Moods of Lockdown - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 7

क्वारंटाइन...लॉक डाउन...कोविड 19... कोरोना के नाम रहेगी यह सदी। हम सब इस समय एक चक्र के भीतर हैं और बाहर है एक महामारी। अचानक आई इस विपदा ने हम सबको हतप्रभ कर दिया हैं | ऐसा समय इससे पहले हममें से किसी ने नहीं देखा है। मानसिक शारीरिक भावुक स्तर पर सब अपनी अपनी लडाई लड़ रहे हैं |

लॉकडाउन का यह वक्त अपने साथ कई संकटों के साथ-साथ कुछ मौके भी ले कर आया है। इनमें से एक मौका हमारे सामने आया: लॉकडाउन की कहानियां लिखने का।

नीलिमा शर्मा और जयंती रंगनाथन की आपसी बातचीत के दौरान इन कहानियों के धरातल ने जन्म लिया | राजधानी से सटे उत्तरप्रदेश के पॉश सबर्ब नोएडा सेक्टर 71 में एक पॉश बिल्डिंग ने, नाम रखा क्राउन पैलेस। इस बिल्डिंग में ग्यारह फ्लोर हैं। हर फ्लोर पर दो फ्लैट। एक फ्लैट बिल्डर का है, बंद है। बाकि इक्कीस फ्लैटों में रिहाइश है। लॉकडाउन के दौरान क्या चल रहा है हर फ्लैट के अंदर?

आइए, हर रोज एक नए लेखक के साथ लॉकडाउन

मूड के अलग अलग फ्लैटों के अंदर क्या चल रहा है, पढ़ते हैं | हो सकता है किसी फ्लैट की कहानी आपको अपनी सी लगने लगे...हमको बताइयेगा जरुर...

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन

कहानी 7

लेखिका: क्षमा शर्मा

पीले फूलों वाले दिन

सवेरे- सवेरे। अभी सूरज की किरणों ने बाल्कनी पीले फूलों वाले ये दिन, वे दिन

की खिड़कियों को आकर छुआ तक नहीं था। एक गुरसल खिड़की पर आकर पता नहीं किसे पुकार रही थी। अपने साथी को या हमें। वह भी कन्फ्यूज रही होगी। उसकी समझ में नहीं आ रहा होगा कि जिनसे बचते, बचाते, डरते, दिन- रात बीतते थे, वे सबके सब एकाएक कहां चले गए। क्या इसे भी कोरोना के बारे में पता होगा। चाय पीते सीमा सोच रही थी कि

अरे- उसके मुंह से एकाएक निकला-इतने सारे पीले फूल। अब से पहले भी तो इन दिनों में ये हमेशा खिले ही होंगे। पर कभी ध्यान क्यों नहीं गया। इन्हीं के पास लगे अमलतास के फूलों पर हर साल नजर पड़ती है, गुलमोहर पर, सदाबहार पर, सेमल, कचनार, मधुमालती और बोटल ब्रश पर। महकते मोगरे और रात की रानी पर। रसोई की खिड़की से झांकते चम्पा और बेलपत्रों पर । ये भी तो हर साल खिलते होंगे। इसी तरह झूम-झूमकर आवाज देते होंगे, मगर ये नजरों से क्योंकर ओझल रहे, क्या इसी तरह चीजें हमारे सामने होते हुए भी नजरों से ओझल हुई रहती हैं। देखते हुए भी हम उन्हें नहीं देख पाते। सम्बंधों में भी शायद ऐसा होता हो।

सीमा चाय का प्याला लिए बाल्कनी तक चली आई। खिड़की खोलकर देखने लगी। फूलों ने भी जैसे उसे मुसकराकर देखा। वे भी तो इन दिनों आदमियों को देखने को तरस रहे हैं। आसमान पर नजर गई तो बाल्कनी से नजर आता छोटा टुकड़ा नीली आभा से भरा था। धुएं और धूल से परेशान, दम घुटते पीले आसमान का कहीं पता नहीं था। उस पर एक दूसरे की पूंछ पकड़े बादल के छोटे-छोटे टुकड़े भागे जा रहे थे। वे भी शायद लाकडाउन के डर से भाग रहे थे। आसमान की ऐसी ही नीली आभा को देखकर शायद राम और श्रीकृष्ण के श्याम वर्णी होने की परिकल्पना की गई होगी।

अचानक उसे सारे के सारे विदेश पलट अफलातूनों की सोसाइटी की तरफ से कुछ आवाजें आती सुनाई दीं। कुछ लोग तेज-तेज समूहों में घूम रहे थे। एक आदमी दूसरे से कह रहा था-अभी बाजार भी जाना है। इनके मुंह से हिंदी । क्या इन्हें ये डर नहीं सता रहा जो मस्ती से घूम रहे हैं। इनमें से किसी एक को भी कुछ हो गया तो पूरी की पूरी सोसाइटी को पुलिस बंद कर देगी। फिर बजाते रहेंगे ढपली और गाते रहेंगे कोई फिरंगी गाना। जिन्हें सुनकर मां कहती थी-ऐसा लगता है जैसे बहुत सारे कूतरे इकट्ठे रो रहे हों।

वैसे और कोई वक्त होता तो सीमा इनसे प्रेरणा लेकर खुद भी घूमने निकल पड़ती । लेकिन महीना भर होने को है, घर से बाहर ही नहीं निकली। कैसे निकले। कहीं कुछ हो गया तो इस वक्त कौन है जो आकर हाल-चाल भी पूछ लेगा। वह तो अच्छा है कि पहले ही कुछ घरेलू सामान ले लिया था, मिल्क पाउडर भी ले आई थी, तो अब कहीं आने-जाने की जरूरत नहीं पड़ रही। युनिवर्सिटी जब खुलेगी तबकी तब देखी जाएगी। एक तो लाकडाउन की मुसीबत, ऊपर से सलाह देने वालों की फौज, इसके अलावा अपने-अपने परिवार की गाथा गाते हुए, उसके अकेलपन की चिंता । जिसमें चिंता से ज्यादा मजाक उड़ाना होता है कि लो और मत करो शादी। और चलो दुनिया की लीक से हटकर। जो समय रहते नहीं चेतते हैं वे तुम्हारी तरह ही फल भोगते हैं। शादी सीमा ने नहीं की चिंता में दूसरे मरे जाते हैं।

ऐसी बातें सुनकर उसे हंसी आती है। जो औरतें अकसर अपने घरों में उपजी शिकायतों की पोटली लेकर बैठी रहती हैं, वे अकसर किसी अकेली स्त्री को देखते ही अपने घर रूपी ब्रम्हास्त्र का प्रयोग धड़ल्ले से करती हैं।

तमाम बातें सोचते हुए सीमा ऐसी होममेकर्स कहलाने वालों पर हंसी। फिर उसे वे औरतें भी याद आईं जो बिना किसी बात के माई च्वाइस और माई लाइफ, जैसे चाहे जिऊं के मंत्र देती रहती हैं। अब कैसे कुछ कहे। एक तरफ घर में रहना है और घर में ही रहना है, ऐसे में कैसे अपने मन की करने को दुनिया लांघती फिरें और कहें कि मैं चाहे ये करूं चाहे वो करूं मेरी मरजी। किसी की परवाह न करें। मैं किसी से नहीं डरती कहने वालियों को एक ऐसे वायरस ने घर में कैद कर दिया है, जिसे कभी किसी ने नहीं देखा है। एक कोरोना क्या आया है कि सबका बैंड बज गया है। न जाने कौन –कौन से विचार,विमर्श, अदाएं धरती पर लोट रही हैं। कोई उनकी ओर देखने वाला भी नहीं। आखिर घर की सीमाओं में इन दिनों अपने को ही देखना मुश्किल है, किसी और की तो बात ही क्या है।

खिड़की पर खड़ी देख रही थी। सोच रही थी। चाय का प्याला भी खाली हो गया था। बातें करते वे लोग दूर चले गए थे । तभी उसे अपनी सोसाइटी में दो लड़के और एक औरत घूमती दिखाई दी। क्या ये लोग कुछ दिन नहीं घूमेंगे तो आफत आ जाएगी। इनमें से किसी को भी कुछ हो गया तो यहां भी पूरी की पूरी सोसाइटी को ही भुगतना पड़ेगा। तब लोग दूध और सब्जी और दवाएं लेने भी नहीं जा सकेंगे। किसी मुसीबत में भी दूसरे को पुकार नहीं सकेंगे। हालांकि अभी भी किसको पुकार सकते हैं। कौन है जो आएगा। आजकल फेसबुक, टी वी और फोन का ही सहारा है। कल ही पढ़ रही थी, किसी ने लिखा- रामानुजम ने जब यह देखा कि मुसीबत में कितने रिश्तेदार आते हैं, तभी शून्य की खोज हुई। ऐसी हलकी –फुली बातें ही हैं जो कुछ मन बहला देती हैं । वरना तो मन है कि डर से हर वक्त दो-चार हो रहा है, जहां किसी को यह नहीं पता कि कल क्या होने वाला है।

इन दिनों सबको अपनी जिंदगी की पड़ी है। और क्यों न पड़ी हो। जीवन से ज्यादा क्या, न कोई विचार, न कोई संस्कार, न पैसा, न प्रापर्टी, न सपने, न हकीकत।बस सीमा को एक ही तसल्ली है कि कल उसे कुछ हो भी जाए तो कोई उसके लिए रोने वाला नहीं है। जो अकेलापन निराश करता है, अकेला करता है, डराता है, वह मजबूत भी करता है न सीमा की तरह।

हालांकि इन दिनों, हर जगह कोरोना के अलावा कुछ सूझ ही नहीं रहा। आन लाइन अखबार खोलो तो वह खबर, टी वी देखो तो वही खबर। किसी को फोन करो, किसी का फोन आ जाए, तो बस यही बातें। वातावरण में गूंजती डर की आहटें, किसी अनहोनी का सन्नाटा।

चाय का प्याला आकर उसने सिंक में रखा। फिर रसोई में आकर नाश्ते की तैयारी करने लगी। अच्छा है, काम जितनी जल्दी खत्म हो जाए। कल तक रो रही थी कि किसी काम के लिए समय नहीं है। आज इतना समय है कि किसी काम में मन नहीं लग रहा। आखिर जीवन में ऐसा वक्त कब आया। बड़ी से बड़ी मुसीबत भी आ गई तो भी घर से निकलना बंद नहीं हुआ। न किसी पर इतना शक हुआ कि घर की घंटी भी बजे तो चिढ़ हो कि ऐसे समय में कौन है। कौन आया है। किसी आ गए को घर के अंदर तक नहीं घुसने देना है। इतने रूखेपन से वह कब दो-चार हुई। कभी नहीं।

फोन शायद बहुत देर से बज रहा था। बाथरूम में घंटी सुनाई दे रही थी। आकर देखा तो रोहित का फोन था। इस वक्त। बात करेगी तो आधा घंटे से पहले पीछा नहीं छोड़ेगा । सीमा को इस वक्त बहुत से काम हैं। झाड़ू, पोंछा, कपड़े धोना। फोन बजता ही रहा, मगर उसने नहीं उठाया।

काम में लगे उसे कितनी बातें याद आती रहीं। रोहित और वह, एक स्कूल में पढ़ने वाले दिन। फिर बारहवीं तक साथ के दिन । फिर कालेज की पढ़ाई अलग –अलग । बाद में वह य़ू स चला गया और सीमा ने यहीं रहकर पढ़ाई की। करियर अच्छा था, क्लास में कभी किसी से पीछे नहीं रही थी सो, जल्दी ही कालेज में लग गई। उसका सपना भी यही नौकरी ही थी। न इससे कुछ ज्यादा न कम। उसके जीवन का ग्राफ बहुत सीधा-सादा। संघर्ष-वंघर्ष आदि कि कोई आड़ी तिरछी रेखाएं नहीं।

यू एस से भी रोहित कई बार बातें करता था। वह भी। नौकरी क्या लगी कि सीमा की शादी की बातें होने लगीं। तब घर वालों को नौकरी के बाद शादी की कितनी जल्दी पड़ी रहती थी।

एक दिन मां ने दबे सुर में कहा-रोहित इतना अच्छा लड़का है। तुम दोनों सालों साथ रहे हो। उसके घर वाले भी तुझे पसंद करते हैं। कहे तो शादी की बात चलाऊं।

सीमा ने मुंह बनाया-शादी और उस बेवकूफ से।

-बेवकूफ। अपने को क्या ज्यादा अक्लमंद समझती है। तेरे लिए क्या लड़का किसी और ग्रह-नक्षत्र से लाएंगे।

तुम्हें तो अपने बच्चे छोड़कर दूसरों के बच्चे ही अच्छे लगते हैं हमेशा। उसको बेवकूफ कह दिया तो समझदार बताने पर अभी लग जाओगी।

कैसे ।-मां ने पूछा।

कैसे क्या, मैं और आशीष कुछ भी अच्छा कर लें, रिकार्ड बना लें, तब भी तुम उसमें कोई न कोई खोट निकाल ही दोगी। वैसे भी मुझे अमरीका- फमरीका कहीं नहीं जाना है। वहां जाऊं और रात-दिन तुम लोगों की चिंता में मरी जाऊं।

हमारी चिंता की बजाए खुद की चिंता कर लो, अपने आप हमारी चिंता भी हो जाएगी। -मां ने कहा तो सीमा बोली-आगे से बस ये सब बातें करने की जरूरत नहीं। जब देखो ब्याह, जब देखो शादी। क्या रखा है शादी में। तुमने शादी की क्या मिला। अगर मैं शादी न भी करूं तो क्या इस धरती पर प्रलय हो जाएगी।

