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साँसें

14 साल के युवान को खेलकूद में बड़ी रूचि थी। उसके स्कूल में खो-खो, कबड्डी, हॉकी जैसे खेलों को उसके सर हमेशा प्रोत्साहन दिया करते थे। एक दिन उन्होंने बच्चों से कहा, "बच्चों हमारे देश के अधिकतर बच्चे और नौजवान क्रिकेट के पीछे भाग रहे हैं। इस कारण दूसरे खेलों की तरफ़ सभी का रुझान कम हो रहा है। हमें हमारे देश के इन खेलों को भी आगे लाना होगा। इन्हें भी क्रिकेट जितना ही लोकप्रिय बनाना होगा।"

युवान ने सर की बातों को ध्यान से सुन कर उसे अपने मन में बिठा लिया। वैसे भी उसे कबड्डी खेलना बहुत पसंद था। उसने सर से कहा, "सर मैं कबड्डी की टीम में आना चाहता हूँ। मुझे कबड्डी खेलना बहुत पसंद है।"

सर ने तभी उसका चयन कर लिया। युवान ने घर जाकर अपने पापा से कहा, "पापा आप हमेशा क्रिकेट में ही दिलचस्पी क्यों रखते हो? हॉकी, कबड्डी भी तो हैं वह कभी क्यों नहीं देखते?"

"युवान बेटा तुम भी क्रिकेट खेला करो। क्रिकेट देखने में कितना आनंद आता है। सभी के घरों में टीवी पर यही चलता रहता है। सबसे अधिक लोकप्रिय है यह खेल।"

"नहीं पापा मुझे कबड्डी पसंद है। कल हमारे स्कूल में कबड्डी के लिए टीम का चयन हुआ। मैं भी उसमें चयनित हुआ हूँ।"

"नहीं बेटा यह ग़लती तो तुम भूल कर भी मत करना। इसमें भविष्य नहीं बनने वाला। पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेट खेलो। उसमें यदि भाग्य ने साथ दिया और तुमने मेहनत करके सफलता प्राप्त की तब तो दौलत भी है, शोहरत भी है।"

"नहीं पापा मुझे क्रिकेट में बिल्कुल रुचि नहीं है। मैं तो कबड्डी ही खेलूँगा। हमारे सर कह रहे थे, कबड्डी हमारे देश का खेल है। हमें उसे प्रोत्साहन देकर आगे लाना चाहिए।"

रमेश का मन नहीं मान रहा था। वह सोच रहे थे, कबड्डी खेल कर क्या करेगा? उन्होंने तो उसे क्रिकेटर बनाने का सपना संजो कर रखा था।

रविवार के दिन सुबह-सुबह रमेश ने युवान को उठाया और कहा, "चलो युवान तैयार हो जाओ, आज तुम्हें क्रिकेट की कोचिंग में डाल देते हैं।"

"नहीं पापा, मुझे नहीं आना मुझे क्रिकेट में रुचि नहीं है।"

रमेश ने नाराज़ी दिखाते हुए कहा, " क्या करोगे कबड्डी खेल कर? जो बोल रहा हूँ, सुन लो।"

उसी वक़्त युवान की मम्मी मानसी ने कहा, "रमेश तुम यह क्या कर रहे हो? इस तरह ज़ोर ज़बरदस्ती करने से क्या होगा। बच्चे की रुचि के खिलाफ़ जाकर तुम उसे क्रिकेट खेलने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। रुचि के बिना वह कभी अच्छी तरह मन लगाकर नहीं खेलेगा।"

"ग़लत सोच रही हो मानसी, खेलेगा तो रुचि अपने आप आ जाएगी।"

"नहीं रमेश हमारी इच्छाओं का बोझ, बच्चे पर लादना ठीक नहीं है।"

मानसी की बातें सुनकर युवान ख़ुश होकर उससे लिपट गया और बोला, "मम्मी मुझे नहीं सीखना है क्रिकेट, मुझे कबड्डी सीखना है।"

