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सीमारेखा




हर व्यक्ति की ज़िंदगी में एक मकसद होता है. बिना मकसद के ज़िन्दगी बेमानी है. ज़िन्दगी को जीना और उसे काटना दोनों अलग बातें हैं. ज़िन्दगी जब बोझ लगने लगे तो उसे अधिक देर तक ढोया नहीं जा सकता, किन्तु यह बोझ यूँ ही कहीं फेंका भी तो नहीं जा सकता. लेकिन ज़िन्दगी बोझ क्यों लगने लगती है..? अपनी ही साँसों का हिसाब रखना कितना मुश्किल काम है. सपनों की दुनिया कितनी अच्छी होती है. जब हकीकत की चट्टान ख्वाबों और ख्वाहिशों की राह में रोड़ा बन जाती है, तब या तो ख्वाब टूटता है या ख्वाहिशें मचलती हैं और ज़िन्दगी में साँसों की लय गड़बड़ाने लगती है. अब उससे निकली तान मधुर नहीं लगती... यह कर्कश ध्वनि मेरे दिमाग पर हथौड़े चलाने लगती है. लगता है कि बस अब और नहीं......! रानू की डायरी पढ़ते हुए रवि के चेहरे पर अनेक रंग आ जा रहे थे.

"ह्म्म्म... तो यह डायरी तुम्हें कहाँ से मिली?" उसकी आवाज़ किसी गहरे कुएँ से आती प्रतीत हुई.

"मेरे वॉर्डरोब में... मैंने एकाध बार उसकी गैर मौजूदगी में इसे तलाशने की कोशिश की थी. पिछले महीने हुए हादसे के बाद वह बहुत डिस्टर्ब थी. मैंने सुरभि को फोन किया था. जानती हूँ कि किसी की व्यक्तिगत ज़िन्दगी में उसकी इजाज़त बगैर झाँकना गलत है, किन्तु उसकी चुप्पी से उपजे प्रश्न मुझे परेशान करते थे. वह जानती थी कि चोर अपनी जेब कभी नहीं तलाशता, तभी उसकी डायरी मेरे...." बोलते बोलते सिम्मी अचानक चुप हो गई. उसने देखा कि रवि कहीं खो गया.

'वीनू' यही तो पहचान थी रवि और रानू की और उनका सपना भी. सब उन्हें इसी नाम से बुलाते थे. दोनों का परिचय मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करते हुए कोचिंग पर हुआ था. साथ में ही सिलेक्शन और फिर एक ही कॉलेज में एडमिशन... अब अगले पाँच-छः साल तक साथ रहना तय था. इरादा तो पूरी ज़िंदगी साथ बिताने का था. जो सोचते हैं, वह हो जाए तो ज़िन्दगी कितनी आसान हो...

"सर! मैं जानती हूँ कि आप रानू से बहुत प्यार करते हैं. आप दोनों शादी करने वाले थे. दोनों डॉक्टर्स, घर वाले भी मान ही जाते, फिर यह सब क्यों...? कैसे...? आखिर आप लोगों का ब्रेक अप क्यों हुआ...? और वैसे भी मेडिकल लाइफ में हर अफेयर शादी तक पहुँचे, जरूरी तो नहीं...! मैंने सुना था कि आप 'मूव ऑन' कर चुके थे, आपने एक बार भी मुड़कर नहीं देखा... क्यों? उसे छोड़ने के बाद एक बार भी जानने की कोशिश नहीं की, कि वह किस हाल में है...."
सिम्मी की बात सुनकर रवि चौंक गया... "क्या कहा...? मैंने उसे छोड़ा..? यह तुमसे किसने कहा? ब्रेक अप का फैसला उसका था. मैं बहुत डिस्टर्ब हो गया था. उसे बार-बार कॉल करता, मैसेज करता... उसने मेरा नम्बर ब्लॉक कर दिया था. पी जी में सिलेक्शन हम दोनों का ही नहीं हुआ था पहली बार में. ड्रॉप लेकर साथ में ही तैयारी की थी. दूसरी बार भी किस्मत ने मेरा साथ नहीं दिया. वह एनैस्थिसिया में एम डी करने चली गई. उसके पेरेंट्स उस पर शादी का दबाव बनाने लगे, मेरे सिलेक्शन के बिना मैं उनसे कैसे मिलता? जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा न हो जाऊं, उसका हाथ कैसे माँग सकता था? उसने कहा था कि वह इंतज़ार करेगी. वह अपना वादा न निभा सकी. मैं तो सारी जिंदगी इंतज़ार कर सकता था, किन्तु वह ज़िन्दगी ही हार बैठी. एक बार मुझसे कहा तो होता..." वह फूट फूट कर रो पड़ा.

जब तक ज़िन्दगी से मोह है, तब तक मृत्यु से भयावह कुछ नहीं होता. मृत्यु अंत है... दुःखों का और खुशियों का भी. तमाम किस्से.. सुख-दुःख, परेशानियाँ, असफलता या असंतुष्टि का अस्तित्व तभी तक है जब तक साँसे चल रही हैं, मरने के बाद सब निरर्थक है. शायद इसीलिए लोग खुशी-खुशी मर जाते हैं. पूरे होशो-हवास में जान जैसी चीज़ लुटा देते हैं, जो किसी भी कीमत पर वापस नहीं आ सकती. खुद तो अँधेरे में गुम जाते हैं, किन्तु अपनों को एक ऐसा दर्द दे जाते हैं, जो ज़िन्दगी भर उनके चेहरे से मुस्कुराहट छीन लेता है. सिम्मी सोच रही थी कि उसकी दोस्त रानू ने आखिर ऐसा कदम क्यों उठाया? कितनी कड़ी मेहनत के बाद वह इस मुकाम पर पहुँची थी. एक साल बाद डिग्री मिलने ही वाली थी. सिम्मी उसकी मौत का कसूरवार रवि सर को मानती थी. शायद उनसे ब्रेक अप के बाद वह सम्भल ही नहीं पाई थी. लेकिन आज रानू की डायरी और रवि की बातों ने समूचा परिदृश्य ही बदल दिया था.

"सिम्मी! तुम्हारे पास सुरभि का नम्बर है? वह जरूर जानती होगी, रानू हर बात उससे शेयर करती थी. वह मेरी भी अच्छी दोस्त थी, मैंने ही उसका नम्बर डिलीट कर दिया था. मैं रानू से जुड़ी हर बात भूलना चाहता था..."

"हाँ! उस हादसे के बाद सुरभि ने मेरे कहने पर रानू से बात की थी..."

अगले ही दिन रवि, सुरभि और सिम्मी एक कॉफी हॉउस की टेबल पर बैठे थे.

"सिम्मी! जब तुमने मुझे रजत के बारे में बताया, मैंने रानू को फोन किया था. पहले तो वह कुछ नहीं बोली, मेरे कुरेदने पर रो पड़ी, फिर धीरे धीरे सब बताया." सुरभि ने बोलना शुरू किया तो रवि चौंक गया... "ये कौन हैं? सर्जरी डिपार्टमेंट के रजत सर तो नहीं..?"
"हाँ सर वही..." सिम्मी बोली.
"सेकंड ईयर में आने तक वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. इतने अच्छे कि हॉस्पिटल में सब उन्हें एक कपल के रूप में देखते थे. सर्जन और एनेस्थेटिस्ट का कॉम्बिनेशन... सब उनकी शादी फिक्स होने का इंतज़ार कर रहे थे, कि अचानक रजत सर को हार्ट अटैक होने से उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा... और हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के दो दिन बाद ही कैंटीन में रानू के सामने ही सर कोलेप्स हो गए... इस घटना ने रानू के दिमाग पर गहरा असर डाला, वह एकदम पत्थर की बुत बन गई थी उस समय...."

