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अविका

जिंदगी के रास्ते कब कहां अचानक कौन सा मोड़ ले लें, पता ही नहीं होता।कभी जिंदगी की झोली बिल्कुल खाली हो जाती है, कभी खुशियों के फूलों से भर उठती है।कभी बहुत कुछ होते हुए कोई ऐसी रिक्ति रह जाती है जो तमाम खुशियों को बेरंग कर देती है।
रवि और अलका की जिंदगी कुछ ऐसी ही थी।दोनों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई साथ साथ की थी।रवि MBA करके एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत हो गया एवं अलका एमटेक करके उसी शहर में इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर हो गई, फिर दोनों ने विवाह कर लिया।2-3 वर्ष ख़ुशी-ख़ुशी पँख लगाकर उड़ गए।एक अच्छी सोसायटी में अच्छा घर ले लिया।अब वे अपने बगिया में प्रेम पुष्प के खिलने की प्रतीक्षा करने लगे।एक वर्ष और व्यतीत हो गए, किंतु अभी अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहा था, अतः वे चिकित्सक के पास गए।तमाम तरह के दोनों के टेस्ट हुए, परन्तु कोई कमी निकल कर नहीं आई।कई डॉक्टर बदलने पर भी परिणाम शून्य रहा, जबकि जिसने जो भी टेस्ट-दवा बताया सब किया ।
विज्ञान से निराश होकर देवी-देवताओं-तीर्थों के चक्कर भी लगाए,पूजा व्रत भी किया, परन्तु आंगन में फूल नहीं खिला।हर तरह की सम्पन्नता होने के बावजूद सब निरर्थक प्रतीत होने लगा था।घर का सूनापन उनके मन में भी व्याप्त होने लगा था।जब किसी के यहां बच्चों के जन्म की खुशखबरी प्राप्त होती, उनकी व्याकुलता कुछ औऱ बढ़ जाती।
अलका ने एक दिन रवि से कहा कि क्यों न हम एक छोटा बच्चा गोद ले लें।पहले तो रवि ने थोड़ा ना-नुकुर किया, फिर तैयार हो गया।जब रिश्तेदारों-मित्रों को गोद लेने के बारे में ज्ञात हुआ तो सबने अपने अपने हिसाब से सलाह देना शुरू कर दिया।
रवि के छोटे भाई ने अपनी दूसरी सन्तान जो बेटी थी,को गोद देने की पेशकश की।इधर अलका की छोटी बहन ने भी अपनी दूसरी बेटी को देना चाहा।अन्य लोगों ने भी कई उपाय सुझाए।
किंतु रवि-अलका एकमत थे कि किसी रिश्तेदार का बच्चा नहीं लेना है,क्योंकि उनपर हमेशा उनके जैविक माता-पिता का हस्तक्षेप बना रहता है।वे एक बिल्कुल छोटा बच्चा अपनाना चाहते थे जो आंखे खोलते ही उन्हें अपने माता-पिता के रूप में देखे,पहचाने,जिसे वे अपनी इच्छानुसार परवरिश दे सकें।
एक-दो अनाथालयों में उन्होंने आवेदन दे रखा था, परन्तु उन्हें वांछित परिणाम नहीं प्राप्त हो रहे थे।धीरे धीरे 10 वर्ष का समय व्यतीत हो चुका था।अब वे निराश होने लगे थे।
रवि के एक मित्र थे,पति-पत्नी दोनों डॉक्टर थे एवं अपना नर्सिंग होम चलाते थे।एक दिन उनका फोन आया,उन्होंने रवि-अलका दोनों को साथ साथ बुलाया कि आवश्यक कार्य है, तुरंत आओ।वे नर्सिंग होम पहुंचे।पहुँचने पर मित्र ने बताया कि अभी एक सप्ताह पूर्व एक युवती ने एक कन्या को जन्म दिया था, बच्ची पूर्ण स्वस्थ है।दो दिन बाद वह युवती चुपचाप अपने पति के साथ बच्ची को छोड़कर चली गई।पता नहीं साथ आया युवक बच्ची का पिता था भी या नहीं।जो पता लिखवाया गया था, वहां पता करने पर वह भी गलत निकला।
पहले तो सोचा कि पुलिस में सूचना दे दें,फिर तुम दोनों का खयाल आया।पुलिस में देने पर गोद लेने की प्रक्रिया अत्यधिक लंबी हो जाती है।
रवि-अलका ने बच्ची को देखा, स्वस्थ, सुंदर, गौरवर्ण, काले बाल, बड़ी-बड़ी आंखें।देखते ही वे मुग्ध हो गए।साथ ही मन में विचार भी उठा कि न जाने क्या विवशता थी कि मां निर्मोही बनकर अपनी संतान को छोड़कर चली गई।
रवि ने शंका व्यक्त की कि कोई समस्या तो नहीं आएगी न।मित्र ने आश्वस्त किया कि पुलिस अधिकारी मेरे मित्र हैं, तुम चिंता मत करो।बच्ची के एक वर्ष होने पर गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया को पूर्ण कर लेना,जिससे तुम्हारे रिश्तेदार बाद में कोई समस्या न उत्पन्न कर सकें।
रवि-अलका ने बच्ची को नाम दिया अविका।उनके सूने-उदास जीवन में अवि की किलकारियां गूंजने लगीं। अनाथ अवि को प्यार से भरा मां-पिता का साया मिल गया और उनकी प्यासी ममता को तृप्ति मिल गई।अविका की अच्छी परवरिश के लिए अलका ने रवि की सहमति लेकर जॉब छोड़ दिया।वो अवि की हर मुस्कान, हर क्रियाकलाप को हर पल सहेजना चाहती थी।
अविका का पहला जन्मदिन अत्यंत धूमधाम से मनाया उन्होंने।रवि के परिवार वाले पहले तो नाराज थे लेकिन बाद में उनकी खुशी को स्वीकार कर लिया।
अविका धीरे धीरे बड़ी होने लगी।वह अत्यंत तीव्र बुद्धि की थी, हमेशा अपनी क्लास में प्रथम आती।उसकी अध्यापिकाएं सदैव उसकी तारीफ करतीं।बारहवीं के बाद प्रथम प्रयास में ही उसने मेडिकल प्रवेश परीक्षा निकाल लिया एवं अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले लिया।अब अविका एक सुंदर, अत्यंत समझदार,सुलझे विचारों वाली युवती बन चुकी थी।रवि-अलका के अच्छे परवरिश का भी पूर्ण योगदान था अविका के सर्वांगीण विकास में।अविका के युवा होने पर अलका-रवि ने अच्छी तरह सोच-विचार कर उसे उसके जन्म की पूरी कहानी बता दी।उनका मानना था कि किसी और से जानने पर न जाने अविका क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करे।उनकी आशा के अनुरूप अविका ने खुले मन से इस सच को स्वीकार किया।यह जानने के बाद उसके मन में अपने वर्तमान मां-पिता के लिए सम्मान और बढ़ गया।
आज अविका का इक्कीसवां जन्मदिन था, जिसे वह सिर्फ अपने माता पिता के साथ मनाना चाहती थी।उसकी इच्छा को देखते हुए वे सभी वैष्णो देवी माता के दर्शन को गए।माता का शुक्रिया भी तो अदा करना था ,जो उनकी झोली को खुशियों से भर दिया।अविका को एक स्नेही परिवार तथा उन्हें इतनी प्यारी बेटी देकर उनके अधूरेपन को पूर्ण कर दिया।
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