UJALE KI OR in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर ---संस्मरण

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण

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नमस्कार स्नेही मित्रो !

धूप-छांह सी खिलती मुस्कुराती ज़िंदगी में बहुत से क्षण प्यार -दुलार भरे आते हैं तो बहुत से कड़वे-कसैले भी |

कभी हम इनकी वास्तविकता को समझ पाते हैं तो कभी इनके इर्द-गिर्द घूमते रह जाते हैं |

समझ ही नहीं पाते कि हम किन उलझनों में हैं ? हमारे आगे का मार्ग किस ओर है ?

हम ज़िंदगी की सुबह को शाम समझकर कभी बियाबानों में खोने लगते हैं तो ज़िंदगी की शाम को ही रात बनाकर काल्पनिक सितारों के साथ बतियाने लगते हैं |

होते कहाँ हैं सितारे ? वे तो ऐसे ही कण होते हैं जो भ्रमजाल में फँसाकर गलत दिशा में मोड़ देते हैं |

इस बात पर मुझे एक बात याद आ गई है |

पंजाब व उत्तर-प्रदेश में एक त्योहार होता है जिसमें स्त्रियाँ अपने पतियों की लंबी उम्र के व अपने प्रसन्नतापूर्ण जीवन के लिए व्रत रखती हैं |

यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है और अन्य कई प्रदेशों में यह अथवा इसी प्रकार के अन्य त्योहार किसी और नाम से मनाए जाते हैं |

पत्नियाँ पूरे दिन का निर्जल उपवास रखती हैं,साज-श्रंगार करती हैं और चंद्रमा देखकर पति के हाथ से कुछ मीठा खाकर अथवा नीबू का शर्बत ,या अपनी पसंद की कोई मीठी चीज़ खाकर उपवास खोलती हैं |पहले ज़माने में तो इसकी बड़ी महत्ता होती थी |

अब धीरे-धीरे यह परिवर्तित रूप ले रहा है |अब पति भी पत्नियों का साथ देने लगे हैं |कहीं-कहीं उनको भी व्रत रखते हुए देखा जाता है |

पति अपनी पत्नी को गिफ्ट भी देते हैं |

हम सब इस बात से वाकिफ़ हैं कि हमारा देश त्योहारों का देश है |

हमारे कुछ त्योहार ऋतुओं के अनुसार मनाए जाते हैं तो कुछ को सामाजिक रीति-रिवाज़ों के साथ जोड़ा आया है |

यह सब तो ठीक है ,अच्छी बात भी लेकिन यदि कोई पति गिफ्ट न दे पाए या कोई पत्नी किसी कारणवश व्रत न रख पाए तो इसमें कोई उपद्रव तो होना नहीं चाहिए |

अथवा पत्नी कि प्रशंसा न क्रे तो ------

लेकिन भाई हो जाता है और वहीं से मुश्किल सफ़र शुरू हो जाता है |

सामने निम्मी रहती हैं ,खूब ज़ोर-शोर से व्रत करेंगी लेकिन यदि उनके पति ने उनकी प्रशंसा न की तो उनके माथे पर बल पड़ जाएँगे |

ऐसे क्षणों में पति के तथाकथित मित्र बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं --
"कितनी सुंदर लग रही हैं भाभी जी ! और हाँ ,क्या गिफ़्ट दिया आपको साहब ने आज ?"

ये वो तथाकथित मित्र होते हैं जिन्हें दोनों में झगड़ा कराने में बहुत आनंद आता है |

उन्हें तो चाय-पानी मिला जाता है लेकिन दूसरे के घर में त्योहार के दिन युद्ध शुरू हो जाता है |

निम्मी के पति सुहास ने उसे कितनी बार समझाया कि ये सब दोस्त चाय-कॉफी पीने की फिराक में रहते हैं | इन्हें चाय-नाश्ता कराओ लेकिन इनकी बातों में मत आओ |

लेकिन निम्मी जी को अपने पति की बात बेवकूफी लगती है और उन आग लगाने वालों की बातों से वह फूली नहीं समातीं |

यही ज़िंदगी का मज़ाक है और ऐसे लोगों का भी जो किसी के बहकावे या ज़रा सी प्रशंसा के पल बाँधकर अपने को विजयी समझने लगते हैं |

सच बात तो ये है कि नसीहत वो वास्तविकता है जिसे हम कभी ध्यान से नहीं सुनते और प्रशंसा वह धोखा है जिस पर हम सदा विश्वास कर लेते हैं !!

ऐसा न हो कि कभी इसमें धोखा खाना पड़े |

सचेत रहना बेहतर है न !!सोचिए ----

आप सबकी मित्र

डॉ . प्रणव भारती