Vah mana kar denge books and stories free download online pdf in Hindi

वह मना कर देंगे  

रात काफ़ी बीत चुकी थी, घर में सभी गहरी नींद में सो रहे थे लेकिन सुप्रिया की आँखों में नींद कहाँ थी। वह तो सबके सोने का इंतज़ार कर रही थी। सबके सोते ही मौके का फायदा उठाकर उसने जल्दी से अपना छोटा-सा बैग तैयार कर लिया। आज उसने अपने प्यार को पाने के लिए अपने परिवार के साथ विश्वासघात करने का पक्का मन बना लिया था। यूँ तो सुप्रिया बहुत अच्छी लड़की थी। ऐसा करते हुए वह बहुत दुखी भी थी किंतु अपने प्यार को पाने की चाहत में मजबूर थी। वह अपने मन से हार गई थी इसलिए अपने कदमों को पीछे नहीं खींच पा रही थी।


  
उसने स्वतः ही यह मान लिया था कि लव मैरिज के लिए पापा कभी भी तैयार नहीं होंगे। वह तो कितने स्ट्रिक्ट हैं। लड़कों से दोस्ती करना भी उन्हें कहाँ पसंद है। वह हमेशा कहते हैं लड़कों के साथ ज़्यादा घनिष्ठता ठीक नहीं है, फिर लव मैरिज ? नहीं-नहीं पापा कभी हाँ नहीं कहेंगे। 



उसका निर्णय अटल था, उसे हर हाल में अजय के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत करनी थी। बुझे मन के साथ वह घर से बाहर निकल गई जहाँ अजय पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। उनका दोस्त राहुल बाइक लेकर खड़ा था। सुप्रिया जल्दी से बाइक पर बैठ गई और राहुल ने बाइक स्टेशन की तरफ़ दौड़ा दी।  

उन्हें स्टेशन पर छोड़कर राहुल ने कहा, "ऑल द बेस्ट" और लौट गया। 



सुप्रिया घर छोड़ कर आ तो गई किंतु वह ख़ुश नहीं थी। उसका मन उसे धिक्कार रहा था, उसे ग्लानि हो रही थी। एक मन प्यार के पीछे पागल था तो मन की दूसरी आवाज़ कह रही थी, "यह क्या कर रही है सुप्रिया? जिसने जन्म दिया, पाला-पोसा, इतना सुंदर सफल जीवन दिया, उन्हें ही धोखा देकर जा रही है, यह ग़लत है सुप्रिया। अभी भी समय है, सोच ले, क्या कभी भी तू ख़ुद यह भुला पाएगी ? स्वयं को माफ़ कर पाएगी? जीवन में कभी भी पापा-मम्मी को अपना चेहरा दिखा पाएगी? उनसे नज़रें मिलाकर उन्हें पापा मम्मी कह कर पुकार पाएगी?"  



इन ख़्यालों में घिरी सुप्रिया ने अजय से कहा, "अजय मुझे लगता है, हमने बहुत ग़लत निर्णय लिया है, अभी भी देर नहीं हुई है। अजय हमें वापस घर चले जाना चाहिए।"  



"कैसी बात कर रही हो सुप्रिया? कितनी मुश्किल से यह मौका मिला है। देखो घर जाकर फिर तुम पछताओगी, हो सकता है हमारे इस रिश्ते के लिए कोई तैयार ना हो और हमें हमेशा के लिए जुदाई सहना पड़े।"  



"नहीं अजय मैं तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती।" 



"तो फिर सुप्रिया ये समय यह सब बातें सोचने का नहीं है। एक बार हम शादी कर लेंगे फिर दोनों के पापा-मम्मी मान ही जाएंगे।"  



सुप्रिया का मन नहीं मान रहा था फिर भी वह अजय का हाथ पकड़ कर उसका साथ दे रही थी। तभी उसे प्लेट फार्म पर कुछ गरीब लोग दिखाई दिए। जिनमें एक महिला थी, उसके आसपास सभी गहरी नींद में सो रहे थे। वह अकेली बैठकर अपने छोटे से बच्चे को आंचल में छुपा कर दूध पिला रही थी। अपनी नींद का त्याग करके वह अपने बच्चे के लिए जाग रही थी। कुछ क़दम आगे चलने पर उसने देखा दो-ढ़ाई साल का एक बच्चा बहुत रो रहा था । उसके माता-पिता उसे चुप कराने के लिए कितने जतन कर रहे थे । यह दृश्य देखकर उसे अपना बचपन याद आ गया। जब से उसने होश संभाला और जितना भी उसे याद था, वह सारे मनभावन दृश्य उसकी आँखों के सामने दृष्टिगोचर होने लगे। वह उन्हीं खूबसूरत लम्हों में कहीं खो गई। उसके क़दम मानो दस-दस किलो के हो रहे थे, जो आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं थे।  



अजय सुप्रिया का हाथ पकड़े हुए था। तभी अचानक अजय को ऐसा लगा कि हाथों की पकड़ ढीली होती जा रही है। सुप्रिया का हाथ उसके हाथों से छूट रहा है। उसने सुप्रिया की तरफ़ देखा तो उसकी आँखों में उसे आँसू दिखाई दिए। अजय भी रुक गया और कहा, "चलो ना सुप्रिया।" 



"नहीं अजय इस तरह ग़लत तरीके से मैं ना चल पाऊंगी। यदि हम अपने माता-पिता को अपने परिवार को इस तरह धोखा दे सकते हैं तो आख़िर हम जीवन भर एक दूसरे का साथ कैसे निभा पाएंगे । मैं इस तरह घर छोड़ने के अपने निर्णय पर शर्मिंदा हूँ। अजय मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ लेकिन इस प्यार के लिए अपने मम्मी-पापा को शर्मिंदा नहीं कर सकती। हमें अपने माता-पिता को मनाना होगा। हमारे प्यार के आगे उन्हें झुकना होगा। हमें धैर्य रखना होगा अजय, इंतज़ार करना होगा। क्या तुम इस राह पर मेरा साथ निभाओगे?"  



अजय को अपनी ग़लती का एहसास हो रहा था। उसने मजबूती से सुप्रिया का हाथ पकड़ते हुए कहा, "सुप्रिया जब ग़लत रास्ते पर तुम्हारे साथ था तो सही रास्ते पर साथ कैसे छोड़ सकता हूँ।" 



"जल्दी करो अजय घर पर कोई जागे उससे पहले हमें घर पहुँचना है ताकि किसी को कुछ पता ना चल सके।"  



"तुम ठीक कह रही हो सुप्रिया, हमारे क़दम डगमगा गए थे। जो बात हमें सोचना भी नहीं चाहिए थी, वह करने हम निकल पड़े थे। सही समय पर हमारी आँखें खुल गईं। तुमने सही फ़ैसला लिया है सुप्रिया, थैंक यू! चलो वापस चलते हैं, अपनी गलती सुधारते हैं।"  



राहुल को फ़ोन करके अजय ने कहा, "राहुल मेरे यार जल्दी वापस आ जा।"  



"क्या हुआ अजय?" 



"तू जल्दी आजा यार, सब बातें बाद में कर लेंगे।"  



राहुल जहाँ था, वहीं से तुरंत स्टेशन की तरफ़ पलट गया। सुप्रिया और अजय उसे स्टेशन के बाहर ही मिल गए।  


राहुल ने पूछा, "क्या हो गया तुम दोनों को?"  



अजय ने कहा, "राहुल हम दोनों ग़लत तरह से जीवन की शुरुआत करने जा रहे थे । जिस इमारत की नींव ही ग़लत रख दी जाए वह इमारत कभी अच्छी और मज़बूत नहीं बन सकती।"  



राहुल ने कहा, "निकल जाओ यार, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा।"  



"नहीं राहुल, यह हमारा आखिरी फ़ैसला है।"  



राहुल ने कहा, "वेरी गुड यार, सच पूछो तो तुम्हारे इस निर्णय में दोनों परिवारों की भलाई छुपी है। चलो जल्दी बैठो, मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।"  



रास्ते में सुप्रिया के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, उसे डर लग रहा था कि कहीं घर में सब जाग तो नहीं गए होंगे ? फिर ख़ुद ही स्वयं को समझा रही थी कि यदि जाग भी गए होंगे तो माफ़ी माँग लूंगी। 


  
राहुल ने सुप्रिया को उसके घर छोड़ने के बाद अजय से पूछा, "अजय तू घर पर क्या कहेगा ?"


  
"मैं कह दूँगा कि राहुल की तबीयत ख़राब होने के कारण हमने घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया।" 



सुप्रिया धीरे-धीरे क़दम रखते हुए वापस अपने घर में प्रवेश कर रही थी। सुप्रिया की मम्मी प्रिया जाग रही थीं। तभी उन्हें मुख्य दरवाज़े पर आहट-सी महसूस हुई। वह उठीं और दरवाज़े की तरफ़ बढ़ ही रही थीं कि वह चौंक गईं और उनके पांव वहीं रुक गए। वह छुपकर देखने लगीं, उन्हें उनकी बेटी इतनी रात को बैग के साथ अंदर आते हुए दिखाई दी। उनका माथा ठनका, माँ है वह, मामला समझने में उन्हें वक़्त नहीं लगा। उन्हें सब कुछ साफ-साफ तो दिखाई दे रहा था।



सुप्रिया दरवाज़ा बंद करके जल्दी से अपने कमरे में चली गई। उसकी मम्मी ने चुपके से दरवाज़े की ओट से झांक कर देखा सुप्रिया जल्दी-जल्दी अपना बैग खाली कर रही थी। जल्दी से सुप्रिया अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई। वह लेट तो गई किंतु उसकी आँखों में नींद कहाँ थी लेकिन हाँ सुकून ज़रूर था, पश्चाताप भी था। वह यह सोचकर ख़ुश थी कि किसी ने भी उसे नहीं देखा । यदि कोई उसे देख लेता तो? यह सोच कर ही उसकी रूह काँप रही थी। वह सोच रही थी कि वह अपने पापा-मम्मी को कितना बड़ा, कभी ना ख़त्म होने वाला दुख देने वाली थी। वह एक ऐसी बेटी बन जाती जिसने अपने पापा-मम्मी का सर समाज में नीचे झुका दिया। ऐसा सोचते हुए उसने लेटे-लेटे ही भगवान के हाथ जोड़े। करवटें बदलते हुए कब उसकी नींद लगी उसे पता ही नहीं चला।  



सुप्रिया की मम्मी ने जब सब कुछ देख लिया कि सुप्रिया अब बिस्तर पर जाकर लेट गई है, तब वह भी अपने कमरे में चली गईं। नींद तो उनकी आँखों से कोसों दूर थी, करवटें बदलते-बदलते सुबह हो गई। वह सोच रही थीं कि आज सुप्रिया ने परिवार की इज़्ज़त को दाग नहीं लगने दिया। स्वयं ही ग़लती करके स्वयं ही उसे सुधार भी लिया। अच्छा है उसे पता नहीं चला कि मैं जाग गई हूँ और मैंने सब कुछ देख लिया है। उसके सही रास्ते पर स्वयं ही चलने की इस पहल का इनाम तो उसे अवश्य ही मिलना चाहिए। वह यह सोच कर ख़ुश है कि उसे किसी ने नहीं देखा तो यही सही। अच्छा हुआ उसके पापा की नींद नहीं खुली। मैं भी इस राज़ को राज़ ही रहने दूंगी कभी इसका ज़िक्र अपनी ज़ुबान पर नहीं लाऊंगी। सुबह सुप्रिया गहरी नींद में सो रही थी सूरज सर पर चढ़ गया था। ग्यारह बज रहे थे किंतु सारी रात जागने के कारण वह अभी तक सो रही थी। 



तभी उसकी मम्मी उसके पास गईं। प्यार से उसके सर पर हाथ फिराते हुए उन्होंने उसे आवाज़ लगाई, "सुप्रिया बेटा कितना सोओगी सुबह के ग्यारह बज रहे हैं रात भर रतजगा किया है क्या? चलो उठो।"  