- मुझे शादी से तुम लोग मिले न।

-हां तभी तो इस उमर तक हमें पाल रही हो।

सीमा की बात सुनकर मां क्रोध से भर उठी। मगर इतना ही बोली-जाको प्रभु दारुण दुख देहीं, ताकी मति पहले हर लैहीं।

क्या मतलब।–सीमा ने भी अपने मिजाज के विरुध्द कर्कश आवाज में पूछा।

मतलब क्या अपने पांव में कुल्हाड़ी मारना भी इसी को कहते हैं। अच्छा खासा लड़का घर बैठे मिल रहा है, मगर हमारी महारानी के तो नखरे ही नहीं मिलते। अपनी तकदीर में लात मारना तो कोई तुझसे सीखे। –मां गुर्राई।

तकदीर अगर इतनी कमजोर है कि लात के डर से भागती है, तो भागने ही दो। -कहती हुई सीमा वहां से आंगन में चली गई। और नीम के पेड़ पर छोटे-छोटे सितारों जैसे लगे सफेद फूलों को देखने लगी। इस मौसम में नीम पर कितने फूल आते हैं। इतने सफेद सितारे, जैसे आसमान ने उन्हें इसे गिफ्ट कर दिया हो। मां से दूर हटकर आई ही इसलिए थी कि उसे लगा कि अब बस। मां से ज्यादा बहस करने का कोई मतलब नहीं। उनका पारा चढ़ता जाएगा, चढ़ता जाएगा और पूरे घर को अपने ताप में ले लेगा। हफ्ते लग जाएंगे, सबका मूड ठीक होने में।

यह रोहित भी जब देखो तब बीच में आ जाता है। अब घर में झगड़ा भी कराने लगा।- उस समय सीमा ने सोचा था। उसकी सहेलियों से लेकर अड़ोस- पड़ोस के लोग तक समझते थे कि उसका रोहित से कोई न कोई चक्कर तो जरूर है । और जब से वह अमेरिका गया है, तब से तो सब इशारों-इशारों में कहते कि क्या खूब हाथ मारा है,सोने की मुर्गी पकड़ी है। रोहित अमेरिका से वापस तो आएगा नहीं, वहां जाकर भी कोई वापस आता है। ऐसे में वह अमेरिका में रहकर राज करेगी, राजरानियों की तरह पलंग से पांव नीचे नहीं उतारेगी।

लेकिन न जाने क्यों रोहित ने अमेरिका में रहना पसंद नहीं किया था। अपनी पढ़ाई पूरी करके वह लौट आया था । और एक बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करने लगा था। तब कहीं सीमा ने महसूस किया था कि अमेरिका में रहने वाले रोहित की लोगों की नजरों में जो इज्जत थी, वह कुछ कम हो गई है। आखिर अमेरिका से भी कोई लौटता है। कोई घर आई लक्ष्मी का क्या ऐसे निरादर करता है। जरूर कोई न कोई बात हुई होगी। क्या पता क्या गुल खिलाकर आया है, जो हाथ-पांव समेटकर भागना पड़ा है।

लेकिन रोहित को आया देख, घर वालों की तो जैसे लाटरी लग गई। बार-बार नए सिरे से कहने लगे कि तू अमेरिका नहीं जाना चाहती थी, ले देख, वह यहीं लौट आया। हो सकता है तेरे लिए ही लौटा हो। और कितना तंग करेगी उसे। किसी के सीधेपन का इतना फायदा भी नहीं उठाना चाहिए। तुम दोनों अच्छी नौकरियां करते हो। घर परिवार भी एक जैसे हैं। जाति भी हमारी एक है। आखिर प्राब्लम क्या है। तू मना क्यों करती है।

ये जाति कहां से बीच में आ गई। अगर कोई अपनी जाति का न हो और मुझे पसंद आ जाए तो क्या इसलिए छोड़ दूंगी। मुझे जाति- वाति से कुछ लेना नहीं है। और ये रोहित की रामायण रोज लेकर क्यों बैठ जाते हो। आज सुनो,कल सुनो, परसों, साल भर बाद या पचास साल बाद, अभी मैं जब शादी ही नहीं करना चाहती तो रोहित हो या कोई और, नहीं करनी है। बात खतम। क्यों पीछे पड़े हो।

ठीक है, तेरी अब तू जान। हमसे बाद में मत कहना कि मेरा क्या है, मैं तो यों ही कहती थी, तुम लोगों ने ही मेरी शादी के बारे में नहीं सोचा। तुम लोगों को घर वालों को दोष देने में भी दो मिनट लगते हैं। आजकल की लड़कियों का कोई भरोसा नहीं, न उलटी ली जाएं, न सीधी। मां ने कुपित होते हुए कहा था-दुनिया को जवाब तो मुझे देना पड़ता है।

