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पाखी

पाखी

अन्नदा पाटनी

खुले मैदान में एक बडे़ समारोह का आयोजन था । चारों तरफ़ हरे भरे पेड़, मनमोहक महक लिए ठंडी बयार के झोंके और पास में बहती हुई छोटी सी साफ़ सुथरी नदी । भला इस से सुंदर स्थल क्या हो सकता था ऐसे आयोजन के लिए जिसका प्रयोजन ही था अपना प्रचार ताकि स्पर्धा के इस युग में लोगों, विशेषकर प्रभावशाली तबके के लोगों का ध्यान खींच कर अपनी छवि बना ली जाय ।

यह समारोह एक नई एन जी ओ संस्था का प्रथम प्रयास था । अत: अतिथियों की सूची में मानव संसाधन मंत्री, उच्च पदों पर आसीन आला अफसर, तथा नामी कंपनियों के मालिकों के अलावा संभ्रात समृद्ध परिवार सम्मिलित थे । निमंत्रण पत्र, हस्तनिर्मित मंहगे काग़ज़ पर, किसी कलाकार द्वारा उद्देश्य को लक्ष्य करता हुआ आधुनिक शैली में रेखांकित चित्र,समारोह में सम्मिलित होने के लिए आकर्षित कर कहा था ।

इस एन जी ओ संस्था का नाम था ‘जनहित’ ।जैसा कि नाम से स्पष्ट था, इसका प्रमुख उद्देश्य था समाज के विभिन्न ज़रूरतमंद वर्ग की भलाई के लिए कटिबद्ध रहना । सबसे पहले इसके लिए इन्होंने चुना एक अपंग 16 वर्षीय कन्या पाखी को, जिसका एक पैर एक दुर्घटना में घुटने के ऊपर से काटना पड़ा था । यह उस समय की बात है जब भारत में इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में अधिक विकास नहीं हुआ था । आज की तरह न मोबाइल फ़ोन थे, न संपर्क के अन्य साधन और ना हीं जल, बिजली के कोई विकल्प ।

पाखी बहुत ही कष्टकर जीवन व्यतीत कर रही थी । दिन भर माँ बाप का कोसना और जिधर से निकलो, लोगों का ‘लँगड़ी लँगड़ी’ कह कर चिढ़ाना । अपने दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना उसे बहुत कचोटता था पर सबसे ज़्यादा आहत वह तब होती जब लोग उसे 'बेचारी' कह कर सहानुभूति दिखाते । कुछ दरिंदों ने तो उसकी लाचारी का फ़ायदा उठाने की कोशिश भी की । कभी निराश क्षणों में दुर्बल हो सोचती कि इतनी लंबी ज़िंदगी अपने दम पर कैसे गुज़ारेगी, इस से तो मर जाना ही बेहतर है पर फिर हिम्मत बटोर कर कहती,"यह तो कायरों का काम है और मैं कायर नहीं हूँ।"

तभी सुनने में आया कि कृत्रिम अंगों के निर्माण का बीड़ा कुछ चिकित्सा संस्थानों ने उठाया है । इसके अंतर्गत ‘जयपुर फ़ुट’ का बड़ा नाम हुआ जिसने दिव्यांगो के जीवन में विशेष क्रांति ला दी । ‘जयपुर फुट’ के कारण पंगु व्यक्ति वे सभी कार्य करने में सक्षम हो पाया जो दो पैर वाला कर सकता था ।

पाखी आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर तो थी ही पर उस से भी अधिक उसके लिए दुखदायी था ‘लँगड़ी ‘ नाम से संबोधन । इसलिए जब ‘जनहित’ संस्था ने उस से संपर्क किया तो वह एकदम राज़ी हो गई । संस्था ने अपने लक्ष्य की शुरुआत पाखी के कृत्रिम पैर लगवाने से की । अपनी साख जमाने के लिए समारोह से बढ़ कर क्या प्रचार साधन हो सकता था । एन जी ओज़ के पास पैसों की समस्या तो होती नहीं बल्कि समाज सेवा के नाम पर न जाने कितने लोगों को भारी तनख़्वाह, कार, ड्राइवर, पेट्रोल आदि की सुविधा मुहैया कराई जाती है ।

समारोह स्थल शहर से दूर छोटी जगह पर था परंतु रमणीक था । अत: भारी संख्या में अतिथियों ने भाग लिया ।जैसा अक्सर होता है, इन में से अधिकतर की रुचि मनोरंजन और बढ़िया खाने की ओर रहती है । कहने की ज़रूरत नहीं कि यूनिफ़ॉर्म में लैस अनेक वेटर ट्रे में तरह तरह की मंहगी शराब से भरे गिलास लिए वेज और नॉन वेज स्टार्टर लिए चक्कर लगा रहे थे ।कार्यक्रम विलंब से शुरू होने की घोषणा लगातार हो रही थी क्योंकि मुख्य अतिथि व्यस्तता के कारण समय पर नहीं पहुँच पा रहे थे । फ़ोटोग्राफ़र भी उन्हीं के साथ थे पर लोगों को इस से कोई सरोकार नहीं था । खाने पीने में जो मशगूल थे ।एक आदमी मामूली सा कैमरा लिए घूम रहा था और नौसिखिए की तरह फोटो ले रहा था । देर होने के कारण अंधेरा सा होने लगा था । पता नहीं बिना फ़्लैश के वह क्या खींच पा रहा होगा ।तभी उद्घोषणा हुई कि मंत्री जी की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई है अत: उनका व फ़ोटोग्राफ़रों का आना संभव नहीं हो पायेगा । जो कार्यक्रम दिन में चार बजे शुरू होकर छ: बजे तक समाप्त होने वाला था वह मंत्री जी के चक्कर में साढ़े छ: तक शुरू ही नहीं हो सका ।

अंधेरे ने पूरे पैर पसार दिए । रोशनी के नाम पर आसपास के मिट्टी के घरों में जलती हुई लालटेनों की टिमटिमाती रोशनी ही थी ।कार्यक्रम तो छोड़ो पब्लिसिटी के लिए ख़बर के साथ फोटो तो बहुत ज़रूरी थीं । मोबाइल तो थे नहीं और उस एक नौसिखिए का कैमरा बिना फ़्लैश के क्या खींच पाता । तभी एक सज्जन ने सुझाव दिया कि वह अपनी मर्सिडीज़ मैदान में लाकर उसकी हैड लाइट्स ऑन कर दें ताकि फोटो तो खींiची जा सकें । हुआ भी वही ।

अब पाखी को कार से कुछ दूर खड़ा कर उस पर फ़ुल लाइट्स ऑन कर दी गईं । बेचारी अपने ऊपर इतनी तेज़ रोशनी में बहुत ही अटपटा महसूस कर रही थी । ऊपर से उसे सलवार ऊँची कर नक़ली टाँग दिखाने को कहा जा रहा था । सलवार को थोड़ा और, थोड़ा और ऊपर करो की पुकार मचती रही । सबको उसकी टाँग देखने की पड़ी थी,किसी को इस बात से लेना देना नहीं था कि उस जवान पाखी पर क्या बीत रही थी । जब सलवार जाँघ से भी ऊपर खींचने को कहा गया तो एकदम से ज़ोर से चिल्लाती पाखी की आवाज़ गूँज उठी,” बंद करो, बंद करो । नहीं चाहिए मुझे यह टाँग, नहीं खिंचवानी फोटो मुझे । “ इतना कह कर उसने वह नक़ली टाँग उतार कर फेंक दी “खींचो अब जितनी फोटो खींचनी है ।”

कोई कुछ समझे उस से पहले अपने माता पिता का सहारा लेकर लँगड़ाती हुई वह वहाँ से चल दी । सब सन्नाटे में आकर सकपका गए । पाखी की चीत्कार और उसके चंडी रूप के आगे ‘जनहित’ वालों की एक न चली । फिर जो अपेक्षित था, वही हुआ, कार्यक्रम एकदम असफल, निहित स्वार्थ योजनाएँ निष्फल पर समाचार पत्र पाखी के साहस की ख़बरों से भरे पड़े थे ।

पाखी सुबुक सुबुक कर रोती हुई घर पहुँची तो रास्ते भर अपने ग़ुस्से पर क़ाबू किए माँ बाप उस पर फूट पड़े और उसकी जम कर पिटाई करने लगे । पीटते रहे और कहते रहे,” सोचा था तेरी जिंदगी तो सुधर ही जायेगी, हमें भी रुपये पैसे की मदद मिलती रहेगी ।पर बहादुरी की औलाद, सारा गुडगोबर कर हमें सबके सामने शर्मिंदा कर दिया ।इतने पैसे ले लिए हैं पर तेरी इस हरकत से अब हम क्या मुँह दिखायेंगे ‘जनहित’वालों को । “

इस पर तो मानो पाखी पागल ही हो गई, बदहवास सी चिंघाड़ने लगी,” मार लो जितना मारना है, तब तुम्हारी शरम कहाँ चली गई थी जब इतने आदमियों के सामने तुम्हारी जवान लड़की को नंगा कर रहे थे । तब शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई ? पैसे के सामने अपनी बेटी की इज़्ज़त उतरवाने में तुम्हें लाज नहीं आई ?”

