Kartvya - 15 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

कर्तव्य - 15 - अंतिम भाग

कर्तव्य (15)

देखते ही बच्चे ने आवाज़ दी “दादी,मम्मी जल्दी से आओ।” भाभीजी जी ने दौड़कर देखा तो वह निढाल होकर गिर गये। उन्हें नीचे बिस्तर लगा कर लिटाया, डाक्टर को बुलाया; “माफ़ कीजिएगा इनमें अब कुछ नहीं ।” कहकर डाक्टर साहब चले गये । डाक्टर के अनुसार उन्हें कोई ग़म था जिससे उन्हें हार्ट अटैक हुआ था ।

उनके चले जाने पर पता लगा कि इतने सालों से भैया सब से छिपाकर बिना बताए, बाहर जाकर जो काम करते थे वह किशनलाल के आदमियों के साथ अवैध काम करते थे ।उसी कारण पुलिस की गिरफ़्त में कई बार आ जाते । उन लोगों से पुलिस से छूटने के लिए कई बार क़र्ज़ ले लिया, जिसे मंझले भैया चुका नहीं पाये।

उन लोगों की तरफ़ से उन्हें धमकियाँ मिल रही थी ।
अब वह चिंतित थे कि सभी को पता लग जाएगा । उनके जाने के बाद ही सब को पता लगा,अपने सामने किसी को भी परिवार में जानकारी नहीं होने दी।सबके चहेते मंझले भैया सब कुछ छोड़ कर ऐसी जगह चले गये जहॉं से कभी आना तो दूर,कभी कोई संदेश भी नहीं आता ।

यह ख़बर तेज़ी से आसपास के लोगों तक पहुँच गई,
किसी ने मंझले भैया के बेटों को ख़बर दी ; वह सब वहाँ पर आ गये ।

अपूर्व भैया दीदी के यहाँ बच्चों के साथ बैठे हुए थे तभी वहाँ पर वह समाचार मिला,सुनकर अपूर्व भैया अचम्भित होकर अचानक गिर कर बेहोश हो गए ।

उनको होश आने पर उन्हें मंझले भैया के घर ले ज़ाया गया । वह उदास मन से बहुत रोये,वहीं उनके पास ही जाकर बैठ गए । सभी बच्चों को ,रिश्तेदारों को इकट्ठा होने में पूरी रात निकल गई। अपूर्व भैया वहीं मंझले भैया के पास बैठ रोते रहे,एक मिनट को भी अलग नहीं गये ।

बचपन से ही सब साथ रहे, कभी-कभी गलती होने ,न होने पर भी मंझले भैया,अपूर्व भैया को बहुत डॉट देते लेकिन कभी उन्होंने बुरा नहीं माना ; न ही कभी नाराज़ हुए, पिताजी से शिकायत की । अपूर्व भैया सभी बहिनों-भाइयों को बहुत प्यार करते ।

मंझले भैया डाँटने के बाद भी उनका पूरा ध्यान रखते ।
स्वयं खाना खाने बैठते तो अपूर्व भैया से कहते “अपूर्व तुमने खाना खाया या नहीं, नहीं खाया तो आओ खा लो।
दोनों में आंतरिक प्यार था,भैया कम ही बोलते लेकिन दिल से एक-दूसरे को बहुत चाहते थे ।

रात भर बिना जगह बदले एक ही जगह बैठे रहे ।
जैसे ही उन्हें ले जाने की तैयारी होने लगी अपूर्व भैया फिर से बेहोश होकर गिर गये। डाक्टर को बुलाया तो पता लगा सदमे और कमजोरी की वजह से इन्हें दौरा पड़ा है इन्हें दवाई देकर सुला दीजिए ।

होश में आने के बाद उन्हें दवाई दी गई,फिर लिटाकर सोने के लिए कहा, वह फिर उठकर बैठ गये और रोने लगे । उन्हें देख कर सभी को रोना आ रहा था । “मॉं गंगा के भक्त होने के कारण भैया की बहुत अच्छी मौत हुई,कोई कष्ट नहीं हुआ “ ऐसा सब का कहना था ।

मंझले भैया के सारे काम होते हुए देते रहे,रोते रहे ।
कुछ दिनों बाद फिर से अपने काम पर जाने लगे, घर में पूरा पैसा बच्चों पर खर्च कर देते । बच्चों के घर में खाना समय से मिल जाता तो सुबह खा कर चले जाते वरना रात को ही आकर खाना खाने के बाद सो जाते ।जैसा मिलता खा लेते, कभी अपनी कोई पसंद नहीं बताते ।

कभी-कभी बहिनों ने कहा तुम हमारे घर आकर रहो तो हंस कर कहते आऊँगा जब छुट्टी मिल जाएगी । कभी स्वयं छुट्टी के लिए मालिक से नहीं कहा ।

जब कुछ खाने का मन होता तो बाहर जाकर खा आते। जब बाहर जाते तब बहिनों को फ़ोन मिला कर हाल-चाल पूछ लेते । जब कभी बहुत दुखी होते ,अपने मन की बात बता दिया करते ।

एक बार बहुत दुखी मन से बताया कि मेरे पैसे बड़े भैया ने जो जमा किए थे उन्हें निकलने को बच्चों ने कहा है । कुछ पैसा उनको पिताजी के मकान का मिला , कुछ जब वह बड़े भैया के पास रहते उन्होंने वेतन की बचत को जमा करा दिया था । उस पैसे में से कुछ तो पहले ही मंझले भैया ने निकलवा लिया था ।

