Mrityu Murti - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मृत्यु मूर्ति - 1

नालंदा महाविहार 812 ई. पू.

ठंड भरी रात, सरोवर के पूर्व तरफ के छात्रावास में चारों तरफ सन्नाटा है । सभी सो रहे हैं केवल इतनी रात को नींद छोड़कर बिस्तर पर कोई एक जाग रहा है । इस छात्रावास का सबसे मेधावी भिक्षुक यशभद्र । अंधेरे में ही वह बिस्तर को छोड़कर नीचे उतर आया तथा अंदाजे से समझ गया कि पास ही सोए दो सहपाठी श्रीगुप्त व सिद्धार्थ गहरी नींद में हैं । बहुत दिनों के अभ्यास के कारण अंधेरे में ही एक कोने से यशभद्र ने एक छोटे सन्दूक को खींचकर निकाला तथा धीरे से उसे खोला । संदूक के अंदर से एक शीतल हल्का हरा रोशनी निकल रहा है लेकिन वह रोशनी स्थिर नहीं है । उसका अपना स्पंदन है । इसके अलावा उसके अंदर का ताप इतना कम है कि संदूक को खोलते ही पूरे कक्ष के अंदर एक शीतलता फैल गया । कुछ देर बाद कक्ष के अंदर एक जोड़े पैरों के चलने की आवाज सुनाई देने लगा।
वह आवाज क्रमशः कक्ष से बाहर की ओर धीरे - धीरे खत्म होता गया तथा वह हल्का रोशनी भी अदृश्य हो गया । इसके साथ ही यशभद्र के चेहरे पर एक हंसी खेल उठी तथा वह चुपचाप वहीं बैठा रहा ।
हर रात इसी वक्त इसी तरह बैठकर वह किसी अनहोनी की प्रतीक्षा करता है । कुछ समय के बाद फिर से स्पष्ट रूप से चलने की आवाज़ सुनाई दिया इस बार मानो कोई बाहर से लौट रहा है । यशभद्र ने फिर से संदूक को खोल दिया तुरंत ही हवा के रूप में कुछ उस सन्दूक के अंदर चला गया । एक शीतल हवा का झोंका और वही हल्का हरा रोशनी एक बार जलकर धीरे - धीरे सन्दूक में मिल गया । पहले की तरह ही संदूक को बंद कर पीछे घूमते ही यशभद्र चौंक गया ।
दो दीपक हाथ में लेकर उसके दोनों तरह दो काला परछाई खड़े हैं । दोनों परछाई को पहचानने में उसे असुविधा नहीं हुई ।

सिद्धार्थ की आवाज़ सुनाई दिया,
" इतनी रात को क्या कर रहे थे भंते ? " ( भंते - भौद्ध धर्म में आदर सूचक शब्द )

" उस संदूक के अंदर क्या है ? "
अब श्रीगुप्त ने प्रश्न किया।

यशभद्र ने कुछ भी छुपाने और झूठ बोलने की कोशिश नहीं किया । वह समझ गया कि इन दोनों ने छुपकर सब कुछ देख लिया है और वह पकड़ा गया है । इतने दिनों बाद आखिर ऐसा हो ही गया ।

इस ठंडी की रात में बाहर चलते तेज ठंडी हवा के बावजूद मठाधीश को अपना कक्ष छोड़कर बाहर निकलना पड़ा है । लम्बे गली नुमा आंगन से वो बिना कुछ बोले चलते जा रहे हैं तथा उनके आगे पीछे दीपक हाथ में लेकर दो अंगरक्षक चल रहे हैं । इतनी रात को मठाधीश बाहर नहीं निकलते लेकिन कुछ देर पहले ही आचार्य सूर्यवज्र और स्वयं विहारपाल ने आकर निवेदन किया है कि एक बार के लिए वह पूर्व तरफ वाले छात्रावास में आए । वहाँ पर बहुत ही बड़ी घटना हुई है । नालंदा महाविहार के अध्यक्ष पद्मदेव ने इस ठंडी की रात में अपने शरीर में एक कंपन महसूस किया । उनके मन के कोने में कुछ दीपशिखा की तरह अस्थिर है ।

बौद्ध शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ ज्ञानपीठ इस महाविहार में पिछले कुछ दिनों से धारावाहिक घटनाएं हो रही है । जिसके कारण विहार की छवि को नुकसान हो रहा है । दिन में सब कुछ ठीक लेकिन अंधेरा होते ही इस विहार में मृत्यु दस्तक देता है । पिछले कुछ दिनों से पूर्व तरफ के उस छात्रावास में प्रति रात को एक छात्र का मृत शरीर मिल रहा है । मृत शरीर छात्र के आवास कक्ष में नहीं मिल रहा । बाहर विशाल जलाशय के पास या शौचालय या फिर छात्रावास के बाहर बड़े प्रार्थना कक्ष के सामने मृत शरीर मिल रहा है । हत्यारा मानो किसी तरह छात्रों को बहला - फुसलाकर अपने कक्ष से बाहर ले जाता है लेकिन यह कैसे संभव है । क्योंकि चार रक्षक इस छात्रावास के बाहर पूरी रात टहलते रहते हैं । इसके अलावा यह सभी मृत्यु कोई साधारण मृत्यु नहीं है , मानो किसी ने उनके शरीर से पूरे खून को चूसकर केवल हड्डी , मांस का शरीर फेंक दिया है । इससे भी ज्यादा भयानक बात यह है कि सभी शरीर को मानो किसी मन्त्र द्वारा अपने वश में कर लिया है । मृत छात्र का पूरा शरीर किसी पत्थर की तरह सख्त , नीला और बर्फ की तरह ठंडा मिलता । शायद मौत के अगले दिन ही मासूम भिक्षुक की लाश मिली लेकिन मौत के कुछ समय बाद ही शरीर की ऐसी अवस्था नहीं हो सकती । मानो उनके शरीर में किसी ने कई नागों का जहर डाल दिया है । बिना कारण इन अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं को कोई इस तरह क्यों हत्या करेगा ? और इसके अलावा विहार के अंदर किसी बाहरी का आना मना है । इसीलिए यह बात साफ है कि विहार के अंदर ही हत्यारा छुपा हुआ है या फिर छात्रावास के अंदर ही कोई इन सभी हत्याओं का कारण है । क्या छात्रों में ही कोई है ?
पिछले कुछ रातों से इन घटनाओं के कारण मठाधीश
पद्मदेव चैन से सो नहीं पाएं हैं । विहारपाल का भी वही अवस्था है । रात को सुरक्षा और बढ़ाया गया है लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा । प्रतिदिन सुबह ही विहारपाल से मृत्यु लीला का सन्देश मठाधीश के कानों में पहुंच रहा है ।
छात्रों के लिए यह छात्रावास कोई भयानक सपने जैसा हो गया है इसीलिए कई छात्र विहार को छोड़कर अपने घर लौटना चाहते हैं । परम् प्रतापी गुस्सैल राजा देवपाल के पास यह खबर अभी तक नहीं पहुंचा है अगर ऐसा हुआ तो फिर महाशर्वनाश उपस्थित होगा और राजा देवपाल विहार की ऐसी दुर्गति के लिए किसी को भी माफ नहीं करेंगे । मगध का गर्व नालंदा महाविहार के ऊपर किसकी बुरी नजर पड़ी है ?......

....क्रमशः....