Me and chef - 41 books and stories free download online pdf in Hindi

मे और महाराज - ( जाल_२) 41

सिराज के लिए वह नाटक असह्य हो रहा था। वह अपनी जगह पर से खड़ा हुआ। " राजकुमारी शायरा की तबीयत ठीक नहीं है। ऐसी हालत में हम उन्हें किसी से मिलने की इजाजत नहीं देंगे। यह हमारा आखरी फैसला है। मुझे लगता है कि भाई भाभी को अपनी पारिवारिक समस्याओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। यहां आने के लिए शुक्रिया अगली बार से अगर आप पहले संदेशा भेज देंगे तो अच्छा रहेगा। हमें माफ कर दीजिए हम आप को विदा करने दरवाजे तक नहीं आ सकते।" इतना कहकर सिराज वहां से चला गया।

राजकुमार अमन अपनी पत्नी के साथ खाली हाथ सिराज के महल से बाहर चले आए। जैसे ही वह घोड़ा गाड़ी में बैठे।

" आप हमारे किसी काम नहीं आ सकती ना ‌?" राजकुमार अमन ने गुस्से में अपनी पत्नी को देखा।

" मेरे महाराज जैसा चाहते हैं मैंने वही किया। राजकुमार सिराज आपसे ज्यादा चालाक है इसमें हमारी क्या गलती?" शायरा की बड़ी बहन ने अमन के गुस्से पर सवाल उठाया।

अमन ने उन्हें घूर के देखा और एक तमाचा जोर से उनके दाहिने गाल पर जड़ दिया। " अपनी हद आप नहीं भूले तो अच्छा होगा।"

शायरा की बहन ने अपने गाल को सहलाया।‌‌ " राजकुमार आपको वह आत्म मणि चाहिए या नहीं ? आपका उठाया हर कदम आपको उस मणि से दूर कर देगा। इस बात को याद रखिएगा।" उसने राजकुमार अमन को घूरते हुए कहा।

राजकुमार अमन ने उनके बाल पकड़े और उनकी गर्दन ऊपर खींची। " हमने अभी-अभी कहा ना अपनी जगह भुलिएगा नहीं। एक राजकुमार से जबान लड़ाते हुए शर्म नहीं आती? हमने अब तक आपको पत्नी का कोई हक दिया नहीं है। और आपकी हरकतें देख हमें लगता नहीं है कि आप उस हक को जीत पाएंगी।" राजकुमार अमन ने उनके बाल छोड़ दिए और अपनी नजरें फेर ली।

शायरा की बहन की आंखों में आंसू थे। वो तुरंत राजकुमार अमन के कदमों में गिर गई। " हमें माफ कर दीजिए राजकुमार। हम और हमारा दिल ही जानता है कि हम आपके प्रति कितने इमानदार है। लेकिन फिर भी आपकी नजरों में किसी और के लिए प्यार देखना हमसे सहा नहीं जाएगा। अपनी जलन की वजह से हम से यह गलती हुई है।" अमन के पैरों में गिर, वह जोर जोर से रोने लगी।

" इसे जलन कह रही हैं आप ? आप पहले से जानती थी कि हम शायरा से प्यार करते हैं। उसके बावजूद आपने हमसे शादी की। अब उस शादी की कीमत भी देनी पड़ेगी। हम जितना कह रहे हैं उतना करती जाइए। हम आपसे प्यार तो नहीं कर सकते लेकिन आपको अपनी पत्नी होने का हक जरूर देंगे। जिस हक की क़ीमत आप जानती है।" यह आखिरी बात होगी जो पूरे सफर के दरमियान राजकुमार अमन ने अपनी पत्नी से कहीं।

वजीर साहब की बड़ी बेटी भी कम नहीं थी। राजकुमार अमन की बातों से उसके दिल को बड़ी ठेस पहुंची थी। उसने सारी बातें अपनी मां को बताई और यह भी कि राजकुमार अमन वह आत्म मणि चाहते हैं।