"ठीक है बेटा तुम्हारी जो इच्छा हो वो ही करो।"

"देखना मम्मी मैं बहुत अच्छी कबड्डी खेल कर दिखाऊँगा। मैं चाहता हूँ कि क्रिकेट की तरह घर-घर में लोग अपने टीवी पर कबड्डी देखें। मैदान में भीड़ हो, पूरा मैदान लोगों से खचाखच भरा हो।"

युवान के मुँह से ऐसी बातें सुनकर मानसी मुस्कुरा दी लेकिन रमेश ने मुँह बनाकर वहाँ से जाना ही ठीक समझा।

स्कूल में जोर-शोर से कबड्डी की प्रैक्टिस शुरू हो गई। हर रविवार को भी दो-तीन घंटे के लिए बच्चों को स्कूल बुलाकर प्रैक्टिस करवाई जाने लगी। सुबह-सुबह युवान को कबड्डी के लिए छोड़ने जाने में रमेश बहुत नाक मुँह सिकोड़ते थे। इसलिए मानसी ने उसे छोड़ना शुरू कर दिया। वह अपने बच्चे के निर्णय से ख़ुश थी।

धीरे-धीरे 2 वर्ष गुजर गए। अब स्कूल में तैयार की गई कबड्डी की दोनों टीम में से बच्चों का चयन करके एक मज़बूत टीम तैयार की गई। अब यह टीम कबड्डी की इंटर स्कूल स्पर्धा में जाने के लिए तैयार थी। युवान का चयन तो पक्का ही था।

संभागीय कबड्डी की स्पर्धा में दस टीम आई थीं। कुछ लोग कबड्डी को लोकप्रिय बनाना चाहते हैं, यह उसी का अंज़ाम था कि अलग-अलग स्कूलों से दस टीमें तैयार होकर आई थीं।

कबड्डी का टूर्नामेंट शुरू हुआ, मैदान में कुछ गिने-चुने लोग ही थे। उनमें भी बच्चों के माता-पिता, भाई-बहन ही थे। युवान के पापा यह मैच देखने भी नहीं आए। लेकिन उसकी मम्मी और बहन रुहानी उसका हौसला बढ़ाने आए। रमेश की अनुपस्थिति से युवान दुःखी हो गया। रुहानी अपने भाई को बहुत सपोर्ट करती थी। घर में रमेश के सामने भी अक्सर युवान के खेल की तारीफ़ किया करती थी।

कबड्डी का पहला मैच शुरू हुआ जिसमें युवान की टीम जीत गई। धीरे-धीरे उनके मैच होते चले गए। यह टूर्नामेंट एक सप्ताह तक चलने वाला था। रुहानी हर दिन के खेल का हाल रात को अपने पापा को सुनाती थी। वह युवान की तारीफ़ करते ना थकती। इस बीच युवान की टीम केवल एक ही मैच हारी थी। जिस टीम से वह मैच हारी थी, वह बहुत ही तगड़ी थी। अब फाइनल मैच में युवान की टीम के विरुद्ध वो ही टीम जीत कर आई थी। उनका मुकाबला फिर उसी तगड़ी टीम के साथ था।

रुहानी बहुत ख़ुश थी, उसने शाम को अपने पापा से कहा, " पापा कल फाइनल मैच है, आप भी चलना। युवान आपको देखकर बहुत ख़ुश हो जाएगा। उसका जोश और हौसला चार गुना बढ़ जाएगा।"

"रुहानी बेटा ऑफिस से निकल पाना मुश्किल है। तुम और मानसी चले जाना।"

रुहानी उदास हो गई, तब मानसी ने कहा, " रमेश आप यह जानबूझकर, कर रहे हो ना? क्या एक दिन अपने बेटे की ख़ुशी के लिए छुट्टी नहीं ले सकते?"

