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मे और महाराज - ( एक एहसास_१) 26

" कल रात बड़े राजकुमार अमन पर किसी ने जानलेवा हमला किया।" गौर बाई की बाते सुन समायरा और मौली की आंखे बड़ी हो गई। पर अपने आप को संभालते हुए समायरा ने तुरंत कुछ ना जानने का नाटक बखूबी किया। उन दोनो से कोई बात और भाव ना मिलने की वजह से गौर बाई का गुस्सा बढ़े जा रहा था। " ये नाचिज बस आपकी शुभ चिंतक है राजकुमारी। इसिलिए सोचा आपको आपके पहले प्यार का हाल सुनादु।"

" इन सब में तुमने सिर्फ एक बात सही कही।" समायरा ने खुश होते हुए कहा।

" कौनसी राजकुमारी ?" गौर बाई को उम्मीद थी की समायरा उसके पहले प्यार की बात करेगी।

" यही के तुम नाचीज़ हो। एक ऐसी चीज जिसकी कीमत ना के बराबर है। कोई किसीको भी उठाके दे दे। और रही मेरे पहले प्यार की बात तो वो कल पूरी रात मेरी बाहों मे थे। सुबह भी बड़ी मुश्किल से मैने राजकुमार सिराज को मेरे कमरे से जाने के लिए मनाया, वरना अभी जो आप यहां ये बड़ी बड़ी बाते कर रही है। अगर वो होते और सुन लेते तो अभी आपकी तमीज की तरह आपका सर यहां गिरा हुआ होता।" समायरा की बाते सुन मौली दिल ही दिल मे खुश हुई जा रही थी। उसकी राजकुमारी शायरा कभी किसी को इस तरह ताने नही दे सकती तो आज समायरा उसका पूरा बदला ले रही थी।

" आप...." गौर बाई आगे कुछ बोल पाए तभी रिहान वहा आ गया। उसने राजकुमारी को अभिवादन किया।

" राजकुमारी। राजकुमार सिराज ने सब को मैदान मे बुलाया है। तीरंदाजी दिखाने के लिए।" उसने अपनी नजरे झुकाई और वही खड़ा रहा।

" राजकुमारी। चलिए जल्दी। आपको पहली बार राजकुमार सिराज का असली नायकी अवतार देखने को मिलेगा।" उसने समायरा का हाथ पकड़ते हुए कहा।

समायरा ने उसके हाथ पर थप्पड़ मार उस से अपने आप को छुड़ाया। " मुझे बिना मर्जी किसिका छुना बिल्कुल पसंद नहीं। और रिहान राजकुमार को बता दो। मुझे ऐसा शो ऑफ बिल्कुल पसंद नही है। "

" शो...." रिहान को कुछ समझ नही आया। " आपको क्या पसंद नही है राजकुमारी ? मुझे माफ कर दीजिए । मुझे आपकी बात समझ नही आई।"

" अरे शो ऑफ..... मौली शो ऑफ को क्या कहते है यहां ?" वो मौली की मदद के लिए घूमी। तभी मौली ने उसे सब से थोड़ा दूर आने का इशारा किया।

" सैम। क्या कर रही हो ? तुम्हारी भाषा यहां किसीको पता नही। जो भी राजकुमार सिराज चाहते है, वैसा करो। ये मामला पेचिदा है। इसलिए अभी उनके नाटक मे शामिल हो जाओ।" मौली की हा मे समायरा ने तुरंत हां मिलाई।

" चलिए। चलते है।" समायरा, रिहान, मौली और गौर बाई सब मैदान की तरफ चल पड़े। मैदान मे सिराज अपने सेवकों और चांदनी के साथ पहले ही खड़े थे।

समायरा को वहा देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। जो की चांदनी और गौर बाई ने पहली बार देखी। और जलती हुई नजरो से समायरा को देखा। समायरा सिराज के सब से पास खड़ी हुई उसे घुरे जा रही थी। सिराज को उसकी नाराज़गी की वजह समझ नही आ रही थी।

इसीलिए वो समायरा की तरफ थोड़ा झुका और उसके कानो तक अपने होठ ले गया।

" क्या हुवा ? हमने तो आपको हमारा नायकों वाला अवतार अभी दिखाया भी नही और आप अभी से चौक गई।" इतना कह वो समायरा से दूर होने ही वाला था। तभी समायरा ने उसे अपनी तरफ खीच लिया और वो भी एक खूबसूरत अदा के साथ अपने होठ उसके कानो तक ले गई।

पूरे वक्त उसने एक प्यारी मुस्कान अपने लबों पर रखी। "कमाल हो हा। तुम्हे चोट लगी है ना तो चुप चाप आराम करने की जगह अपनी पुरानी प्रेमिकाओं के सामने दिखावा कर रहे हो। तुम्हे किस तरफ चोट लगी है दिखाना तो।" उसने जैसे ही सिराज के सीने को छुने की कोशिश की सिराज ने हाथ पकड़ उसे अपनी बाहों मे खींचा।

" हमे तो पता ही था, हमने आपको काफी बिगाड़ दिया है। अभी नहीं। इन सब बातो के लिए रात है। हम आज फिर आएंगे । आप ही के पास। कुछ वक्त सब्र कीजिए।" इतना कह सिराज ने उसे छोड़ दिया। लेकिन कुछ जलती नजरे अभी भी समायरा को गुस्से से घुरे जा रही थी। सिराज ने तीरंदाजी के कुछ नमूने पेश किए। समायरा वहा खड़े खड़े ऊब चुकी थी। गौर बाई ने बदला लेने का ये सही मौका समझा।

" मेरे महाराज, लगता है राजकुमारी को यहां ज्यादा मज़ा नही आ रहा। क्यो ना इन्हे भी खेल मे शामिल कर लिया जाए।" गौर बाई ने एक असुरी मुस्कान के साथ कहा।

" मतलब?" समायरा।

" सब जानते है यहां के राजकुमार सिराज कितने काबिल तीरंदाज है। तो क्यों ना आज आप खुद उनकी तीरंदाजी की परीक्षा ले ? मतलब एक तरह का खेल समझ लीजिए। आप मुंह मे फूल पकड़ पर वहा खड़ी रहेंगी और राजकुमार तीर से फूल तोड़ेंगे।" गौर बाई ने कहा।

समायरा को सिराज पे बिल्कुल भरोसा नहीं था। लेकिन उसे किसी दूसरी औरत से अपने पति को हारना नही था इसीलिए उसने कहा, " ठीक है। जरूर करेंगे। लेकिन मेरे बाद आप दोनो भी यही दौहराएंगी। तो शुरू करे।" उसने फूल लिया सामने की और चली गई और फूल को अपने मुंह मे पकड़ा, अपनी आंखे बंद की।

सिराज ने पहली बार तीर चलाने के बारे मे दो बार सोचा होगा। क्योंकि सामने जो इंसान था, सिराज की रुचि दिन ब दिन उसमे बढ़ती जा रही थी। यकीनन वो बोहोत खास जो है उसके लिए।