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अंत... एक नई शुरुआत - 5

कभी-कभी न जाने क्यों कोई पराया हमारे लिए हमारे अपनों से भी ज्यादा खास बन जाता है?जिससे हमारा न तो खून का रिश्ता होता है और न ही जाति या धर्म का मगर फिर भी उसके लिए हमारे दिल में एक विशेष स्थान खुद ब खुद ही बन जाता है और ऐसी ही एक शख्सियत ने मेरी ज़िंदगी में भी दस्तक दी,जो थी स्मिता वशिष्ठ!जैसा नाम वैसी ही सूरत और सीरत थी उनकी।दूध सा गोरा रंग,सुर्ख गुलाबी होंठ,लम्बे चमकीले बाल और आकर्षक कदकाठी।कहने को तो वो बाकी सब अध्यापिकाओं की तरह ही मेरी एक अध्यापिका ही थीं बस मगर सच कहूँ तो उन सबसे अलग और मेरे लिए सबसे बढ़कर थीं वो।वैसे उम्र में वो बेशक मेरी माँ से कुछ साल कम ही रही होंगी मगर मैंने अपनी ज़िंदगी में उन्हें अपनी माँ का स्थान ही दिया हुआ था और वो भी मुझे बेहद अज़ीज़ मानती थीं।वो मुझे बहुत स्नेह व सहयोग देती थीं।मैंने उनका परिचय कभी भी अपने व्यक्तिगत जीवन से नहीं करवाया था मगर फिर भी न जाने कैसे उन्होंने मेरे माथे पर पड़ी हुई मेरे संघर्ष की रेखाओं को बाखूबी पहचान व परख लिया था।

शायद इसीलिए एक दिन उन्होंने मुझे अपने रूम में बुलाकर कहा था कि "सुमन तुम मुझे बेझिझक अपनी परेशानी बता सकती हो और मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ बेटा।तुम्हें अभी बहुत आगे जाना है,तुम्हारे अंदर वो लगन है सुमन और तुम्हें उसे कभी भी मिटने नहीं देना।तुम्हें इस सफ़र में मेरी जब भी ज़रूरत हो तुम मुझे पुकार सकती हो।",मैम की ये बातें मेरे लिए वो बेशकीमती तोहफ़ा था जो इससे पहले शायद मुझे कभी भी किसी से नहीं मिला था।

मेरा ये दूसरा साल भी बहुत शानदार बीत रहा था।हर एक अध्यापिका के साथ ही साथ अब मुझे अपनी सहपाठिनियों का भी समर्थन तथा प्रशंसा मिलने लगी थी।वक्त गुज़रने के साथ ही साथ मेरा साल भी गुज़रता जा रहा था और फिर मेरे फाइनल एग्ज़ाम भी आ गए।एग्ज़ाम से पहले मेरे प्रैक्टिकल्स थे जिसमें से कि मेरा आखिरी प्रैक्टिकल स्पोर्ट्स का था।मेरी तैयारी हमेशा की तरह बेहतरीन थी मगर मुझे क्या पता था कि मेरे साथ एक अनहोनी....आज भी सोचती हूँ तो काँप उठती हूँ।मैं मैदान पर थी और बच्चों का मेरे साथ इन्ट्रो चल रहा था,एग्ज़ामिनर मेरे बिल्कुल सामने खड़ा था और तभी मेरे पेट के निचले हिस्से में जानलेवा दर्द उठा और मैं...मेरा शरीर एकदम से शिथिल पड़ गया।मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छाने लगा।

मैं बस गिरने ही वाली थी कि तभी स्मिता मैम नें मुझे दौड़कर संभाला।मैं वहाँ से सीधे रेस्टरूम में गई और फिर मैं कुछ अजीब सा महसूस करते हुए टॉयलेट की ओर दौड़ गई।अंदर जाने पर सिर्फ और सिर्फ खून था,बेतहाशा खून।मैं बस वहीं डरकर बेहोश हो गई और जब होश आया तो मैं अपने इंस्टीट्यूट में न होकर इंस्टीट्यूट के पास की ही किसी प्राइवेट-क्लीनिक में थी और मेरे बेड के दूसरी तरफ़ पड़े हुए दो स्टूल्स में से एक पर स्मिता मैम और एक पर समीर बेचैन से बैठे हुए थे।मुझे अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।हाँ बस मेरे पेट का दर्द अब कुछ कम ज़रूर हो गया था मगर उसमें अब हलचल सी थी और फिर बेड से उठने पर मुझे मेरे जननांगों में भी तेज़ दर्द का एहसास हुआ।उसके बाद समीर के साथ जब मैंनें डॉक्टर से बात की तब मुझे डॉक्टर के सवालों और जवाबों से पता चला कि मैं....मेरा मिसकैरेज हुआ था,लगभग देढ़ महीने का।

इस शारीरक और मानसिक आघात के बाद भी मुझे बहुत कुछ झेलना बाकी था जिसका ख्याल मुझे तब आया जब घर पहुंचने पर मैंने ऊषा देवी को खा जाने वाली जैसी आँखों के साथ मुझे घूरते हुए देखा जो कि अभी तो बस एक छोटी सी शुरुआत थी।इसके बाद मेरे साथ जो कुछ भी हुआ उसे तो शायद किसी लेखिका की लेखनी भी शब्द देने में असमर्थ ही होगी।

फिर तो ऊषा देवी जी ने मुझे जो ताने,जो गालियाँ और जो सभी रिश्तेदारों,परिवार वालों और मोहल्ले-पड़ोस वालों के सामने जो मेरा चरित्र-चित्रण किया उसके परिणामस्वरूप मेरी आत्मा पर पड़े हुए छालों को तो शायद मेरी आत्मा किसी अन्य शरीर में प्रवेश करने पर भी न भुला पाये!!

इन घावों के रिसते हुए ही मैंने अपने अंतिम वर्ष के सभी इम्तिहान दिये जिसमें मेरा एक सबसे बड़ा सहारा बने मेरे पूज्य,मेरे प्रेम...मेरे और सिर्फ मेरे समीर जिनकी मैं अब अपने मन से सचमुच पूजा करती थी और दूसरा मेरा सबसे बड़ा संबल थीं मेरी स्मिता मैम,जिन्हें मैं इस दुनिया में सबसे ज्यादा सम्मान देती थी।मेरा परिणाम आया और इस बार मैंने सिर्फ अपने इंस्टीट्यूट में ही नहीं बल्कि नईदिल्ली के सभी इंस्टीट्यूट्स में टॉप किया था जिसका नतीजा यह हुआ कि मुझे दिल्ली के बैस्ट इंटरनेशनल-स्कूल में साठ हजार प्रतिमाह वेतन की नौकरी मिली।

इन तमाम उतारचढ़ावों के बाद अब क्या मेरी ज़िंदगी सचमुच बदलने वाली थी बस इस सवाल के इर्दगिर्द घूमती मेरी शंका की सुई के साथ ही मैंने अपनी नौकरी की खबर सबसे पहले बेहद उत्साह एवं खुशी के साथ समीर और अपनी मैम,फिर डरते-डरते अपनी सास...ऊषा देवी को सुनाई।

क्रमशः ....

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