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मे और महाराज - ( इम्तिहान_२) 21

दूसरे कक्ष मे शायरा की बड़ी बहन और राजकुमार अमन की पत्नी भी मौजूद थी। उसने जैसे ही शायरा को देखा, वो अपनी जगह से उठकर उस के पास आईं।

" बेशरम, बेहया। शादी होने के बाद भी नही सुधरोगी। अभी भी मेरे पति के साथ रंगरलियां मनाने के सपने सजा रही हो। उसका ध्यान खींचने के लिए भरी महफिल मे भी कपड़े उतारने से चुकोगी नही तुम।" शायरा की बहन ने गुस्से मे आग बबूला होते हुए कहा।

" हमे अपनी शादी और अपनी जगह का पूरा ध्यान है, जीजी। इसीलिए हम कभी भरी महफिल मे अपने कपड़े नही उतारेंगे। पर आपको अगर अपने पति की इतनी फिक्र है, तो उन्हे काबू मे करना सीख लीजिए। अगर आप चाहे तो हम आपको कुछ सलाह दे देंगे, बड़े राजकुमार के बारे मे।" शायरा ने भरी आखों से कहा।

उसकी बहन का गुस्सा अब इतना सिर चढ़ गया था, की उसने किसी भी मेहमान की परवाह किए बिना शायरा को धक्का दे दिया। शायरा नीचे गिर गई उनके सर पर चोट लगी और खून भी बहने लगा। ये खबर हवा की तेजी से सिराज तक पोहची। सिराज और अमन महफिल छोड़ शायरा की ओर भागे। अमन ने वहा पहले पोहोच कर उस उठने मे मदद की, तभी सिराज ने वहा आकर अमन के हाथ से शायरा का हाथ छुड़वा दिया। अमन बेसब्र आंखो से उसे देख रहा था। उसे पछतावा था, इस शादी का। उसे पछतावा था, शायरा को इस कद्र अकेला छोड़ देने का। उसकी आंखो मे वो पछतावा आसू बन छलका।

" भाई, मेहमानो को घर बुलाकर आप उन से ऐसा बर्ताव करते है??? क्या बेजत्ती करने के लिए हमारी राजकुमारी को यहां बुलाया गया था??? " सिराज ने चीखते हुए कहा।

" आपको पता नही है??? या आप कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है ??? जो आपने शायरा को छुने की हिम्मत की???" राजकुमार अमन ने अपनी पत्नी और शायरा की बहन से गुस्से मे पूछा।

" नही मेरे राजकुमार। यहां तो बस दो बहनों का मज़ाक चल रहा था। उसी बीच शायरा जान बूझ कर गिर गई। हमने कुछ नही किया।" उसने आखों मे झूठे आसू लाते हुए कहा।

" भाई आप भाभी को समझा दे उसी मे सबकी भलाई होगी। हम हमारी राजकुमारी को अच्छे से जानते है। वो कभी किसी से झूठ नहीं कहती।" सिराज का गुस्सा अभी भी बुलंदी पर था। माहौल को गर्म होता देख झुकी नजर से शायरा ने सिराज का हाथ पकड़ा।

" मेरे राजकुमार हमे माफ कर दीजिए, हमे तबियत ठीक नहीं लग रही। क्या हम हमारे महल में वापस जा सकते हैं??? आपकी इजाजत हो तो?" शायरा।

" ये जश्न हमारे लिए यही खत्म होता है। निकलने की तैयारियां कीजिए।" सिराज ने अपना हाथ शायरा के कंधे पर रखा और उसे वहा से वापस ले जाने लगा। शायरा ने अपनी नजरे उठाकर अमन को देखा, उसकी आंखो मे आंसू थे। वो नही चाहती थी उसे यहा छोड़ कर जाना, लेकिन अब शायरा का अमन पर कोई हक नही था। जैसे ही वो वहा से चली गई, अमन ने अपना जश्न वही रोक दिया और कमरे मे चला गया। उसकी पत्नी उस से बात करने आगे बढ़ी, वैसे ही उसने एक तमाचा उस के गाल पर जड़ दिया।

" हमने हजार बार आपको समझाया है। अपनी हद मे रहिए। ये उस हद का अंतिम चरण है।" अमन गुस्से मे था।

" आप क्यो भूल जाते है??? क्यों ??? हम पत्नी है आपकी। वो लड़की वो सिर्फ आपको बहका रही है।" उसने रोते हुए अमन के पैर पकड़े।

