Pyar aisa bhi - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार ऐसा भी - 9

प्यार ऐसा भी

मेरा यूँ रिक्वेस्ट करना भी बेकार गया। आज तुम मुझे सुनोगे बस, "तुम से कितनी बार पूछा मैंने की कोई पसंद आई है तो बताओ, तुम हर बार मना करते रहे। मैं इस गुमान में थी कि तुम मुझसे प्यार करते हो सो शादी तो तुम अरेंज ही करोगे !!! तुमने मुझे दोनो जगह गलत साबित किया"। वो गुस्से और ज्यादा बोलने से हाँफने लगी। मैंने उसको पानी पीने को बोला तो वो नहीं मानी।

"मैं सरल और सीधी इंसान हूँ, इसलिए इतना समझती हूँ कि एक इंसान एक समय में सिर्फ
एक से प्यार कर सकता है , दो से नहीं। या तो तुम्हें उससे प्यार नहीं या मुझसे नहीं था"। "तुम मुझे गलत समझ रही हो मैंने सिर्फ तुम्हे इसलिए नहीं बताया क्योंकि तुम दुखी होती
और मैं ये नहीं देख सकता", मैंने सफाई देना चाहा पर उसने सिरे से नकार दिया।

मैं चुपचाप सुनने लगा, जानता था वो रो रही होगी , इन सब से बचा कर ही रखना चाह रहा था। वो बार बार एक ही बात को दोहराती रही, "एक इंसान एक साथ दो से प्यार नहीं कर सकता तुमने छल किया है"। "ज्योति तुम्हीं कहती थी कि शादी करो अब तुम नाराज हो। शादी करनी थी सो कर ली, हमारे बीच कभी कुछ नहीं बदला ना कभी बदलेगा"। मैं उसको शांत करना चाह रहा था।

" बदल तो तब से ही गया था, जब तुमने कहा कि मुझसे खाने को मत पूछा करो। मैं विकलांग शरीर से हूँ ,दिमाग से नहीं !! तुम्हे हर बात का सुबूत चाहिए होता है न बस वो अब तुम्हारे सामने हैं। मैं परसों आ रही हूँ तुमसे मिलने अपनी बीवी को भी बोल देना।मुझे कुछ बातें करनी हैं आमने सामने"।

मैंने बहुत समझाया ,उसे नहीं मानना था सो नहीं मानी । उसे मैं रात भर मैसेज करके समझाता रहा कि वो मेरे लिए क्या मायने रखती है!!! उसका येे रूप नया था मेरे लिए।
मैं उसके सामने बेबस सा महसूस कर रहा था। मैं उसको समझा नहीं पाया।

मैं उसको बार बार कह रहा था तुम कुछ दिन रूक जाओ। मैं खुद तुम्हारे पास उसको ले आऊँगा पर वो तो ठान कर बैठी थी। 2 दिन बाद वो मेरे शहर में थी , वो होटल में ठहरी थी कई बार कहने के बाद भी वो मेरे यहाँ नहीं रूकी। वो नार्मल लग रही थी। उसने नफीसा को एक ब्राडैंड हैंडबेग दिया और मेरे लिए गॉग्लस लायी थी। मैं उसे हैरानी से देख रहा था "कि क्या है ये ?? कैसे सब कर लेती है?"

हम सब ने मिलकर खाना खाया, वो नफीसा से बहुत अच्छे से बात कर रही थी तो मैं सुकून में आया। घर से चलते हुए नफीसा ने पूछा था, " तुम्हारी दोस्त को क्या कह कर बुलाना है"?
"मैं उसे ज्योति बोलता हूँ, तुम दीदी कहना"। नफीसा को थोड़ा अजीब लग रहा था ज्योति को देख कर शायद सोच रही थी, " मेरा पति इसको इतना क्यों मानता है" ?