माँ बाप ग़ुस्से से पागल थे,” अब सारी जिंदगी हमारी छाती पर मूँग दलेगी । लँगड़ी से कौन तो शादी करेगा, हमारे पास पैसे नहीं हैं तुझे बैठ कर खिलाने को और तेरी सेवा करने को । इस से तो मर ही जाती ।”

सब दुखी होकर लुढ़क गए पर पाखी की आँखों में नींद का नाम नहीं था । सोचा था टाँग लग जाने से वह आगे की पढ़ाई के साथ कुछ कमाने का ज़रिया ढूँढ लेगी पर उसका वह सपना तो चूर चूर हो गया ।सच तो है माँ बाप कब तक उसका भार उठाएँगे । दुविधा में थी पर उसे लगा कि मर गई तो सब समस्याओं से मुक्ति मिल जायेगी, उसे भी और घरवालों को भी ।शायद रोएें पर शायद राहत की साँस लें ।

चुपके से उठी और बिना आहट किए घर से निकल पड़ी । उसे खुद नहीं मालूम था कि कहाँ जा रही थी । चलते चलते रेल की पटरियाँ भी साथ हो लीं मानो कह रही हों कि जिंदगी समाप्त करनी है तो आ जाओ हमारी शरण में । लगा यह भी एक विकल्प हो सकता है । तभी उसे किसी व्यक्ति के कराहने की एक आवाज़ सुनाई दी । सोचा उसके जैसा कोई और दुखी भी है । इसी बात ने हिम्मत दिलाई और वह पटरी के पास पड़े आदमी की ओर चल दी । पास जाकर देखा अधेड़ उम्र का था । एकदम सीधे ही पूछ बैठी,” मर भी नहीं पाए ?”

“अरे मरने कौन गया था, यह तो कोई मार कर चलता बना । चलो मुझे अस्पताल पहुँचाओ ।

“अरे, मैं कैसे ले जाऊँ, मैं खुद हैरान हूँ । “

पर पाखी का मन नहीं माना ।एक ऑटो वाले को रोका और उसी की सहायता से उस व्यक्ति को अस्पताल ले आई।ख़ास घायल नहीं था । कुछ घंटों बाद उसे छुट्टी भी मिल गई । वह चलने को हुई तो उस व्यक्ति ने कहा,”

अधूरा काम मत छोड़ो । अब घर भी छोड़ दो ।”

वह जिंदगी से इतनी विरक्त हो गई थी कि भय और शंका भी उसे डरा न पाए । हाँ यह सोच कर उसे तसल्ली मिली कि किसी के लिए कुछ कर पाई । पता लगा वह व्यक्ति अकेला रहता है । क्या वह सही कर रही है अकेले घर में अनजान व्यक्ति के साथ रह कर । पूरी रात गुज़र गई इसी ऊहापोह में और सवेरा हो चला।चाय बनाने के लिए पाखी को हिदायत दी गई । चाय पीते पीते वह आदमी हंस कर बोला,” मरने की बात तुम्हारे मन में आई कैसे ? क्या तुम इसी इरादे से पटरियों पर आई थीं ? जिंदगी लेने का हक़ हमें थोड़े ही है, जिसने दी है उसे है ।”

पाखी की पूरी कहानी उसने ग़ौर से सुनी। हंस कर बोला,” तुमने मेरी जान बचाई और मैने तुम्हारी। अब एक काम करो, घर तो तुम जाने से रहीं, मुझे घर की देखभाल के लिए कोई चाहिए। तुम यह काम संभाल लो । तुम्हें महीने की पगार मिलेगी । इसलिए सबसे पहले, वही जयपुर फ़ुट लगवा लो । पैसे का हिसाब रखूँगा और अपना बहीखाता चलता रहेगा ।

पाखी तीखी