देती रहो तुम दुनिया को जवाब। और कोई सुन नहीं पा रहा है तो बता दो। लाउडस्पीकर लगवा देती हूं।- पैर पटकती हुई सीमा चली गई थी। लेकिन एक सवाल वाकई उसे मथ रहा था कि रोहित सब कुछ छोड़-छाड़कर लौटा क्यों। क्या दिक्कत थी उसे । अच्छा-खासा पैकेज भी था। उसकी उम्र के लड़के लड़कियां तो सचमुच तैयार बैठे रहते हैं कि कब मौका मिले और अमेरिका फुर्र हो लें।

एक दिन जब बहुत अरसे बाद रोहित और उसने साथ काफी पीने का प्लान किया था। तो सीमा ने बातों ही बातों में रोहित से पूछा था- तू लौट क्यों आया।

वह बोला-क्यों, तुझे अच्छा नहीं लगा।

-मुझे अच्छे लगने से क्या है। न तू मुझसे पूछकर गया था, न पूछकर वापस आया है।

हां यही समझ ले । पूछ लिया होता तो शायद जाता ही नहीं। मन नहीं लगा वहां बस।

घर लौटते हुए सीमा को रोहित की कही गई बात की पहेली समझ में नहीं आई। अगर वह मना करती तो क्या जाता नहीं। लेकिन सवाल तो यही है कि वह मना क्यों करती। रोहित के जाने न जाने से भला उसे क्या फर्क पड़ता। सिवाय इसके कि एक मित्र दूर चला गया। लेकिन मेल, मैसेज सबकी तो सुविधा थी। कभी भी फोन पर बात हो सकती थी। मामा की तरह तो था नहीं कि मामा आस्ट्रेलिया चले गए थे, महीने दो महीने में कभी उनकी चिट्ठी आती थी और कहते हैं कि नानी उनकी याद में रो-रोकर अंधी हो गई थीं।

घऱ के काम करते कब चार बज गए सीमा को पता ही नहीं चला। वैसे अच्छा भी है। अब तक तो कभी इस बात के बार में सोचा ही नहीं कि काम वाली के बिना भी काम हो सकते हैं। और यह भी कि बिना घर से बाहर जाए भी चैन से दिन गुजारे जा सकते हैं। हां लाकडाउन के कारण उसके सवेरे- शाम का घूमना रह गया है। लेकिन उसकी भरपाई सीमा ने सवेरे योग, प्राणायाम और एक्सरसाइज से कर ली है। फिर घर का हर काम चाहे झाड़ू, पोंछा, बरतन, कपड़े धोना, डस्टिंग से भी तो एक्सरसाइज और कैलोरी बर्न हो रही है।

बल्कि उसने एक मैसेज को अपने सामने चिपका रखा है और उसे देखकर खूब हंसती है-ना सनडे बीतने की चिंता,न मन डे आने का डर, ना पैसे कमाने का मोह, ना खर्च करने की ख्व्वाहिश, ना घूमने जाने की खुशी, ना सोने चांदी का मोह, ना पैसे का मोह, ना नए कपड़े पहनने का एक्साइटमेंट, ना अच्छे से तैयार होने की चिंता। यह लिखकर किसी ने पूछा है कि क्या यही सतयुग है।

सतयुग हो या कलयुग, सीमा को इससे क्या। वैसे भी जो ज्ञान यहां बघारा जा रहा है, लाकडाउन खुलते ही सब हवा हो जाएगा। तब सतयुग, कलयुग के मुकाबले लोग नौकरी बची रहने और तनख्व्वाह मिलने की चिंता में दौड़ेंगे। हालांकि सीमा की टीचरी कहीं नहीं जाएगी, मगर बाकियों का क्या होगा। मां होती तो उसकी इस चिंता का मजाक उड़ाती-काजी जी क्यों लटे सहर के अंदेसे से।

काम काज करते, टीवी देखते, पांच बज गए तो उसे याद आया कि अरे रोहित से बात नहीं की। भूल ही गई कि उसका फोन आया था। सोच रहा होगा कि ज्यादा भाव खा रही हूं।

उसका नम्बर मिलाया तो आउट आफ रीच जा रहा था। कभी कहता कि स्विच्ड आफ है। समझ में नहीं आ रहा था कि क्यों फोन नहीं मिल रहा है। थोड़ी देर में बात करेगी सोचती हुई किचन में गई तो फोन की घंटी बजने लगी। जरूर रोहित का होगा। उसी का था।