रमेश ने कोई जवाब नहीं दिया। दूसरे दिन सुबह फाइनल मैच था। युवान और उसके साथी खिलाड़ी अपनी हार का बदला लेने के लिए तैयार थे। विरोधी टीम के हौसले भी बुलंदी पर थे।

रात को युवान अपने बिस्तर पर सोने गया और लेटते ही उसकी नींद लग गई। उसका मस्तिष्क कबड्डी के मैदान पर ही था। उसने रात में एक सपना देखा। सपने में उसने देखा मैदान खचाखच लोगों से भरा है। मैदान में आज उसकी मम्मी और बहन के अतिरिक्त उसके पापा भी उपस्थित हैं। हर टीवी चैनल पर कबड्डी का सीधा प्रसारण किया जा रहा है। लोग क्रिकेट जितनी ही दिलचस्पी लेकर कबड्डी देख रहे हैं। युवान बहुत ख़ुश है क्योंकि कबड्डी के खिलाड़ी भी क्रिकेट के खिलाड़ियों की तरह लोकप्रिय हो रहे हैं। उनके भी इंटरव्यू लिए जा रहे हैं। सपने में खुश होता हुआ युवान नींद से जाग गया। समय देखा तो ख़ुद ही बोल पड़ा, ओह यह तो सपना था। काश यह सपना साकार हो जाए। सुबह के पाँच बज रहे थे, वह सोच रहा था सुबह का देखा यह सपना क्या कभी सच हो पाएगा।

सुबह आठ बजे सभी बच्चों को मैदान पर पहुँचना था। मानसी युवान को छोड़कर वापस आई। उसने कहा, "रुहानी जल्दी तैयार हो जाओ, नौ बजे से मैच शुरू हो जाएगा, हमें समय पर पहुँचना है।"

"ठीक है मम्मी, मैं अभी तैयार हो जाती हूँ।"

अपने बच्चे की मेहनत और लगन देखकर रमेश का दिल पिघल चुका था। इतने व्यस्त रहने वाले रमेश ने आज ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी। मानसी और रुहानी तैयार होकर बाहर निकल ही रहे थे कि पीछे से उन्हें रमेश की आवाज़ आई, "रुहानी रुको बेटा, आज मैं भी युवान का मैच देखने आऊँगा।"

रुहानी और मानसी की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। रुहानी ने दौड़ कर अपने पापा को चूम लिया। आज सुबह का यह उनके लिए बहुत ही प्यारा तोहफ़ा था।

आज मैदान में जब वह तीनों पहुँचे, युवान की नज़रें अपने पापा को देखकर दंग रह गईं। उसकी ख़ुशी दुगनी हो गई, खेलने का जोश चार गुना बढ़ गया। वह सोचने लगा आज तो मैं पापा को यह दिखा कर ही रहूँगा कि कबड्डी का खेल भी क्रिकेट जीतना ही रोमांचक होता है। इसमें भी हर लम्हा दर्शक मैच के पल-पल से जुड़ा रहता है। कोई नाखून चबाता है, कोई बेचैनी में भगवान के हाथ जोड़कर अपनी टीम के लिए दुआ करता है।

मैच शुरू हो गया, आज रोज़ की तुलना में कुछ दर्शक अवश्य ही मैदान पर थे किंतु युवान के सपने की तरह हजारों दर्शक नहीं थे। खेल बहुत ही रोचक मोड़ से गुज़र रहा था। दोनों टीम के बच्चे अपनी पूरी शक्ति लगाकर बहुत ही उम्दा प्रदर्शन कर रहे थे। जितने भी लोग बैठे थे, सब खेल का भरपूर आनंद ले रहे थे।

रमेश ने मानसी से कहा, "मानसी यह मैच देखकर तो क्रिकेट जितना ही मज़ा आ रहा है। हर खिलाड़ी जब दूसरी टीम के घर में घुसता है, कबड्डी-कबड्डी कहता हुआ साँसें रोककर मुकाबला करता है, तो देखने वाले की तो साँसें ही अटक जाती हैं। साँसें रोककर अपने आप को बचाना और इतने सारे खिलाड़ियों के चंगुल से छूटकर अपने घर वापस लौट पाना, ओफ्फ़! अपने आप में यह खेल सच में अनोखा है। रोमांच से भरपूर इस खेल को देखते समय दिल धड़कनें लगता है कि अब क्या होगा।"