" तुम्हारे पिता कभी उस बात के लिए तैयार नहीं होंगे ?" वजीर साहब की बीवी ने कहा।

" मां आप क्या चाहती है ? आपकी बेटी का घर तूट जाएं ? वह वापस मायके में आकर रहे। लोक मुझे ताने दे देकर मार डालेंगे। एक मणि के लिए आप अपनी बेटी की जिंदगी उजाड़ देंगी।" उसने रोते हुए अपनी मां को मनाने की कोशिश की।

" तुम समझ नहीं रही हो बेटा। वह हमारी खानदानी रियासत है। वजीर साहब ने आज तक उस मणि को मुझे भी नहीं दीया। अगर तुम उनके सामने रोते-रोते मर भी जाओगी ना तब भी वह उस मणि को नहीं छोड़ेंगे।" वजीर साहब की बीवी ने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की।

" पर मैंने तो कभी नहीं कहा कि तुम्हें वह उनसे मांगना है ?" बड़ी राजकुमारी ने नजरें उठाते हुए अपनी मां को देखा।

दोनों मां बेटी में नजरों नजरों में कुछ बातें हुई।

" समझ रही हो ना मां। उस मणि के मिलते ही राजकुमार अमन हमें अपनी पत्नी होने का हक देंगे। उसके बाद हम इस रियासत को नया वारिस देंगे। आखिर में शायरा और राजकुमार सिराज की बारी होगी।" राजकुमारी के मुंह से ऐसी बातें सुन वजीर साहब की बीवी के चेहरे पर एक असुरी मुस्कान छा गई।

इस मुलाकात का असर ऐसा हुआ कि जल्द ही वजीर साहब की बीवी ने एक बक्सा अपने नौकर के हाथ अपनी बेटी तक राज महल पहुंचा दिया। राजकुमारी ने अपने वादे मुताबिक उस बक्से को राजकुमार अमन के हवाले किया।

वह बक्सा लेकर राजकुमार अमन सीधे उस गुफा में गए जहां हर बार वह अंधेरे के सिपाही उनसे मिला करते थे।
उन्होंने बक्सा खोला। उस बक्से में एक नीले रंग का मणि रखा हुआ था। अंधेरी के सिपाही ने उस मणि को हाथ में उठाया और दबाया। कुछ ही क्षण में वह मणि उसके हाथों में भूसा बन गया।

" यह क्या कर दिया तुमने ?" राजकुमार अमन चौक गए।

" यह किस तरह का मजाक है राजकुमार ? मेरे मालिक इससे कभी खुश नहीं होंगे। आत्म मणि के नाम पर एक कांच का टुकड़ा दिखाने ले आए ? आपने हमें समझ क्या रखा है ? इस तरीके से सौदा निभाएंगे आप ? " अंधेरे के उस सिपाहिने गुस्सा होते हुए पूछा।

" हमने कोई मजाक नहीं किया। वजीर साहब के घर पर हमें बस यही मणि मिला। और वैसे भी तुम समझौते की बात नहीं करो तो अच्छा है। हमने पहले ही कहा था कि राजकुमारी शायरा को हम संभाल लेंगे। उसके बावजूद तुमने उन पर फिर से हमला करवाया।" राजकुमार अमन भी राजकुमारी शायरा पर हुए हमले की वजह से पहले ही इन सिपाहियों से नाराज थे।

" हमें करना पड़ा क्योंकि आप राजकुमारी को लेकर कुछ ज्यादा ही हमदर्दी दिखा रहे थे।" अंधेरे के एक सिपाही ने आगे आते हुए कहा।

" यह हमारी खास बात है। तुम इसमें ना ही बोलो तो अच्छा होगा।" राजकुमार अमन उन पर चिल्लाएं।

" आप रियासत की जंग लड़ रहे हैं और खून भी बहाना नहीं चाहते। किस तरीके के महाराज बनेंगे आप ?" अंधेरे के उस सिपाही ने कहा।