-हां बोल।

-सवेरे कहां थी।

-बस काम में लगी थी। सोचा था कि तुझसे बात करूंगी । अब फोन कर रही थी तो मिल नहीं रहा था।

-सवेरे के फोन का जवाब तू शाम को देती है। कोई इमरजेंसी हो तो जब तक तू फोन करेगी तब तक तो आदमी मर ही जाएगा।

भई कोरोना और लाकडाउन जैसी आज की इमर्जेंसी से ज्यादा और क्या होगा। और मुश्किल तो यह है कि अपने किसी को यह इन्फेक्शन हो जाए तो उसके पास भी नहीं जा सकते। खैर तू बता न क्या बात है।

कुछ नहीं, पता नहीं, अपनी नौकरी रहेगी कि नहीं।–उसकी घबराहट को महसूस किया सीमा ने।

-अरे क्यों।

-मेरे बास ने छोड़ दिया। वह नीदरलैंडस वापस चला जाएगा। कह रहा था कि अब दुनिया और नौकरी-फौकरी से मन भर गया। साला हरामी, खुद के पास तो वहां बहुत कुछ है, विला है, याट है, डायमंडस हैं, फलों के बगीचे हैं, फिर भी यहां आकर नौकरी कर रहा था। हम जैसे क्या करेंगे।

-मगर तुझे उसके जाने से क्या फर्क पड़ेगा। एक आदमी के चले जाने से कम्पनी बंद थोड़े ही हो जाती है।

कम्पनी तो पहले ही लोगों को निकालने के बहाने तलाश रही थी। लाकडाउन ने तो कम्पनी की किस्मत खोल दी है, अब यह भी जा रहा है। इसके साथ ईक्वेशन ठीक ठाक थी। पता नहीं कल कौन नया आए। किसको लाए, किसको निकाले। वैसे ही जाब मार्केट की बैंड बजी हुई है, इन दिनों।

-अरे तो जो नया आएगा, वह सबसे पहले तुझे ही निकालेगा, यह कैसे मान लिया।

अरे सबने फैला रखा है न कि मैं इस साले का राइट हैंड हूं। जबकि मैं न कभी इसके घर गया। न कभी साथ घूमने यहां तक कि पिक्चर देखने भी नहीं। न कोई हंसी- मजाक का रिश्ता है। न ही कभी ऐसा हुआ कि दूसरों को जो इन्क्रीमेंट मिला है, उससे मुझे कुछ ज्यादा मिल गया हो। हां अपने अलावा इसके हिस्से का भी सारा काम कर देता हूं, ट्रस्ट भी करता है, तो जो नया आएगा सबसे पहले उसके कानों में यही बातें तो भरी जाएंगी। बदला निकालने का इससे अच्छा मौका कौन सा होगा।

-आने वाले को तेरे काम से मतलब होगा याकि दूसरों की चुगली और कान भराई से।

कितनी भोली है डार्लिंग। ये तेरी वाली मास्टरी नहीं कि एक बार नौकरी मिल गई तो जिंदगी भर के लिए हो गई। यहां तो नौकरी मिलने से पहले उसकी जाने की चिंता करनी पड़ती है। काम –वाम सब बाद में आते हैं। इस आदमी के लिए मैंने रात-दिन एक कर दिया और आज इस कुत्ते ने मुझे यह बदला दिया है।

-लेकिन वह अपने घर ही तो वापस जा रहा है। तू भी तो लौटा था न अमेरिका से।

तू उसकी दोस्त है या मेरी। उससे ज्यादा सिम्पेथी हो रही है, तो उसी के साथ जाकर मर।–रोहित गुस्से से बोला।

-जबान संभालकर बोल रोहित। मैं उसके साथ जाकर क्या मरूंगी, मैं तो तेरे साथ जाकर ही नहीं मरी। उसे तो जानती भी नहीं।

उसने बात का जवाब दिए बिना कहा-मैं तुझसे जैलस फील कर हा हूं। कुछ भी हो जाए, आंधी, तूफान, भूकम्प, सुनामी, कोरोना, तुम लोगों की नौकरी पर कभी कोई आंच नहीं आती।

इसी को शायद पाप- पुण्य कहते हैं। तूने पिछले जन्म में बहुत से पाप किए होंगे और मैंने पुण्य।–कहकर सीमा खूब हंसी।

हां तेरे ही पुण्यों से धरती दबी जा रही थी कि कोरोना आ पहुंचा। -रोहित बोला। फिर आगे कहा –सच कह रहा हूं जब से इस साले की जाने की बात सुनी है न, मन पता है क्या कर रहा है कि होती अगर एक पिस्तौल तो सारा इसका जाना भुला देता।