अनजान बनते हुए सुप्रिया ने कहा, "अरे मम्मा नींद लग गई थी लेकिन अब उठ गई हूँ मेरी सबसे प्यारी मम्मा।" 



इतना कहते हुए उसने प्रिया की गोदी में अपना सर रख लिया और ऊपर नज़रें उठाकर अपनी मम्मी की तरफ़ देखा। उसे ऐसा लग रहा था मानो माँ की आँखों से प्यार की बारिश हो रही है, जिसकी बौछार उसके तन-मन को भिगो रही है। 



उसने प्रिया को चुंबन करते हुए कहा, "मम्मी आई लव यू, आप कितनी प्यारी हो।"  



सुप्रिया के यह शब्द प्रिया के कानों में अमृत रस घोल रहे थे। तभी प्रिया ने कहा, "सुप्रिया कल रात को...,"  इतना सुनते ही सुप्रिया का दिल धक से हो गया। "तुम्हारे पापा कह रहे थे कि सुप्रिया से पूछ लो कोई है क्या उसकी लाइफ में, वरना फिर मैं लड़का ढूँढना शुरू करता हूँ।" 



"क्या मम्मी इतनी भी क्या जल्दी है पापा को?" 



"अच्छा मतलब कोई नहीं है इसीलिए तुम्हें जल्दी भी नहीं है। ठीक है मैं कह दूंगी तुम्हारे पापा से कि कोई नहीं है उसकी लाइफ में।"  



"अरे है ना मम्मी"


  
"हाँ अब आई ना सच्ची बात मुँह पर, बताओ कौन है? मैं पापा से बात करूंगी।"  



सुप्रिया ने अपनी मम्मी को अजय और उसके परिवार के बारे में सब कुछ बता दिया और पूछा, "पापा मान जाएंगे मम्मा? वह तो कितने स्ट्रिक्ट हैं।"  



"सुप्रिया कोई भी पिता कभी इतना स्ट्रिक्ट नहीं होता, जितना बच्चे समझ लेते हैं। अपने बच्चे की सही बात भी ना सुने और नाराज हो जाएँ ऐसा नहीं होता बेटा तुम्हारे पापा भी ऐसे नहीं हैं। हाँ तुम्हारी पसंद अच्छी और सही ज़रूर होना चाहिए क्योंकि यह तुम्हारे पूरे भविष्य का सवाल है बेटा।"  

दूसरे दिन सुप्रिया के पापा-मम्मी रात को उसके कमरे में आए। उसके पापा ने कहा, "सुप्रिया बेटा मैंने सुना है तुमने अपने लिए किसी को पसंद कर लिया है, कौन है वह, मुझे भी बताओ ?"


  
"पापा वह...," इतना कहकर सुप्रिया चुप हो गई। 



"बेटा डरने की कोई बात नहीं, आराम से सब कुछ बताओ ?" 



"पापा उसका नाम अजय है, आई टी कंपनी में काम करता है। उसके पापा बैंक में मैनेजर हैं और माँ स्कूल में टीचर हैं।" 



"फिर तो मिलना पड़ेगा बेटा, कब मिलवाओगी?” 



"पापा आप नाराज़ तो नहीं हैं ना?” 



"नाराज़? नाराज़ क्यों होऊंगा बेटा। दुःख तो तब होता बेटा जब तुम कोई ग़लत कदम उठातीं। तुमने तो सोच समझ कर अपना जीवन साथी पसंद किया है। यह तो ख़ुशी की बात है। उसके पापा ने ख़ुशी से यह रिश्ता स्वीकार कर लिया।"



आज सुप्रिया को लग रहा था जो बात इतनी आसानी से हो सकती थी उसे वह नासमझी में कितना पेचीदा बना रही थी और कितने ग़लत रास्ते को चुनने के लिए तैयार थी, यह सोच कर कि पापा स्ट्रिक्ट हैं, वह मना कर देंगे। 



रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)