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Rewind ज़िंदगी - Chapter-1.4:  कीर्ति का परिचय

Chapter-1.4: कीर्ति का परिचय

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“हां तो बोलिए आप दोनों को क्या तकलीफ़ है?” रमेश जी ने अपने ऑफिस में दोनों से पूछा।
“मेरी जो प्रॉब्लम है वो मैंने आपसे बोल दी है, अगर आपको विस्तृत में जानना है तो मैं इस शख़्स के सामने कुछ भी बोलना पसंद नहीं करूंगी।” कीर्ति ने कहा।
“आपको इनसे क्या प्रॉब्लम है?” रमेश जी ने पूछा।
“मुझे किसी से कोई प्रॉब्लम नहीं है, पर मैं अपनी परिवार की बातें ऐसे शख़्स के सामने नहीं बोल सकती जो किसी की इज्ज़त करना ना जानता हो, और खासतौर पर लड़कियों की इज्ज़त करना ना जानता हो।”
“आपको अगर मुझसे कोई प्रॉब्लम है तो आप यहां से जा सकती है।” उस शख्स ने कहा।
“माफ करना भाई साहब, आपने अपना नाम क्या बताया?” रमेश जी ने पूछा।
“माधव, जी मेरा पूरा नाम माधव प्रमोद आचार्य है।”
“हां तो माधव जी ये ऑफिस मेरी है, यहां कौन रुकेगा और कौन जाएगा ये मैं तय करुंगा।”
इस बात पर कीर्ति अपने होंठों पर थोड़ा सा हाथ रख कर हँस दी। इस पर माधव का गुस्सा और बढ़ गया,
“देखा आपने सर, ये कैसे खिखिया रही है? यह लड़की जान बूझकर मेरी शिकायत कर रही है, इसे दूसरों को नीचा दिखाना पसंद है।” माधव ने कहा।
“तुम दोनों की बकवास सुनने मैं यहां पर नहीं बैठा हूं, अगर तुम दोनों को लड़ना ही है तो बाहर जा कर लड़ लेना, तालीम के लिए जो फीस है उसमें तुम दोनों को क्या दिक्कत है ये बताओ?”
“जी पहले में बताता हूं, मुझे क्या दिक्कत है ये” माधव ने कहा और फिर कीर्ति के सामने तिरछी नज़र कर के बोला, “मुझे किसी के सामने अपनी दिक्कत पेश करने में कोई दिक्कत नहीं है।”
“हां तो बताओ फिर।”
“सर, मैं बहुत ही गरीब परिवार से हूं, 100 रुपये हमारे लिए बहुत मोटी रकम है और इतने पैसो का इंतज़ाम इतने कम दिनों में मैं नहीं कर पाऊंगा।” माधव ने कहा।
“और मेडम जी आपकी क्या प्रॉब्लम है?”
“जी मेरी भी यही प्रॉब्लम है, मैं भी गरीब घराने की हूं इतनी बड़ी रकम एडजस्ट नहीं कर पाऊंगी।” कीर्ति ने कहा।
“फिर तो आप दोनों को यहां से जाना पड़ेगा, हम फ्री में तो किसी की मदद नहीं कर सकते।” रमेश जी ने कहा।
“सर, रकम थोड़ी सी कम नहीं हो सकती?” माधव ने पूछा।
“जी नहीं, 1 पैसे भी कम नहीं हो सकती। आप दोनों एक समय सुनिश्चित कीजिये, अगर उस समय तक आप पैसे ना ला सके तो मुझे खेद के साथ आप दोनों को अलविदा कहना पड़ेगा। जो पैसे लाएगा वही एडमिशन पाएगा इस संस्था में।” रमेश जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा।
“ठीक है सर, हमें वक़्त दीजिये।” कीर्ति ने कहा।
“एक मिनिट, ये ‘हमें’ क्या होता है? मुझे वक़्त दीजिये ऐसा बोलो, मेरी ज़िंदगी के फ़ैसले मैंने तुम पर नहीं छोड़े है।” माधव ने कीर्ति की बात को बीच में ही काटते हुए कहा।
“देखा सर, ये मुझे तू-तू कर के बात कर रहा है, कोई मैनर्स ही नहीं है इसे कि लड़कियों के साथ कैसे बात की जाती है।” कीर्ति ने गुस्से से आँख लाल करते हुए कहा।
“आप दोनों फिर शुरू हो गए? चलो मैं आप दोनों को 30 दिन की मोहलत देता हूं, अगर इतने दिनों में आप फीस की रकम जमा ना करा पाए, तो 31वे दिन आपको यहां से जाना होगा।” रमेश जी ने कहा।