" पत्नी.... ह....। पति पत्नी का ऐसा कौनसा रिश्ता है जो हमने आपके साथ बनाया???? बताए...... अरे रूहानी रिश्ता तो दूर की बात है। हमने तो शादी की रात नशे मे तक आपको नही छुआ। आपको तभी समझ जाना चाहिए था। आपकी औकात क्या है। आप सिर्फ इस महल की बड़ी राजकुमारी है। हमारी पत्नी शायरा थी, है और रहेगी। उनसे हमारा रूहानी रिश्ता है, और ये शरीर भी हम उन्हीं को देंगे। आप सिर्फ गद्दी के लिए किया गया एक सौदा थी और रहेंगी। अगली बार अगर आपने उसे छुआ तो वो आपका और हमारे सौदे का अंतिम दिन होगा।" इतना कह अमन उसे कमरे मे अकेला रोता छोड़ चला गया।

वही दूसरी तरफ राजकुमार सिराज के महल मे।
मौली शायरा को कमरे मे छोड़ दवाई लेने बाहर गई। जब वो वापस आई तब शायरा ने उसे हाथ पकड़ कर खींचा।

" मौली, जल्दी बताओ। जश्न कैसा था??? क्या तुम्हारी राजकुमारी अपने प्रेमी से मिली???? वो दोनो गले मिले क्या??? उन्होंने किस किया???" बस कुछ मिनिटो मे वो शायरा से समायरा बन चुकी थी, उसके हाथो से चुम्बन का इशारा देख मौली समझ गई वो क्या पूछना चाहती है।

" जाओ। तुम्हे तो हमसे बात नही करनी थी ना। अब क्यो पूछ रही हो मुझे???" मौली ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।

" अरे मेरी प्यारी मौली। में नाराज थी उस वक्त। गुस्से मे कहा था। वो भूल जाओ। अच्छा चलो माफ करदो , देखो मैंने कान पकड़े।" समायरा अपने कानो को पकड़ते हुए मौली की तरफ घूम गई।

" ठीक है। तुम्हे कुछ देर पहले आना चाहिए था सैम। तुम्हे मेरी राजकुमारी का बदला उसकी बहन से लेना होगा।" मौली ने गुन गुने पानी से उसका हाथ पोछना शुरू किया।

" क्या हुवा??? जश्न मे कोई गड़बड़ हुई क्या???" समायरा ने पूछा।

वहा हुई सारी बाते मौली ने उसे बताई, तभी अचानक से कमरे का दरवाजा खोल राजकुमार सिराज अंदर आए। मौली अपनी जगह पर खड़ी हो गई और राजकुमार को अभिवादन किया। उसने सारे नौकरों को कमरे से बाहर चले जाने का आदेश दिया। मौली भी अमाने ढंग से समायरा को वहा छोड़ चली गई।

सिराज समायरा की ओर आगे बढ़ा, और उसके पास बिस्तर पर बैठ गया। वो गुस्से मे था, समायरा को घुरे जा रहा था। उसने एक शीशी मे से दवाई निकाली और समायरा के सर के जख्म पर लगाई। समायरा के मुंह से एक आह निकल पड़ी जिसे सुनते ही सिराज ने उसे अपने गले लगा लिया।

" आप ने ऐसा क्यों किया??? आप जानती है ना हम आप को पसंद करते है फिर भी आपने उन्हे वैसे क्यो देखा???" समायरा ने अपने आप को उस से छुड़ाया। " हम आपके पति है।"

" नही। मैने किसी को नही देखा। ये क्या बात कर रहे हो तुम??" समायरा ने गुस्से मे कहा।

" आपको किसी और को देखना नही है। याद रखिए गा।" इतना कह सिराज ने अपने होठ उसके होठों पर रख दिए और एक चुम्बन की शुरुवात की। समायरा ने उसे अपने से दूर धकेला और एक चाटा मारा।

" तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी मर्जी के बगैर मुझे छुने की??? जल्दी मुझे अभी मुआवजा दो, वरना में तुम्हे महाराज के पास ले जाऊंगी।" समायरा ने हाथ आगे करते हुए कहा।

" पति को अपनी पत्नी को छुने का मुआवजा लगता है क्या???" सिराज।

" हा बिना मर्जी छुने का लगता है। मुझे तलाक चाहिए। अभी दो।" समायरा।

" आपको हमसे दूर जाने की इतनी जल्दी है। जो आप हर बात पर तलाक मांग रही है।" सिराज।

" हा।" समायरा अभी भी उसका हाथ आगे किए बैठी थी।

" ठीक है फिर। आप हमारे साथ सो कर हमे संतुष्ट कर दीजिए। हम तुरंत तलाक के कागज़ाद आपके हाथो मे रख देंगे।" सिराज ने अपनी नजरे बदलते हुए कहा।

" तुम। रास्कल। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई??? एक बार फिर कहना जो कहा।" समायरा।

" हमे अपनी बातो को दोहराने की आदत नही है। आपने अच्छे से सब सुन लिया है। हम बस तीन तक गिनेंगे। एक, दो......."