वाह-वाह । चाहे हम कितना भी पढ़- लिख लें, लेकिन हमारे बेसिक्स नहीं बदलते। अमेरिका जाकर भी रहा तू गुन्नू भाई का गुन्नू भाई ही।

गुन्नू भाई ये कौन है।–उसने पूछा।

ले उऩ्हें भी भूल गया। याद नहीं तुझे अपनी गली के कोने पर रहने वाले गुन्नू भाई । जो हर बात पर चाहे किसी ने कम सब्जी तोली हो, दूध वाले ने दूध में पानी मिलाया हो, कोई उन्हें चलते-फिरते देखकर हंसा हो तो अपनी भुजाएं फड़फड़ाते हुए एक ही धमकी देते थे कि साले बीच में से फाड़कर दो टुकड़े कर दूंगा। हालांकि कभी ऐसा हुआ नहीं था। आशीष कहता था कि गुन्नू भाई ने आज तक एक मक्खी भी नहीं मारी है और दिखाते ऐसे हैं जैसे कि कहीं के गामा पहलवान हैं। वैसे ही तू अपने बास को पिस्तौल से उड़ाने की धमकी दे रहा है। तो बता तेरा नाम क्या रखा जाए-रुन्नू भाई, कुन्नू भाई या कुछ और।

तू तो मेरा नाम क्या रखेगी मैं तेरा रख देता हूं- सीमा देवी खड़खडिया।

सीमा देर तक हंसती रही। चल नए नामकरण के लिए थैक्यू सो,,सो.........सो मच।

-इतना लम्बा सो कहेगी तो फोन पकड़े ही सो जाऊंगा । कुत्ती कहीं की।

बात खत्म हो गई तो सीमा को चिंता हुई। क्या सचमुच रोहित की नौकरी चली जाएगी। मंदी के इन दिनों में दूसरी कैसे मिलेगी। क्या करेगा। वैसे भी बड़ा इमोशनल काइंड है, कहीं पंखे से न लटक ले। घबराहट होने लगी। अब क्या करे। किससे कहे। उसे सिर के ऊपर घूमते पंखे में लटका हुआ रोहित भी घूमता दिखाई देने लगा।

सीमा को अपनी तो ज्यादा चिंता नहीं । न रहे अम्मा, बाऊ जी। उनके जाते ही भाई आशीष ने भी ऐसा मुंह मोड़ा कि कभी दिखाई ही नहीं दिया, मगर रोहित ने तो शादी भी की है। उसका एक बच्चा भी है। उसकी मां भी साथ रहती हैं। नौकरी चली गई तो। उसकी वाइफ वर्किंग भी तो नहीं है कि एक नौकरी चली भी जाए तो कम से कम एक सेलरी तो घर में आती रहे । ऊपर से सीमा को देखकर उसकी वीवी की तिरछी होती आंखें, जैसे शक का कोई सांप लगातार फन उठाता रहता है। इसीलिए सीमा अब रोहित से बहुत कम मिलती है। क्यों मिले। इस उमर में भी मिले रोहित से और सफाई उसकी वीवी को दे।

लेकिन उसकी वीवी से नाराजगी का यह मतलब तो नहीं कि रोहित के बारे में बिल्कुल न सोचे। कोरोना का यह दौर, किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकते। मदद भी मांगे तो कैसे,सब अपनी-अपनी परेशानियों में फंसे हैं। जितनी परेशानियां हैं, उन्हें शहीदी का भाव लिए बढ़ा-चढ़ाकर बता भी रहे हैं।

अब सीमा को भी रोहित के बास पर गुस्सा आने लगा। उसे भी इसी दौरान छोड़कर जाने की पड़ी थी। हरामखोर कहीं का। इन बासेज का यही होता है। जान लगा दो, लेकिन कब धोखा देंगे कुछ पता नहीं चलता। हां सामने की मिठास में कभी कोई कमी नहीं आती। इसीलिए जब कोई बास धकियाया जाता है तो उसके जूनियर्स के मन की मुराद पूरी हो जाती है। उन्हें लगता है कि उनके साथ जो कुछ किया गया था, उसका हिसाब हो गया। हालांकि जब वे ये सोच रहे होते हैं कोई नया बास ऐन दरवाजे पर दस्तक दे रहा होता है। पहले से भी बुरा।

