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वैवाहिक विज्ञापन

5 फिट 7 इंच,गेहुआँ रँग,MBA, मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत युवक हेतु गौरवर्णी,लंबी, उच्चशिक्षित, सुंदर, संस्कारी,गृहकार्यदक्ष,सजातीय वधू की आवश्यकता है। अक्सर वैवाहिक विज्ञापन के ऐसे ही मजमून होते हैं।

आज लता जी एवं आकाश जी के विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ है।उनकी इच्छा तो कहीं बाहर जाकर शांति से मनाने की थी,लेकिन बेटी ने एक नहीं सुनी।बेटी सिमी ने करीबी मित्रों एवं खास रिश्तेदारों के साथ मनाया।सारी व्यवस्था उसने स्वयं ही की।सोफे पर बैठी लता जी अपने विवाह के प्रकरण को याद कर रही थीं।

उस समय लता जी के ग्रेजुएशन का आखिरी वर्ष था।वे हॉस्टल में रहकर अपनी शिक्षा पूर्ण कर रही थीं।उन्हें सरिता पढ़ने का बेहद शौक था,जब घर में होतीं तो पत्रिका आते ही सबसे पहले वे ही पढ़तीं एवं एक बैठक में पूरा समाप्त करने के बाद ही उठतीं।हर रविवासरीय पेपर में वैवाहिक विज्ञापन पढ़ने में भी बड़ा मजा आता था, वर औऱ वधू चाहिए,पूरा पढ़तीं थीं, फिर उसपर विश्लेषण, विवेचना,आलोचना करतीं।वैवाहिक विज्ञापन का नया-नया प्रचलन प्रारंभ हुआ था।उस समय अधिकतर रिश्ते रिश्तेदारों, परिचितों के द्वारा बताए जाते थे,फिर सूत्र निकालकर इंक्वायरी की जाती थी, पूर्णतया अरेंज मैरिज का जमाना था।प्यार तो चोरी -छुपे कभी किसी को अगर हो भी जाता था तो उसका अंजाम विवाह तक कम ही पहुंचता था।

धोखे तब भी होते थे, किंतु वैवाहिक विज्ञापन के द्वारा विवाह में हिम्मत कम ही पड़ती थी।खैर,लता जी के लिए लड़के देखना उनके पिताजी ने प्रारंभ कर दिया था।लता जी भी जानती थीं कि ग्रेजुएशन करते ही परिणय सूत्र में बंधना ही है, इसलिए वे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार भी थीं।सरिता में वैवाहिक विज्ञापन पढ़ रही थीं ,जिसमें दो बायोडाटा उन्हें सही प्रतीत हुआ।उन्होंने पिताजी से मजाक में कहा कि पिताजी,मैंने आपके लिए दामाद ढूंढ़ा है।पिताजी ने कहा कि पत्र भेजकर देखते हैं।सीधे पता कम ही होता था, बॉक्स नम्बर दिया जाता था,वहां से पत्र वांछित जगह पर पहुंचता था,यदि विज्ञापनदाता को प्रस्ताव पसंद आता था तो फिर वे सीधे प्रत्युत्तर देते थे, तब बात आगे बढ़ती थी।

खैर, दोनों जगह पिताजी ने पत्र भेजा और दोनों ही जगह से प्रत्युत्तर आया।बात आगे बढ़ी।आकाश जी के घर का पता ज्ञात होने पर पिताजी को वहाँ रहने वाले अपने एक पुराने परिचित की याद आई।दादाजी जिस स्कूल में अध्यापक थे ,वे वहाँ प्रिंसिपल थे,सभी परिचित उन्हें प्रिंसिपल साहब के नाम से ही सम्बोधित करते थे। बीसियों वर्ष से कोई जानकारी नहीं थी,यह भी ज्ञात नहीं था कि वे लोग अब वहां रहते भी हैं कि नहीं।पिताजी ने आकाश जी के परिवार से उन लोगों के बारे में जिक्र किया।छोटी जगह पर अधिकतर लोग एक दूसरे से परिचित होते हैं,उन्होंने बताया कि प्रिंसिपल साहब का तो स्वर्गवास हो गया है लेकिन माताजी अभी रहती हैं अपने छोटे बेटे के साथ।पता प्राप्त होने पर पिताजी ने प्रिंसिपल साहब की पत्नी अर्थात माताजी को पत्र लिखकर सारी जानकारी प्राप्त की।

दूसरी जगह भी एक परिचय सूत्र निकल आया था, अतः वहाँ भी वार्तालाप जारी था।बातें तो कई जगह चलती हैं क्योंकि कहाँ बात बने यह सुनिश्चित तो होता नहीं।अरेंज मैरिज में जन्मपत्री मिलान,देखने की रस्म,लेन -देन तमाम पड़ाव होते हैं, सभी को पारकर तब कहीं जाकर रिश्ता तय होता है।इस मध्य लता जी का ग्रेजुएशन पूर्ण हो गया, इसलिए PG में दाखिला ले लिया।माँ-पिताजी घर-बार देखकर संतुष्ट हो गए।अंततः आकाश जी अपनी माताजी एवं एक दीदी,जीजाजी के साथ देखने पधारे।जब वे लोग रिक्शे से उतर रहे थे तो लता जी अपनी बहन के साथ खिड़की से देख रही थीं औऱ दोनों छोटी बहनें कह रही थीं कि जीजाजी तो बड़े सुंदर हैं।लता जी ने उन्हें झिड़का कि जबतक बात फाइनल न हो तो जीजाजी कहने का क्या औचित्य है।