“ओके सर।” माधव और कीर्ति दोनों एक साथ एक सुर में बोले, और फिर एक दूसरे को घूरने लगे।
“अब आप दोनों यहां से जा सकते है। पैसो का इंतज़ाम भी तो करना है आप दोनों को।”
माधव और कीर्ति दोनों वहां से निकल गए। बाहर निकलते ही माधव अपने दोस्त, अरुण; जो बाहर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था उससे जा कर मिला।
“क्या हुआ यार? इतनी देर क्यों लगा दी?” अरुण ने पूछा।
“कुछ नहीं यार ज़िंदगी में क्या कम प्रॉब्लम थी कि एक और मुसीबत आ गई। एक तो पैसो का इंतज़ाम करना है, ऊपर से वो लड़की आफ़त की पुड़िया, भगवान बचाए उससे!”
“तुम पीठ पीछे भी मेरी बुराई कर रहे हो, शर्म नहीं आती तुम्हें?” कीर्ति जो माधव से कुछ दूरी पर ही खड़ी थी उसने कहा।
“हे भगवान, मेरे कान अब भी उसकी आवाज़ से गूंज रहे है। कहीं वो मेरे सपने में आकर भी मेरी नींद हराम ना कर दे।”
तभी अरुण ने इशारे से कहा वो आफ़त की पुड़िया उसके पीछे से ही बोल रही थी।
“तुम सुधरोगे नहीं ना? किसी लड़की के बारे में ऐसा बोलने से पहले तुम्हें शर्म नहीं आती?” कीर्ति ने कहा।
“मेरा मुंह, मेरा दोस्त में उससे कुछ भी बात करूं तुम्हारा क्या जाता है इसमें?”
“बुराई तो मेरी कर रहे हो ना तुम…”
माधव ने बात को बीच से ही काटते हुए कहा, “तो तुम हमारी बात क्यों सुन रही हो? एक तो ऐसे ही पैसो की टेंशन है ऊपर से तुम मेरा दिमाग चाट रही हो।”
“मैं तेरा दिमाग चाट रही हूं? मैं? तेरी हिम्मत कैसे हुई?” कीर्ति गुस्से से लाल हो गई, बात और बिगड़े इससे पहले अरुण ने बात संभाल ली,
“आप दोनों की जो भी प्रॉब्लम हो मैं आप दोनों से हाथ जोड़ के विनती करता हूं, सब के सामने तमाशा मत कीजिए, प्लीज़।”
“तुम कौन हो?” कीर्ति ने पूछा।
“ये वही है मेडम जिसकी पेन आप मुझसे मांग रही थी। मेरा दोस्त, अरुण।”
कीर्ति को एहसास हुआ माधव सच बोल रहा था जब उसने फॉर्म और पेन के बारे में कहा था तब, पर ऐसे इतनी आसानी से वो अपनी गलती मान ले कीर्ति उनमें से नहीं थी।
“ठीक है। तुम्हारा दोस्त शरीफ़ लग रहा है इसीलिए उसकी बात मान लेती हूं पर आइंदा से ध्यान रखना।”
“और कुछ मेडम जी?” माधव ने ताना मारते हुए कहा।
कीर्ति ने कुछ नहीं बोला बस वहां से चली गई।
उसके बाद अरुण ने माधव से पूछा, “क्या? चल क्या रहा है यार? कौन थी यार ये?”
“प्लीज़ यार इसकी बात छोड़ ना, मुझे ऑलरेडी बहुत सारे प्रॉब्लम्स है।”
“कुछ बोलेगा भी या यूं ही पहेलियां बुझाता रहेगा?”
“यार 100 रुपये का इंतज़ाम मैं कैसे कर सकता हूं? और तू तो जानता ही है मेरे घर की हालत। सोचा था कुछ पढ़ाई कर लूंगा तो कमाने का ज़रिया हो जाएगा, पर कमबख्त पढ़ाई भी तो ख़त्म नहीं हो सकी मेरी। अब तू ही बोल मैं क्या कर सकता हूं?”
“चिंता मत कर यार। ऊपर वाले ने एक रास्ता दिखाया है तो उस पर कैसे चलना ये भी सीखा देगा।”
“उम्मीद करता हूं कुछ न कुछ बंदोबस्त हो जाए पैसो का।” माधव ने बड़े अफ़सोस के साथ कहा और अपनी किस्मत के बारे में सोचने लगा, और साथ ही उसकी ज़िंदगी Rewind हो रही थी।

Chapter 2.1 will be continued soon…

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✍️ Anil Patel (Bunny)