अब बच्चे कहते कि आमनदनी कम है खर्च अधिक है । घर का खर्च निकलना मुश्किल हो गया है,आप कुछ पैसे निकाल लीजिए । वह निकाल लेते लेकिन मन बहुत दुखी रहता । पूरा वेतन देने के बाद बैंक से भी पैसे निकाल कर लाते तो दुखी होकर बहिन को बता दिया करते ।

धीरे-धीरे मन दुखी रहने लगा और कमजोर भी हो गये, स्वभाव ऐसा कि कोई कितना भी कष्ट दे कुछ कहना ही नहीं । कमजोरी के कारण बीमार रहने लगे, छोटे मोहल्ले के डाक्टर से ही कभी दवाई ले आते और काम पर चले जाते ।

काम पर पैदल ही जाना होता, उनके पैर सूज जाते फिर भी वह काम पर चले जाते ।

एक बार उन्होंने बताया कि बेटे की बहू के बेटी हुई है,बेटा कुछ पैसे निकाल कर लाने को कह रहा है ।
बेटे ने कहा कि “यदि पैसे नहीं आये तो अस्पताल की फ़ीस नहीं जा पायेगी ।”

उन्होंने बताया “बेटा कहता है कि चाचा जी पैसे को क्या अपने साथ लेकर जाओगे , क्या जेब में रखकर ले जाने है ।” यह सब बताते हुए उनकी ऑंखें गीली हो गई थी ।

बहिनों ने कभी दख़लंदाज़ी नहीं की,यही कहा कि अगर वह परेशानी में है तो कुछ पैसे देना ठीक रहेगा ।
आये दिन वह पैसे निकाल कर दे दिया करते । उनके इलाज के लिए किसी को समय नहीं था ।

अन्य भाई भतीजे भी यही कह देते “जहॉं रह कर खर्च कर रहे हैं, वहीं उनका इलाज कराये ।” उनके स्वभाव के कारण सभी उन्हें अपने पास रखने को तैयार थे लेकिन दबी ज़ुबान से पूछ ही लेते “बाबा कितना जमा कर लिया क्या ऊपर ले जाने का इरादा है ।” यह सब सुनकर अपूर्व भैया कहीं भी जाने के लिए चुप्पी साध लेते और हंस कर टाल जाते ।

पैर इतने सूज गये कि चलने-फिरने में परेशानी होती,कहीं न जाकर सामने बने पार्क में धीरे-धीरे घूमने चले जाते ।

काम पर जाना बंद हो गया, जब पैसों की ज़रूरत पड़ी तो बेटा साथ में बैंक गया ।वहाँ उनकी परेशानी दिखा कर , अपूर्व भैया को समझा कर सम्मिलित खाता करा कर इलाज के नाम से पैसे निकाल लिए ।

कभी-कभी उन्हें सरकारी अस्पताल ले जाते और दवाई लाकर दे देते । अब तो खाता बेटे के हाथों में था इसलिए जब ज़रूरत पड़ती निकाल लिए जाते ।

बहिनों ने उन्हें समझाया कि आपको जब भी ज़रूरत हो बता देना, आप के लिए इंतज़ाम हो जायेगा ।कभी भी उन्होंने अपनी परेशानी नहीं बताई ,”सब ठीक है “ कह दिया दिया करते ।बहिनें फ़ोन पर बात करना चाहतीं तो उनका फ़ोन नहीं उठता । किसी के द्वारा ख़बर भेजी तो घर में बताया कि उनसे बता देना वह ठीक है । जेब में फ़ोन बजता है सुन नहीं पाते शोरगुल में । एक दिन किसी को भेजा कि अपूर्व भैया से कहना हम से बात कर लें, हमलोगों को उनकी बहुत चिंता है ।

उन्होंने घर से बाहर जाकर बात की, बताया कि धीरे-धीरे सब पैसे निकाल लिए हैं; कुछ ही पैसे बचे हैं । हमने उन्हें कहा “आप यहाँ आ जाइये “ वह “आऊँगा “ कह कर रोने लगे । बहुत समझाया तो कुछ शांत हुए । उन्हें दुख था कि घर में किसी को उनकी नहीं, उनके पैसे की ज़रूरत है । खाना कभी खाते,कभी-कभी बिलकुल कुछ नहीं खाते ।कमजोरी आने पर भी वह अपने दैनिक दिनचर्या के कार्य स्वयं कर लेते । कभी किसी से कुछ न कहते हुए, अपने भाइयों के परिवार को नि:स्वार्थ पालते हुए इस संसार से अपनी मॉं के लाड़ले ‘सच्चे संत बाबा’ विदा हो गए ।
संक्रांति पर जन्म लेने वाले अपूर्व भैया होली के त्यौहार पर सबसे बहुत दूर चले गये ।

अपूर्व भैया की तरह न जाने कितने ऐसे भारत माता के सपूत इस संसार से विदा हो गए, जिन्होंने अपने लिए नहीं; समाज और परिवार के लिए स्वयं को न्योछावर कर दिया ।कभी किसी से कोई शिकायत न करते हुए संतुष्ट जीवन जीकर न जाने किस दुनिया में जाकर गुम हो जाते है, उन्हें कोई याद नहीं करता; कोई किसी के द्वारा एवार्ड नहीं दिया जाता ।

समाप्त

आशा सारस्वत


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