Moods of Lockdown - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 3

क्वारंटाइन...लॉक डाउन...कोविड 19... कोरोना के नाम रहेगी यह सदी। हम सब इस समय एक चक्र के भीतर हैं और बाहर है एक महामारी। अचानक आई इस विपदा ने हम सबको हतप्रभ कर दिया हैं | ऐसा समय इससे पहले हममें से किसी ने नहीं देखा है। मानसिक शारीरिक भावुक स्तर पर सब अपनी अपनी लडाई लड़ रहे हैं |

लॉकडाउन का यह वक्त अपने साथ कई संकटों के साथ-साथ कुछ मौके भी ले कर आया है। इनमें से एक मौका हमारे सामने आया: लॉकडाउन की कहानियां लिखने का।

नीलिमा शर्मा और जयंती रंगनाथन की आपसी बातचीत के दौरान इन कहानियों के धरातल ने जन्म लिया | राजधानी से सटे उत्तरप्रदेश के पॉश सबर्ब नोएडा सेक्टर 71 में एक पॉश बिल्डिंग ने, नाम रखा क्राउन पैलेस। इस बिल्डिंग में ग्यारह फ्लोर हैं। हर फ्लोर पर दो फ्लैट। एक फ्लैट बिल्डर का है, बंद है। बाकि इक्कीस फ्लैटों में रिहाइश है। लॉकडाउन के दौरान क्या चल रहा है हर फ्लैट के अंदर?

आइए, हर रोज एक नए लेखक के साथ लॉकडाउन मूड के अलग अलग फ्लैटों के अंदर क्या चल रहा है, पढ़ते हैं | हो सकता है किसी फ्लैट की कहानी आपको अपनी सी लगने लगे...हमको बताइयेगा जरुर...

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन

कहानी 3

लेखिका: नीलिमा शर्मा

टुकड़ा टुकड़ा ज़िन्दगी

"मम्मा इंडिया में तो लॉकडाउन सख्ती से लागू कर रहे हैं, अभी एयरपोर्ट पर विदेश से आने वाले सभी यात्रियों को रोका गया हैं " उर्वशी ने दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल थ्री के इमीग्रेशन काउंटर के सामने लम्बी लाइन देखकर अपनी ममी को कॉल मिलाया| उर्वशी एक सप्ताह बाद दुबई से लौट रही थी| उसकी बड़ी बहन शताक्षी को शादी के तीन बरस बाद बेटा हुआ था | पोस्ट डिलीवरी केयर के लिए उसकी ममी दो माह के लिए बड़ी बेटी के घर गयी थी |

खरगोश जैसे छोटे से बेबी को देखकर उर्वशी का भी मन प्रफुल्लित था| उसके छोटे छोटे हाथ पाँव,गुलाबी से होंठ देख उर्वशी का मन करता था कि बस उसको ही देखती रहे | उसकी छोटी छोटी अँगुलियों में अपनी अंगुली फंसाकर उर्वशी " मम्मा क्या मैं भी ऐसी ही दिखती थी ? इसकी सूरत दीदी से मिलती हैं या जीजू से? " कहकर मम्मा की तरफ देखा तो मम्मा बोली .." सूरत का तो अभी कुछ नही कह सकते, बस तेरे जैसा गुस्से वाला न बने " .... उसके साथ साथ दीदी और जीजू भी ठहाका लगाकर हँस पड़े थे| उर्वशी का मुंह बन गया था | उर्वशी का स्वभाव सहज सरल सी शताक्षी दीदी के एकदम विपरीत था|

दीदी के घर एक सप्ताह कब बीत गया पता ही नहीं चला था | एयरपोर्ट से ही उसने अपने कलीग्स के लिए शॉपिंग की थी | COVID 19 हर तरफ फ़ैल रहा था यह बात तो सब जानते थे लेकिन अब वो सबके इतना करीब आ गया हैं इसका अहसास नही था | तभी इमीग्रेशन काउंटर से एक घोषणा हुई कि विदेश से लौटने वाले सभी यात्रियों को १४ दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाएगा | उर्वशी को घबराहट होने लगी थी | वो भीड़ भरे एअरपोर्ट से आ रही हैं| हर देश के नागरिक दुबई आते जाते हैं | ना जाने वायरस कहाँ से कहाँ तक पहुँच जाए | उसने पर्स से सेनेटाइज़र निकाला और दोनों हाथों पर अच्छे से रगड़ दिया | अपना स्कार्फ अपने चेहरे पर अच्छे से हिजाब की तरह बाँध लिया|

उर्वशी ने ममी को फिर से फ़ोन मिलाया ... फ़ोन आउट ऑफ़ कवरेज एरिया ...उफ़ ममी भी नजाने कहाँ चली गयी | इस वक़्त किसी से भी शिकायत या एतराज की गुंजाईश नही थी | एयरपोर्ट से पुलिस सभी को बस में मानेसर गुडगाँव ले जा रही थी| वहां एक गेस्ट हाउस और होटल में सभी यात्रियों को ठहराया जा रहा था | उसने सिंगल रूम में ठहरने के लिए गुजारिश की, उसके लिए अतिरिक्त रुपया चुपचाप देकर उसने अपने लिए अकेला कमरा ले लिया | मन कहता था उसको कुछ नही होगा | लेकिन एक कोना आशंकित था कही ..... पंच सितारा जिन्दगी जीने वाली उर्वशी का मन भरा हुआ था | ऐसे दिन भी देखने होंगे उसने कभी सोचा नहीं था |

तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी | पर्स से फ़ोन को टटोलकर बाहर निकाला तो मम्मा का कॉल था | मम्मा कहते ही उसके आंसूं निकल आये |आवाज़ भारी हो गयी लेकिन उसने भरसक कोशिश की कि मम्मा के सामने खुद को जरा भी कमजोर न दिखाए | लेकिन मम्मा भी खुद को मजबूत बनाये हुए दिखना चाहती थी " बेटा कुछ नहीं होगा, तुम्हारी इम्युनिटी बहुत अच्छी हैं, खुद पर विश्वास रखो| बस अपना ख्याल रखना, बाबाजी सब ठीक करेंगे |"

"मम्मा दीदी को अभी कुछ भी नहीं बताइयेगा | बेकार में टेंशन करेंगी | वैसे भी सिजेरियन के बाद बहुत कमजोर हो गयी हैं |आप उनका ख्याल रखियेगा | " उर्वशी ने माँ को दिलासा देते हुए समझाने की कोशिश की

मम्मा से बात करके उसका दिल थोडा मजबूत हुआ | एक सुरक्षित सा ओरा जैसे उसके चारो तरफ से मजबूती से उसे घेरे हुए था | फिर उसने अपने बॉस को कॉल मिलाया वो सिर्फ एक सप्ताह की छुट्टी लेकर दुबई गयी थी | उसका खडूस सा बॉस पांच मिनट की देरी को भी काउंट कर लेता था | अब उसको अगले १४ दिन की छुट्टी चाहिए तो सूचना तो देनी ही होगी | बॉस ने दो बार घंटी जाने के बावजूद कॉल नही उठाया फिर तीसरी बार जैसे ही उसने कॉल मिलाना चाहा बॉस का ही कॉल आगया |" सर मैं दुबई से तो लौट आई हूँ लेकिन अभी मुझे क्वारंटाइन में ले जा रहे हैं ...."

" कोई बात नहीं उर्वशी, अभी आपका जाना जरुरी हैं सभी एहतियात रखियेगा| आप स्वस्थ होकर लौटेंगी '

'सर जल्द ही वापिस आकर ऑफिस ज्वाइन करती हूँ " बॉस ने तो उसका वाक्य पूरा भी नहीं होने दिया

"नहीं उसके बाद भी आप कुछ दिन आराम कीजिये, हम आपको ऑनलाइन सम्पर्क करते रहेगे " उनकी आवाज़ में बहुत घबराहट थी | "जब तक ठीक न हो जाओ ऑफिस मत आना" कहकर बॉस ने फ़ोन रख दिया | बॉस के शब्द तेज गर्म हवाओ के बीच ठंडी चलती मंद समीर की तरह लग रहे थे |कितने केयरिंग लग रहे थे बॉस |

गौरव् उसका प्यार जो उसके दुबई जाने की बात सुनकर ही उदास हो गया था | रोजाना उसको प्रेम भरे कोट्स और शायरी भेजता रहता था उसको भी बताना होगा कि वो इंडिया लौट आई हैं | अपने लौट आने की तारीख उसने गौरव को जान बूझकर नही बताई थी | उर्वशी अचानक मिलकर उसको सरप्राइज करना चाहती थी| उसका कॉल गौरव ने दूसरी बेल बजते ही उठा लिया |

" बेबी कहाँ हो ? बुर्ज खलीफा या बेबी सिटींग कर रही हो "

"मानेसर में हूँ क्वारंटाइन में ...मैं इंडिया लौट आई हूँ |

"व्हाट ??"

"टेक रेस्ट बेबी,लेट मी चेक मैं क्या कर सकता हूँ, तुम अपना बहुत बहुत ख्याल रखना| जब तक ठीक ना हो जाओगी तो परेशान मत होना | तुमसे मिलना तो शायद किसी भी तरह से पॉसिबल नही हैं सो ......." गौरव की बात से न जाने क्यूँ उसको लगा कि जैसे वो किसी राष्ट्रद्रोह के केस में फंसी हैं और उसके जान पहचान वालो की भी धरपकड़ शुरू हो गयी है |

"फ़ोन पर तो बात कर सकते है न ' फ़ोन सुनने वाले का दूसरी तरफ तो फ़ोन ही कट गया था |पता नही फ़ोन नेटवर्क से बाहर हो गया था या वो या गौरव ...|

उर्वशी के बाहर भीतर एक कोलाहल सा मच गया| अभी २४ वर्ष की उम्र थी. अभी एम् बी ए का फाइनल एग्जाम भी नहीं हुआ था कि कैंपस सिलेक्शन में उसको जॉब मिल गयी थी| तीन बरस पहले दीदी का विवाह हुआ था| अब वो मम्मा केसाथ नॉएडा की क्राउन प्लेस बिल्डिंग में रहती थी|

गौरव को अपनी जिन्दगी का सबसे कीमती और जरुरी भाग मानती थी | जिसके साथ एक शाम गुजारने के लिए अपनी मम्मा से कितनी बार झूठ बोले,आज बहुत दूर हैं| काश वो ही आसपास होता तो उसके सीने से लगकर मन हल्का हो जाता| भावुक मन से उसने कमरे का जायजा लिया | साधारण सा कमरा, सफ़ेद चादर पर एक बैग रखा था | उसने उत्सुकता से उस बैग को खोला | उसमे एक डेटोल सोप, टूथ ब्रश पेस्ट. तौलिया,खाना खाने के बर्तन एक गर्म पानीकरने वाली केतली आदि थे | उसको घर की बेहताशा याद आने लगी |

कितने ही फ्लैट देखने के बाद उनको क्राउन पैलेस का यह फ्लैट पसंद आया था| एक दरवाज़ा बंद करते ही उनकी दुनिया का रंग बदल जाता था | सुरुचिपूर्ण ढंग से सजे कमरे में वो सिंड्रेला बन जाती थी| जब जब दीदी के पास दुबई जाना होता तो वहां से घर को सजाने के लिए चुन चुन कर चीजे कपडे बर्तन लेकर आती थी | उर्वशी और उसकी मम्मा को घर सजाने का और नया सामान खरीदने का बहुत शौक था| उनकी मैड नसरीन का काम ही था कि दिनभर घर भर को समेटकर सहेजकर साफसुथरा महकता हुआ रखे |

उर्वशी को अचानक नसरीन की याद आगयी| वो भी तो उसके दुबई से आने का इंतज़ार कर रही होगी उसने अपनी मेड नसरीन को कॉल मिलाया जिसको वो अक्सर नैस कहकर पुकारा करती थी |नैस ने उसका फ़ोन दूसरी बार बजने पर उठा लिया ...

"नैस मैं अभी २ वीक के बाद ही आउंगी, देखो घबराना मत | घर में सब खाने पीने का सामान भरा हुआ हैं| किसी चीज की कमी नहीं होगी | फिर भी कुछ जरुरत हो तो गार्ड से बात करके मंगवा लेना |वैसे मैं शर्मा जी को भी कह दूंगी तुम्हारा ध्यान रखेंगे| और हाँ नैस, अपने खुदा से दुआ करना कि मैं ठीक हो जाऊं ...करोगी न ? "

कहकर उर्वशी का गला भर आया| आँखों में आंसूं भर आये| मन बहुत कमजोर हो गया था |

क्वारंटाइन की बात से ही अब पलकों की झालर पर अटके आंसुओ की बूंदे सावन की बरसात की तरह बार बार बरसती जा रही थी |

'क्या मैं पापा की तरह अचानक मर जाउंगी,उनको तो हार्टअटैक आया था...क्या मैं भी ..... क्या मेरा टेस्ट पॉजिटिव आएगा ? ईश्वर न करें मेरा टेस्ट ऐसा आये मैं किसी वायरस की गिरफ्त में नहीं ... ...यदि आ गया तो क्या मेरा शरीर इस घात को सह सकेगा | मम्मा हमेशा न्यूट्रिशल फ़ूड खाने को कहती थी लेकिन घर के खाने के साथ अक्सर बाहर का खाना भी हो ही जाता था " चुपचाप बैठी आंसूं बहाती उर्वशी खिड़की के शीशे के पास सन्नाटे की भयावहता को महसूस कर पा रही थी |

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फ़ोन की घंटी बज रही थी | पोंछा लगाती नसरीन ने दुपट्टे के पल्ले से हाथ पोंछा और माथे पर झूलते बालों को कलाई से साइड करके अपना मोबाइल उठाया| "छोटी दीदी" नाम चमक रहा था ... बहुत डरती थी वो छोटी दीदी से ...गोरी चिट्टी सी दीदी चमकते चेहरे पर जब लाल गुलाबी लिपस्टिक लगाकर ठकठक करती हुयी घुटनों से भी छोटी स्कर्ट पहनकर ऑफिस जाती तो एकदम बार्बी डॉल लगती थी | फ़ोन पर फर्र्र फर्र इंग्लिश बोलती उर्वशी दीदी उसको बहुत प्यारी लगती थी | वो उनको मंत्रमुग्ध देखती ही रह जाती थी | अपने हर सामान को सलीके से सम्हालने वाली दीदी का कोई भी सामान जरा एक इंच भी अपनी जगह से इधर उधर हो जाए तो पूरा घर सर पर उठा लेती थी | ममी जी भी दीदी को पूछे बिना उनका कोई कपडा नही धुलवाती थी |

फ़ोन एक बार बजकर बंद हो गया था | आज उर्वशी दीदी ने दुबई से वापिस आना था|आंटी जी ने वादा किया था कि दुबई से उसके लिए काजल और पर्स लेकर भेजेंगी | अगले दो महीने उसको दीदी के साथ घर पर रहना था | ममी जी सब समझा कर गये थे फिर भी उसको डर लगता थाकि कहीं कोई भूल न हो जाए और दीदी नाराज हो जाएँ | जब फ़ोन दुबारा बजा तो नसरीन ने पहली ही बेल पर उनका फ़ोन उठा लिया|

"नैस कहाँ थी ? टीवी में ही घुसी होगी |जब देखो नागिन देखती रहती हैं |" गुस्से में छोटी दीदी फुफकार रही थी फिर अचानक उनका लहजा मुलायम हो गया

"अच्छा सुनो, मुझे अभी १५ दिन लग जायेंगे, तुम रह लोगी न,.