"सुनो अब घर चलते है, कल मुझे जल्दी जाना है," खाने के बाद हो रही गपशप को रोकते हुए बोली। ज्योति तो सिर्फ नफीसा से ही बात कर रही थी, उसने मेरी ओर देखा भी नहीं। मैं तो उसके पल -पल चेहरे के बदलते भाव देख रहा था।



"हाँ, तुम लोग निकलो, मैं भी अब रेस्ट करती हूँ"। नफीसा को उसने कहा, "मैं इसको घर छोड़ कर आता हूँ , फिर हम बातें करते हैं, इसको तो सोने की ही लगी रहती है," मैंने नफीसा की तरफ हँस हुए देख कर कहा। जवाब मेंं नफीसा भी मुस्करा दी। "हाँ दी, आप लोग खूब बातें करना"। नफीसा ने अपने फोन से हम तीनों की एक फोटो ले ली थी , मुलाकात को यादगार बनाने के लिए।

"नहीं, प्रकाश तुम भी जा कर आराम करो कल तुम्हें भी काम होगा "। मैं समझ ही नहीं पाया कि वो मुझसे बात करने इतनी दूर आयी पर अब बात क्यों नहीं कर रही ? जब मैं मौका भी दे रहा हूँ। "हाँ दीदी, आप लोग काफी दिन बाद मिल रहे हो गपशप करनी चाहिए"।

नफीसा ने भी कहा तो वो बोली, "ठीक है, नफीसा अगर तुम ठीक समझो तो तुम भी यहीं रूक जाओ, एक एक्सट्रा बेड का "पे" कर देंगे," नफीसा मान गयी। मैं नफीसा के सामने उसको क्या कहता ? नफीसा से कुछ देर बातें करती रही फिर नफीसा को ऊँघते देख वो भी लेट गयी।

मैं उसको देख रहा था, बात कर नहीं सका नफीसा के डर से, मैंने उसे मैसेज किया ,"तुम तो लड़ने आई थी ना, लड़ना तो दूर तुम तो मुझसे बात भी नही कर रही"। "मैं एक बात जान गई हूँ , तुम्हे मुझसे प्यार कभी नहीं था"। "नहीं","तुम गलत कह रही हो, तुम्हे नहीं पता कि तुम्हारी क्या जगह है मेरे दिल और जिंदगी में"। मैंने लिखा।

"जो भी हो पर तुम अपना हक और विश्वास खो चुके हो, जहाँ तक बात कि तुम मेरे साथ हमेशा वैसे रहोगे जैसे अब तक रहे, तो मैं नहीं रहना चाहती, मेरा ज़मीर इजा़जत नहीं देता इस बात की। तुम खुश हो अपनी जिंदगी में तो यह अच्छा है, मेरे जैसे लोग कभी मिले तो उनको दोस्त मत बनाना तुम में निभाने के गुण नहीं हैं"। कह उसने फोन साइड में रख दिया।

वो रात भर जागती रही, और मैं उसको मनाने के तरीके सोचता रहा। सुबह की फ्लाइट से वापसी थी उसकी, नफीसा ने रूकने को कहा तो टिकट बुक है, बता दिया। "आप दोबारा कब आओगी, जब आना तो घर पर ही रूकना"। "जब तुम बुलाओगी तो जरूर आऊँगी"। उसने हँस कर कहा। सुबह पहले नफीसा को घर छोड़ कर होटल आया ज्योति को एयरपोर्ट ले जाने। वो अपना सामान समेटते हुए बोलती जा रही थी।

पिछली बार तुम इसी लड़की को मिलने गए थे, और मुझे ऐसे ही अकेला छोड़ दिया था।
मैं सोचता था कि सरल है , जो समझाओ वही समझती है, पर मैं गलत था। वो मुझे हर वो बात बताती गई जो मैंने छुपायी या सोचा कि ज्योति को कुछ पता नही चलेगा।

"प्रकाश तुम्हे लगा कि ज्योति को टेक्नॉलजी की ज्यादा समझ नही है, जो कि किसी हद तक ठीक भी है क्योकि मेरी रूचि नही रही, पर तुमने ये कैसे सोच लिया कि मैं बेवकूफ हूँ?? याद है बार- बार मैंने तुमसे पूछा था कि "प्यार के लिए तो बहुत लड़कियाँ होंगी और इतने हैंडसम हो। सेक्स करने का अनुभव तो मुझसे मिलने से पहले का है। फिर मैं क्यों अच्छी लगती हूँ ? तुमने कहा कि तुम बहुत अच्छी हो बस तुम्हे खुश रखना चाहता हूँ"।
क्रमश: