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प्रथम मृत्यु दर्शन

वैसे तो अबतक के जीवनकाल में कई प्रियजनों से दुखद वियोग का सामना करना पड़ा है लेकिन असामयिक,आकस्मिक निधन अधिक पीड़ादायक होता है, वह भी तब जब हमें कोई प्रयत्न करने का मौका ही न प्राप्त हो।त्रिदिवसीय बेटी एवं 25 वर्षीय भाई के लिए कुछ भी न कर सके।पिता जी की तो हर सम्भव चिकित्सा व्यवस्था की गई।जब सात साल की थी,तब डेढ़ वर्षीय भाई की बीमारी से मृत्यु प्रथम दर्शन था काल का, लेकिन उस उम्र की याद में बस मां-पिता का विलाप स्मरण रह गया है, क्योंकि मेडिकल कॉलेज से लौटते समय उसे मिट्टी के सुपुर्द करते हुए आए थे, इस दुखद घड़ी में होटल में रुकने वाले एक अजनबी ने हर सम्भव सम्बल प्रदान किया था।
आज अपने होश की प्रथम और जीवन की द्वितीय मृत्यु दर्शन की पीड़ादायक घटना से अवगत करा रही हूं।उस समय मैं ग्यारहवीं की छात्रा थी,पापा चुर्क में पोस्टेड थे।एक-डेढ़ वर्ष पूर्व एक परिचित के मार्फ़त लगभग 14-15 वर्षीय किशोर हमारे घर सहायक के तौर पर कार्य करने के लिए आया था, निकटवर्ती गांव का निवासी था, अत्यंत गरीब परिवार था।पापा को गाय पालने का शौक था,अतः गाय के कार्यों के साथ घर के काम भी करता था वह,उसका नाम था सम्हारु(भोजपुरी में सम्हालने को सम्हारना कहते हैं),मैं उसे नाम से पुकारती थी,तथा छोटे भाई -बहन भइया बुलाते थे, खाना मम्मी ही बनाती थीं।हमारे यहां दूध-घी इफरात में था, हम बच्चों जैसा ही खाना-पीना उसे उपलब्ध था, दो-तीन महीने में ही वह भरे शरीर का स्वस्थ किशोर हो गया, आधे घण्टे की दूरी पर अपने गांव एक दिन भी नहीं जाना चाहता था, हर माह उसके माता-पिता आकर उसकी पगार ले जाते थे,वह उनसे हमारी खूब तारीफ करता था, मम्मी की साड़ियां एवं पापा के कपड़े वे मांग कर ले जाते थे।माता पिता के जाते समय मां उसके छोटे भाई के लिए भी कुछ न कुछ अवश्य भेजती थीं।
मेरी सबसे छोटी बहन तब दो वर्ष की थी, वह उसे माऊ बुलाती थी ,जब भी वह खाली होता तो उसे खिलाया करता था।उस दिन भी वह नाश्ता कर चुका था, हमारी जाड़ों की छुट्टियां थीं, बाहर बरामदे में बैठकर उसने छोटी बहन को केला खिलाया।हम बाहर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे, बाहरी बरामदे को दीवार से घेरकर कमरे का रूप दे दिया था पापा ने, जहां उनका स्कूटर खड़ा रहता था, वहीं चौकी डालकर उसके सोने की व्यवस्था थी।लगभग 11 बजे उसने मम्मी से कहा कि उसे कुछ थकान सी लग रही है, मम्मी ने माथा छूकर देखा तो बुखार तो था नहीं, अतः मम्मी ने कहा कि लेटकर आराम कर लो।थोड़ी देर में उसने कहा कि दीदी पंखा चला दो गर्मी लग रही है, मैंने उठकर पंखा चलाया तो देखा कि उसे पसीना आ रहा है, जाड़ों में पसीना आना सामान्य नहीं था, अतः मैंने जल्दी से मां को बुलाया,उसे बेचैनी में करवटें बदलते पसीने से लथपथ देखकर वे भी घबरा गईं।एक कर्मचारी को भेजकर जल्दी से पापा को बुलाया,सबस्टेशन सीमेंट फैक्ट्री के अंदर था, उन्हें आने में लगभग आधा घंटा लगा होगा, इतनी देर में वह शान्त पड़ गया था, मैं और मम्मी हतप्रभ से किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े थे, पापा रिक्शा लेकर आए थे लेकिन देखते ही समझ गए कि आत्मा शरीर को छोड़कर जा चुकी है, फिर भी डॉक्टर के पास ले गए, डॉक्टर ने कार्डियक अरेस्ट बताया था।उसके माता-पिता को बुलाया गया, उनके साथ पापा गाँव गए।कुछ द्वेषी लोगों ने उसके पिता को भड़काया कि मुआवजा मांगो, लेकिन साफ दिल के सीधे-साधे लोग थे, उन्होंने साफ कहा कि वे जानते हैं कि मेरा बेटा यहां बहुत खुश था, साहब,मेमसाहब उसे बेटे की तरह प्यार करते थे, न जाने किस दुर्भाग्य से बेटा गवां दिया हमनें, झूठ बोलकर पाप नहीं कमाना।सबसे दुखद तो यह था कि उसका बाल विवाह हो चुका था, दो माह पश्चात बहू विदा होकर आनी थी।खैर, बहू पर चार वर्ष छोटे देवर से चादर डलवा दिया गया।कुछ माह पश्चात वे दूसरे बेटे को लेकर आए थे कि उसे काम पर रख लीजिए, लेकिन उसके बाद से पूर्णकालिक सहायक फिर नहीं रखा पापा ने।काफी समय तक मैं एवं मां उसकी मौत की दुःखद घटना से उबर नहीं सके थे।छोटी बहन काफी दिनों तक उसे याद करती थी कि माऊ के हाथ से खाना।जिंदगी के मोड़ अप्रत्याशित हैं।
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