Moods of Lockdown - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 8

क्वारंटाइन...लॉक डाउन...कोविड 19... कोरोना के नाम रहेगी यह सदी। हम सब इस समय एक चक्र के भीतर हैं और बाहर है एक महामारी। अचानक आई इस विपदा ने हम सबको हतप्रभ कर दिया हैं | ऐसा समय इससे पहले हममें से किसी ने नहीं देखा है। मानसिक शारीरिक भावुक स्तर पर सब अपनी अपनी लडाई लड़ रहे हैं |

लॉकडाउन का यह वक्त अपने साथ कई संकटों के साथ-साथ कुछ मौके भी ले कर आया है। इनमें से एक मौका हमारे सामने आया: लॉकडाउन की कहानियां लिखने का।

नीलिमा शर्मा और जयंती रंगनाथन की आपसी बातचीत के दौरान इन कहानियों के धरातल ने जन्म लिया | राजधानी से सटे उत्तरप्रदेश के पॉश सबर्ब नोएडा सेक्टर 71 में एक पॉश बिल्डिंग ने, नाम रखा क्राउन पैलेस। इस बिल्डिंग में ग्यारह फ्लोर हैं। हर फ्लोर पर दो फ्लैट। एक फ्लैट बिल्डर का है, बंद है। बाकि इक्कीस फ्लैटों में रिहाइश है। लॉकडाउन के दौरान क्या चल रहा है हर फ्लैट के अंदर?

आइए, हर रोज एक नए लेखक के साथ लॉकडाउन

मूड के अलग अलग फ्लैटों के अंदर क्या चल रहा है, पढ़ते हैं | हो सकता है किसी फ्लैट की कहानी आपको अपनी सी लगने लगे...हमको बताइयेगा जरुर...

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन

कहानी 8

लेखिका : प्रितपाल कौर

हिम्मत-काल

दोपहर ढलती हुयी हॉल के फर्श पर बिछी जा रही थी. एक मक्खी न जाने कैसे अन्दर आ गयी थी. पिछले दो दिनों से उसने अपाला को परेशान किये हुए था. कभी भी जब ही उसका मन होता अपाला के पास से होकर गुज़र जाती. कभी उसकी बांहों को छूती हुयी, कभी नाक को तो कभी चेहरे को. यूँ लगता था जैसे वो अपाला के ऊपर अपना हक ज़माने को आ गयी हो. अब तो हद ही हो गयी. इस नामुराद मक्खी ने उसके कान में घुसने की नाकाम कोशिश की तो अपाला बुरी तरह झुंझला उठी.

एक झुरझुरी सी उसके पूरे तन में उठी और वह झटके से उठ कर सीधे बैठ गयी. दोपहर के खाने के बाद वह सोफे पर अधलेटी हुयी टेलीविज़न पर वेब-सीरीज 'पंचायत' देख रही थी. मन रमने लगा था देहात की कहानी में. जब से फायर स्टिक ली है ये बड़ा आराम हो गया है. जब चाहो जो भी चाहो देख लो, अपने टाइम और अपनी फुर्सत के हिसाब से. और अब तो फुर्सत ही फुर्सत है.

कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया ठप्प है. अपाला के ज़ेहन में कोरोना का नाम आते ही मन उचाट हो गया. एक ही झटके में जैसे किसी ने बिजली का स्विच ऑन कर दिया हो. एक मन किया कि न्यूज़ लगा कर देखे देश दुनिया की क्या हालत है. कितने लोग और संक्रमित हुए, मरने वालों की संख्या कितनी बढ़ी, कितने लोग ठीक हो कर घरों को लौटे. कौन देश किससे मदद की चिरौरी कर रहा है. कौन चैनल किस देश पर इसे फैलाने का दोष लगा रहा है. फिर इरादा बदल दिया. वह सब देख सुन कर मन दहल जाता है. अकेली अपाला पिछले बीस दिनों से घर में पड़ी उस दिन की राह देख रही है जब कोई इंसानी चेहरा नज़र आयेगा.