" बहने वाला खून जब अपना हो, तो दर्द जंग लड़ रहे सिपाही को भी होता है। तुम यह बात समझ नहीं पाओगे अनाथ जो ठहरे।" राजकुमार अमर ने अपने नजरे फेरते हुए कहा। दुश्मन ही सही पर फिर भी सिराज उनका भाई है। उनके मन में सिराज को लेकर कोई द्वेष नहीं है। लेकिन शायरा को वो किसी के साथ बाट नहीं सकते। ऐसे में शायरा से शादी करने की सजा सिराज को मिलनी ही चाहिए।

" सही कहा आपने वह आपका दर्द समझ नहीं पाएंगा। लेकिन मेरे मालिक आपका दर्द समझते भी है और कम भी करना चाहते हैं। इसीलिए हमने एक सौदा किया था जिसे आप भूल रहे हैं अपने प्यार के चक्कर में ।" अंधेरे के एक सिपाही ने आगे आते हुए अपने दूसरे साथी को इशारा किया।

" हम कुछ नहीं भूले हैं। अगर यह वह मणि नहीं है। तो हम फिर उसे ढूंढेंगे और तुम्हें लाकर देंगे। तब तक हमसे पूछे बिना अगर कोई भी कदम उठाया। तो याद रखना जितनी बातें हमें नहीं आती उतनी ज्यादा बातें हमारी तलवार कर लेती है।" इतना कह कर राजकुमार अमन उस अंधेरी जगह से बाहर जाने निकले।

तभी अंधेरी के एक सिपाही ने कुछ मंत्र पढ़े और एक रोशनी राजकुमार अमन पर गिरी। रोशनी के गिरते ही राजकुमार अमन अपनी जगह पर स्तब्ध हो गए। रोशनी के बंद होते ही जब उन्होंने अपनी आंखें खोली उनकी आंखें पूरी तरह से काली हो चुकी थी। उनके गले पर एक अंधेरे का निशान बन गया था। उन्होंने पीछे मुड़कर उन सिपाहियों को देखा, और एक मुस्कान दिखाई। सिपाही समझ गए थे कि उनका जादू काम कर गया। अब राजकुमार अमन पूरी तरीके से उनके मालिक के वश में है। अब बस इंतजार है राजकुमार सिराज से मिलने का।

दूसरी तरफ महल में राजमाता महाराज से मिलने पहुंची। महाराज पहले ही वजीर साहब के साथ सिराज और उसकी पत्नी पर हुए हमले की बातचीत कर रहे थे।

" देख रहे हैं आप हर पत्ते पर, हर एक मंत्री ने राजकुमार अमन के बारे में गलत लिखा है।" महाराज ने सारे पन्ने गुस्से में नीचे फेंक दिए। वजीर साहब महाराज के सामने सर झुकाए खड़े थे। " आप कुछ कहना नहीं चाहेंगे वजीर साहब।" महाराज ने पूछा।

" मुझे माफ कर दीजिए मेरे महाराज आज यह नाचीज़ आपके सामने सलाह दे रहा है। इन पन्नों पर लिखी हुई बातें उन मंत्रियों का राजकुमार अमन के प्रति द्वेष है और कुछ नहीं। आप जानते हैं कि राजकुमार अमन कभी ऐसा नहीं कर सकते। और इन सारी चीजों के अलावा हमारे पास राजकुमार अमन के खिलाफ कोई भी पुख्ता सबूत नहीं है। अगर आप सिर्फ कुछ लोगों की बातें सुन राजकुमार अमन को सजा देंगे। तो उन्हें बुरा लग सकता है।" वजीर साहब ने कहा।

तभी राजमाता महाराज के कमरे में पहुंची। राजमाता को देख महाराज अपनी जगह पर खड़े हो गए।
" मां।" उन्होंने सर झुकाए हुए अपनी मां को प्रणाम किया।