रह लोगी कहते कहते छोटी दीदी का गला भरा हुआ महसूस हुआ |

"दीदी मैं आपके बिना, आंटी जी के बिना कैसे रहूंगी ?मुझे वापिस गाँव छोड़ आओ, टीवी वाले कह रहे हैं कोई कोरोना कीड़ा आगया हैं| जल्दी ही सब मर जायेंगे मुझे भी गांव की याद आ रही हैं |" नसरीन भी रोने लगी थी |

"देख नैस सब बस ट्रेन बंद हो गयी हैं न, तुमने टी वी में सुना है न कि सबको घरो में सेफ रहना हैं,मैं भी नही क्वारंटाइन में नही रहना चाहती लेकिन नैस यह जरुरी भी हैं, मुझे ठीकठाक वापिस आना हैं,मम्मा को मेरी जरुरत हैं " उर्वशी दीदी के मन में जैसे गम की झील बन गयी

नसरीन के पास कोई और चारा भी नही था | १७ बरस की उसकी उम्र थी| अकेले रहना कोई मुश्किल नहीं था लेकिन यह बीमारी वाला समय .....| घर में सब जरुरत का सामान था | उसको तो घर के भीतर बंद रहना था| लेकिन अगर वो वायरस घर के अंदर आ गया तो वो बाहर कैसे कहाँ भागेगी ? छोटी दीदी को अगर यह बीमारी लग गयी तो ..... बीमारी बहुत भयानक है| पता नही दीदी वापिस आये या न आये |"

"थू थू थू !!! ऐसे गलत बात जबान पर भी नही लाते हैं" कहकर नसरीन ने अपने मन और जुबान को धिक्कारा

दीदी का फ़ोन रखकर वह देर तक टी वी पर चैनेल बदल बदल कर समाचार सुनती रही | टी वी पर लोगो की बातें सुनकर मन को सुकून तो क्या ही मिलता उसका मन अपनी ही जिन्दगी के प्रति आशंकित हो उठा | अब नसरीन हर दस मिनट बाद साबुन से हाथ धोने लगी| कभी खिड़की से बाहर की तरफ की झाँकने की कोशिश भी करती तो सामने जैन साहेब या शर्मा जी आतेजाते हुए नजर आते| उफ़ यह बूढ़े लोग सैर करने से बाज नही आते | कहीं दूर से बच्चों का शोर भी सुनाई दे रहा था |

ढलती शाम में खिड़की से एक टुकड़ा आसमान को देखते हुए नसरीन का मन किया कि काश वो टॉप फ्लोर वाला लड़का कहीं नजर आजाये जिसको देख कर दिल में कुछ कुछ होता हैं | लेकिन कमबख्त उस कल्लो लड़की के साथ इतना मस्त रहता हैं कि किसी की तरफ देखता ही नहीं | आंटीजी दीदी को बता रहे थे कि वो लड़की उसकी बीबी नही हैं यूँ ही उसके साथ रहती हैं |लेकिन उसको नजर आई मुटल्ली कामवाली जो तीसरे माले वाली के घर काम करती हैं | सब कामवालियों की लीडर बनी फिरती हैं | नसरीन को उसका सामना करना भी जरा अच्छा नहीं लगता हैं |

छोटी दीदी जब आएगी तो खुद तो दवा की वज़ह से ठीक हो जायेंगी लेकिन पक्का मुझे वो वायरस पकड़ लेगा | अपने मरहूम अम्मी अब्बू को याद करके नसरीन खूब रोई | उस दिन उसने कुछ भी खाना नही पकाया न खाया | भूख जैसे गायब हो गयी थी | उसको उर्वशी दीदी से बहुत डांट पड़ती थी फिर भी उनके इस तरह बीमार होने की बात से उसको अच्चा नहीं लग रहा था | आंटी जी ख रही थी कि उर्वशी दीदी बीमार नही हैं बस डॉ ने परहेज और जाँच के लिए कुछ दिन के लिए अपने पास रखा हैं | नसरीन उस रात बस पानी पीकर वही सोफे पर रोते रोते सो गयी |

सपने में उसको चौथे माले वाले मजाकिया अंकल आंटी दिखाई दिएतो कभी खुद की ही मौत हो गयी ऐसा सपना दिखा| डॉ के मारे उसकी नींद खुल गयी| टीवी लगातार चल रहा था | वो ऑफ करना ही भूल गयी थी |ख़बरों वाले उन्ही खबरों के साथ रात भर चिल्लाते रहे डराते रहे जिन ख़बरों से दिन भर डराते रहे थे कुछ नया नहीं था| चीन अमेरिका स्पेन इटली कोई भी तो देश इस नामुराद से नही बचा था|

उसके गाँव में भी बीमारी फैली होगी | सुबह अपने चाचा को फ़ोन करुँगी| एक रात चाचा के बेटे ने उसके साथ अश्लील हरकत करने की कोशिश की थी | उसके शोर मचा देने से चाचाजाद भाई भाग गया था | चाची ने उसको ही गलत लड़की कहकर घर से बाहर निकाल दिया था | पिछले २ बरस से नसरीन उर्वशी और उसकी ममी के साथ रह रही थी | गांव में उर्वशी के दादा जी की जमीन थी | अंकल जी एक बार गाँव गये थे तो अकेली नसरीन को अपने साथ नोइडा लेकर आगये थे |तब से चाचा चाची ने उसकी कोई खबर नही ली |अलबत्ता आंटी जी को उसकी तनख्वाह भेजने के लिए जरुर फोन कर देते थे | आंटी जी चाचा के अकाउंट में हर माह उसकी तनख्वाह जमा कर देती थी |

सुबह खिड़की से धूप ने दस्तक दी तो उसकी नींद खुली | अरे ९ बज गये | छोटी दीदीके लिए नीम्बू पानी बनाना है सोचा फिर अचानक उसके पाँव ठिठक गये ... छोटी दीदी तो ...... मन फिर उदास हो गया .|

पेट में कुलबुलाहट हो रही थी | कल से नसरीन ने कुछ नहीं खाया था | रसोई में जाकर उसने चाय का पानी चढ़ाया और फ्रिज में रखे मिल्क टेट्रा पैक और सब्जियों को देखा |जाने से पहले ममी जी सब्जियां और बाकी सामान लेकर रख गयी थी | बेबी ने चाय बनाकर अपना कप उठाया .... सामने उसकी नजर नए टी सेट पर चली गई |उस टी सेट पर सुनहरे तार से फूल बने थे और नीचे सुनहरे फूलो वाली तश्तरी | आह कितना सुंदर सेट हैं | बड़ी दीदी दुबई से लायी थी | जब मर ही जाना हैं तो कुछ दिन अपने मन की भी करनी चाहिए |

नसरीन ने महंगे कप को बढ़िया बोनचाइना वाली ट्रे में रखकर साथ में थोड़े से काजू, बादाम कुकीज़ और दो मिनट मैग्गी का बाउल लेकर खाने की टेबल पर आ बैठी | आज दूसरा दिन हैं छोटी दीदी तो अभी कई दिन बाद आएगी | जब जीना ही हैं तो नसरीन खुलकर मनमाफिक जीएगी | अब १३ दिन तक वो अकेली इस मकान की मालकिन हैं| कोई नहीं पूछेगा ...नसरीन यह क्यों नही किया, वो क्यों नही किया| उसने अपनी टांग पर टांग चढ़ाई और एकदम उर्वशी दीदी की कॉपी करते हुए चाय का सिप लिया | आहा ... कितना स्वाद आ रहा इस कप में चाय पीने का |

नसरीन का मन दिनभर बहुत अजीब सा रहा था | पल में तोला पल में माशा नसरीन बचपन को याद करती | गांव की दूसरी लड़कियों के रेशमी फ्रॉक देखकर उसका भी मन करता था कि कभी वो भी ऐसे रेशमी फ्रॉक पहनकर बाल कसकर बांधे इठलाकर चले| ऊँची हील वाले सेंडल पहनकर वो भी करीना कपूर की तरह इतराए लेकिन सपने कब अपने होते हैं |

अक्सर रात को वो आँखें बंद किये खुद को एक रानी की तरह महसूस करती जिसके बदन पर सुनहरी रेशमी पोशाक हैं | सुनहरी जूतियाँ और भारी गहने पहने वो किसी समंदर के किनारे घूमने जा रही हैं | करीना कपूर की तरह पीले स्कूटर को चलाती हुयी वो अपने सपनो में सैफअलीखान के साथ किसी महल में आ जाती हैं और तैमूर जैसा गोलू मोलू बच्चा उसकी अंगुली पकडे हैं | अक्सर उसको खुद पर हँसी आती थी कि ऐसे सपने क्यों देखती हैं जिनके पूरे होने की कोई उम्मीद ही नही थी |

उसने आज दीदी के लिए बनाया जाने वाला खाना अपने लिए बनाया | पनीर के साथ लच्छा परांठा साथ में सलाद विथ ओलिव ड्रेसिंग, पानी की जगह ठंडा कोक | जिन्दगी परियों की सी लग रही थी|आज से रोजाना वो एकदम दीदी की तरह नाश्ता खाना खाया करेगी |हर बार अलग क्रोकरी हर बार अलग मग|

डस्टिंग कपडे करने के बाद नहाना उसका एक रूटीन था और आज तो वो छोटी दीदी के बाथरूम में नहाएगी| क्या हर बार लॉबी वाले छोटे से वाशरूम में नहाना होता हैं | दीदी का महंगा शैम्पू करके उसने बाल धोये और बोतल में थोडा सा पानी मिलकर वापिस रख दिया |खुशबू वाले साबुन से नहाकर उसको खुद को बहुत अच्छा लग रहा था | गुलाबी मुलायम तौलिया सर पर बाँधकर उसने एक बड़ा सा तोलिया अपने सीने पर ठीक उर्वशी दीदी की तरह बांध लिया| अभी टब से उसने कदम बाहर निकाला तो सामने शेल्फ पर नजर गयी जहाँ दीदी के अंडर गारमेंट रखे रहते थे | उफ्फ्फ कितने रेशमी मुलायम लेस वाले अंदरूनी कपड़े पहनती हैं दीदी | आंटी जी उसको तो हमेशा ही शुक्रबाजार से सब्जी खरीदते खरीदते खरीदवा देती थी | शर्म के मारे वो कभी कह ही नहीं पायी थी कि ममी जी मुझे लाल रंग की बेक में बहुत सारी स्ट्रिप्स वाली ब्रा ले दो न या ममी जी मुझे भी छोटी दीदी जैसे छोटे छोटे अंडरवियर ले दो | उसने हाथ बढ़ा दीदी का ब्रासेट उठा लिया| दोनों कपड़े पहनकर उसने दीदी के कमरे में लगे आदमकद शीशे में खुद को निहारा और फिर पूरे घर भर में उन्हीं कपड़ों में डोलती रही "वे तू लौंग ते मैं लाची तेरे पीछे हाँ गावाची "पर उसने जमकर शीशे के सामने डांस किया,मुन्नी बदनाम हुई पर डांस करते हुए उसको लगा कि मलाइका से अच्छी उसकी कमर लहराती हैं| अब घर भर में उसका साम्राज्य था जैसे मर्ज़ी घूमे जो मर्ज़ी खाए जहाँ मर्ज़ी सोये |

रेशमी कपड़ो का अहसास उसके रोम रोम को पुलकित कर रहा था | कोमल अहसासो ने उसके मन को ख़ुशी से सराबोर कर रखा था | इस बेकार बीमारी से सारी दुनिया ने मर तो जाना ही हैं तो क्यों न अपने मन का करके मरे | इस जन्म में तो वो कभी भी दीदी जैसे हैसियत को पा नही सकती| कम से कम इन जब तक कोई नहीं आता उसको खुद को जी लेना चाहिए |

पूरे एक सप्ताह तक उसने अपने कपड़ो को हाथ भी नहीं लगाया | पूरा समय कभी दीदी की टी शर्ट लोअर के साथ तो कभी स्कर्ट तो कभी उनका कुरता प्लाज़ो तो कभी मैक्सी पहनकर घर भर में रहती थी | कई बार फ्लिमी गानों की तर्ज़ पर स्कर्ट के साथ ब्रा पहनकर डांस करती नसरीन खुद पर ही रश्क करने लगती और फिर खुद को कोसती कि खुदा ने उसको क्यूँ कंगला पैदा किया ? किसी रईस घर की बेटी बना देता न | अब तो उसकी चाल भी एकदम दीदी जैसी होने लगी थी | पेंसिल हील की बैली पहनकर वो कई बार गिरी थी लेकिन दो दिन में उसको संतुलन साधना आ गया था |दीदी के मुलायम बिस्तर पर चार दिन तक तो उसको नींद भी नहीं आई थी |फिर उसको वो रेशमी बिस्तर माँ की मुलायम आगोश सा लगने लगा था |

कल उसने गजब ही कर दिया| दीदी की अलमारी खोलकर उसने उनका बिना बांह का ब्लाउज पहना और लाल सिल्क वाला लहंगा,गहरे लाल रंग की लिपस्टिक लगाकर उसने वही रखे नकली चमकते गहने भी पहन लिए | दुल्हन की तरह सजकर नसरीन टी वी के सामने आ बैठी और 'लब पे आवे हैं दुआ बनके तमन्ना मेरी' जैसे शादी के गीत सुनने लगी |सर पर पल्लू रखकर अपने ही को देख आत्ममुग्ध नसरीन खूब रोई भी थी| वो माहिरा खान से कहाँ कम गोरी थी उसकी मोटी काली आँखें काजल लगाकर कितनी प्यारी लगती हैं |अगर उसकी अम्मी जिन्दा होती तो उसकी फ़िक्र करती उसके लिए दुआ कराती | उसके ज़हेज़ के लिए कपडे जोड रही होती|

कोई कितना भी कहे कि घर में नौकरानी को अपने घर के सदस्य की तरह रखते है लेकिन फर्क तो होता ही हैं | नसरीन हमेशा ममीजी के कमरे में नीचे बिस्तर बिछा कर सोती थी |उसको पूजाघर को छूने की इज़ाज़त नही थी | भोग का खाना ममी जी या कुक खुद बनाती थी|कभी कभार दीदी जब बाजार से कुछ खाना मंगवाती तो बहुत छोटा सा हिस्सा उसको भी दिया जाता था | सब लोग घूमने जाते तो अधिकतर उसको घर में बंद कर जाते कि आने तक सब बर्तन करके रखना घर साफ़ करके रखना | उसके गोरे रंग बड़ी काली आँखों की वज़ह से सब उसको घर का कोई सदस्य या रिश्तेदार ही मानते थे | तब आंटी जी सबको "हमारी हेल्पर हैं" कहकर बताया करती थी |

आज उसको बहुत रोना आरहा था |ममी जी दो बार दो मिनट का कॉल करती ..'नसरीन घर ठीक है न | नसरीन खाना खा लेना | घर का ध्यान रखना | नसरीन दुआ करना छोटी जल्दी घर आ जाए | किसी ने नहीं पूछा कि तू निपट अकेली हैं तुझे कोई तकलीफ तो नही | तू कैद में हैं तेरा दम तो नही घुटता | तेरा मन बाहर जाने को नही करता | उसको मालूम था ममी जी ने घर अलमारी की सब चाबी कहाँ छिपाकर रखी हैं वो चाहे तो अलमारी खोलकर सब समेट कर भाग सकती थी | लेकिन वो चोर नहीं थी | ममी जी ने चाहे जैसे भी हो एक सुरक्षित छत और इज्ज़त का खाना तो उसको मुहैया कराया ही था |

आज १३ दिन हो गये थे नसरीन को मैडम बनकर रहते हुए | दीदी के कमरे में उनकी तरह रहते हुए, उनकी पसंद का खाना उनके ही अंदाज़ में खाते हुए उसका मन नहीं भरा था |कल किसने देखा हैं कल हो न हो बस मुझे आज पूरा जीना हैं | उसको कई बार सपने में लगता कि दीदी के मर जाने की खबर आ रही हैं| फिर खुद ही खुद पर गुनाह करने का इलज़ाम लगा कर उसी वक़्त दुआ में खुदा से दीदी की लम्बी उम्र की सलामती चाहती |

कल १४ दिन हो जायेंगे |दीदी की फ्रॉक पहन भूरे रंग की लिपस्टिक काजल लगाकर उसने गाने लगाये और 'लगदी लाहौर दी हैं' पर झाड़ू हाथ में लिए उसने डांस करना शुरू कर दिया| बर्तनों की सफाई के समय 'डीजे वाले बाबू मेरे गाना चला दो' के साथ साथ सब गिलास कप भी साफ़ होते जा रहे थे |

बर्तनों के बाद गाना बदलने के लिए रिमोट उठाया तो साथ ही रखे अपने फ़ोन पर उसकी नजर गयी| छोटी दीदी की २ कॉल आंटी जी की ५ कॉल | बड़ी दीदी की एक कॉल ...

नसरीन बुरी तरह डर गयी "या खुदा यह छोटी दीदी तो मर गयी तभी सबके इतने फ़ोन आगये धम्म से वो वहीँ बैठ गयी| तभी उसका फ़ोन फिर से बज उठा दूसरी तरफ आंटी जी थी | "नसरीन बाबाजी का प्रसाद बनाओ आज, उर्वशी का कोरोना टेस्ट लगातार नेगेटिव आया हैं | सबकी अरदास का फल हैं | उर्वशी आज शाम तक घर आएगी | उसका बहुत सारा ख्याल रखना | उसकी पसंद की चीजे बनाना |उसका कमरा साफ़ है न | सब जगह डस्टिंग करना |"

उसकी भी आँखों से आंसूं बह उठे| अब वो दीदी के खुश होने पर थे या किसी को अपनी फ़िक्र न होने के दुःख के नसरीन नही जानती थी |

"आंटी जी प्रसाद तो हमेशा आप बनाते थे आप कहते थे कि तुम भगवान का कोई काम नही करोगी किसी चीज को हाथ नहीं लगाओगी | अब हलवा कैसे??" नसरीन ने हिचकते हुए कहा

"मेरी बच्ची शायद तेरी भी दुआ शामिल थी न जो उर्वशी घर लौट रही हैं | जब यह बीमारी अमीर गरीब हिन्दू मुस्लिम का फर्क नहीं कर रही तो हम सब कौन होते हैं | तुम शुकराना अदा करो हलवा बनाकर बाबा जी को भी भोग लगाना " ममी जी के प्यार भरे शब्द उस घर को एक अपनेपन की आभा से रोशन कर गये |

नसरीन ने फ़ोन रखकर घर भर पर नजर दौडाई| अब उसने जल्दी जल्दी घर को दीदी के मुताबिक सहेजना और साफ़ करना शुरू कर दिया | दो घंटे बाद घर पहले की हालत में आ गया | बस दीदी के जो कपडे उसने पहने थे उन्हें अलमारी में सही से हेंगर में लटकाना बाकी था| उसने जल्दी जल्दी सब कपडे अलमारी में लटका दिए |

हलवा बनाकर उसने कैसरोल में रख दिया | आंटी जी को उसने अक्सर पूजा की थाली लगाते देखा था तो आज उसने पूजा की आरती लगाकर दरवाज़े के पास रखी | और घर में एक नजर घुमाते हुए एक स्वप्न के ख़त्म होने की ठंडी आह भरी | बाहर दीदी को छोड़ने एम्बुलेंस आ चुकी थी | सब बिल्डिंग वाले ताली बजा करके दीदी को चीयर वेलकम कर रहे थे | दीदी पहले से कमजोर लग रही थी| दीदी ने उसको आरती उतारते देखकर गले से लगाया और खूब जोर से रोने लगी |उसके भी आंसूं नही रुक रहे थे |

"दीदी मेरा खुदा आपको मेरी भी उम्र लगा दें | आप ठीक हो जाओ बस |"

कोई सोशल डिस्टेंस उस वक्त उनको याद नही था | दीदी अपने कमरे में न जाकर ममी जी के कमरें में चली गयी और ममी के बिस्तर पर लेट कर उनको वीडियो कॉल मिलाने लगी |नसरीन ने बाबाजी को हलवे को भोग लगाया और दीदी को एक कटोरी हलवा देकर उनके लिए कॉफ़ी बनाने लगी |

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"नैस यहाँ आओ "

रसोई के तौलिये से हाथ पौछते हुए वो दीदी के पास उनके कमरे में थी |उनके सामने जाकर उसको काटो तो खून नही था वाली हालत हो गयी |

दीदी अपनी अलमारी से बहुत सारे कपडे निकालकर बिस्तर पर रख रही थी| दीदी ने उसका हाथ पकड़ा और बोला "नैंस तुमको मेरे कपडे बहुत पसंद आते है न ..कौन से सबसे ज्यादा पसंद हैं |"

नसरीन बहुत बुरी तरह डर गयी | उसकी टांगें कंपकपाने लगी | चेहरा जर्द हो गया | आँखों से आंसूं की अविरल धारा बहने लगी |अब इन कपड़ों को तो पहनकर देख चुकी थी |उसने दीदी के हाथ पकडे और खूब जोर से रो दी कि "दीदी आप ऐसे नही करों| आपके कपडे कैसे ले सकती हूँ|"

दीदी ने उसको सामने की कुर्सी पर बिठाया और प्यार से बोली कि "इन मुश्किल अकेले दिनों में मैंने अहसास किया कि यह महंगे कपडे पैसा सब किसी के काम के नही हैं | जरुरी नही था कि मैं जीवित वापिस आती | दुनिया में अपनों का होना सबसे जरुरी हैं वहां बैठे बैठे मुझे तेरे अकेलेपन का भी अहसास हुआ | मैं वहां अकेलेपन में कतरा कतरा मर रही थी| यहाँ तुम अकेली थी| मुझे अहसास हुआ जिन्दगी कब ख़त्म हो जाए क्या मालूम जितना समय बचा हैं उसको खुश होकर जियो |"

"दीदी कैसी बातें करती हैं आप ? खुदा आपको मेरी भी उम्र से नवाज दे "

"जानती हो मैंने उदासी के एक दिन अपने कमरे को देखना चाहा तो घर के वई फाई से जुड़े कैमरे से घर को देखा | तुम मेरे कपडे पहने हुए घर में सब काम करते हुए मस्त नाच रही हो..मुझे उस वक़्त तुम पर गुस्सा आना चाहिए था लेकिन न जाने क्यों मुझे जरा भी गुस्सा नहीं आया... मैं तुमको देखती ही रही | मुझे उस वक़्त तुम्हारी जिन्दादिली ने बहुत हिम्मत दी |"

"दीदी,आपको सच्ची में मुझपर गुस्सा नहीं आया " नसरीन ने डरते हुए हौले से पूछा

"नहीं,तुम भी अकेली थी ठीक मेरी तरह |तुम भी तो डिप्रेशन में जा सकती थी लेकिन तुमने खुद को सम्हाले रखा ...बस फिर रोजाना तुमको देखती, तुम कैसे खुद को खुश रखने की कोशिश कर रही हो | तुम अपने मन की छोटी छोटी खुशियाँ और फंतासियाँ जी रही थी | "

"दीदी सॉरी हमसे गलती हो गयी,आगे से ऐसा कुछ नहीं करेंगे " नसरीन ने माफ़ी मांगने वाले अंदाज़ में कहा

"हर अगले दिन फिर मैं उत्सुक होकर कैमरा खोलती थी कि तुमने आज क्या किया? तुमने आज क्या पहना ? तुमने आज क्या पकाया ? बस इसी उत्सुकता और जिन्दादिली से मैंने भी दिन काटने शुरू किये ...तुमने लौंग लाची पर डांस किया न तो मैंने भी उस दिन से लगातार रोजाना डांस और योग किया|"

"नसरीन मांगो जो तुम चाहती हो,आज मैं तुमको वो सब दूंगी जो मांगोगी,"

उर्वशी ने आज पहली बार नैस को नसरीन कहकर पुकारा था

नसरीन की आँखों से खामोश आंसू बह रहे थे लेकिन मन चीख रहा था ...दीदी आप फिर से लम्बे समय के लिए क्वारंटाइन नही हो सकती हो क्या ?

नीलिमा शर्मा

नीलिमा शर्मा निविया का जन्म मुज़फ़्फ़र नगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने एम ए अर्थशास्त्र, एवं बी.एड. तक शिक्षा ग्रहण की है।वर्तमान में उनका निवास देहरादून/दिल्ली में हैं

नीलिमा शर्मा ने अब तक चार पुस्तकों का संपादन किया है जिनमें शामिल हैं - 1:- मुट्ठी भर अक्षर (लघुकथा संकलन) हिन्दयुग्म, 2:- खुसरो दरिया प्रेम का ( स्त्री मन की प्रेम कहानियाँ) वनिका प्रकाशन, 3:- मृगतृष्णा( रिश्तों के तिलिस्म की कहानियाँ)4:- लुकाछिपी ( कहानियों में बालमन ) शिल्पायन प्रकाशन

इसके अतिरिक्त हिंदी साहित्य के प्रथम डिजिटल साँझा उपन्यास “आईना सच नही बोलता” का संयोजन संपादन भी किया है जो कि www.matrubharati.com पर उपलब्ध है।

नीलिमा शर्मा की कविताएं 20 से अधिक संकलनों सम्मिलित की जा चुकी हैं। उनकी लघुकथाएं भी दस से अधिक संकलनों की शोभा चुकी हैं। कहानीकार के तौर पर भी नीलिमा शर्मा ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

नीलिमा शर्मा की लघुकथाओं एवं कविताओं का पंजाबी, उर्दू, नेपाली एवं अंग्रेज़ी में अनुवाद हो चुका है। यूट्यूब पर भी उनकी कुछ लघुकथाएं देखी और सुनी जा सकती हैं।

सम्प्रति:- मातृभारती.कॉम की हिंदी संपादिका

संपर्कः८५१०८०१३६५