"ओह! मुझे पता चला था कि रानू की ज़िंदगी में मेरी जगह किसी और ने ले ली है, बहुत कोसा था मैंने... पर मैंने उसका बुरा कभी नहीं चाहा था... रजत सर के मेजर बाइक एक्सीडेंट के बाद उनका हार्ट बहुत वीक था, और तो और...." रवि ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया... "यह बात मुझे हमारे एक कॉमन फ्रेंड ने बताई थी, कि डॉक्टर ने उन्हें शादी न करने की सलाह भी दी थी और शायद इसी वजह से उनका पहला ब्रेक अप हुआ था... क्या... रानू को यह बात नहीं पता थी..?"
इस खुलासे ने सिम्मी और सुरभि दोनों को हैरान कर दिया। रानू की ज़िंदगी में रवि के एग्जिट और रजत की एंट्री का क्या सीन रहा? रवि का स्थान रजत ने लिया या रजत के आने से रवि उपेक्षित हुआ, यह भी एक बड़ा प्रश्न था. अब इन प्रश्नों का कोई औचित्य भी नहीं था, क्योंकि रानू और रजत दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं थे. अकेला रवि खुद को समझाने की कोशिश करता हुआ सोच रहा था कि... रानू ने उसे धोखा दिया या खुद रजत से धोखा खाया...? वह साइकाइट्री पढ़ रहा है, तो सभी एंगल से इस केस की स्टडी करेगा. काश उसने एक बार और रानू से मिलने का प्रयास किया होता...!
सिम्मी के दिमाग में उथल-पुथल थी कि रानू का पास्ट उसने रजत सर को न बताया होता, तो शायद आज रानू भी हमारे साथ बैठी होती...काश...! क्या करे..? वह भी तो रजत सर को पसन्द करती थी. रानू बीच में न आई होती तो शायद... बस इसके आगे वह कुछ सोच ही नहीं पाती. अब बचा भी क्या था सोचने के लिए...?

ये काश और शायद हमारी ज़िंदगी में बहुत बड़ा रोल अदा करते हैं. सुरभि भी कुछ इसी तरह से खुद को दिलासा देने की कोशिश कर रही थी. उसे अच्छी तरह याद है कि उस रात दो बजे रानू को व्हाट्सएप्प पर ऑनलाइन देखकर उसने मैसेज टाइप किया और फिर यह सोचकर डिलीट भी कर दिया कि एग्जाम के बाद आराम से लम्बी बात करेगी. चार दिन पहले भी तीन घण्टे तक बात हुई थी. रजत की मौत से स्तब्ध रानू ने कितनी ही बातें शेयर की थीं. रवि का पी जी में सिलेक्शन न होने से उसे डंप करने का निर्णय भी उसका ही था. रजत के जाने से वह अवसाद में थी. सुरभि से बात कर कुछ हल्की हो गई थी. रजत की मौत का जिम्मेवार वह खुद को मानती थी. हॉस्पिटल से लामा देकर डिस्चार्ज करवाया था. डॉक्टर होने का ओवर कॉन्फिडेंस उसकी जान ले गया... कितना रोयी थी फोन पर, किन्तु हालात को बदला नहीं जा सकता. उसे अपनी ही साँसे बोझ लगने लगी थीं. सुरभि ने काफी देर समझाया और उसे अहसास करवाया कि उसकी मेहनत, उसका सपना और साथ ही उसके पेरेंट्स का सपना अब पूरा होने को है, उसने भी तो वादा किया था, फिर से खुश रहने का, किन्तु अगले ही दिन रानू द्वारा एनैस्थिसिया की ओवरडोज इंजेक्ट कर सुसाइड करने की खबर ने सुरभि को हिला दिया था. काश वह रात दो बजे मैसेज डिलीट न करती, सेंड कर देती, उसका वक़्त रानू की ज़िंदगी से ज्यादा कीमती तो नहीं था. शायद उसका एक प्रयास उस घड़ी को टाल सकता था... काश... काश...!