रात को सोने से पहले जब सीमा फेसबुक देख रही थी तो रोहित की वाल पर नजर पड़ी। वह अपने बास के साथ पार्टी कर रहा था। और बहुत खुश दिखाई दे रहा था। इन दिनों में पार्टी करने कैसे पहुंचा होगा। बाहर कैसे निकला होगा। पुलिस ने पकड़ा नहीं। क्या पता पुरानी फोटो हो। लेकिन उसने तो पोस्ट में लिखा था –आज की तसवीरें। आई लव माई बास। तो बास से जो उसकी नाराजगी थी, उसका क्या हुआ। या कि मिडल क्लास की सामने तारीफ और पीठ पीछे बुराई की आदत का एक्सपेरीमेंट रोहित ने उस पर किया था। ओफ ये दिन । कोरोना और लाकडाउन से भी पहले के दिन, जहां तारीफ तो सच है ही नहीं, निंदा भी सच नहीं है। किस पर भरोसा करे।

लेखिका परिचय

डा. क्षमा शर्मा,

एम. ए.( हिंदी), पी जी डिप्लोमा जर्नलिज्म, पी.

एच. डी.

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार। हिन्दुस्तान टाइम्स

में 37 वर्षों तक कार्य। बाल पत्रिका नंदन की

कार्यकारी सम्पादक रहीं।

11 कहानी संकलन, 4 उपन्यास, 5 स्ई विमर्श की

पुस्तकों के साथ साठ से अधिक पुस्तकें नेशनल बुक

ट्रस्ट, प्रकाशन विभाग, एन सी ई आर टी, वाणी,

राजकमल, किताबघर, सामयिक, मेधा, तथा बहुत

से प्रमुख प्रकाशकों व्दारा प्रकाशित। वाणी से

प्रकाशित कहानी संकलन -बात अभी खत्म नहीं हुई-

जागरण बेस्ट सेलर में शामिल।

बहुत सी पुस्तकों के नौ से अधिक संस्करण

प्रकाशित। मलयालम, उड़िया, पंजाबी, उर्दू, अंगरेजी

आदि भाषाओं में पुस्तकों और रचनाओं का अनुवाद।

शिब्बू पहलवान- एन बी टी की आपरेशन ब्लैक बोर्ड

योजना में चुनी गई पुस्तक।

एन सी ई आर टी से भाईसाहब उपन्यास के दो

संस्करण प्रकाशित। उर्दू में भी अनुवाद।

स्त्री विषयक पुस्तक स्त्री का समय पर सूचना एवं

प्रसारण मंत्रालय का प्रथम लेखिका भारतेंदु हरिश्चंद्र

पुरस्कार।

किशोरों के लिए लिखे गए उपन्यास दूसरा पाठ और

बच्चों की पुस्तक पप्पू चला ढूंढ़ने शेर पर हिंदी

अकादमी सम्मान।

कहानी संग्रह नेमप्लेट पर हिंदी अकादमी का कृति

सम्मान।

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का लल्ली प्रसाद पांडेय

पुरस्कार।

दूरदर्शन, रेडियो, एन सी ई आर टी, अमेरिका के

पापुलेशन कम्युनिकेशन के लिए बहुत से

धारावाहिकों, नाटकों, वार्ताओं, कहानियों आदि का

लेखन।

सांस्कृतिक मंत्रालय की सीनियर फैलो 2014 -16

रहीं।

फिलहाल बहुत से अखबारों, पत्रिकाओं नियमित

लेखन।

हिंदी अकादमी की सदस्य।

देश भर में बहुत सी संस्थाओं के लिए स्टोरी टैलिंग

सेशंस। जागरण की संस्कारशाला पुस्तक में

कहानियों का लेखन।

रास्ता छोड़ों डार्लिंग कहानी पर दूरदर्शन व्दारा फिल्म

का निर्माण।

दूरदर्शन, रेडियो, एन बी टी, प्रकाशन विभाग, एन

सी ई आर टी, चिल्ट्रन बुक ट्रस्ट आदि की

कमेटियों में रहीं और हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट की

गाइड टु गुड बुक्स कमेटी में भी शामिल।

लेखिका के साहित्य पर देश-विदेश के विभिन्न

विश्वविद्यालयों में छह शोध सम्पन्न। सात जारी

और बीस एम फिल।

वर्तमान में हिन्दी अकादमी, दिल्ली और हरिकृष्ण

देवसरे ट्रस्ट की काउंसिल में। कई संस्थाओं की

स्क्रिप्ट रिव्यू कमेटी में शामिल।

दूरदर्शन के अरुणप्रभा चैनल की प्रिव्यू कमेटी में।

न्यू सरस्वती बुक्स व्दारा प्रकाशित उन्मेष सीरीज

की कक्षा एक से आठ तक की पुस्तकों की

परामर्शदाता।

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