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मे और महाराज - ( जलन_३) 30

" सच में मैं जो भी कहूंगी तुम मानोगे।" समायरा ने उसके कमरे में बैठे सिराज से पूछा।

" हम ने कहा ना, आप हमारे लिए खास है। हम आपकी सारी बाते मानेंगे।" सिराज ने उसके सर पर थपथपाते हुए कहा।

" अच्छा अब समझो, जो तुम तुम्हारी आखों के सामने देख रहे हो। अगर कोई तुम्हे कहे की वो सच नहीं है। मतलब सच है, पर जैसा तुम सोच रहे हो ऐसे नही। अलग तरीके से, जिसमे कोई जादू जुड़ा हुआ है तो तुम क्या करोगे ?" समायरा ने उसके सामने बैठते हुए पूछा।

" ये कैसी बहकी बहकी बाते कर रही है आप। हम कुछ भी समझ नही पाए। हमे बस इतना पता है, हम जो भी देख रहे हैं वो बेहद खूबसूरत है।" सिराज ने उसका चेहरा सहलाते हुए कहा।

" अरे यार। यही तो तुम्हारी प्रोब्लम है। ये सब छोड़ो। थोड़े सीरियस हो जाओ।" समायरा ने अपने चेहरे से उसका हाथ झटकते हुए कहा।

" ये आप फिर से अजीब भाषा में क्यो बात करने लगी। हम कुछ भी समझ नही पाए।" सिराज।

" ठीक है। चलो अलग तरीके से समझाती हु। क्या तुम्हारे पास इस जगह का नक्शा है।" समायरा के सवाल पर सिराज ने हा मे सर हिलाया। " जल्दी मंगवाओ।"

मौली जैसे ही नक्शा लेकर आई, समायरा ने उसे टेबल पर खोल दिया। वो उस नक्शे को देख चौक गई।

" सिर्फ इतना ही है क्या ?" समायरा।

" सिर्फ इतना। ठीक से देखिए ये पूरी दुनिया है। हमारी दुनिया" सिराज।

" दुनिया।" समायरा को हंसने का दिल कर रहा था, लेकिन ये बात गलत होती। अभी वो जिस सद्दी मे है, वहा दुनिया गोल तो जाने दो, किसी और राज्य के होने का भी कोई सबूत नहीं था। " क्या तुम्हे पूरा यकीन है। इस जमीन से आगे कोई जीवन नही मिलेगा ?" समायरा ने पूछा।

" हा यहीं सच है। आपको यकीन नही है क्या ??" सिराज।

" अगर मैं कहूं, इसके आगे भी तुम्हे जमीन मिलेगी। वहा का जीवन भी मिलेगा। जो की यहां से काफी अलग होगा तो मेरी बात मानोगे।" समायरा।

" हा। जो भी आप कहे वही सही है। आप कह रही है, आगे जीवन होगा तो हम उसे जरूर ढूंढना चाहेंगे।" सिराज ने समायरा को अपने पास खींचते हुए कहा।

" कोई जरूरत नही है। मेरी वजह से किसी और का क्रेडिट चला जाएगा।" समायरा ने कहा।

" मतलब ?" सिराज उसे घुरे जा रहा था।

" क्या मतलब ??? ओ..... क्रेडिट मतलब क्या ऐसे ?" समायरा के सवाल पर सिराज ने फिर हा में सर हिलाया।

" क्रेडिट का यहां मतलब श्रेय है। जब कोई अच्छा काम करता है, हम उसे वाह वाहाई देते है ना वैसे।" समायरा ने उसे समझाया।

" अच्छा। आपने ये भाषाएं कहा से सीखी।" सिराज।

" एम.... अभी ऐसा समझ लो बस सिख ली। फिर कभी बतायूंगी।" समायरा।

" अच्छा, तो क्या अब ये हमे हमारा श्रेय देने का वक्त है।" सिराज ने समायरा को अपनी तरफ खींचते हुए कहा।

गुलाबी लाली समायरा के चेहरे पर छा गई। वो भला कितना भी इनकार करें, लेकिन उसे प्यार हो रहा था। वो सिराज को चाहने लगी थी।

एक खूबसूरत रात के बाद जो दूसरे दिन सुबह उठी वो राजकुमारी शायरा थी।

" मौली, मौली।" राजकुमारी ने उठते ही हड़कम मचा दी।

" जी राजकुमारी जी।" मौली तुरंत उनके सामने आकर खड़ी हो गई ।

" हमने इतने दिन क्या क्या किया हमे सब बताएं ?" शायरा ने हुक्म फरमाया।

" जी जरूर।" मौली आगे कुछ कहे तभी शाही बटलर महाराज का संदेश ले कर आए। " राजकुमार सिराज ने आपके लिए खास खाना बनवाया है। वो आपका इंतजार कर रहे हैं।" मौली ने शायरा को सिराज का हुक्म सुनाया।

शायरा तैयार हो कर सिराज से मिलने उसे अध्ययन कक्ष मे गई।

" आपने बुलाया राजकुमार।" शायरा ने सर झुकाते हुए कहा।

" आप हमे बदली बदली सी लग रही है।" सिराज उसकी बदली हुई हरकतें समझता था।

" ऐसी तो कोई बात नहीं है। हमारे लिए क्या हुक्म है राजकुमार।" शायरा अभी भी सर झुकाए खड़ी थी।

नहीं यह वह नहीं है।पता नहीं क्यों ? कभी-कभी ये हमे बदली बदली सी लगती है । सिराज ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण लाते हुए बड़े ही प्यार से उसे बैठने के लिए कहा। अभी भी राजकुमारी सायरा नजरे झुकाए ही बैठी थी। अगर वह समायरा होती तो अब तक न जाने क्या-क्या कर बैठती। उसकी इन हरकतों की वजह से तो सिराज उसे पसंद करने लगा था। लेकिन यह । यह लड़की जो अभी उसके सामने बैठी थी। वह सिराज की पसंद से बिल्कुल ही अलग थी ।

" शुरू कीजिए।" सिराज ने खाने की तरफ हाथ करते हुए कहा। " हमने यह सब खास आपके लिए बनवाए हैं। आप की पसंद के हिसाब से तीखे लज्जतदार।"

" हमें माफ कर दीजिए राजकुमार। लेकिन हम तीखा खाना नहीं खाते।" शायरा की नजरें अभी भी झुकी हुई थी।

" क्या हुआ ? हमसे कोई गलती हो गई है ? आप हमसे नाराज हैं ? कल रात तो आप अपने आपको हमसे दूर नहीं रख पा रही थी।" सिराज ने पूछा।

शायरा ने आखिरकार अपनी नजरें उठाकर उसे देखा। " हमें माफ कर दीजिए। हमारी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है। हम चलते हैं।" वह सीधा अपनी जगह से उठी और अपने कक्ष की तरफ चली गई। सिराज उसकी परछाई को देख रहा था।

शायरा के कक्ष में,

शायरा गुस्से में अपनी गद्दी पर बैठी हुई थी। तो दूसरी ओर मौली घुटने के बल बैठकर रोए जा रही थी।

" हमें माफ कर दीजिए राजकुमारी। मैं आपकी हुक्म की तामील नहीं कर पाई। आप चाहे तो मुझे सजा दे दीजिए।" मौली ने रोते हुए कहा।

" सजा तो तुम्हें मिलेगी। इस बार जरूर मिलेगी मौली।" शायरा अपनी जगह से उठी। उसने छड़ी ली और मौली की तरफ घूमाई.....