प्यास लग आयी थी. उठ कर थर्मस से गर्म पानी गिलास में ले कर घूँट घूँट कर पीने लगी. टेलीविज़न को पॉज कर दिया था. इस कोरोना ने ठंडा पानी पी कर प्यास बुझाने का आनंद भी छीन लिया था. ये वायरस जैसे भी, जहाँ से भी आया था, जिस भी राह चलता दुनिया में फैला था, इसने सभी का सुख चैन छीन लिया था. अपनी पचास साल की ज़िंदगी में अपाला ने ऐसे दिन कभी नहीं देखे थे. देखने की दूर कभी सोचा तक नहीं था कि ऐसा कुछ भी हो सकता है.

टेलीविज़न की आवाज़ से घर में कुछ रौनक बनी हुयी थी. अब सन्नाटा फिर से पसर गया था. चार बेडरूम वाले इस खूबसूरत फ्लैट का इंटीरियर अपाला की बेटी वसुधा ने किया है. वसुधा की याद आई तो मन बिफर गया. ऐसे बीहड़ समय में माँ बेटी साथ होती तो शायद ये इतना उचाट न होता. वसुधा पहली मार्च को अपने पति आनंद के साथ इंग्लैंड गयी थी. वहां आनंद के ममेरे भाई की शादी थी चौदह मार्च को. शादी के बाद दोनों का प्लान था एक महीना इंग्लैंड घूमने का. इसी हिसाब से वापसी का टिकेट बनवाया था आनंद ने. शादी तो हो गयी थी मगर.....

अपाला ने सोफे से उठ कर खाली गिलास टेबल पर रखा और हॉल के दूसरे कोने में आ कर अपनी रोकिंग चेयर पर आकर बैठ गयी. अकेले यहाँ बैठना उसे बेहद पसंद रहा है. सामने बड़ी सी फ्रेंच विंडो है, जिसके परदे इस वक़्त पूरी तरह खुले हुए हैं. अपाला इन्हें अक्सर खुला रखती है. रात को भी, जब शीशों के ज़रिये बाहर से अन्दर आसानी से देखा जा सकता है.

वसुधा जब कभी शाम को घर पर होती है परदे बंद कर देती है.

“ बेटा, तुझे पता है न मुझे ये परदे कभी भी बंद रखना पसंद नहीं.” कह कर अपाला उन्हें उनकी डोरी से खींचते हुए सरका देती है.

“मम्मी क्या है आप भी? फिर ये पर्दे लगवाये ही क्यों हैं? कभी तो बंद कर दिया करो इनको.” वसुधा झुंझला उठती है.

अपाला अपने उसी शांत स्वर में बिना किसी उत्तेजना या नाराज़गी के कहती है, “ ये तो श्रृंगार हैं हाल का. तूने ही तो सारा सब सजाया है. सभी कुछ तो तेरी पसंद का है.बस परदे बंद नहीं करने. मुझे खुला आसमान दिखाई देता रहेना चाहिए. वर्ना मेरा दम घुटने लगता है. और फिर बीस मंजिल ऊपर हैं हम. कोई ग्राउंड फ्लोर पर तो हैं नहीं कि कोई आता जाता अंदर झाँक लेगा. यहाँ यो किसी को झांकना भी हो तो हेलीकाप्टर पर आना पड़ेगा.” आपला अपने इस मजाक पर खुद ही ठहाका लगा लेती है.

“जी नहीं मेरी माताजी, आपने ड्रोन के बारे में नहीं सुना क्या?” वसुधा की आँखें चमक उठी थीं जब पहले पहली बार उसने अपाला को ड्रोन का डर दिखाया था.

“सुना है मेरी बिट्टो रानी. ड्रोन क्या देख लेगा? मेरे जैसी अधेड़ सुकडी सी औरत जिसे चाय पीने से ही फुर्सत नहीं मिलती. दूसरी बार नहीं आएगा.” इस पर दोनों ही हंस पड़ती हैं.

“मम्मी आपसे नहीं जीत सकता कोई.” वसुधा अक्सर हथियार डाल देती है. इसलिए भी कि दो साल पहले पापा की एक्सीडेंट में हुयी मौत के बाद से अपाला की ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गयी है. हमेशा सजधज कर एक से एक महंगी साड़ियाँ पहनने वाली अपाला कई बार टीशर्ट और पयजमे में ही पूरा दिन काट देती है. वसुधा ही जिद करके उसे कभी मॉल ले जाती है. फिल्म देखने और बाहर खाने के बहाने. मगर जब से वसुधा की शादी हुयी है छ महीने पहले, तब से ये सिलसिला भी बहुत कम हो गया है.

