Pyar aisa bhi - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार ऐसा भी - 6

प्यार ऐसा भी

"तुम पागल हो?? तुम हमेशा मेरे साथ ऐसे ही रहोगी चाहे कुछ भी हो ! मेरे बिना तुम रह लोगी?? कभी नही "!! मैंने उससे सवाल कर जवाब भी खुद ही दे दिया। वो बोली," शादी तो करो फिर देखेंगे"। "हाँ देख लेना वैसे मेरी पूरी कोशिश होगी कि तुम्हे मेरी शादी का पता चले"। मुझे अपनी अक्ल पर गर्व तो है ही, बस उसको तुनक कर कह दिया।

कहने को तो कह गया, पर मैं परेशान हो गया क्योंकि मैं ज्योति के साथ उम्र भर रह नही सकता,ये बात हालाँकि ज्योति पहले ही कह चुकी थी और इधर 2 साल में मुझे भी समझ आ गया कि जो उसका रहन सहन या कह लो कि उसके मेडिकल खर्चे और वो स्टेटस मैं कभी नहीं दे सकता जिसकी उसे आदत है।

इधर नफीसा का अपने भाई और भाभी से झगड़ा हो गया तो उसने मुझे फोन किया। उसके घर में बड़ा कहने को एक भाई था। उसकी एक छोटी बहन और भाई का सारा खर्च नफीसा ही देखती थी। फिर भी भाभी की उनसे कभी नही बनी। मैंने उसको अपने भाई बहन के साथ किराये पर अलग रहने का सुझाव दिया और उसने वही किया।

दोस्त होने के नाते अब मेरी बारी थी उसका साथ देने की। जितना मुझसे हो पाया मैंने हर तरीके से मदद की। मैं उन दिनो इन सब में इतना उलझा रहा कि ज्योति से फोन और मैसेज से ठीक से बात ही नहीं होती।

वो कितना भी बिजी होती दोपहर में एक बार "लंच कर लो" जरूर याद दिलाती। एक दिन मैं ऐसे ही काम में था तो नफीसा का फोन आया कि लंच उसके साथ करे तो मेरे मना करने पर जिद करने लगी तो मुझे जाना पड़ा। बस अभी लंच कर ही रहा था कि उसका मैसेज आया 4 बज गए, लंच ना किया हो तो कर लो।

मुझे अपने ऊपर गुस्सा आया क्योंकि फोन साइलेंट पर कर दिया था नफीसा से बात करने के बाद। जिसकी वजह से ज्योति की 2 मिस कॉल भी थी। " ऐसा है कि रोज तुम खाने को मत कहा करो, तुम्हारे कहने पर खाना पड़ता है और फिर खा कर मैसेज करो का फंडा समझ नहीं आता । तुम खुद टाइम से खाया करो"। मैंने अपनी झल्लाहट उस को मैसेज करके उतारी ।

उसने जवाब में बस "ठीक है", लिख कर भेज दिया। मुझे उम्मीद नहीं थी ,उससे इतना छोटा और शांत जवाब मिलेगा। पर मेरी मेल ईगो ने मुझे अपने व्यवहार की माफी माँगने से रोक लिया। 2.5 साल में ये पहली बार था जब मैंने उससे ऐसे बात की ।

उस दिन के बाद से उसने पूछना छोड़ ही दिया पर वो मुझसे पहले की तरह ही बात करती रही। अब मैं पूछता हूँ," खाना खाया या नहीं, मैं खा चुका और तुम भी खा कर बताओ"।
जब भी पूछा उसने कहा," मैंने पहले ही खा लिया"। जानता हूँ झूठ बोल जाती है, मुझसे पर क्या करूँ मना भी तो मैंने ही किया। मैं उसकी जिद को जान रहा हूँ और उसके संयम को भी।

प्यार ऐसा भी (भाग -12)

मेरा और ज्योति का रिश्ता सिर्फ शारीरिक तौर से कभी नहीं जुड़ा । मुझे उसके साथ से एक अजीब सी खुशी मिलती है। वो बहुत अच्छी और सच्ची इंसान है। इसलिए हमारा रिश्ता दिल की गहरारियों से जुड़ा है पर ये भी सच है कि वो दूसरे शहर में है, तो जब चाहे उससे मिल नहीं पाता।

नफीसा मेरे ही शहर की है, तो दोस्त की जब जरूरत लगती उससे मिलने लगा। नफीसा बहुत सुंदर न सही ,वो आम लडकियों जैसे बन ठन कर रहती है तो सुंदर दिखती है। तमाम गुण हैॆं, जिनमें फेसबुक पर एक्टिव रहना एक है। मुझे उसके ये गुण भाने लगे।

ज्योति को जान बूझकर अनदेखा कभी नहीं किया। वो वैसे ही बात करती रहती और मैं भी। एक बार नफीसा ने फेसबुक पर मेरी फोटो पर "किस" वाला "इमोजी" भेजा तब ज्योति ने "यह लड़की कौन है" पूछा तो मैने "बस फेसबुक फ्रैंड है" , बताया।

मैं दावा करता हूँ, ज्योति को मैं समझता हूँ , वो मुझसे कुछ नहीं छुपाती। मैं बेशक छुपाता रहा सब कुछ। मैं और नफीसा एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। जब मौका मिलता हम सेक्स करने लगे। ज्योति के साथ जो अधूरा सा लगता वो इसके साथ पूरा लगता।

ज्योति की पूजा कर सकता हूँ। उसकी देखभाल भी हमेशा करता रहूँगा का भाव
आज भी दिल में है। ज्योति को कुछ न बताने के पीछे बस वो दुखी न हो जाए ये तर्क रहा।
अपनी ओर से मैं सावधान रहा कि नफीसा का सच उसे न पता चले, इसलिए नफीसा को मना किया फेसबुक पर भी कमेंट लिखने से।"सब रिश्तेदार हैं", मेरी लिस्ट में यह दुहाई दे कर।

आप लोग इसे मेरा दोनो को धोखा देना समझ सकते हैं । बस मैं दोनो को खोना नहीं चाहता।
मैंने नफीसा से शादी करने का मन बना लिया। इसी दौरान मेरा और ज्योति का नैनीताल जाने का प्रोग्राम बन गया। वहाँ से वापसी में मेरे शहर आने का प्लान बना। घर में मैं बता चुका था," ज्योति को कुछ काम है, तो वो यहाँ आएगी तो दो-तीन दिन हमारे घर रहने को बोला है ,वो यहाँ रूकेगी"।

ज्योति को सब जानते हैं, तो कोई दिक्कत नहीं हुई। जितने दिन मैं नैनीताल रहा नफीसा के बहुत फोन आ रहे थे, क्योंकि उसको और घर में तो ऑफिस के काम से बाहर हूँ, पता था। रात को नफीसा से बात करने के लिए मैं कमरे से बाहर चल देता, ज्योति को बहाना बना कर।

हम दोनो साथ मेरे शहर आए। उसको एक दिन होटल के लिए होटल छोड़ अपने घर चला गया। ऑफिस का थोड़ा फील्ड वर्क करके ज्योति के साथ दिन बिताया। रात को नहीं रूक सकता वो जानती थी, तो रूकने को कहा ही नहीं। यही तो बात तो थी जो उसको खास बनाती थी। नफीसा में जहाँ जुनून था वहीं ज्योति में समर्पण का भाव जिसको मैंने उसकी कमजो़री समझ लिया।

क्रमश: