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मुखौटा - 12

मुखौटा

अध्याय 12

"आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की ?", अचानक मैंने पूछ लिया। "आपके साथ भी कोई धोखा हुआ?", लगता है मेरी अक्ल सचमुच में मेरे बस में नहीं है ।

वह स्वाभाविक ढंग से हंसा।

"नहीं, इतने दिन शादी करना है जैसा लगा ही नहीं । रिसर्च प्रोजेक्ट में बहुत ही डूबा हुआ था। अम्मा जब तक थी बेचारी बोलती रहती, ‘एक बार आकर शादी करके चले जा।‘, मैं आ ही नहीं पाया।"

"अभी अम्मा नहीं है क्या ?"

"नहीं है। उन्हें गए पांच साल हो गए। उसके बाद इंडिया आने का यह उद्देश्य भी कम हो गया। अभी ही शादी करना चाहिए इस उद्देश्य से आठ साल बाद यहां आया हूं।

अभी तक यह बिना किसी लड़की से दोस्ती किये रहा होगा क्या, ऐसा सोचते हुए मैंने उसे "बेस्ट ऑफ लक" कहा । इतने में कॉलिंग बेल बज उठी। श्रीकांत ने उठकर दरवाजा खोला। दुरैई और नलिनी दोनों अंदर आए।

"रोहिणी नहीं आई क्या ?” श्रीकांत ने पूछा।

"उसे लेकर आते हैं सोचकर उसके घर गया था मैं । वह कहीं गई हुई थी । घर में ताला लगा था। रास्ते में नलिनी मिली तो उसे लेकर आ गया। रोहिणी यहां नहीं आई क्या?”, दुरैई ने मुझे देखकर पूछा।

अभी तक रोहिणी घर नहीं गई सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ।

"नहीं आई।", मैंने झट जवाब दिया। "मैं और वह कनॉट प्लेस गए थे। वहां से मैं ब्रिटिश काउंसिल चली गई। और उसने घर जाने को बोला था !"

‘कृष्णन के साथ गई हुई है’ बोलने में मुझे संकोच हुआ।

"घर पर नहीं थी।", दुरैई दोहराया। सर झटकते हुए श्रीकांत से, - “क्या बात है श्रीकांत?” बड़े उत्साह से बोला।

"कुछ नहीं ! इस तरफ से गुज़र रहा था तो इनसे भी मिलता चलूँ, सोच कर यहां आ गया", श्रीकांत बोला।

"दिल्ली में कोई लड़की देखी क्या ?"

"नहीं!", कह श्रीकांत मुझे देख कर मुस्कुराया।

फिर दुरैई को देखकर,"अभी हम बात कर रहे थे। अभी तक शादी क्यों नहीं हुई इस बारे में।"

"हमें भी जूस मिलेगा क्या दीदी ?" नलिनी बोली।

"क्यों नहीं!", हंसते हुए मैं उठ कर भीतर गई। मैं कांच के गिलास के साथ वापस आई तो दुरैई मेरे पास आया. कुछ सोचते हुए मेरे चेहरे पर निगाह टिका कर, "कृष्णन आया हुआ है?" धीमी आवाज में बोला ताकि कोई और न सुन ले ।

'तेरी पत्नी के साथ अभी घूम रहा है।' मन में बोलते हुए प्रत्यक्ष में, "हां", बोल कर मैंने पूछा "किसने कहा ?"

"नलिनी ने बताया। क्या कह रहा है कृष्णन ?"

"कुछ तो भी कह रहा है।", मेरी आवाज में उदासीनता भर आई । "अब उन सब बातों का क्या अर्थ है दुरैई ?"

"वह ठीक है", सहानुभूति दिखाते हुए। "उसी के बारे में तुम्हारे सोचते रहने से भी कोई मतलब नहीं है।"

पता नहीं क्यों अचानक ही मुझे तेज गुस्सा आ गया। "आप लोग बार- बार वही बात बोलते हो, मेरी समझ में नहीं आता है दुरैई। सब लोगों ने मुझे मूर्ख ही समझ लिया लगता है। अभी मेरा क्या बिगड़ गया ? उस आदमी का स्वाभाव पता चलने से अब शांति से ही हूं मैं!"