दोनों टीमें लगभग बार-बार बराबरी पर चल रही थीं। कभी कोई आगे, तो कभी कोई, सारे खिलाड़ी दिखा रहे थे कि वह किसी से कम नहीं। इसी बीच मानसी को एक चौंकाने वाली ख़बर मिली।

उसकी एक सहेली का फ़ोन आया, "मानसी, तेरा बेटा तो कितनी अच्छी कबड्डी खेलता है।"

"अरे विजया तुझे कैसे पता? तू कहाँ बैठी है?"

"मैं घर पर हूँ।"

"यह क्या बोल रही है? घर पर?"

"हाँ मानसी युवान के मैच का सीधा प्रसारण टीवी पर आ रहा है।"

"क्या बात कर रही है। तू मज़ाक कर रही है ना?"

"नहीं मानसी मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ। हमारी लोकल चैनल पर आ रहा है। बच्चों का जोश बढ़ाने और कबड्डी को प्रोत्साहन देने के लिए शायद यह क़दम उठाया गया है।"

"धन्यवाद विजया, इतनी अच्छी ख़बर सुनाने के लिए, चल रखती हूँ।"

"लग रहा है कि युवान की टीम ही यह मैच जीतेगी।"

"पता नहीं विजया दोनों ही टीमें टक्कर की हैं, कुछ भी हो सकता है, मैं बाद में बात करती हूँ बाय!"

"बाय-बाय"

मानसी ने रमेश को बताया तो वह मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। उन्हें कोई अचरज नहीं हुआ इतनी बड़ी ख़बर सुनकर। मानसी समझ गई कि यह काम मेरे कलेक्टर साहब का ही है। चलो देर आए दुरुस्त आए। वह भी रमेश की तरफ़ देख कर मुस्कुरा दी और कहा, "थैंक यू रमेश!"

जीत कभी इस पलड़े में जाती हुई दिखाई देती कभी उस पलड़े में। कौन जीतेगा? सब अपनी-अपनी टीम को प्रोत्साहित कर रहे थे। सबके दिल धड़क रहे थे। रमेश भी बेचैन था। भाग्य ने युवान की टीम का साथ दिया। उनकी टीम आख़िरी समय में बाजी मार ले गई और इसका पूरा श्रेय युवान को जाता है क्योंकि उसने अंतिम समय में विरोधी टीम के घर में घुस कर एक साथ उनके चार खिलाड़ियों को आउट कर दिया। इस तरह उनकी टीम जीत गई।

सुंदर-सी ट्रॉफी युवान के स्कूल के लिए उन्हें मिल गई। एक टीम ख़ुश तो दूसरी दुःखी थी लेकिन उनका प्रदर्शन भी लाजवाब था। प्रिंसिपल और टीचर्स बहुत ख़ुश थे। युवान जब मैदान से बाहर आया तो सबसे पहले दौड़ कर अपने पापा के पास गया।

रमेश ने उसे गले से लगा कर कहा, " मुझे तुम पर गर्व है बेटा। आई एम प्राउड ऑफ यू माय सन।"

युवान ने कहा, "लव यू पापा।"

रमेश ने कहा, "युवान तुम जैसे कुछ बच्चे और टीचर्स यदि कबड्डी को प्रोत्साहन देंगे तो सच में एक ना एक दिन कबड्डी भी क्रिकेट जितनी ही लोकप्रिय हो जाएगी।”

युवान को अपने पापा के मुँह से बोले हुए यह शब्द आशीर्वाद जैसे लग रहे थे। वह सोच रहा था कि क्या हुआ जो आज उसका सपना साकार नहीं हुआ लेकिन उम्मीद, मेहनत, लगन और विश्वास यदि हमारे साथ है तो हमारा सपना एक ना एक दिन ज़रूर साकार होगा।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक