Ant - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

अंत... एक नई शुरुआत - 2

मेरी माँ के उस अंजाने सफ़र पर हालाँकि मेरे पिता यानि कि उनके पति परमेश्वर तक ने उनका साथ छोड़ दिया था मगर एक चीज जो उनके जीवनसाथी से भी ज्यादा वफादार साबित हुई वो थी उनकी भूख और वो भी अपने नवजात शिशु को स्तनपान कराने वाली एक औरत की भूख!!मेरे पिता ने मेरी माँ की बदकिस्मती को यहाँ भी भरपूर मौका दिया उसे सताने का क्योंकि फरमान सुनाते समय उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को एक फूटी कौड़ी यह सोचकर भी नहीं दी कि ये संतान अकेले मेरी माँ की करनी का परिणाम नहीं थी बल्कि इस परिणाम में वो बराबर के भागीदार थे।

बस के एक ढाबे पर रुकते ही मेरी माँ भूंख से बिलखती अपनी बच्ची को अपने स्तन से लगाकर नलके के पास जाकर भरपेट पानी पीने में लग गई और जैसे-जैसे वो पानी से अपनी भूख मिटाती जा रही थी वैसे-वैसे उसकी आँखों से बहते हुए आँसू उसको और भी प्यासी करते जा रहे थे।

भोलेबाबा ने डमरू बजाया,पर्वत पर शोर मचाया.... शिवशंकर भगवान जी की सवारी निकल रही थी और उन भक्तों की भीड़,हर्षोल्लास की तेज आवाजों के बीच में से होती हुई मेरी माँ अपनी एक सहेली कामिनी के घर के सामने खड़ी थी। मेरी माँ की सहेली को दो पल भी पूरे न लगे उनकी बेबसी और लाचारी भाँपने में!

न जाने मेरी माँ की उस सहेली की खूबसूरती का जादू था या रात-रातभर जागकर रोती हुई आँखों से माँगी गई मेरी माँ की दुआओं का असर कि पिता जी ने अगले दो महीने बाद मुझे मेरी माँ समेत अपने घर आने की इजाज़त दे दी लेकिन मेरा चेहरा देखते ही वो एक बार फिर से मेरी माँ पर जुल्म ढाने को तैयार हो गए। दरअसल मेरी माँ की खूबसूरती से मेरा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था जिसकी कल्पना तो मेरे पिता ने कभी सपने में भी नहीं की होगी कि एक तो बेटी और वो भी सुंदर नहीं।

वैसे मेरी माँ भी खूबसूरती के मापदंड पर कुछ कम नहीं बैठती थीं और शायद यही कारण था कि मेरी माँ को देखते ही मेरे स्वर्गीय दादा जी नें बिना किसी दान-दहेज के उनसे अपने बेटे का विवाह सहर्ष ही स्वीकार कर लिया था। यह और बात है कि इस बात का ताना मेरे पिता जी मेरी माँ को यदाकदा देते रहते थे। इसके अलावा मेरी माँ की खूबसूरती जिसके लिए उन्हें तुरंत ही बिना किसी दान-दहेज के ब्याह लिया गया था वो ही खूबसूरती कई बार मेरे पिता द्वारा उनकी पिटाई की वजह भी बनती थी।

जहाँ मेरा बचपन मेरे पिता की झिड़कियों में बीता तो वहीं मेरी जवानी मेरे पिता की मुझपर यहाँ-वहाँ पड़ती बुरी नज़र से मुझे खुद को बचाने में गुज़रने लगी और इसी बीच मेरी माँ ने स्थिति को भाँपकर आननफानन में मेरा रिश्ता तय कर दिया हालाँकि वो मेरी कुशाग्र बुद्धि और मेरी शैक्षणिक योग्यताओं को देखकर मुझे आगे और भी पढ़ाना चाहती थीं मगर अब शायद उस घर में रहकर ये बिल्कुल भी संभव नहीं था तो बस मैं अपने स्नातक का परिणाम आने से पहले ही ब्याह दी गई।

क्रमशः

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