अब कितने ही काश हों, किन्तु ज़िन्दगी तो वापिस नहीं आ सकती.

सिम्मी, सुरभि और रवि तीनों उस रेस्टॉरेन्ट की टेबल पर बैठे खुद में गुम थे, सामने रखे गिलासों में कॉफी ठण्डी हो चुकी थी. उनके पास वाली कुर्सियाँ यूँ तो खाली थीं, किन्तु रवि और सुरभि के बीच रानू और सिम्मी के पास रजत की अदृश्य उपस्थिति महसूस की जा सकती थी.

ये तीनों इस दुनिया में मजबूर थे और सीमा रेखा के पार दो आत्माएँ मजबूर थीं...
" ये तीनों हमारी मौत का मातम मना रहे हैं, फिर भी अपने मन की परतें नहीं उधेड़ रहे." रजत की आत्मा ने रानू की आत्मा से कहा. रानू की आत्मा अपने निर्णय से दुःखी थी, किन्तु उसे जस्टिफाय कर रही थी--
"मेरे लिए तुम्हारे बिना वह दुनिया फिजूल थी. मुझे जीवन और मृत्यु की सीमा रेखा को लाँघना ही एकमात्र समाधान दिख रहा था. उस पार से मैं सिर्फ तुम्हें सोच रही थी. इस पार आकर अब वापिस जाना नामुमकिन है. हमारे माता-पिता, दोस्त सब कितने परेशान हैं. यदि हम आज उस दुनिया में होते तो कितनी ही फिजिकल सर्जरी कर चुके होते. अब हम मेन्टल सर्जरी कर रहे हैं. इनकी असलियत जानकर भी हमें फर्क नहीं पड़ रहा. यहाँ तक कि अब प्रेम और नफरत जैसी बातें भी हमें प्रभावित नहीं कर पातीं. तुम तो खैर कुदरती मौत मरे हो, किन्तु मैं...? मेरे मोहपाश ने तुम्हें मरकर भी आज़ाद नहीं होने दिया. मुझे तो मेरी शेष रही साँसों को पूरा करने की सज़ा यूँ त्रिशंकु में भटककर पूरी करनी है..."

"मेरी साँसों का हिसाब पूरा हो चुका था. मौत एक रहस्य है. जब तक जिंदा हैं, तब तक मौत के बाद का जीवन, दिव्य संगीत और रोशनी में डूबी एक काल्पनिक दुनिया है. जीते जी इस रहस्य से पर्दा उठना नामुमकिन है. ज़िन्दगी वाकई खूबसूरत है और मौत के सच को स्वीकारना बहुत मुश्किल... तुमने अपनी मौत खुद चुनने का फैसला लेकर कितनों को जीते जी मार डाला..."

"सच कहा, लेकिन मेरे लिए यही सज़ा मुकर्रर थी..."

"यह सजा तुम्हें नहीं, तुम्हारे अपनों को दी है तुमने, देखा नहीं तुम्हारे माता-पिता किस कदर टूट चुके हैं, उन्हें भी तो अपनी साँसों का हिसाब पूरा करना है, यदि तुम उनके साथ होती, तो वे ज़िन्दगी जीते, मजबूरी में काट नहीं रहे होते..."

"जो हुआ काश उसे हम बदल पाते..."

जीवन और मृत्यु की सीमा-रेखा के इस तरफ भी और उस तरफ भी एक 'काश' हमेशा रह जाता है. इधर से उधर तो कभी भी जा सकते हैं, किन्तु उधर से इधर आना नामुमकिन है. सिर्फ यादें रह जाती हैं, जिन्हें महसूस किया जा सकता है, सहेजा जा सकता है. काश इस बात को हर शख्स समय रहते समझ ले. रवि, सुरभि और सिम्मी, इस बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं... रानू और रजत समझ चुके हैं, किन्तु अब बहुत देर हो चुकी है.

काश! वे समय रहते समझ पाते...!

©डॉ. वन्दना गुप्ता
(मौलिक)