ज़रुरत के कामों के लिए अपाला पास ही सेक्टर पचास की मार्किट हो आती है. वहीं उसका टेलर भी है और पारलर भी. पारलर की मल्कियत अपाला की है. ये दूकान भले वक्तों में पति ने खरीद ली थी और यहीं से वे अपना इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का दफ्तर चलाते थे. उनकी मौत के बाद बिज़नस पार्टनर के आग्रह पर अपाला ने बिज़नस का अपना हिस्सा उन्हीं को बेच दिया. पैसा बैंक में डाल दिया और इस ऑफिस को किराये पर दे दिया. इस तरह एक अच्छी खासी रकम हर महीने उसके बैंक अकाउंट में आ जाती है.

महिंदर कपूर की मौत के बाद अवसाद से घिरी अपाला को उससे निकालने के लिए वसुधा ने इस फ्लैट का इंटीरियर नए सिरे से बदल दिया था. मगर मन कहाँ बदला जा सकता है? मन के इंटीरियर को अगर इसी तरह बदल सकते तो शायद मौसम की तरह मन भी गर्मी के बाद बारिश, सर्दी के बाद बसंत की मौज ले पता. मगर मन कुछ ऐसी मिट्टी का बना होता है कि जिसकी थाह पाना शायद किसी के भी बस की बात नहीं. वो अपाला जो महिंदर के होते हुए जीवन को भरपूर जीती थी वो अपाला तो शायद उसके साथ ही विदा भी हो गयी. पल भर को ठहाका लगाती है और फिर अपनी ही मायूसियों में घिर कर अपनी ही कैद में बैठ जाती है. वसुधा कई बार खामोश खडी माँ के इस नए रूप को देखती सोच में पड़ जाती है कि ऐसा कब तक चलेगा.

इस वक़्त यहीं सब बार-बार अपाला के मन में आ रहा है. ख़बरों को सुन सुनकर दुनिया जहाँ की जानकारी लेते हुए यही ख्याल उसे बार बार आ रहा है कि ऐसा कब तक चलेगा. कब तक दुनिया इस खौफ से बाहर हो सकेगी. जिस तरह का ये वायरस है क्या कभी पूरी तरह ख़त्म हो पायेगा. फिर ख्याल आता है कि आखिर तो इस खौफ का कोई अंत होगा. इसका वैक्सीन बनेगा. या फिर सभी लोगों में इसके प्रति इम्युनिटी पैदा हो जायेगी. लेकिन क्या सभी में इम्युनिटी पैदा हो सकती है. घबरा कर अपाला उठ खडी होती है.तभी फ़ोन की घंटी बजती है. वसुधा है. गूगल डुओ पर वीडियो कॉल.

वसुधा का चेहरा बझा हुआ सा लग रहा है मगर आवाज़ में खनक है.

“मम्मी. कैसी हो आप?’

“ठीक हं बेटा. तू बता. कैसा है वहां सब?” बेटी का चेहरा देख कर बुझा हुआ मन पुलक गया है.

“ मुम्मा क्या बताएं बुरा हाल है. सब तरफ सन्नाटा है. कोई नहीं निकलता बाहर. न्यूज़ सुन कर डर लगता है.”

“हाँ बेटा. तुम लोग ध्यान रखते हो न अपना. कहीं नहीं जाना है. घर पर ही बनाना खाना है. “

“जी मम्मी. कहीं नहीं जा सकते. सब कुछ बंद है. इंडिया की ही तरह. यहाँ तो कोई भी नहीं निकलता. सुपर स्टोर भी खाली खाली हो गए है. ठीक से सब्जी भी नहीं मिलती. हैण्ड sanitizer साबुन टिश्यू सब गायब हो गए है.”

“ये तो बड़ी मुश्किल है. कैसे काम चल रहा है?”

“मम्मी हमें तो मुश्किल नहीं हो रही. मामाजी के एक दोस्त हैं हितेन भाई. उनकी कार्नर शॉप है हैरो में. उनके यहाँ से हमारे लिए सब मिल जाता है. आनंद और अरुण हफ्ते में एक बार जा कर ले आते है. वैसे लोगों का बुरा हाल है. इंडियन स्टूडेंट्स का ख़ास तौर पर. उनके पार्ट टाइम जॉब ख़त्म हो गए है. अब इंडियन कम्युनिटी उनको ज़रूरी सामान पहुंचा रही है. अरुण भैया भी वालंटियर कर रहे हैं. आनंद भी करना चाहते थे मगर हम लोग तो टूरिस्ट वीसा पर हैं न.”

