Pyar aisa bhi - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार ऐसा भी - 2

प्यार ऐसा भी--(भाग-3)

ऐसा नहीं था कि मैंने पहले कभी किसी लड़की से बात नहीं की थी, और मैं बिल्कुल सीधा था। इस आभासी दुनिया में मेरी कई महिला मित्र थी। जिनके साथ मेरा थोड़ा बहुत फ्लर्ट और प्यारी सी नोकझोंक चलती रहती थी ।

मैं दिखने में हैंडसम तो था ही,थोड़ा केयरिंग नेचर होने से लड़कियाँ जल्दी अपना मान भी लेती थी। इतना ही नहीं अपनी पर्सनल बातें और अपनी इच्छाओं को खुल कर कह देती ।

मैंने कभी किसी को उकसाया तो नहीं था पर कई बार आपसी रजामंदी और प्रयोग के नाम
पर संबंध बना चुका था। ज्योति से बात करने से पता चला कि कोई लड़की सिर्फ दोस्त भी बन सकती है। ज्योति से मैं जब बात करता तो उसकी बातों से मुझे प्रेरणा मिलती।

"ज्योति कमी तो काफी लोगों में होती हैं फिर भी शादी तो करते हैं तुमने क्यों नहीं की"? एक दिन मैंने बातों ही बातों में पूछ लिया। "मुझे नहीं लगा कि मैं शादी करने के लिए फिट हूँ, क्योंकि मेरी शादी जिससे होती उसमें भी कोई कमी होती, मैं अपनी शारीरिक कमी के साथ आज तक एडजस्ट नहीं कर पाई तो अपने पति को कैसे एडजस्ट करती" ? उसका जवाब सुन कर मैं निशब्द हो गया।

मैं अपनी दोस्त को जिंदगी जीते हुए देखना चाह रहा था, गुजारते हुए नहीं। इतने दिनों से हम लोग बात कर रहे थे, मैंने यह सोच कर उसे अपनी फोटो भेजने के लिए नहीं बोला कि वो मुझे छिछोरा ना समझ ले।

पहले हम सिर्फ रात को ही बात करते थे। धीरे धीरे सुबह, शाम और दोपहर को कुछ मैसेज कर लेते थे। कभी कभार फोन भी कर लेते।
जैसे जैसे टाइम बीत रहा था, हम एक दूसरे की केयर करने लगे।

"ज्योति तुम गलत ना समझो तो आज अपनी एक फोटो भेज दो"। एक दिन हिम्मत करके मैंने उसको कहा तो उसने एक पल में अपनी फोटो भेज दी। उसकी फोटो देखी तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि ये वो है।



ज्योति की आवाज़ और बातों से मैंने जो छवि अपनी कल्पना से बनायी थी वो तो दूर दूर तक मेल नहीं खाती थी। किसी दूसरे लड़के की नजर से देखता तो वो बिल्कुल सुंदर नहीं थी। मैंने उसकी फोटो देखकर "बहुत सुंदर हो तुम का मैसेज भेजा ",तो उसने मेरी को मजाक में लिया होगा तभी तो उसने मैसेज में लिखा, " माना हम अच्छे दोस्त हैॆ पर झूठी तारीफ तो मत करो, जनाब आइना मैं भी देखती हूँ "। साथ में हँसी वाले ढेर सारे इमोजी
थे।

बेशक उसने मेरी बात को मजाक में लिया हो पर मुझे वो सुंदर लगी थी। स्वाभिमान उसके चेहरे पर झलक रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखे किसी का भी झूठ पकड़ ले।

हम दोनो के शहर अलग थे तो शायद ही हम कभी मिल पाएँगे सोचता था। मै एक साधारण नौकरी करवे वाला और वो अमीर परिवार से होते हुए भी नौकरी करती थी क्योकि वो किसी की जिम्मेदारी नही बनना चाहती थी।

"ज्योति अगर मैं तुम्हारे शहर आया तो मुझसे मिलोगी "? मैं जानना चाह रहा था कि वो मुझे
दोस्त कहती ही है या मानती भी है। "अरे यह भी कोई पूछने की बात है!!! हम जरूर मिलेंगे"। मुझे ना जाने ऐसा क्यों लग रहा था कि वो कहेगी , "परिवार और सोसाइटी हमारी दोस्ती को नहीं समझेगा इसलिए हम ना मिले तो अच्छा हो", उसने मुझे गलत साबित कर दिया।

हर दिन मैं उससे कुछ सीख रहा था। अपने परिवार की देखभाल तो मैं काफी सालों से कर रहा था। मैंने जाना कि "सिर्फ जरूरते पूरी करना ही जिम्मेदारी निभाना नहीं होता, परिवार को एक डरा या गुस्सा करके नहीं रखा जा सकता"। जितना मैं उसको जानता जा रहा था मेरे दिल में उसकी इज्जत बढती जा रही थी।

"तुम बहुत स्ट्राँग हो बिल्कुल लोहे की तरह, ऑयरन लेडी हो ज्योति" एक दिन मैंने उसको कहा तो वो बोली कि अच्छा तुम्हे भी सब की तरह लगता है? "हाँ, बिल्कुल मैंने तो तुम्हारा नं ही ऑयरन लेडी के नाम से सेव किया हुआ है"। मेरे ऐसा कहने पर वो हँस दी बोली कि, "चने के झाड़ पर मत चढाओ , तुम्हे पता है कि मैं वहाँ से उतर नहीं पाऊँगी"। फिर क्या था इस बात पर हम दोनो ही खूब हँसे।

मैं अपने आप को स्पष्टवादी और हाजिर जवाब समझता था पर वो तो मुझसे भी दो कदम आगे थी। उसके इस गुण का पता भी मुझे तब चला जब मैं उसका शिकार बना।

क्रमश: