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हद है पिताजी

पवन जी एक 66 वर्षीय व्यक्ति हैं।वे शुरू से खाने-पीने के बेहद शौकीन हैं।दो तरह के लोग होते हैं, एक जो भोजन शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए ग्रहण करते हैं।दूसरे वे होते हैं जो सिर्फ खाने के लिए जीते हैं।ऐसा प्रतीत होता है कि इनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य खाना और सिर्फ खाना होता है।पवन जी इसी दूसरी श्रेणी के हैं।अक्सर कुछ न कुछ बनाते हैं, खाते हैं और परिवार के सदस्यों को भी खिलाते हैं।उम्र के इस दौर में जब पाचनतंत्र कमजोर हो जाता है लेकिन फिर भी जिह्वा पर विशेष नियंत्रण नहीं है।हाँ, मुँह में छाले हो जाने के कारण मिर्च नहीं खाया जाता।मीठे के तो ऐसे शौकीन थे कि बस पूछो मत।रात में एक नींद पूरी होने के बाद भी कुछ न कुछ खाने को चाहिए ही।
अब बात आती है पीने की।युवावस्था में ही शराब,गुटखे के शौकीन बन गए।विवाहोपरांत पत्नी लाख कोशिशों के बावजूद इन आदतों को छुड़ा पाना तो दूर कम भी न करवा सकी।बस गनीमत इतना रहा कि पीने के बाद अधिक उपद्रव नहीं मचाते थे।झख मारकर पत्नी ने समझौता कर लिया।पवन जी की परवरिश कस्बे में हुई थी, घर में भी माहौल कोई परिष्कृत नहीं था।उनकी माताजी भी फर्राटेदार गालियां देती थीं, यहाँ तक की स्नेहाभिव्यक्ति में भी अपशब्दों का इस्तेमाल करती थीं।अतः पवन जी की भाषा में इसका पूर्णतया समावेश था।बस इनका प्रयोग वे क्रोधित होने पर करते थे, इतना सुधार अवश्य कर लिया था उन्होंने अपने व्यवहार में।
समय के साथ दो बेटी एवं एक बेटे के पिता बन गए।पवन जी कभी लगकर काम नहीं कर पाए,लेकिन जैसे-तैसे दो कमरों का एक कच्चा-पक्का सा मकान बना लिया।किस्मत के धनी निकले पवन जी।पत्नी ने घर में ट्यूशन पढ़ाना प्रारम्भ कर दिया।बच्चे भी अत्यंत परिश्रमी एवं समझदार निकले।हाईस्कूल करते ही बड़ी बेटी ने भी ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया।गृहस्थी की गाड़ी पत्नी एवं बच्चों के अथक प्रयास से लड़खड़ाती,घिसटती चलती रही।समय के साथ बेटे ने शिक्षा समाप्त कर एक अच्छी कम्पनी में नौकरी प्राप्त कर लिया।बेटे ने घर को अच्छा बनवा दिया।
बड़ी बेटी का विवाह बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन ठीक-ठाक हो गया।छोटी बेटी डिप्लोमा करके एक प्रतिष्ठित अस्पताल में डायटीशियन बन गई।दूसरे शहर में जॉब मिलने के कारण बेटी को परिवार में काफी विरोध का सामना करना पड़ा,लेकिन वह अपने निर्णय पर डटी रही,अंततः वह बाहर जाने में सफल रही।
अब आया कोरोना महामारी का दौर।द्वितीय लहर में पवन जी भी चपेट में आ गए।घर में ही किसी चिकित्सक से सलाह लेकर औषधियां देनी प्रारंभ कर दी गईं।4-5 दिन तक तो गनीमत रहा,किन्तु उसके पश्चात दवाइयां खाने में आनाकानी करने लगे।कभी फेंक देते, जबरन खिलाने पर मुँह में रखकर फिर थूक देते।परहेज की चीजों को खाने से मना कर देते।अपथ्य खाद्य सामग्री की मांग करते।परिणामस्वरूप हालत खराब होने लगी।उनके असहयोगी रुख के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ गई।शहर में किसी अस्पताल में जगह नहीं थी।किसी तरह छोटी बेटी ने अपने अस्पताल में एक बेड का इंतजाम किया औऱ पवन जी को एडमिट कराया गया।सारी टेस्ट होने के बाद ज्ञात हुआ कि उनके शराब की लत के कारण लिवर पर काफी असर पड़ चुका था।
वहाँ बेटी देखभाल में जुट गई।अपनी ड्यूटी के साथ देखभाल कतई आसान नहीं था।बीमार औऱ वृद्ध बच्चों के समान जिद्दी हो जाते हैं और पवन जी तो पहले से ही नकचढ़े थे,एक तो करेला उसपर नीम चढ़ा।जबतक कमजोरी थी तबतक तो दवा, ड्रिप आसानी से चलती रही।थोड़े से चैतन्य होते ही ड्रामा प्रारंभ कर दिया।कभी हाथ-पैर चलाकर ड्रिप निकाल देते,कभी दवाइयों को फेक देते।खाने में पुनः परेशान करने लगे।जुबान से गालियों की बरसात कर देते कभी बेटी पर तो कभी सहायकों पर।बेटी शर्मसार हो जाती अस्पताल के कर्मचारियों के मध्य।अंततः डिस्चार्ज होकर पवन जी घर आ गए।अब घरपर पत्नी,बड़ी बेटी और बेटे उनके साथ जद्दोजहद में लगे हुए हैं।अक्सर वे झुंझलाकर कहते हैं कि हद है पिताजी,बच्चों को मात कर दिया आपने।वाकई, कोई बच्चा होता तो 4-6 थप्पड़ जड़कर सुधार दिया जाता।
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