खैर, नाश्ता-पानी के पश्चात वर पक्ष ने पहले कन्या देखने की इच्छा व्यक्त की।लता जी आकाश जी से उन्नीस थीं,हालांकि नैन-नक्श से काफी आकर्षक थीं, इसलिए उन्हें हाँ की बहुत आशा नहीं थी।उनके पूछे सवालों का जबाब लता जी दे रही थीं।दीदी ने पैरों को देखा कि उन्होंने ऊंची हिल तो नहीं पहन रखी है।आशा के विपरीत उन लोगों ने उसी समय सकारात्मक उत्तर दे दिया।दोनों जगहों में दूरी होने के कारण उसी दिन एंगेजमेंट भी कर दिया।लता जी कनखियों से आकाश जी को देख रही थीं ,तभी ननदोई जी ने तस्वीर ले ली थी, बाद में सभी ने उस फ़ोटो को देखकर उन्हें खूब चिढ़ाया था।पोस्टग्रेजुएशन पूर्ण होने के पश्चात विवाह करने का निश्चय किया गया।घर वालों के मध्य पत्राचार होता रहा।

सगाई के दो माह बाद की बात है, एक दिन दरवाजे की घँटी बजी,लता जी ने ही दरवाजा खोला,दरवाजे पर एक युवक खड़ा था, उसने कहा कि अंकल जी से मिलना है।पिताजी के आने पर ज्ञात हुआ कि दूसरी जगह जहाँ बात चल रही थी, यह वही युवक था।उसने बताया कि उसकी माँ हॉस्पिटल में एडमिट हैं, हार्ट पेशेंट हैं,इसलिए मैं आपसे बात करने आया हूँ।जब पिताजी ने सगाई के बारे में बताया तो उसकी निराशा चेहरे पर साफ दृष्टिगोचर हो रही थी।बड़ी मुश्किल से वह खाना खाने को तैयार हुआ था।

सगाई के छः-सात माह बीतने के बाद दीदी के सलाह पर आकाश हॉस्टल में मिलने के लिए आए।वे होटल में रुके थे, दोनों पूरा दिन शहर के दर्शनीय स्थलों पर भ्रमण करते रहे और शाम को लता जी हॉस्टल वापस लौट आती थीं।तीन दिन सपनों की तरह गुजर गए।वो जमाना भी अलग था,कोई टोकने वाला नहीं था लेकिन मर्यादा का नियंत्रण मन में इतनी मजबूती से जड़ जमाए हुए था कि हम तोड़ने की सोच भी नहीं सकते थे।

उस मुलाकात के बाद आकाश जी ने पूछा था कि पत्र लिखूं तो जबाब देंगी?लता जी ने हिचकते हुए हामी भर दी थी।सगाई के पश्चात भी स्वेच्छा से चुपचाप पत्राचार का साहस नहीं था, इसलिए आकाश जी के जाने के बाद तुरंत माँ से इजाजत ले ली थी।जब पहला पत्र आया था तो बिल्कुल सामान्य सा पत्र था,जिसमें परिवार एवं पढ़ाई के संदर्भ में बातें लिखी थीं, लेकिन फिर भी वह पत्र न जाने कितनी बार लता जी ने पढ़ा था, क्योंकि वह उनकी जिंदगी का प्रथम प्रेमपत्र जो था।ततपश्चात 3-4 खतों का आदान-प्रदान औऱ हुआ था।

फाइनल के इक्जाम से दो माह पहले की विवाह की डेट निकल आई थी।सगाई के बाद विवाह में सवा-डेढ़ वर्ष का अंतराल कन्या पक्ष के लिए अत्यंत चिन्तादयक होता है, कब रिश्ता टूट जाय, कुछ भरोसा नहीं होता, फिर सारा इल्ज़ाम लड़की के ऊपर आता है कि जरूर लड़की में कोई कमी होगी।खैर, सौभाग्य से यथासमय सकुशल विवाह संपन्न हुआ।कितना अजीब होता है यह रिश्ता भी,दो अनजाने लोग ऐसे जुड़ जाते हैं जैसे मुद्दतों से परिचित हों।दो माह पश्चात परीक्षा देने जाने में जैसे जान निकल रही थी लेकिन साल भर की मेहनत को जाया तो नहीं किया जा सकता था, इसलिए मन मारकर हॉस्टल परीक्षा देने चली गई।खैर,गृहस्थी की गाड़ी कभी लड़खड़ाते, सम्हलते,हंसते,रोते, मुस्कराते, शिकायतें करते चलती रही।कुछ गम मिले तो ढेरों खुशियां मिलीं।तभी बेटी सिमी ने अपनी सहेलियों से मिलाने के लिए लता जी को उनकी यादों की दुनिया से बाहर निकाल लिया।

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