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Rewind ज़िंदगी - Chapter-1.1:  कीर्ति का परिचय

Chapter-1.1: कीर्ति का परिचय


दील्ली, यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारंभ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले है। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहां कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता है। 1639 में मुगल बादशाह शाहजहां ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो 1679 से 1857 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही।

18वीं एवं 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। 1911 में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारंभ हुआ। अंग्रेजों से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया।

उसी पुरानी दिल्ली की आज से कुछ 50 साल पहले की बात है, एक अमीर घराने की एक छोटी बच्ची की रोने की गूंज से अस्पताल में मौजूद सभी लोगों के चेहरे पे ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी। जैन परिवार में 2 पीढ़ी के बाद किसी बच्ची ने जन्म लिया था, श्रीमान अमिष जैन और श्रीमति कुमुद जैन के यहां 3 बेटों के बाद एक बेटी की किलकारिया सुनने को मिली थी, इसीलिए उन दोनों की ख़ुशी फुले नहीं समा रही थी।

ढेर सारे नाम सोचने और सुनने के बाद उन्होंने अपनी बेटी का नाम कीर्ति रखा। वो दिखने में किसी छोटी परी से कम नहीं थी, इसीलिए उसके माँ-बाप को हंमेशा ये चिंता सताये रहती थी के कहीं उनकी छोटी गुड़िया को किसी की नज़र ना लग जाये। इसी वज़ह से वो हंमेशा कीर्ति को काजल का टिका लगाया करते थे, और लोगों की नज़रों से दूर रखते थे। इकलौती बेटी होने की वज़ह से वो पूरे परिवार की लाड़ली थी, और सभी लोग उसके बिना रह भी नहीं पाते थे।

दिल्ली में जैन परिवार का बहुत ही ऊंचा नाम था, पिछले 4 पीढ़ियों से उनका टेक्सटाइल का व्यापार था। भगवान की दया से सब कुछ था उनके पास, बस एक बेटी की कमी थी वो भी भगवान ने आखिरकार पूरी कर ही दी, और भगवान की कृपा समझे या कुछ और पर कीर्ति के आने के बाद अमिष जी का व्यापार दिन दूना रात चौगुना बढ़ता गया। अब उनका व्यापार दिल्ली तक सीमित ना रहते हुए पूरे भारतवर्ष में बुलंदीओ को छु रहा था। जितना उनका व्यापार बढ़ रहा था उससे कई गुना ज़्यादा अपनी बेटी के लिए प्यार बढ़ रहा था।

अक्सर यह देखा गया है जहां पैसा होता है वहां घमंड भी होता है। पर श्रीमान अमिष जैन में घमंड का एक अंश भी नहीं था, पर ये अंश उनकी बेटी में जरूर आ गया था। जैसे जैसे वो बड़ी होती गई वैसे वैसे उसकी खूबसूरती और ज़्यादा निखरने लगी। अमीर बाप और खूबसूरती, काफ़ी है किसी भी लड़की में घमंड होने के लिए, और कीर्ति के पास ये दोनों चीज़ें थी। इसीलिए लाज़मी सी बात है कीर्ति में भी वो गुरूर छलकता था, और क्यों ना हो? इतना गुरूर होना तो हक़ है किसी भी लड़की का।

बचपन से ही कीर्ति सबसे कम बोलती थी, दोस्त भी कम ही बनाती थी, हां पर लड़ने में सबसे आगे थी। कोई उसके या किसी और के बारे में ग़लत बोलता तो समझो उसकी शामत आ गई। स्कूल से हंमेशा उसकी यह शिकायत आती थी कि वो सबसे लड़ती झगड़ती रहती है। पढ़ने लिखने में भी वो काफ़ी कमज़ोर थी। स्कूल में किसी भी तरह से वो उत्तीर्ण हो जाती थी, पर उसके माँ-बाप को यह पता था कि वो आगे ज़्यादा नहीं पढ़ पाएगी। इसीलिए 8वीं कक्षा से उन्होंने एक शिक्षक नियुक्त कर लिया, जो कीर्ति को उसके घर पर आकर अधिक अध्यापन देता था। फिर भी कीर्ति का पूरा ध्यान पढ़ने में कम और गाने सुनने में ज्यादा रहता था। गाने सुनना और उसे गुनगुनाना कीर्ति की रुचि थी। कीर्ति को खास करके आशा भोंसले के गाने बहुत पसंद थे। आशाजी के लगभग सभी गाने कीर्ति को मुंह जुबानी थे। इसके अलावा उसको और कोई शोख़ नहीं थे। वो ज़्यादातर अपना पूरा वक़्त अकेले ही बिताना पसंद करती थी।

15 साल की होने तक उसने लगभग सभी से मिलना जुलना बंद कर दिया था, वो नटखट और चुलबुली थी पर उसका बचपन जैसे ही गया वैसे ही उसका चुलबुलापन और नटखट हरकतें कम होती गई और उसका पूरा ध्यान गायन की तरफ होने लगा, और इसी के चलते उसके माँ-बाप ने उसके लिए एक संगीत गुरु को नियुक्त किया। रोज 2 घंटे की तालीम उसको दी जाती थी। पर धीरे धीरे उसमें भी उसका मन नहीं लगता था। उसने संगीत सीखना भी बंद कर दिया, और 10वीं कक्षा में वो पहली बार उत्तीर्ण होने में विफल हुई।

अब कीर्ति को न पढ़ाई में और न ही संगीत में रुचि थी। वो किसी की बात न सुनती थी न उसको किसी की परवाह थी। उसके माँ-बाप को चिंता होने लगी कि आखिर करें तो क्या करें? एक दूर के संबंधी ने उनको सलाह दी कि कीर्ति को दूर कहीं पढ़ने के लिए भेज दो, और साथ साथ उसके गाने के लिए भी कुछ तैयारी की जाए।

उसके माँ-बाप यह बात नहीं माने वो अपने जिगर के टुकड़े को अपने से दूर कैसे भेज सकते थे? पर उनके उसी रिश्तेदार ने उन्हें समझाया कि एक न एक दिन तो वैसे भी लड़कियों को अपने मायके से दूर अपने ससुराल जाना पड़ता है, तो शादी से पहले ही क्यों न उसे अपनी ज़िंदगी के सारे वह तजुर्बे हासिल हो जाये, इससे उसकी हिम्मत भी बढ़ेगी और लोगों के बीच रहेगी तो वो ख़ुद को इस दुनिया के काबिल बना पाएगी, और दुनिया के लोगों से कदम से कदम मिलाकर चल पाएगी।

Chapter 1.2 will be continued soon…

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✍️ Anil Patel (Bunny)