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Rewind ज़िंदगी - Chapter-2.2:  माधव का परिचय

Continues from the previous chapter…

धीरे धीरे माधव की आमदनी बढ़ती गई, और उसके पिता द्वारा ली गई उधारी कम होती गई, पर इसका बुरा नतीजा यह हुआ कि माधव पढ़ाई लिखाई में फिर से कमज़ोर हो गया। पैसे कमाने के चक्कर में उसने अपनी पढ़ाई पे जितना ध्यान देना चाहिए उतना नहीं दे सका।

सिर्फ संगीत के विषय में माधव ध्यान लगाकर पढ़ता था, क्योंकि इसी वज़ह से उसकी आमदनी आती थी। बांसुरी बजाने में और गाना गाने में उसने निपुणता हासिल कर ली थी। समय बीतता गया, माधव की आमदनी अच्छी थी पर इतनी भी नहीं कि उससे अपना घर चला सके। अभी भी कुछ उधारी बाकी थी उसके पिताजी की। कॉलेज के द्वितीय वर्ष में आने के पश्चात माधव पूरी तरह से अपने पैरो पर खड़ा नहीं हो पाया था।

स्कूल में बांसुरी सिखाने से ज़्यादा कमाई ऑर्केस्ट्रा में हो जाती थी इसीलिए, माधव हंमेशा अपनी आवाज़ पर बहुत ध्यान देता था। खेलना-कूदना तो वो एकदम से भूल ही गया था, और खाना कम खाने की वज़ह से उसका मोटापा भी कम हो गया था।

कॉलेज के पहले साल के इम्तिहान हो चुके थे, और उसका परिणाम आने ही वाला था। माधव को जैसी उम्मीद थी ऐसा ही हुआ, माधव 2 विषय में फैल हुआ। ज़िंदगी में पहली बार माधव किसी इम्तिहान में फैल हुआ था। वो मायूस जरूर हुआ पर उसे कोई अफ़सोस नहीं था। उसे कम से कम इस बात की ख़ुशी थी कि अब वो अच्छी खासी रकम कमा लेता था।

उसने वापस से इम्तिहान दिए, और कुछ महीने बाद द्वितीय वर्ष के भी इम्तिहान दिए। इस बार नतीजा और भी खराब आया। इस बार माधव तीन विषय में फैल हुआ, और पहले साल के दोबारा लिए गए इम्तिहान में भी माधव एक विषय में फैल हुआ। इस तरह उसे अगले साल 4 विषय की परीक्षा देनी थी।

इम्तिहान हो गए, और नतीजा भी वहीं आया जो माधव ने सोचा था। उसको इस वक़्त अरुण की बहुत याद आ रही थी। अरुण के होने से ना सिर्फ उसको हौसला मिलता था, पर उसकी पढ़ने की क्षमता भी बढ़ जाती थी। पर उसके ना रहते माधव सिर्फ संगीत पर ध्यान दे पाता था, कमाई पे ध्यान देने से उसकी पढ़ाई जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं हो पाती थी। अब की बार फैल होने पर उसको कॉलेज से नोटिस आ गई, ये माधव का आखिरी मौका था, उसको पिछले साल के सारे विषय में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। आखिर वही हुआ जिसका माधव को डर था, वो इम्तिहान में पास नहीं हो सका, जिसके चलते उसको कॉलेज से निकाल दिया गया।

उसकी लाख कोशिशें और मिन्नतें भी उसके काम ना आई। अब उसके हाथ में काम तो था पर पढ़ाई के लिए कोई जरिया नहीं था। कमाई भी उसकी इतनी ना थी कि उससे वो अपने घर की और अपनी सारी जरूरतें पूरी कर सके। माधव को जरूरत थी और पैसो की, उसने अपने संगीत उस्ताद से बात की और संयोग से उसी समय सुरवंदना संगीत का विज्ञापन अखबार में आया था। माधव के उस्ताद ने उसको इस संगीत केंद्र में एप्लीकेशन भेजने को कहा। माधव ने वैसा ही किया, उसने अपनी आवाज़ और एप्लीकेशन सुरवंदना संगीत में भेज दिए, और कुछ समय में उसको भी कॉल आ गया।

अब माधव को बॉम्बे जाने की तैयारी करनी थी, उसे अपनी माँ और नौकरी को छोड़कर, कुछ दिनों के लिए दूर जाना था। उसने बिना समय गंवाए अरुण को फोन किया,

“हैल्लो।” माधव ने फोन पर कहा।
“हां माधव, बड़े दिनों बाद याद किया।”
“तूने मेरी आवाज़ पहचान ली? इतने दिनों बाद भी तू नहीं बदला यार।”
“मैं तो नहीं बदला पर तू जरूर बदल गया है, पढ़ाई में कमज़ोर हो गया, संगीत में रुचि लेने लगा, दोस्त को भूल गया।” अरुण ने कहा।
“ऐसा नहीं है यार, तू तो जानता ही है मेरे हालात। तुझसे बात करने के लिए मेरे पास वक़्त बहुत है, पर पैसे बहुत कम।”
“मजाक कर रहा था यार, बोल कैसे याद किया?” अरुण ने पूछा।
“मुझे बॉम्बे से बुलावा आया है, गाने के लिए। बहुत अच्छा मौक़ा मिला है यार इसे खोना नहीं चाहता।”
“फिर दिक्कत क्या है?”
“मैं कभी बॉम्बे नहीं गया, तू आएगा मेरे साथ?”
“कब चलना है?”
“अगले हफ़्ते”
“ठीक है, मैं आऊंगा।”
“थैंक्स!”
“उसकी जरूरत नहीं है यार, मिलते है अगले हफ़्ते।” अरुण ने फोन रखा, और दूसरी तरफ माधव के चेहरे पर हलकी सी सुकून भरी मुस्कान थी।

इस तरह से माधव, अरुण को लेकर सुरवंदना संगीत में गाने के लिए बॉम्बे पहुंचा था और उधर ही उसकी मुलाकात कीर्ति से हुई थी।

Chapter 3.1 will be continued soon…

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✍️ Anil Patel (Bunny)