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Rewind ज़िंदगी - Chapter-2.1:  माधव का परिचय

फ़रीदाबाद, भारत के उतरी प्रांत हरियाणा प्रदेश का प्रमुख शहर है। यह फ़रीदाबाद जिले में आता है। इसे 1607 में शेख फरीद, जहांगीर के खजांची ने बनवाया था। उनका मकसद यहां से गुजरने वाले राजमार्ग की रक्षा करना था। यह दिल्ली से 25 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।

इसी फ़रीदाबाद शहर में माधव (भगवान श्री कृष्ण का एक नाम) का जन्म एक बहुत ही साधारण (गरीब) ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में माधव बहुत ही गोल-मटोल सा था और उसके आँखों में भी अलग तेज था। बचपन में प्यार से लोग उसको गोलूराम कहकर बुलाते थे। बचपन से ही उसे लड्डू बहुत पसंद थे। उसके पिता प्रमोद आचार्य एक पंडित थे, वो लोगों की शादी और कुंडली देखने का कार्य करते थे। माधव की माँ निर्मला आचार्य एक गृहिणी थी।

माधव पढ़ने में बहुत ही कमज़ोर था, हंमेशा उसका पूरा ध्यान खेलकूद और खान-पान में ज़्यादा रहता था। पढ़ाई में कभी भी वह अव्वल नहीं आता था, पर कभी फैल भी नहीं होता था। परिवार की हालत इतनी ख़राब थी कि प्रमोद जी को उधार ले कर माधव को पढ़ाई के लिए भेजना पड़ता था।

जैसे जैसे माधव बड़ा होता गया उसको अपनी जिम्मेदारियां समझ में आने लगी। हाई स्कूल में उसे एक दोस्त मिला जिसका नाम था अरुण। अरुण पढ़ने में बहुत ही होशियार था, और हंमेशा दूसरों की भी पढ़ने में मदद करता था। माधव भी पढ़ने में अरुण की मदद लेता था, इसी वज़ह से दोनों में मित्रता हो गई थी। वो कहते है ना जैसी संगत वैसी असर, अरुण की संगत में माधव भी थोड़ा बहुत समझदार हो गया था।

10वीं कक्षा में माधव और अरुण दोनों ही अच्छे मार्क्स से उत्तीर्ण हो गए। वैसे तो माधव को अरुण से कम मार्क्स आए थे पर माधव को इतने मार्क्स की भी अपेक्षा नहीं थी। उसके लिए इतने मार्क्स भी ज़्यादा थे। 10वीं के बाद दोनों ने आगे की पढ़ाई के बारे में सोचा, अरुण इंजीनियर बनना चाहता था पर माधव को आगे क्या करना है इसकी कोई समझ नहीं थी।

उसने अरुण से पूछा, “क्या मैं भी तेरी तरह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर लूं?”
“मेरी सलाह मान तो तू आर्ट्स में एडमिशन ले तो ठीक रहेगा।” अरुण ने कहा और बात आगे बढ़ाते हुए उसने माधव से कहा, “इंजीनियरिंग तेरे लिए आसान नहीं होगी, और उसकी फीस भी बहुत ज़्यादा होगी, बुरा मत मानना पर तेरी फैमिली की इतनी परिस्थिति नहीं है कि तुझे इंजीनियरिंग पढ़ा सके।”
“नहीं यार तू सच कह रहा है, मेरी फैमिली मुझे इतना नहीं पढ़ा पाएगी, मुझे ख़ुद कुछ करना होगा। अरुण, खेल-कूद में मैं बहुत आगे हूं, तुझे क्या लगता है, मैं किसी खेल में सिलेक्ट हो सकता हूं?”
“तू अपने कैरियर पर ध्यान दे, खेल-कूद में अपना टाइम बर्बाद मत कर। मैंने देखा है तुझे खेलते हुए, तुझे खेलने का शोख़ जरूर है पर उसमें तू अपना पेशा नहीं बना सकता।”
“कैरियर क्या बनाऊं यही तो द्विधा है। मुझे सिर्फ खाना खाने और खेल खेलने के अलावा और कुछ नहीं आता।” माधव ने निराश हो कर कहा।
“तू एक काम कर, अभी के लिए तू आर्ट्स में एडमिशन करवा लें, आगे जो होगा देखा जाएगा।”
“पर पैसो की कमी? आर्ट्स में भी फीस तो भरनी ही पड़ती होगी ना? उसका क्या करें, कैसे इंतज़ाम करें?”
“चिंता मत कर कुछ न कुछ हो जाएगा।” अरुण ने दिलासा देते हुए कहा।

माधव ने आर्ट्स कॉलेज में एडमिशन ले लिया, पर कुछ ही महीनों में उसके पिता प्रमोद जी का निधन हो गया। अब घर की सारी जिम्मेदारी माधव के कंधे पर आ गई। अब माधव को पढ़ने के साथ साथ कमाना भी था, और उसके पिता के लिए हुए कर्ज़ को चुकाना भी था।

कहीं कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था, पर एक बात यह अच्छी हुई थी माधव के साथ कि उसने आर्ट्स में संगीत कला का विषय चुना था। उसमें वो बंसी बजाना सिख चुका था और साथ ही साथ गाना भी गाने लगा था। माधव के उस्ताद ने माधव को एक स्कूल में विद्यार्थियों को बंसी सिखाने और एक ऑर्केस्ट्रा में गाना गाने के काम में लगा दिया था।

Chapter 2.2 will be continued soon…

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✍️ Anil Patel (Bunny)