तभी मुझे कमरे में फैली एक तनावपूर्ण शांति महसूस हुई । हमारी बातें श्रीकांत के कानों में भी पड़ी होगी ।

"सॉरी मालिनी। आपको दुखी करने की मंशा नहीं थी मेरी ।", जल्दी से बोल कर दुरैई उठकर श्रीकांत के पास जा बैठा। उसकी बात ने मुझे और शक्तिहीन कर दिया, मैं और उदास हो गई ।

"आज विज्ञान भवन में आग लग गई, पता है ?"

बातचीत की दिशा बदलने से मुझे राहत मिली। उसके बाद उसी विषय पर विवरण देते हुए दुर्रई उसी में मस्त हो गया।

जब वे चलने को उठ खड़े हुए तब मैं दुरई से बोली, "तुम्हें रोहिणी के साथ ज्यादा समय व्यतीत करना चाहिए।"

"आई नो!", कहकर वह हंसा। "आज उसके लिए जल्दी घर गया तो वह नहीं थी। उसका बर्थडे आने में अभी सिर्फ 10 दिन बाकी हैं। उसके लिए साड़ी सिलेक्ट करने तुम मेरे साथ बाज़ार चलना !" वह बोला।

मुझे हंसी आई।

"आऊंगी, कब जाना है बोलो", मैं बोली।

"शनिवार को चलें ? तुम फ्री हो ना?"

"हां। मेरी छुट्टी है।"

"राइट, फिर चलेंगे", दुरैई उत्साह से बोला।

"घर चल रहे हो क्या श्रीकांत ? अब तक रोहिणी आ गई होगी।"

"नहीं, मुझे 8:00 बजे किसी को देखने जाना है। मैं रवाना होता हूं। कहकर श्रीकांत भी उठ खड़ा हुआ। फिर मुझे देख कर, "मैं बाहर जाकर आता हूं", बोला।

"बेस्ट ऑफ लक!" कहकर मैं हंसी।

"हां, बेस्ट ऑफ लक ! नलिनी ने यह और मिला दिया - "लड़की ढूंढने जा रहे हो ना!"

अनिश्चितता की एक हंसी हंसते श्रीकांत हाथ हिलाता हुआ रवाना हुआ।

"इसको क्या लगता है जैसे दुकान में सामान खरीदना हो वैसे पत्नी भी सेलेक्ट करना है ?", नलिनी श्रीकांत की कार के रवाना होते ही बोली।

और मुझे लगा कि वह ऐसा नहीं सोच रहा है शायद, इसीलिए असमंजस में है ।

"परंतु मुझे नहीं लगता, ये जाने से पहले इतनी जल्दी शादी कर पायेगा !”, नलिनी बोली।

"क्यों?" आश्चर्य से मैंने पूछा।

वह एक 'नियर पर्फेक्ट' लड़की को ढूंढ रहा है, ऐसा लगता है।

मैंने बिना कुछ जवाब दिए हंसी। पर्फेक्ट यानि करीब-करीब उसकी मां समान, अब ऐसी कोई लड़की तो कहां मिलेगी ? वह बोल तो रहा था कि ‘ऐसा सब मैं अपेक्षा नहीं कर रहा हूं ।‘ फिर क्या अपेक्षा कर रहा है ? मुझे तो संदेह कि उसको वह पता भी है कि उसकी अपेक्षा क्या है ? शादी का जो बंधन है अब एक सामान्य विषय नहीं रहा ।

समझौता करना हम्मांगा के काल में वन वे ट्रेफिक था. भारत की लड़कियां बदल रही हैं, इसे वह समझ नहीं सका तो वह परेशान होगा। ‘नियर परफेक्ट लड़की को ढूंढने जा रहा है, नलिनी के कहने से मुझे हंसी आती है। क्योंकि मुझे नहीं लगता कि वह ऐसे किसी विश्वास में रह रहा है। खुशी और पूर्णत्व दोनों सिर्फ भावनाएं हैं, यह उसे भी पता है। अमेरिका में तो जो वे चाहते हैं वाही सही है। नलिनी की बात पर मेरी हंसी का यही तो कारण है । "मुझे सब समझ में आता है। मैं एडजस्ट कर लूंगा। आने वाली कर लेगी क्या?" यह डर है।

इस तरह की असमंजसता क्या कृष्णन को रही होगी ? पता नहीं ! अचानक एक अनजान लड़की से कैसे शादी कर लिया पता नहीं! करीब दो साल पत्नी जैसे मुझसे अंतरंगता रख कर मुझ लड़की को छोड़ सका फिर उसके लिए कोई भी कठिन काम नहीं हो सकता। ‘कैसे वह इतनी आसानी से छोड़ पाया’, कई दिनों तक यह प्रश्न मुझे परेशान करता रहा था। जैसे एक सच के प्रमाण को तोड़ दिया हो मुझे ऐसा आघात लगा। कृष्णन ने ऐसा किया तो मन फट गया। उसने मुझे जो चेहरा दिखाया था उसे देखकर ही मैंने इस पचड़े में नहीं पड़ी कि उसे कैसा होना चाहिए। जैसी मैंने इच्छा की थी, वह वैसा ही था इसीलिए मैं कल्पना में ही खो गई।

शब्दों, वचन, सत्य इन सब विषय में पुरुषोचित है ऐसा मुझे लगता था । वही तो एक लोकगीत प्रसिद्ध हुआ है, जो आंखों में आंसू लेकर आता है। बोलने में, वचन में सम्मान ना देने वालों का अभाव दुनिया में होने से ही सब लोग इस खेल में बड़े आराम से शरीक हो रहे हैं। यही बात लोकगीत को चिरंजीवी बनाता है। जीवन का खेल एक झूठ का खेल ही है । मेरे पूर्वजों को यह बहुत ही अच्छी तरह से मालूम है। नारायणी बड़ी अम्मा, हम्मंगा, कप्पू तक । एक मदमस्त हाथी को कभी कोई पेड़ नहीं छिपा सकता ..अपने मन की बात को अपने मन में नहीं रखते तो जैसे पड़ -दादी को भूतनी ने पकड़ लिया वह भूत इन्हें भी पकड़ लेता।

अपना यह ढोंग जन्मजात है, यही सोच कर कृष्णन ने मुझसे घमंड में बोला था, "तुम्हारी नानी तुम्हारे अंदर से झांक रही है।" नानी के पास नहीं रही रोहिणी इसीलिए नहीं, बल्कि इसलिए कि वह उसे फंसाने में लग रहा है। उसकी अभागी पत्नी की सोचकर मेरे मन में दया आती है। कृष्णन का स्वभाव उसको मालूम होगा क्या, यह विचार मेरे मन में आ रहा है। परंतु उसको वह तृप्ति देने वाला पति हो सकता है; बड़े आराम से तृप्ति देने वाला होने के कारण ही वह सिंपल गर्ल है, वैसी ही रहने दो। एक दिन रोहिणी उसके साथ कनॉट प्लेस में घूमी हो तो कुछ बहुत बड़ी खराबी नहीं होगी। उसके बाद भी और दिनों तक उसके बारे में सोचना मेरे अंदर मन की कमजोरी को बाहर दिखाता है।

"आज मेरी मां की तिथि है ?" सुबह लक्ष्मी द्वारा पूछते ही मुझे भी एकदम से ध्यान आया। आज अम्मा की पुण्यतिथि है । कभी अपना दर्द व्यक्त नहीं करने पर भी, मुझे पता है, अम्मा ने मन में एक बड़ी कमी महसूस की थी । पुत्र नहीं होने की कमी। ‘बुढ़ापे में लड़का हमारी देखभाल करेगा’ यह सोच होगी, श्मशान में आग लेने के लिए सोचती थी क्या ? या फिर विश्वास करती थी कि पुत्र उन्हें नरक जाने से बचा लेगा, मुझे पता नहीं। 'मुझे लड़का समझो' एक बार मैंने मजाक में उनसे कहा था । 'तुम्हारा लड़का होता तो क्या करता, वह सब मैं कर दूंगी।', लड़की और लड़के की स्थिति में अंतर होता है, शास्त्रों की ऐसी बातों पर विश्वास करने वाली वह थी। परंतु फिर भी उसके आखिरी दिनों में वह मेरे पास ही रही। उसके मरने वाले दिन को सोचकर मैं, जिस पर उसे बहुत विश्वास था उस मुरूगन के दरबार में जाकर अर्चना करके जरूर आती थी; उसको दिए हुए वचन का मैंने पालन किया, ऐसा विचार मुझे आता है।

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