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अंत... एक नई शुरुआत - 9

ज़िंदगी कब और किस ओर करवट बदल ले इसका एहसास पहले से तो हमें कभी भी नहीं हो पाता और जब तक हम इसका एहसास कर पाते हैं ये हमसे हमारा बहुत कुछ लेकर बहुत दूर जा चुकी होती है।हम बस खड़े होकर तो कभी सब कुछ खोकर बैठने की कोशिश करते हुए से इसे चुपचाप जाते हुए देखते रह जाते हैं।

समीर,जिसे मैं अपनी ज़िंदगी मानती थी,जिसे मैंने ईश्वर का दर्ज़ा दिया था आज वो मेरा सबकुछ लूटकर जा चुका था।उसनें मेरा मान-सम्मान,मेरा स्वाभिमान और यहाँ तक कि मेरे जीने की वजह भी मुझसे छीन ली थी।उसकी यादें,उसकी मोहब्बत और उसकी अच्छाइयां ही तो मेरे जीने का सहारा थीं। मगर उस दिन अस्पताल में अपनी आखिरी साँसें लेती हुई नीलोफ़र के वो अंतिम शब्द मेरे कानों में हर वक्त गर्म शीशे से पिघलते रहते हैं....

यहाँ आने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया आपा!मेरे शौहर समीर मेरा पाक इश्क़ थे और आपके लिए भी उनके दिल में मोहब्बत कम नहीं थी आपा!वो आपकी बहुत इज़्ज़त करते थे।आपा मेरे पास वक्त की सख्त कमी है वरना मुझे आपसे बहुत कुछ कहना और आपको बहुत कुछ समझाना था मगर अब तो बस मैं आपसे रुखसती लेते हुए इतना ही कह सकती हूँ कि आप समीर को बिल्कुल भी गलत न समझें और हो सके तो हम दोनों के गुनाह माफ़ कर दें।आपा ये समीर की अमानत, मैं आपको बड़े ही भरोसे के साथ सौंपकर जा रही हूँ,आपा आप खुदा के लिए मेरा ये भरोसा कभी न तोड़े......टूटती हुई उसकी साँसों की माला के मोतियों के बिखरने से पहले ही वो मेरी गोद में एक नवजात शिशु को रख चुकी थी और मैं उससे कुछ भी नहीं कह पायी या मैं समझ ही नहीं पायी कि क्या कहूँ???

"अरे!पिछले दो दिनों से न जाने कहाँ से ये आफ़त उठाकर ले आयी है?क्या खुद कम पड़ती थी ये मुझ दुखियारी माँ की छाती पर मूँग दलने के लिए जो एक और मुसीबत मेरे सिर पर डाल दी!",ऊषा देवी की कर्कशा ध्वनि के साथ मेरे कानों से टकराते हुए इन कटु वचनों से मेरी तन्द्रा भंग होने पर ही मुझे उस नन्ही सी जान के बिलख-बिलखकर रोने का भी एहसास हुआ और बेमन उसे गोद में लेते हुए मैंने बेहद रुखाई के साथ उसके मुँह में दूध की बोतल लगा दी।आज पूरे दो दिनों के बाद मैं इसके चेहरे पर गौर कर रही थी।नीली आँखों के साथ जहाँ इसमें नीलोफ़र नज़र आती थी तो वहीं नाक-नक्शे से बेशक ये समीर का ही अंश था।

अगले दिन से छुट्टियाँ बीत जाने के बाद मैंने अपने स्कूल जाना पुनः शुरू कर दिया।घर पर ये बच्चा ऊषा देवी के साथ ही रहता था और स्कूल से आने पर मैं इसे देखती थी।वैसे सच बताऊँ तो मैं नहीं देखती थी,कभी नहीं।इसे देखना मतलब कि अपने घावों को कुरेदना।बस कभी बेमन से उसे दूध की बोतल दे दी तो कभी बेमन से उसके अन्य काम कर दिये वो भी जब वो बिलख-बिलखकर धरती और आसमान एक कर चुका होता था तब!मेरी निष्ठुरता और अलगाव की भावना इस समय मेरी समझ से भी परे थी।कितनी ही बार मैंने अपने दिल में आये हुए इस ख्याल को बड़ी ही बेदर्दी से झटका था कि इस सबमें आखिर इस नन्ही सी जान का क्या दोष!!आज वो पूरे एक महीने का हो गया है।मैंने तो अभी तक उसका नाम भी नहीं रखा।

आज रविवार का दिन है और पूजा मुझसे मिलने के लिए आने वाली है,दरअसल वो कल वापिस ऑस्ट्रेलिया जा रही है तो बस आज मुझसे मिलकर मुझे बाय बोलकर जाना चाहती है।सुबह से मैं उसकी पसंद का खाना और अन्य तैयारियों में व्यस्त हूँ और आज वो बच्चा न जाने क्यों ज्यादा रो भी नहीं रहा है?शायद उसे उसकी औकात समझ में आ गई है और बस यही औकात वाली बात मैंने आज पूजा से भी कह दी जिसपर वो एकदम से बिफर पड़ी...यार सुमन मैंने तुझसे तो ये उम्मीद कभी सपने में भी नहीं की थी कि तू इतनी छोटी सोच वाली हो सकती है!देख मैं मानती हूँ कि समीर ने तेरे साथ गलत किया मगर तू ये भी तो सोच कि उसनें ही तुझे इस दुनिया में सबसे ज्यादा मान-सम्मान और स्वाभिमान से जीना भी सिखाया था न और तू जो आज अपने पैरों पर खड़ी है वो भी तो समीर की बदौलत ही संभव हो पाया है न और फिर तू उसके ही अंश को इस तरह से कैसे बोल सकती है???