“तुम बस अपना और सब का ख्याल रखो. और सुनो एयरलाइन से बात करते रहो. जैसे ही फ्लाइट मिले फ़ौरन घर चले आओ.”

अपाला रुआंसी हो चली थी. बेटी हजारों मेले दूर किन हालात में फँस गयी थी. अकेलेपन की त्रासद स्थिति के ऊपर दुनिया भर की ख़बरें सुन सुन कर अपाला का दिल बैठा जाता था. जाने कैसा ये वायरस है. और फिर वहां का मौसम. हर वक़्त बारिश और ठण्ड. वसुधा को वैसे भी ठण्ड कुछ ज्यादा ही लगती है. महिंदर पर गयी है पूरी की पूरी.

“अच्छा मम्मी. आप टाइम से फ्रेश रोटी बना रही हो न? सामान की डिलीवरी हो रही है न? अभी आप पूरी तरह से ठीक नहीं हुयी हैं.”

अपाला को दो महीने पहले टाइफाइड हो गया था. अभी उससे उबरी ही थी कि ये महामारी दुनिया के दुसरे देशों से होती हुयी भारत आ गयी है. पहले से कमज़ोर अपाला पर दोतरफा मार पड़ गयी है. बेटी देश से बाहर है और हेल्पर नहीं आ सकती. खाना पकाना मुश्किल नहीं लगता मगर खुद ही पकाना, खुद ही खाना और दीवारों को देखना या टेलीविज़न में मन लगाना और इन सबसे ऊपर बेटी की घोर चिंता. वो एक ऐसे देश में फँस गयी है जहाँ महामारी हर रोज़ कई लोगों का शिकार कर रही है. दिन रात यूँ लगता है जैसे बदन पत्थर की सेज पर रखा हुआ है.

“हाँ बेटा. फिकर मत कर. शर्मा साब का लड़का नीचे गेट पर सामान रख जाता है और गार्ड लिफ्ट में रख देते हैं. मैं वहां से ले लेती हूँ.”

शर्मा उस पारलर के मेनेजर हैं जो अपाला की दुकान में बना हुआ है. जैसे ही लॉक डाउन लगा तो उन्होंने फ़ोन कर के कह दिया था अपाला को कि उनके घर सामान पहुंचाना उनका ज़िम्मा है और अपाला को किसी भी चीज़ के लिए नीचे आने की ज़रुरत नहीं है. रोज़मर्रा की ज़रूरतें तो पूरी हो रही हैं कोई परेशानी नहीं है. मगर मन के इस उचाटपन का क्या करे ये नहीं मालूम अपाला को.

सोसाइटी में हेल्पर का आना तो बीस तारिख से ही बंद कर दिया गया ई. उनीस की रात को सोसाइटी का नोटिस आया था ईमेल पर. तब तक अपाला ही क्या लगभग सभी को ये बात समझ आ गयी थी कि हालात खराब होते जा रहे हैं. तरह तरह की बातें और वीडियो फेसबुक, व्हात्सप्प और ट्विटर पर फैल रहे थे.

अपाला को अच्छी तरह याद है शनिवार की सुबह वह नीचे उतरी थी. लिफ्ट से सीधे बेसमेंट में गयी थी. गाड़ी वहीं रहती है उसकी. लिफ्ट से निकल कर अपनी गाड़ी की तरफ जाते हुए उसने देखा उसके सामने वाले फ्लैट की पूजा अपनी गाड़ी की डिकी खोल रही थीं. उनका पूरा ध्यान उसी तरफ था तो अपाला उनसे औपचारिक बात करने को रुक गयी. और फिर जो देखा तो हैरत से अपाला का मुंह खुला का खुला रह गया था. पूजा की गाड़ी के डिकी से उनकी हेल्पर सुमन निकल रही था. उसने बाहर निकल कर खड़े होकर अपने बदन को खोलते हुए अंगड़ाई ली तो अपाला को देख लिया.

“आंटी जी लेने आये मेरे को. घर से. अब गार्ड लोग अंदर नहीं आने देते न इसके मारे इधर पीछे बैठ कर आना पड़ा.” सुमन खुश थी. उसने लहकते हुए सब्ज़ी और फलों से भरे दो थैले उठाये जो वहीं डिकी में रखे थे. और लिफ्ट की तरफ चल पड़ी.

अपाला को समझ नहीं आया क्या कहे. पूजा भी सकपकाई थी एक पल को. फिर ढिठाई से बोली, “ यार. ये कोई बात हुयी? हेल्पर की एंट्री बैन कर दी. इतना काम कैसे करूंगी मैं? झाड़ू पोंछा बर्तन. तीन टाइम खाना, और हमारा तो पूरा भरा पूरा परिवार है."

“लेकिन पूजा. आप को पता है ये इन्फेक्शन कितना खतरनाक है?”

“अजी कुछ नहीं होता. हम सब पूरा ध्यान रखते हैं अपना. देसी दवाये और काढ़ा भी ले रहे है. और सुमन को भी मैं सब दे रही हूँ. हमारे साथ ही हमारी तरह ही सब खाती है. और बहुत साफ़ सुथरी रहती है.”

“वो तो ठीक है. मगर आने जाने में..... उसके घर में और लोग भी तो हैं. आप ऐसा करो इसको इन दिनों में अपने घर ही रख लो. बाहर नहीं जायेगी तो इन्फेक्शन का खतरा नहीं रहेगा.”

“ हाँ. ठीक कहती हो आप. इसको घर पर ही रख लेती हूँ. मेरे से इतना काम नहीं होने का. आप तो अकेली हैं. आप को दिक्कत नहीं होगी. एक जने का तो काम ही कितना होता है.” ये कह कर पूजा ने रिमोट से अपनी गाड़ी को सेंट्रल लॉक किया था और लिफ्ट की तरफ चली गयी थी.

अपाला को इन दिनों में कई बार ये बात याद आई. जब जब भी कोरोना संक्रमण को लेकर उसका मन घबराया. जब जब भी नीद से घबरा कर उठी और खुद को पसीने से तर अपने घर में अकेले ही पाया. जब जब भी खाना बनाने का मन न होते हुए भी बनाया और ज़बरदस्ती खाया, दवा ली. वसुधा को वीडियो कॉल किया. कई बार मन में आया कि पूजा से पूछे कि सुमन उसके घर पर ही रह रही है. कहीं बार बार तो सुमन उसे कार की डिकी में छिपा कर अपने घर नहीं ला रही. मगर कोई संकोच उसे रोके रहा. फिर तबीयत अभी पूरी तरह संभली नहीं थी. और ये मुसीबत आ गयी थी. किसी से बात करने को भी मन नहीं करता था.

वसुधा से दिन में दो तीन बार वीडियो कॉल पर बात होती. बेटी माँ की फिकर करती. माँ बेटी दामाद की. इस बीच दुनिया भर से बुरी और बुरी ख़बरें ही आ रही थीं. मन जाने कैसा तो उचाट हो गया था. हर वक़्त एक हल्का सा उजाड़ पेट में बसा रहता. लगता जो खाया पिया है वो बिना पचे भीतर जम गया है.

इस दौरान जब भी अपाला लिफ्ट से सामान उठाने के लिए लोब्बी में आती तो पूजा के घर का दरवाज़ा अक्सर खुला ही मिलता. अन्दर से आवाजें भी सुनायी पड़ जातीं. पूजा के घर में पूजा के पति, दो किशोर बेटे और बुज़ुर्ग सास ससुर हैं. सास कुछ ज्यादा ही बीमार रहती हैं. अपाला ने कई बार पूजा से बातचीत के दौरान उनकी कई बीमारियों और हस्पताल के लगातार लगने वाले चक्कर के बारे में सुना है. ठीक से तो समझ नहीं पाई पर शायद वे दमे की मरीज़ हैं.

आज बेहद बोरियत भरा दिन रहा है अपाला के लिए. सुबह से ही मन कुछ ज़्यादा ही बिखरा हुआ है. लगता है ये लॉक डाउन कुछ दिन और बढ़ने वाला है. न्यूज़ पर, फेसबुक पर व्हात्सप्प पर सब जगह यही चर्चा है. टेलीविज़न बंद कर के चाय बनाने जा ही रही थी कि कुछ तेज़ आवाजें बाहर से आती सुनायी दीं. कान उधर लपके. सोशल डिस्टेंसिंग के इस नए मुहावरे के पिछले बीस दिनों में ज़रा सी आहट पर ही मन घबराने लगा है. एक मन किया फ़ौरन बाहर जा कर देखें. पैर मुड़े भी मगर फिर रुक गए. नहीं भीड़ नहीं करनी है. पहले ही दो तीन लोगों के जोर जोर से बोलने की आवाज़ आ रही है. कुछ टूटे फूटे शब्द सुनायी भी पड़े.

एम्बुलेंस, व्हील चेयर शब्द कानों में पड़े तो अपाला खुद को रोक नहीं पाई. हॉल के मेन गेट को थोडा खोल कर बाहर झाँका तो दिखाई दिया पूजा के घर के जाली का दरवाज़ा भी पूरा खुला हुआ था. एक आदमी वहां खड़ा था. उसने पी पी इ यानी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट पहना हुआ था. अपाला का माथा ठनका.

पूजा के घर का दरवाज़ा लोब्बी में बायीं तरफ लगभग दस मीटर की दूरी पर है. मन ही मन अपाला ने जांचा कि उसके और इस पैरामेडिक के बीच डिस्टेंस सेफ है. और फिर हिम्मत कर के आवाज़ दी.

“एक्सक्यूस मी.”

“वो घूमा. उसके सिर्फ आँखें ही दिख रही थीं. उन पर भी चश्मा चढ़ा हुआ था.

“जी मैडम.”

“क्या हुआ है?” अपाला ने पूजा के दरवाजे की तारफ इंगित करते हुए पूछा.

“मैडम एक मेडिकल इमरजेंसी है. एल्डरली लेडी हैं.” कह कर उसने पीठ मोड़ ली. तब तक दूसरा पैरामेडिक व्हील चेयर के साथ भीतर से निकला. पूजा के पति और खुद पूजा उसके साथ थे. सभी के मुंह पर मास्क थे. पूजा की सास बेहोश सी लग रही थीं. नेबुलिज़ेर लगा हुआ था. अपाला समझ गयी कि उन्हें दमे का दौरा पडा है. इस एहसास के साथ ही उसका दिल भी दहल गया था. इस कोरोना वायरस के आतंक के बीच यह दौरा. वो भी इस उम्र में? अपाला को झुरझुरी छूट गयी. वो घबरा कर अन्दर आ गयी. आगे कुछ देखने की हिम्मत नहीं हुयी उसे.

कुछ देर अपाला वहीं कान लगाये खडी रही. कुछ देर आवाजें आयीं और फिर बंद हो गयीं. ज़ाहिर था वे लोग व्हील चेयर के साथ लिफ्ट में नीचे चले गए थे. तभी फिर आवाजें आने लगीं तो अपाला खुद को रोक नहीं पायीं. कितने दिनों के बाद इंसानी आवाजें सुनायी दे रही थी. इंसानों के चेहरे नज़र आने की कोई सूरत बनी तो उसने लपक कर फिर दरवाज़ा खोल दिया.

सामने पूजा के दोनों बेटे खड़े थे. अपने घर के दरवाजे पर. असमंजस में भरे हुए जुड़वां किशोर. भीगती हुयी मसें. टीशर्ट और शॉर्ट्स में. बाल करीने से स्पाइक में संवरे हुए. सभी जुड़वाँ बच्चों की तरह एक दूसरे से बात करते हुए.

“आई टोल्ड यू. हमको अंकल को मिलने नहीं जाना चाहिए था. इफ दादी गेट्स कोरोना विल यू एवर बी एबल टू फोर्गिव योरसेल्फ?”

“नो यार. अंकल इस पेर्फेक्ट्ली फाइन. उनके तो qurantine के 15 दिन पूरे हो गए थे. एंड ही इस फिट एंड फाइन. दादी को कुछ नहीं होगा. हर बारी की तरह दादी विल कम होम सून. इट्स जस्ट अन आर्डिनरी अस्थमा अटैक. लाइक ऑलवेज. “

“होप सो. यस. यू आर राईट. बट स्टिल वी शुड नॉट हैव विजिटेड हिम. लॉक डाउन ख़त्म होने पर ही जाना चाहिए था. हम सब को. पापा ने भी यही बोला था मुम्मा को. बट शी नेवर लिस्न्स.”

“मुम्मा तो रोज़ सुमन को डिकी में छुपा कर ले कर आती है.”

“ऐ नईं यार उससे कुछ नहीं होता. थिस डिजीज इस नोट थे डिजीज ऑफ़ पूअर... ये तो फोरेन से आने वाले लोग ले कर आते हैं. अंकल को इसलिए तो quarantineमें रखा था क्योंकि वो इंग्लैंड से आये थे.”

“बट यू नेवर नो. हो सकता है सुमन किसी और के घर पे गयी हो जहा से उसको इन्फेक्शन कैर्री हो जाये.”

“हाँ. बट मम्मी भोत जिद्दी हैं. उनको इतना सारा हाउस वर्क करना पड़ता न. लेकिन अब हम सब उनकी हेल्प करेंगे. सुमन को नहीं ले कर आना अब.”

“हाँ. अब सुमन को नहीं ले कर आना. है बोलना है मम्मी को."

“ओके. ठीक कहते हो. चलो अन्दर चलो दादाजी को कॉफ़ी बना के देना है पापा कह के गए हैं. आज डिनर हम बनायेंगे.”

अपाला ने उन्हें दरवाज़ा बंद करते देखा. कुछ देर और रुकी रही. जाने क्यूँ. और फिर अहिस्ता से अपने घर का दरवाज़ा बंद कर के अन्दर आ गयी. फ्रेंच विंडो के सामने खड़े हो कर देर तक अपाला इन बच्चों की बातों पर विचार करती रही. अक्सर आते जाते दोनों दिख जाते हैं अपाला को लिफ्ट में या कॉमन एरिया में. कभी हेल्लो करते हैं कभी नहीं. ये नयी जनरेशन है. इसके रंग ढंग काफी अलग हैं. अपाला को अक्सर लगता है कि पहले नयी पीढ़ी बीस साल के फासले पर नज़र आती थी अब दस साल में ही नयी खेप तैयार हो जाती है. खुद उसकी वसुधा और इन किशोरों में कितना अंतर है.

मगर आज उनकी बातें सुन कर मन को कुछ ढाढस बंधा. ये पीढ़ी जागरूक भी है और ज़िम्मेदारी का एहसास भी है. ज़रुरत पड़ने पर उठ खड़े हो कर ज़िम्मेदारी निभाने की सलाहियत भी है.

मगर साथ ही पूजा की सास को लेकर मन घबरा गया. इश्वर न करे वे कोरोना से इन्फेक्टेड हों. सुमन को रोज़ छिपा कर उसके घर से यहाँ ले कर आना. और फिर इंग्लैंड से आये अंकल के यहाँ परिवार का मिलने जाना. मन झुंझला गया. ये लोग क्यों स्थिति की गंभीरता को नहीं समझते ?

इश्वर कर पूजा की सास का अस्थमा अक्सर हमेशा वाला दौरा हमेश वाला दौरा ही हो. लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो? मन बेतरह घबरा गया. क्या हमारी सोसाइटी भी हॉटस्पॉट बन जायेगी? सील कर दी जायेगी? हालाँकि अपाला कहीं नहीं जाती मगर ये सोचना भी दम घुटने जैसा है कि सोसाइटी के गेट पर ताला लग जाए. न कोई अन्दर आ सके न कोई बाहर. और ज़रूरी सामान सरकारी मदद से मांगना पड़े.

घबरा कर पूजा बैठ गयी. मन किया वसुधा को अभी फ़ोन लगा कर इस बारे में बात करे तो शायद मन हल्का हो जाये. मगर फिर रुक गयी. बेटी बेकार परेशान हो जायेगी. किसी तरह खुद पर काबू पाया ही था कि फ़ोन पर ईमेल की टोन बज उठी.

आजकल अपाला फ़ौरन चेक करती है अपना फ़ोन. कोई भी मेसेज हो. या ईमेल. ये ईमेल सोसाइटी की तरफ से है. पूजा की सास के बारे में जानकारी दी गयी है. सोसाइटी वालों से कहा गया है कि संयम रखें. कहीं भी आना जाना बंद रखें. वे हस्पताल ले जाई गयी हैं. उनका टेस्ट का रिजल्ट कल आ जाएगा. उसके आने के बाद ही आगे की बारे में सूचना जारी की जायेगी.

रात बीहड़ रास्तों से हो कर गुज़री है अपाला की. कई तरह के सपने आये. सपने में महिंदर भी दिखे. कुछ कहते हुए से. जब भी महिंदर सपने में आते हैं अपाला का मन भीग जाता है. अगले कई दिन अच्छे गुज़रते हैं उसके. लगता है जैसे कहीं गए नहीं, वहीं हैं उसके साथ. मगर आज सुबह उठी तो चाय पीते पीते पूजा की सास की बीमारी की याद कौंध गयी. कोरोना ऐसा छाया हैं मन मस्तष्क पर कि अक्सर दिमाग में कोरोना वायरस शब्द गूंजता हुआ सुनायी देने लगता है. आज भी यही हो रहा है सुबह से. वसुधा से देर रात बता हुयी मगर मन संभल नहीं सका है.

धूप ने आज सुबह छः बजे से ही फ्रेंच विंडो की राह पूरे घर में बसेरा कर लिया है. दिन के चढ़ने के साथ ही धूप का ये सिलसिला पूरे हॉल में घुमक्कड़ी करता यहाँ से वहां विचरता रहा है. अपाला इसके साथ ही कदम ताल करती हुयी घर में अकेले घूमती हुयी नहा धो कर पूजा कर के नाश्ता ले कर अपने कुसी पर आ कर बैठ गयी है.

घर साफ़ सुथरा है. हर रोज़ एक कमरे में झाड पोंछ कर लेती है. पोचा पांच छह दिन में एक बार लगा लेती है. बर्तन खाने के साथ ही धो लेती है. लोनली सा घर कहता है जैसे अपाला से कि मुझे तुम्हारी ज़रुरत है. तुम्हें खुद को संभाले रखना है मेरे लिए. वो भी इस खाली घर से कुछ कहना चाहती है मगर शब्द नहीं मिलते. क्या कहें? कि बने रहना. वो तो रहेगा ही. अपाला के बाद वसुधा के लिए. महिंदर चले गए तो भी बना ही तो रहा. यहीं. अपाला को समेटे.

टोस्ट कुतरते हुए घड़ी पर नज़र डाली तो देखा बारह बजने वाले हैं. सब वयवस्था चरमरा गयी है इस अकेलेपन की बदौलत. तभी फ़ोन पर ईमेल की टोन बजी. टोस्ट को फ़ौरन प्लेट में रख कर अपाला ने फ़ोन उठा लिया.

सोसाइटी की तरफ से नोटिस है. पूजा की सास का कोरोना टेस्ट नेगेटिव आया है. आगे कुछ नहीं पढ़ा अपाला ने. फ़ोन रख दिया. और टोस्ट उठा लिया. नाश्ते के बाद वसुधा को वीडियो काल करेगी. अब तक उठ गए होंगे वसुधा और आनंद. उन्हें फिर कहना है कि जल्दी से फ्लाइट का पता करें.

और पूजा को फ़ोन कर के कहना है कि सुमन को छिपा कर लाना बंद करे. वर्ना अपाला खुद ही कोई कदम उठायेगी. अकेलेपन और दहशत के इस जुड़वां मेल को अकेली अपाला ही तो नहीं झेल रही. लाखों करोड़ों लोग हैं जो ये सब झेल रहे हैं. पूजाओं को अपनी ज़िम्मेदारी समझानी ही होगी. चाहे इसके लिए अपाला को अपनी खोह से निकल कर सख्ती ही करनी पड़े.

हर बार किस्मत साथ दे ऐसा ज़रूरी तो नहीं.

लेखिका परिचय :

एम.एस सी (फिजिक्स), एम एड.

आकाशवाणी से उद्घोषक से कैरियर की शुरुआत, यूनिवर्सिटी मे अध्यापन, दूरदर्शन पर प्रसारित 'परख' के लिए रिपोर्टिंग, NDTV संवाददाता (6 वर्ष)

उपन्यास: Half moon, ठगलाइफ, राहबाज, इश्क फरामोश.

कहानी संग्रह: लेडीज आयलैंड, मर्दानी आंख

कविता संग्रह: अफसाना लिख रही हूं.

संपादन: परिवेश के स्वर, Biography of Dr. Uma Tuli.

Translation: two art books ( Hindi to English)

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