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कोट - १२

कोट -१२

मैं आँख मूँदे बिस्तर पर लेटा था। आँख खुली तो चश्मेवाला सामने खड़ा था । उसने लम्बा कोट पहना था। उसमें लम्बी-लम्बी जेबें थीं। कोट की जेब से उसने दो पत्र निकाल कर मुझे दिये।
१.
आज एक वरिष्ठ पेड़ देखा।तना उसका मोटा था।डालियां झुकी हुई। फूल उस पर आते हैं पर कम। फल भी पहले से कम ठहरते हैं। गर्मी, सर्दी और बर्षा का अनुभव उसे है।सांसें लेता है और सांसें छोड़ता है ,आक्सीजन
के रूप में।उसके बगल में एक छोटा पेड़ उग आया है।दोनों की दोस्ती हो गयी है।वरिष्ठ पेड़ उसे अपने अनुभव बताता है। कि कितनी बार वह कटा है और फिर उगता रहा है और कभी उसने फूल और फल देने नहीं छोड़े हैं।उसकी कोशिश रहती है कि वह छायादार बना रहे। लोग उसकी छाया की प्रशंसा न करें लेकिन वहाँ बैठ कर अपने स्नेह के कथानकों को पिरोते रहें।उसकी एक व्यथा है कि आमतौर पर लोग उसकी तरह पाक-साफ नहीं हैं।अपने-अपने स्वार्थों के लिए लड़ते रहते हैं। पक्षियों उसे अपना बसेरा बनाती हैं।उनका कलरव उसे जीवन्त रखता है।वह टूटना नहीं चाहता है अत:अनेक आन्दोलनों से जुड़ा हुआ है। भले लोग उसे बचाने के लिए लम्बा संघर्ष करते हैं। आदमी से उसका सान्निध्य ज्ञान और प्रेम का है।कालिदास एक पेड़ पर चढ़े मिले थे। भगवान बुद्ध बोधि वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हुये और ज्ञान प्राप्त किये।और अन्त में उन्हें मोक्ष मिला।कदम्ब के पेड़ों से कृष्ण भगवान का संबंध रहा था।पेड़ साहित्य भी हैं।कविता और गीत उनसे निकलते हैं। हमारे अस्तित्व उनसे जुड़ा हुआ है।पर्यावरण उनसे सजीव बनता है।

२.
एक गाँव की सच्ची कहानी याद आ रही है।पहाड़ी के दोनों ओर गाँव बसा हुआ है। गांव में कुछ लोग सम्पन्न हैं, कुछ गरीब। बर्फ से गांव जब ढका होता है तो उसका सौन्दर्य देखते ही बनता है।गांव के चारों ओर जंगल था।जंगल में बाघ भी रहते थे और जब तब बंदर भी आया करते थे। कभी-कभी बाघ से भी सामना हो जाया करता था लोगों का।गांव की दूसरी तरफ संतोष कुमार की जमीन और खेत थे।खेती ही उसकी आजीविका थी। लेकिन कुछ सालों से बंदर उसके खेतों को बहुत नुकसान कर जाते थे।साल दर साल यह चलता रहा।संतोष कुमार यह देखकर बहुत परेशान था और क्रोधित भी।एक साल उसने फैसला किया कि वह खेतों की बुआई नहीं करेगा उन्हें बंजर रखेगा। और गांव वालों से कहता," इस साल मैंने खेतों को बंजर रख दिया है। अब देखता हूँ बंदर क्या खाते हैं? बंदरों को सबक सिखा कर रहूँगा।? लोग पीठ पीछे हँसते और कहते," कैसा बेवकूफ है, बन्दरों के डर से अपनी आजीविका पर कुल्हाड़ी मार रहा है।" उस साल उसके परिवार को खाने के लाले पड़ गये।वह गंभीर कर्ज में डूब गया और उसे अपनी बहुत सी जमीन बेचनी पड़ी।
मैंने पत्रों को पढ़ा और उसे लौटा दिया। उसने लम्बे हाथों से उन्हें पकड़ा और मुझे लौटाने लगा। तभी हवा का तेज झोंका आया और पत्र उड़ कर दूर चले गये। वहाँ दो बच्चे खेल रहे थे। उन्होंने पत्रों को पकड़ा और उन्हें पढ़ने लगे। पत्र पढ़कर वे पत्र देने आये और बोले," काका, ये पत्र किसने लिखे हैं ?" ---।

* महेश रौतेला