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Rewind ज़िंदगी - प्रस्तावना

नवलकथा के बारे में: दुनिया का सबसे अटल सत्य ये है कि, होनी को कोई नहीं टाल सकता। कभी कभी हम सभी को लगता है कि, काश हम अपना पुराना वक़्त बदल पाते। काश कुछ लम्हे हम उनके साथ बिता पाते जिनके साथ हम बिताना चाहते थे। काश अपनी की हुई गलती हम सुधार पाते। हम सभी चाहते है कि, काश ज़िंदगी में भी कोई Rewind बटन होता तो जब चाहे तब अपने हसीन पल को दोहरा लेते और पुरानी भूलो को सुधार भी लेते। गुजरे हुए लोगों से मिल भी लेते। ज़िंदगी पर बस अपना ही कंट्रोल होता तो कैसा होता ना? हर किसी को ये मौका नहीं मिल पाता पर यह कहानी है माधव और कीर्ति की, जिनको सौभाग्य से दूसरा मौका मिलता है अपनी ज़िंदगी को Rewind करने का। तो वो ये कैसे करते है, और कैसे जीते है अपनी ज़िंदगी Rewind कर के?

प्रस्तावना

स्थल: मोहन चट्टी, उत्तराखंड

सुबह का वक़्त और सुहाना मौसम काफ़ी है किसी को भी रोमांचित करने के लिए। ऐसे ही एक सुहाने दिन उत्तराखंड के मोहन चट्टी (ऋषिकेश से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर) में लोग इकट्ठा हुए थे। समय का तो पता नहीं पर वहां मौजूद किसी को भी समय की फिक्र ही नहीं थी। और किसी का तो पता नहीं पर कम से कम माधव और कीर्ति को तो बिलकुल ही फिक्र नहीं थी वक़्त की।

“क्या सोच रही है?” माधव ने पूछा।
“कुछ नहीं!” कीर्ति ने कहा।
“कुछ तो जरूर चल रहा है तेरे दिमाग में।”
“नहीं यार, बिलकुल नहीं।”
“डर लग रहा है?”
“हां, थोड़ा सा।”
“मैं हूं ना साथ में, फिर क्यों डर रही है?”
“थोड़ा सा डर लगना तो बनता है यार, इतनी भी बहादुर नहीं हूं मैं।”
“बहादुर नहीं? और वो भी तू? ये तो मैं मान ही नहीं सकता, तुझसे ज़्यादा बहादुर मैंने कोई देखी ही नहीं।”
“हां मेरी तारीफ़ों के पुल बना दे तू।” कीर्ति ने कहा और मुसकुराने लगी।
“तेरे तारीफ़ों के पुल मैं बाद में बनाऊंगा, फ़िलहाल अभी हमें उस पुल पर जाना है।” माधव ने कहा और पुल की तरफ इशारा किया।
“तू पक्का ये करना चाहता है?”
“नहीं,” माधव बोला और कीर्ति का हाथ पकड़ कर कहा, “हम ये करना चाहते है।”
“पर जैसा की तू जानता है, मुझे डर लगता है ऊंचाइयों से।”
“जानता हूं, पर हमने मिल कर ये फैसला लिया है, अब हम इससे मुकर नहीं सकते।”
कीर्ति अभी भी डरी हुई थी, ये देखकर माधव फिर से बोला, “ओ पागल! इतना क्या डर रही है? इतना ही डर था तो पहले ही ना बोल देती, अब क्यों ना बोल रही है?”
कीर्ति ये सुनकर और मायूस हो गई।
“ठीक है, अभी भी हमारे पास आधे घंटे का वक़्त है। तू जो बोलेगी वैसा ही करेंगे, पर ना बोलने से पहले एक बार फिर से अपनी आँखें बंद कर के अपनी ज़िंदगी Rewind कर लेना उसके बाद ही कोई फैसला करना।”
“तेरा ये हर बार का है ना? यही बोल बोल के तू अपनी सारी बातें मनवा लेता है मुझसे।”
“नहीं यार, मैं तुझे हिम्मत देने के लिए ऐसा बोलता हूं, वरना मुझे क्या? मैं तो ये अकेले भी कर ही सकता हूं।”
“ख़बरदार जो तूने ये अकेले किया तो, तेरी जान ले लूंगी।” कीर्ति ने आँखें बड़ी करके माधव को धमकी दी।
“यार तो चल ना, कितनी देर करेगी? हम लोग ऑलरेडी लेट है।” माधव ने घड़ी को देखते हुए कहा।
“मुझे थोड़ा सा वक़्त दे, जैसा की तूने कहा मुझे थोड़ी और हिम्मत की जरूरत है फ़िलहाल।”
“तो यहां पे क्या करेगी? ऊपर पुल पर चल, वहां कुछ देखेगी तो हिम्मत आ ही जाएगी।”
“नहीं! मैं यहीं पर रुकूंगी कुछ देर,” कीर्ति ने लंबी सांस ली और कहा, “तब तक मैं यहां पे रुक कर अपनी ज़िंदगी Rewind करूंगी।’’
“ठीक है, पर ज़्यादा टाइम मत लगाना, मैं ऊपर तेरा इंतज़ार करूंगा।”
तभी वहां पास से गुज़र रहे एक 20 साल के लड़के ने इन दोनों को टोका, “आप लोग भी यहां पे बंजी जंपिंग करने आए है?”
“हां!” माधव ने कहा।
उस लड़के ने उन दोनों को देखा और फिर बोला, “पर ये आप लोगों की उम्र के लोगों के लिए नहीं है!”
“बच्चे, तेरी उम्र क्या है?” कीर्ति ने पूछा।
“20 साल!”
“तो फिर अपने से उम्र में ढाई गुना ज़्यादा लोगों को सलाह देना तेरी उम्र में अच्छा नहीं लगता, बच्चे।”
वो बच्चा बिना कुछ बोले वहां से चला गया, और माधव ने हँसते हुए कीर्ति से कहा, “तू सुधरेगी नहीं ना?”
“अब मैंने क्या किया? वो ही फालतू में हमें सीखा रहा था, हमें क्या करना है क्या नहीं करना है अब ये बच्चे लोग हमें सिखाएंगे?”
माधव मुसकुराया और कहा, “ठीक है, मैं ऊपर जाता हूं, ज्यादा देर मत करना।” और वो चल दिया, और इधर कीर्ति अपने मन ही मन में सोचने लगी,

*सही में हमें क्या करना क्या ना करना ये तो अपने हाथ में ही होता है, इससे हमारी उम्र से क्या लेना देना? भगवान ने सब को अपनी तरह से बनाया है, सब में कुछ कमियां और खूबियां होती ही है। नफरत है मुझे ऐसे लोगों से जो सोचते ये हमारे बस का नहीं है।*

वाकई में कीर्ति और माधव भले ही 50 साल के होंगे, पर उनके इरादे किसी 20 साल के लोगों को भी शर्म आ जाए इतने बुलंद थे, यही वज़ह थी की आज वो दोनों मोहन चट्टी आए थे, बंजी जंपिंग करने के लिए। जी हां बंजी जंपिंग, जिसे नहीं पता उसे बता दूं कि ये एक ऐसी गतिविधि है जिसमें एक ऊंची संरचना से एक बड़ी लोचदार रस्सी के साथ जुड़े रहते हुए कूदना शामिल है। यह लम्बी संरचना आम तौर पर एक इमारत, पुल या एक क्रेन जैसी स्थायी वस्तु हो सकती है; लेकिन हॉट-एअर-बलून या हेलिकॉप्टर जैसी एक चलायमान वस्तु से भी कूदना संभव है, जिसमें जमीन से ऊपर मंडराने की क्षमता हो। जितना रोमांच फ्री-फालिंग से आता है उतना ही पलटाव से आता है। जब व्यक्ति कूदता है, तो रस्सी खिंचाव के कारण विस्तृत हो जाती है और जब रस्सी वापस सिकुड़ती है तब कूदने वाला ऊपर की ओर उड़ जाता है और इसी प्रकार कभी ऊपर और कभी नीचे की ओर तब तक दोलायमान रहता है जब तक कि उसकी सारी ऊर्जा विकीर्ण नहीं हो जाती।

कीर्ति अपने ख़्यालों से बाहर ही आई थी तभी उसने देखा की माधव पुल पर पहुंच चुका था, और अपने पूरे जोश के साथ बंजी जंपिंग की तैयारी भी कर रहा था।

माधव ने कीर्ति को देखा और ऊपर की ओर आने के लिए इशारा किया। कीर्ति ने भी इशारे से 5 मिनिट में आने के लिए कहा और फिर से सोचने लगी, क्यों अकसर ऐसा होता है? जो हम करना चाहते है वो कर नहीं सकते, और जो सोचते है वैसा होता नहीं, जो मांगते है वो पाते नहीं, और जब हम पूरी तरह से तैयार होते है कुछ करने के लिए तो भी किसी ना किसी का डर लगा रहता है। क्यों कुदरत हंमेशा हमारे दिल के साथ खेलता रहता है? आखिर क्यों?

“कीर्ति, अब आ भी जा यार। कितना डरेगी अब?” माधव ने ऊपर से ही कीर्ति को आवाज़ लगाई। कीर्ति अपने ख़्यालों की दुनिया से बाहर निकल कर अपने हक़ीकत की ओर बढ़ चली। वो हक़ीकत जो जब उसने सोचा था तो हुआ नहीं, और जब हुआ तो माना नहीं। कीर्ति जैसे जैसे आगे चल रही थी, वैसे ही उसके मन में उसकी पूरी ज़िंदगी Rewind हो रही थी।

Chapter 1 will be continued soon…

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✍️ Anil Patel (Bunny)