"पूजा किसी को उसके पैरों पर खड़ा करके क्या उसका दिल चीर देना जायज़ है मेरी बहन???क्या जीते-जी जो मेरे लिए मेरा देवता था अब उसे अपने ही गुनेहगार के रूप में देखना आसान है,मेरे लिए???अच्छा पूजा अगर मेरी जगह तू होती और समीर की जगह आलोक तो क्या आलोक की बेवफ़ाई पर भी तू इतना ही बड़ा दिल रख पाती???क्या तू उसके अंश को,उसके नाजायज़ अंश को अपने आँचल की छांव दे पाती,बोल???",मैंने रोती हुई आँखों और कलपते हुए अपने दिल के साथ पूजा से पूछा।

पूजा :- "देख मुझे इतना सब नहीं पता मगर हाँ मैं इतना ज़रूर जानती हूँ कि मैं कभी किसी नन्ही सी जान को उसकी औकात न दिखाती और सुन सुमन ये सिर्फ समीर की औलाद सही पर ये नाजायज़ नहीं है।मत भूल कि तुझसे पहले समीर की शादी नीलोफ़र से हुई थी।वो तो बस तेरी इस महान सास के कारण समीर कभी इस सच को कुबूल करने की हिम्मत नहीं कर पाया जो कि उसकी बहुत बड़ी गलती है मगर मेरी बहन अब तू समीर की उस गलती की सजा इस मासूम को न दे।"पूजा अब मेरे सामने अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़ी हुई थी और हम दोनों के ही आँचल इस वक्त आँसुओं की बरसात से भीग चुके थे।

कुछ देर बाद पूजा चली गई मगर मैं अभी भी उसी उलझनों के तिराहे पर खड़ी हुई थी जहाँ से एक ओर मुझे मेरे और समीर के बीच का प्रेम तथा विश्वास दिखाई दे रहा था तो दूसरी ओर समीर और नीलोफ़र की बेपनाह मोहब्बत जिसे मैं हर तरह से नाजायज़ करार दे चुकी थी और तीसरी तरफ़ था वो बेगुनाह,मासूम बच्चा।अब फैसला मुझे करना था!

न जाने कितने घंटे मैं यूं ही सोच के सागर में डूबी हुई जड़वत बैठी रही और फिर एक फैसले के साथ मैं उठ खड़ी हुई।मैं उस बच्चे के पास जाने के लिए कदम बढ़ा ही रही थी कि तभी मेरे पैर ठिठक गये।उस बच्चे के पास ऊषा देवी खड़ी हुई थीं,शायद उन्होंने मेरे और पूजा के बीच की बातचीत को सुन लिया था।उनके हाथ में चूहे मारने की दवा की शीशी थी जिसे देखकर मैं अपने होश ही खो बैठती मगर उस मासूम की फिक्र ने मुझे झकझोर कर जगा दिया और अब मैं लपककर ऊषा देवी के नज़दीक थी।वो मुझे देखकर अजीब से भय से भरकर वहाँ से हड़बड़ाकर जाने के लिए जैसे ही मुड़ीं मैंने उन्हें,'रुकिए' कहकर रोक दिया।

क्या कर रही थीं आप?मेरे सवाल का जवाब देने की बजाए वो फिर से तेजी के साथ आगे बढ़ने लगीं जिसपर मैंने सामने से जाकर उनका रास्ता रोक लिया।अब मैं उनसे कुछ और कह या पूछ पाती उससे पहले ही उन्होंने खुद ही बोलना शुरू कर दिया....खत्म कर रही थी।हाँ मैं खत्म कर रही थी इस दूसरे धर्म के पाप को,इस शैतान की औलाद को।वो इससे आगे कुछ कह पाती उससे पहले ही मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैं चीख पड़ी...ऊषा देवी!वो पहली बार था जब मैंने उन्हें माता जी न कहकर 'ऊषा देवी' कहा था।ये किसी और धर्म का पाप नहीं बल्कि आपके अपने बेटे का अंश है और अगर आज आप इसे पाप कह पा रही हैं तो इसकी वजह भी सिर्फ आपकी झूठी शान और दकियानूसी ख्यालात ही हैं।काश कि कभी आपनें अपने बेटे का मन पढ़ने की कोशिश की होती!काश कि आप अपने इस जाति-धर्म के खोल से निकलकर अपने बच्चे की खुशियों का सबब देख पातीं,उसे महसूस कर पातीं तो आज ये नौबत ही न आती और आप जो इसे शैतान की औलाद कह रही हैं न तो सुनिए वो शैतान की नहीं बल्कि हम सबकी तरह उस ऊपर वाले की ही औलाद है और आपको पता है कि असली शैतान कौन है??

तो सुनिए ऊषा देवी जी,आप....आप हैं असली शैतान जो कि आज खुद को खुदा मानकर इस बच्चे को उस ऊपर वाले द्वारा दी गई इसकी इस बेशकीमती ज़िन्दगी को अपने शैतानी हाथों से छीनने चली थीं।

और ऊषा देवी कान खोलकर सुन लीजिए कि आज तो आपकी इस हरकत पर मैंने आपको बस समीर का ख्याल करके छोड़ दिया है मगर आज के बाद यदि कभी आपनें गलती से भी ऐसा कुछ करना तो दूर अगर सोचने की भी कोशिश की तो मैं भूल जाऊँगी कि आप समीर की माँ हैं और आज से आप मेरे लिए सिर्फ ऊषा देवी हैं क्योंकि किसी औरत का ये रूप देख लेने के बाद उसे माँ की संज्ञा देना मेरे लिए नामुमकिन है।

वो दिन है और आज का दिन है कि मैं उन्हें ऊषा देवी ही कहती हूँ न माता जी और न ही सासू माँ!!

क्रमशः...
लेखिका...
💐निशा शर्मा💐