Pyar aisa bhi - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार ऐसा भी - 4



उसका यूँ मेरी बात का जवाब दिए बिना ऑफ
लाइन हो जाना पसंद तो नहीं आया पर जब खुद को उसकी जगह पर रख कर सोचा तो बुरा लगना कम हो गया। फिर भी सारी रात ठीक से सो नहीं पाया। जब रोज के टाइम पर उसका गुड मार्निग का मैसेज नही आया तो मेरी सोच की डायरेक्शन भी बदल गई।

मुझे लगा कि वो नाराज़ हो गई है। उसकै मैसेज और फोन आने का इंतजार कर पाना मुझे मुश्किल लगा पर फोन न करके मैसेज करना आसान लगा।

कुछ देर में उसका जवाब आया कि आज सुबह फोन बंद हो गया था इसलिए मैसेज नहीं किया, मुझे थोडी राहत मिली। "ज्योति कल तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया"?
हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया।

"पहले तुम बताओ कि दोस्ती से प्यार पर क्यों शिफ्ट हो गए"? उसने पूछा, मुझे नहीं पता कि कैसे हुआ? कब हुआ ? "मैं बस तुम्हे खोना नही चाहता और तुम्हारा जिंदगी भर ख्याल रखना चाहता हूँ "। मेरा ये जवाब भी उसको यकीन दिलाने में सफल नहीं हुआ ।

"प्रकाश हम दोस्त हैं और रहेंगे, तुम मुझे खोने का डर अपने मन से निकाल दो। जहाँ तक प्यार करने की बात है, तो हाँ, मुझे भी तुमसे प्यार है, पर मुझे अपनी हद का पता है"।

वो भी मुझसे प्यार करती है, सुन कर फूला नहीं समा रहा था। "प्यार और केयर करने तक ठीक है पर हम कभी शादी करके साथ नहीं रह सकते"। उसने कहा तो मैंने पूछा," कम कमाता हूँ इसीलिए ना "?

"हाँ, यह भी एक कारण है कई कारणों में से", तब उसकी बेबाकी पर बहुत गुस्सा आया था।
"बाकी के कारण भी बता दो, जिससे जितना बुरा लगना है एक बार ही लग जाए"।अपनी आवाज में तल्खी को खुद मैंने भी महसूस की, पर क्या करता बोल तो चुका था।

"सबसे पहला और बड़ा कारण मेरी शारीरिक कमी। मेरे घर वाले बहुत खुश होंगे अगर तुम मुझसे शादी करोगे, तुम्हारी फैमिली को मैं कभी पसंद नहीं आऊँगी और उनका ऐसा करना गलत नही होगा। तुम अच्छे इंसान हो एक अच्छी और सुंदर सी लड़की से शादी करो"। इतना कह वो चुप हो गई।


" ये कहो कि तुम्हे मुझ पर और मेरे प्यार पर यकीन नहीं", उसके चुप होने पर मैं बोला। "मुझे तुम पर यकीन है, पर मैं ये जानती हूँ कि हमारी जोडी बेमेल है, साथ रहना ही तो प्यार नहीं है ना ? हमारी दोस्ती और प्यार हमारे दिलों में हमेशा रहे इसकी कोशिश हम दोनों कर सकते हैं। अब इस टॉपिक को खत्म करते हैं और वक्त पर छोड़ देते हैं"। उसके ऐसा बोलने पर मैंने भी कुछ बोलना ठीक नहीं समझा।

मैं उसको खुश रखने में कुछ हद तक सफल हो गया। मुझे भी अच्छा लगता जब वो मेरा ध्यान रखती, मैसेज या कॉल न करने पर गुस्सा करती। जब वो कहती कि," पता भी है कब से इमतजार कर रही हूँ? कुल मिलाकर पति पत्नि की फील आने लगी"।

मैं उसको मिलने गया 2-3 बार। रात को अपने यहाँ से ट्रेन में बैठता, सुबह उसके शहर पहुँच कर दिन भर साथ वक्त बिता कर शाम की ट्रेन पकड़ कर अगले दिन फिर वही रूटीन।

हम एक दूसरे की आदत बन गए थे। "ज्योति हम 2-3 दिन कहीं बाहर घूमने चलें , जिंदगी भर ना सही कुछ दिन तो रह सकते हैं ना"?
"हाँ, ठीक है बनाते हैं प्लान" । मेरे पूछने पर इतनी आसानी से मान जाएगी, इसका यकीन कम था। शायद अब मैंने उसका विश्वास जीता था, ये बात अलग है कि मुझे तो उसने बहुत पहले ही जीत लिया था।

ऐसा बिल्कुल नहीं था कि मैंने फेसबुक पर और लड़कियों से बात करना बंद कर दिया था। थोड़ा कम तो कर दिया था। अगली बार हम ने अपने अपने घर मेॆ दोस्तोॆ के साथ घूमने जा रहे हैॆ कह बाहर जाने का तय किया। ज्योति को दिक्कत ना हो यह ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी थी।

एक महीना पहले टिकट और होटल सब बुक कर लिया, जो खर्च होगा वो दोनो आधा-आधा ज्योति ने बुकिंग करवायी तो मैंने उसको साफ बोल दिया।वो जानती थी ना कि सारा खर्च मैं करूँगा तो मेरा बजट हिल जाएगा।

बहुत मुश्किल से मनाया था उसको 4-5 दिन के लिए बीवी बन कर रहने के लिए। इसके पीछे मेरा मकसद अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने का हरगिज नहीं था, बस मैं चाह रहा था कि ज्योति को भी हक है कि उसको वो सब अनुभव मिले जो हर शादीशुदा लड़की को होते हैं। उसका कहना कि "मुझे ऐसी कोई जरूरत या कमी महसूस नहीं होती" को मैंने सिरे से ही नकार दिया।

हमारे वो दिन बहुत अच्छे बीते। मुझे आज भी याद है कि हम टैक्सी में जा रहे थे तो मैंने चाय पीने का बहाना कर के टैक्सी रूकवा ली। ज्योति बाहर की चाय कम ही पीती है तो वो टैक्सी में बैठी रही, दरअसल उसको मक्की के भुट्टे बहुत पसंद हैं। सड़क किनारे एक बूढे काका भुट्टे भूनते दिखे। बस एक भुट्टा ही तो लाया था उसकी पसंद का ढेर सारा मसाला पर नींबू कम लगवा कर।

वो भुट्टा देख कर बच्चों जैसे खुश हो गई। उसको इतना खुश देख कर मैं अपनी खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकता। आज लिखते हुए भी उसका हँसता चेहरा सामने आ गया है।

क्रमश: