Mrityu Murti - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मृत्यु मूर्ति - 3

वर्तमान समय , मैक्लोडगंज , हिमांचल प्रदेश

किसी चित्र की तरह सुंदर है यह छोटा शहर मैक्लोडगंज , जो धर्मशाला से कुछ ही ऊपर है ।
कॉलेज की तरफ से पर्यटन भ्रमण में धर्मशाला आया हूं। वहां से ही 2 दिन के लिए यहां पर घूमने चला आया । यहां रास्ते पर निकल कर चारों तरफ देखने से ऐसा लगता है कि यह शहर भारत के अंदर नहीं है। तिब्बत के धर्म गुरु स्वयं दलाई लामा का यह वास स्थान है । रास्ते के दोनों तरफ कई सारे तिब्बती रेस्टोरेंट , कई सारे तिब्बती प्रार्थना गृह व सभी जगह तिब्बती लोगों को देख कर ऐसा लग रहा है कि मैं तिब्बत में ही हूं। इसीलिए तिब्बत की राजधानी ल्हासा के अनुसार इसे मिनी ल्हासा भी कहते है। कल ही हम सब लौट जाएंगे। इस वक्त सभी होटल में आराम कर रहे हैं इसीलिए अकेले ही पैदल इस शहर को देखने निकल पड़ा। शाम का वक्त है। स्थानीय मार्केटभी खुलना शुरू हो गया है। घर के लिए यहां से कुछ लिया भी नहीं इसके अलावा यहां पर इतने सारे गिफ्ट शॉप देख कर मेरे एंटी क्यूरियो का शौक उफान मारने लगा। घूमने के बीच बीच में कई दुकानों के अंदर जाकर इधर - उधर देखता रहा। बहुत सारे सुंदर तिब्बती देव - देवी की छोटी मूर्तियां दुकानों के अंदर सजी हुई है। इसके अलावा प्रार्थना चक्र , जपयंत्र , थांका चित्र और तिब्बती बौद्ध तांत्रिक द्वारा व्यवहारिक कई प्रकार की वस्तुएं मेरी नजर में पड़ी लेकिन तिब्बती देव - देवी की सुन्दर मूर्तियां मुझे ज्यादा लुभा रही हैं। इतना डिटेल्ड और सुशोभित मूर्तियां जल्दी देखने को नहीं मिलती। जिन्होंने भी इन मूर्तियों को बनाया होगा उसकी हस्तकला देखने लायक है लेकिन कई सारी दुकानों में घूम दाम पूछ कर समझ आया कि इनमें से कुछ भी लेना मेरे बस का नहीं। सामान्य 4-5 इंच की मूर्तियों का दाम सुनकर ही जेब में दर्द होने लगता। यहां पर वस्तुओं का दाम कुछ ज्यादा ही है। एक छोटा सा क्रिस्टल का ब्रेसलेट खरीदने गया , दाम साढ़े चार सौ हालांकि वह ब्रेसलेट प्योर क्रिस्टल नहीं था। लूटना इसे ही कहते हैं। एक दुकान से दूसरे दुकान में घूम रहा हूं अचानक मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरा बहुत देर से पीछा कर रहा है लेकिन उसका अनुभूति अब हुआ। एक - एक दुकान से बाहर निकलते ही मुझे ऐसा लगता कि कोई मेरे पीछे चलते हुए आ रहा है तथा पीछे देखते ही वह छुप जाता। हालांकि यह टूरिस्ट सीजन नहीं है इसीलिए रास्ते पर ज्यादा लोग नहीं हैं। इसके अलावा मैं अकेला ही हूं। हाथ में एक महंगा घड़ी और जेब में मोबाइल है। जेब में कुछ पैसे भी हैं। अनजान जगह इसीलिए थोड़ा सुविधाजनक लगा। हालांकि यह मेरे मन का वहम भी हो सकता है लेकिन अगर सचमुच कोई मेरा पीछा कर रहा है तो मेरा होटल में लौट जाना जरूरी है। मार्केट के लगभग लास्ट में आ गया हूं,यहां से एक रास्ता ऊपर की ओर चला गया है। वहां से कल ही घूम कर आया हूं। बड़े-बड़े पाइन के पेड़ों के पीछे का वह जगह बहुत ही सुनसान है।
एक दुकान से बाहर निकलते ही अचानक एक आदमी न जाने किस कोने से मेरे सामने आ टपका। मैं चौंक गया तथा कुछ ही सेकंड में समझ गया कि इसी आदमी ने मेरा पीछा किया था लेकिन किस उद्देश्य से यह मुझे पता नहीं। तब तक शाम का हल्का अंधेरा चारों तरफ छा चुका था। पहाड़ों पर बहुत ही जल्दी शाम हो जाता है।
वह आदमी मुझसे एक हाथ दूर कंधे पर एक झोला व मैला windcheater पहने खड़ा है। स्पष्ट चेहरा नहीं दिख रहा है लेकिन समझा जा सकता था कि वह स्थानीय आदमी है।
मेरे कुछ पूछने से पहले ही उस आदमी ने एक अजीब आवाज में मुझसे पूछा,
" सबकुछ बहुत महंगा है न भाई साहब ?"

इस प्रश्न को सुनकर मैं चौंक गया।
मै बोला ,
" मतलब "

" नहीं कुछ नहीं , मैं बहुत देर से देख रहा हूं कि आप एक दुकान से दूसरी दुकान केवल घूम रहे हैं लेकिन कुछ खरीद नहीं रहे हैं। "

अब परेशान होकर मैंने प्रश्न किया ,
" तो उससे आपको क्या दिक्कत? "

" रुकिए मेरे पास कुछ है क्या आप खरीदना चाहोगे? कोई बात नहीं एक बार देख तो लीजिए।"

अब मैं और भी आश्चर्य हुआ। क्या केवल इसलिए इतनी देर से यह आदमी मेरा पीछा कर रहा था। आखिर वह चाहता क्या है?
दूसरी तरफ की दुकान से हल्का रोशनी उस आदमी के चेहरे पर पड़ रहा है। बहुत ही मासूम चेहरा , दोनों आँखे विचलित ,बहुत दिनों की ना बनाया हुआ दाढ़ी - मूंछ की रेखा , शरीर में दरिद्रता स्पष्ट है तथा मानो वह आदमी बहुत ही परेशानी में है।

मैं बोला ,
" क्या है जल्दी दिखाओ?"
उस आदमी के साथ खड़ा रहने में मुझे घुटन सा महसूस हो रहा था ।
उस आदमी ने अपने कंधे के झोले से कुछ बाहर निकाला तथा उसे मेरे सामने आगे बढ़ाया । लाल कपड़े से मुड़ा हुआ कुछ है। मैंने ध्यान दिया कि उस आदमी के आंख जिज्ञासु दृष्टि से मेरी ओर फैला हुआ है।

" क्या है यह ? "

अब उस आदमी ने लाल कपड़े को खोला। उसमें एक 4 - 5 इंच का मूर्ति दिखाई दिया। कुछ देर पहले ही दुकानों में मैं जिन मूर्तियों के दाम पूछ रहा था यह भी उसी तरह का है लेकिन उनसे बहुत ही ज्यादा सुंदर व प्रॉमिनेंट
है।
अब उस आदमी ने पूछा ,
" पसंद आया? आपको कुछ ऐसा ही वस्तु चाहिए था न ? "

इसका मतलब है कि मैंने दुकानों के अंदर क्या किया इस बारे में भी उस आदमी ने ध्यान दिया है? बहुत ही धुरंधर लगता है। जो भी हो मूर्ति को सुंदर ना बोलने का कोई वजह ही नहीं है।
उस मूर्ति की सुंदरता ने मुझे मोह लिया है। हालांकि मूर्ति के शरीर का हल्का सफेद परत बता रहा है कि मूर्ति की उम्र कई सौ साल तो अवश्य होगा। लेकिन मूर्ति का सभी कोना स्पष्ट है।

उस आदमी ने मेरे तरफ देखते हुए विनती के स्वर में बोला ,
" ले लीजिए न साहब , आपको जो कीमत अच्छा लगे आप दीजिएगा कोई जबरदस्ती नहीं । "

उस आदमी को देखकर मुझे थोड़ा कष्ट हुआ ।गरीब आदमी है और शायद पैसों की जरूरत है इसीलिए घर की कीमती चीज बेचकर कुछ पैसे पाना चाहता है। मैंने मूर्ति को हाथ में लिया,वह मूर्ति अच्छा खासा भारी था।

उस आदमी ने फिर बोला,
" पंचधातु का है साहब , यह पाल वंश के समय की मूर्ति है। इसे घर में रखिए आपका भला होगा। "

पाल वंश के समय का , वाह ! यह तो खजाना है। बौद्ध धर्म के देव - देवियों के बारे में मेरा ज्ञान नर्सरी के बच्चे जितना ही है। और ज्यादा समय व्यतीत ना करते हुए उस मूर्ति को ले लिया। इधर - उधर करने से कोई लाभ नहीं दुकानों में जो दाम बता रहे थे वह मेरे जेब से बाहर है । इसी वक्त एक आश्चर्य घटना घटी ।
मैं अपने पर्स से तीन ₹100 के नोट निकालकर उस आदमी के हाथों में देने वाला था कि अचानक मैंने देखा कि वह आदमी मेरे सामने से कुछ दूरी पर जाकर भाग गया। दौड़ते हुए मार्केट को पार कर सामने के बड़े रास्ते से ना जाने कहां गायब हो गया । मैं आश्चर्य से नोट हाथ में पकड़े खड़ा रहा।
आखिर ऐसा क्यों? इतना महंगा एक मूर्ति दिया लेकिन पैसा देते वक्त भाग क्यों गया ?
कुछ देर ऐसे ही खड़ा रहने के बाद मैंने इस बात को दिमाग से बाहर निकाल दिया। शायद कोई पागल था उसकी बातें ही पागलों जैसी थी। मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था। जो भी हो उसके पागलपन में मुझे एक जबरदस्त सामान फ्री में मिल गया। इस मूर्ति का वर्तमान बाजार कीमत बहुत ही ज्यादा है। मेरे बेडरूम में यह मूर्ति बहुत ही अच्छा सुशोभित होगा। यही सोचते हुए होटल की तरफ चल पड़ा।
होटल में लौटकर इस घटना के बारे में किसी को नहीं बताया। इतना महंगा एक मूर्ति अगर दोस्तों को इसकी खबर दे दी तो क्या पता कल सुबह उठते ही या मेरे बैग से गायब रहे।
रात में जब सभी खाने चले गए तब अकेले कमरे में बैठकर लाल कपड़े को खोल उस मूर्ति को अच्छे से देखा। एक देवी मूर्ति, दिखने में सुंदरता के साथ भयानक भी है। देवी पूरी तरह नग्न नहीं लेकिन अलंकार से सुशोभित , एक पैर जमीन पर और एक नृत्य मुद्रा में ऊपर उठाकर खड़ी है तथा पैर के नीचे एक बच्चे की तरह कुछ लेटा हुआ है। गले में एक मुंडमाला सुशोभित है । एक हाथ में कटोरी जैसा कुछ पकड़ा है उसमें से आग जल रही है । दूसरे हाथ में घंटी जैसा जो पकड़ा है उसे मैंने कुछ देर पहले ही दुकान में देखा था। इसे तिब्बती बौद्ध वज्र कहते हैं। उल्लेखनीय बात यह है की मूर्ति की तीन सिर है तथा तीनों के मुंह से दो बड़े दांत निकली हुई है। प्रत्येक के सिर पर एक विशिष्ट मुकुट है तथा उसमे नरमुंड बना हुआ है । मूर्ति को देखकर मन के अंदर भक्ति से ज्यादा डर का संचार होता है। जो भी हो मैं कौन सा इसे ले जाकर पूजा करूंगा? कमरे के एक कोने में पड़ा रहेगा।
अब उठना होगा खाने के बाद बहुत सारा काम है । अभी बैगपैकिंग करना है क्योंकि कल लखनऊ लौटना होगा।...

क्रमशः.....