" नहीं महाराज। आज मां नहीं, एक राजमाता इस रियासत के महाराज से मिलने आई है।" उन्होंने महाराज के सामने खड़े होते हुए कहा।

" आपने यहां आने का कष्ट लिया। इसका मतलब वाकई बात बहुत सादा पेचीदा है मां। हुकुम कीजिए।" महाराज ने कहा।

" सिराज और उसकी बीवी पर हुए हमले की बात हर जगह फैल गई है। किसकी इतनी हिम्मत हो गई जो राज परिवार के लोगों पर उन्होंने नजर उठाने की कोशिश की ? अगर आज इन नजरों को झुकया नहीं गया, तो कल राज परिवार एक मजाक बनकर रह जाएगा।" राजमाता ने एक नजर वजीर साहब को देखा। " हमें यकीन था कि वजीर साहब हमें यही मिलेंगे। दरबार में उठने वाली बातें तो हर किसी ने सुनी हैं। किस तरह एक बड़े भाई ने अपने हैं छोटे भाई पर जानलेवा हमला करवाया। इस बारे में आप अपनी राय नहीं देना चाहिए वजीर साहब ?" राजमाता ने वजीर साहब से पूंछा।

वजीर चुपचाप सर झुकाए वही खड़े थे।

" आप यहां से जा सकते हैं वजीर जी। हमें राजमाता से कुछ बातें करनी है।" महाराज की आज्ञा सुनकर वजीर साहब ने तुरंत सर झुका कर सलाम करते हुए राजमाता और महाराज से विदा ली।

" और कब तक बचाना चाहते हैं आप राजकुमार अमन को ?" राजमाता ने गुस्से में महाराज से पूछा।

" मां। यह कैसी बातें कर रही है आप‌ ?" महाराज ने कहा।

" आप समझते हुए भी नासमझ बनने का नाटक मत कीजिए महाराज। हम जानते हैं कि अमन तुम्हारी पहली संतान होने की वजह से तुम उसकी तरफ ज्यादा झुके हुए हो। लेकिन उसकी वजह से सिराज को चोट पहुंचे यह हम कभी सह नहीं सकते। पहले भी तुमने सिराज की मर्जी के खिलाफ उसकी शादी करवा कर उसे एक अनचाहे रिश्ते में बांध दिया। इतना काफी नहीं था जो अब तुम्हारा बेटा उसकी जान का दुश्मन बना बैठा है ?" राजमाता ने अपनी आवाज ऊंची करते हुए कहा।

" हम ‌आपको याद दिलाना चाहेंगे मां की राज महल की दीवारों के भी कान होते हैं। इसलिए आप अपनी बातें संभाल कर करिए।" महाराज ने सर झुकाते हुए राजमाता से विनंती की। " हमें पता है सिराज आपके खास है। सिराज में भी हमारा ही खून बह रहा है। उनकी तकलीफ से हमें भी चोट पहुंचती है। आप बेफिक्र रहिए उनके गुनहगारों को सजा मिलेगी। हम खुद इस मामले की जांच कर रहे हैं। जैसे ही हमें कुछ पता चलेगा। हम आपको वहां आकर खबर करेंगे। बेफिक्रे रहिए गा मां।" महाराज ने कहा।

" हम आपके आने का इंतजार करेंगे। इस बार एक बाप की तरह नहीं एक महाराज की तरह फैसला लीजिएगा। आपको इस रियासत को उनका नया महाराज देना है। एक निष्पक्ष बाप कि तरह सोचिए कि कौन सा बेटा सही है। एक बेटे की गलती कहीं दूसरे का भविष्य ना उजाड़ दे।" इतना कह राजमाता महाराज के कक्ष से चली गई।


महाराज जानते थे कि अब जब यह मामला उनकी मां तक पहुंच गया है। अब राजकुमार अमन को जवाब देने सामने आना पड़ेगा। महाराज एक गहरी सोच में डूब गए थे।