा होकर बोला |

परी रानी इस परिस्थिति में राजू के सामने न चाहते हुए भी खिल-खिलाकर हँस पड़ी | फिर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए उसने आदेश दिया – “कहाँ गये वो दोनों शैतान बादल ? जिन्होंने मेरे प्यारे राजू को यहाँ भी भिगो कर रख दिया है | बौनों ! पकड़ लाओ उन्हें |”

“अब हम किसको पकड़ेंगे परी रानी ? वे दोनों तो पिघलकर राजू बाबा के कपड़ों में ही घुस गये हैं | पानी बनकर समा गये हैं |” – बौनों ने अपनी सफ़ेद दाढ़ियाँ खुजलाते हुए खीसें निपोर दी |

“कोई बात नहीं राजू! तुम तो ये समझ लो कि वे दोनों तुम्हारे कपड़ों में ही बुरी तरह कैद हो गये है | अब तो बिना तुम्हारी मर्जी के वो आजाद भी नहीं हो सकते |” – परी रानी ने मुस्करा कर राजू को उसकी मनचाही इच्छा की अनजानी सफलता से अवगत करा दिया |

“अच्छा ........?” - राजू के पास भी अब इसी को सफलता मानने के अलावा कोई चारा नहीं था | सो, प्रकट में वह भी खिलखिला कर हँस पड़ा | कहने लगा – “वाह परी माँ! ये अच्छी कही आपने | इन शैतान बादलों को अच्छी सजा मिल गई | वो भी उन्हीं की शरारत से |”

लेकिन फिर जल्द ही राजू को अपने गीले कपड़ों का अहसास हुआ | उसको सर्दी महसूस होने लगी | फिर बीमारी लगने की चिंता सताने लगी | वैसे भी इन भारी – भरकम और राजसी कपड़ों के भीगने के बाद उनका वजन और भारी हो गया था | अब राजू को उन भारी और भीगे हुए कपड़ों से उलझन महसूस होने लगी थी | उसे लग रहा था कि कितनी जल्दी इन्हें उतार फेंके तो उसे चैन आए |

-----------क्रमशः