Pal Pal Dil ke Paas - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 14

भाग 14

अभी तक आपने पढ़ा कि नियति से बिछड़ने के बाद फिर से अचानक मेरी उससे मुलाकात कोर्ट में हो जाती है। जहां वो अपनी बेटी मिनी की कस्टडी हासिल करने के लिए आई थी। उसे परेशान देख मुझसे रहा नही गया। कोर्ट के दांव पेच ने नियति को उलझा रक्खा था। मैंने उससे कहा, "मैं वादा करता हूं कि उसकी बेटी मिनी की कस्टडी में उसकी मदद करूंगा।" इसी सब जानकारी के लिए मैं नियति और रस्तोगी के साथ मीटिंग रखता हूं एक रेस्टोरेंट में। नियति रस्तोगी के अभी तक के रवैए से संतुष्ट नहीं थी। पर आज जब रस्तोगी ने अपना बेस्ट करने का वादा किया तो उसे थोड़ा यकीन रस्तोगी पर हो गया। मीटिंग के बाद मैने नियति को उसके घर ड्रॉप किया। जब घर आकर ये सब मां को बताया तो को बहुत खुश हुई। अब आगे पढ़े।

नीता कल नियति के प्रति प्यार नीना से छिपा नहीं था। नीता लाख बहाने बनाए पर वो मिनी को साथ ले जाने की इजाजत बहुत कम देती। नीना देवी को ये आशंका हमेशा बनी रहती थी की कहीं नीता मिनी को नियति से मिलवाने न के कर चली जाए। अगर कभी नीना देवी नीता को इजाजत देती भी मिनी को बाहर ले जाने की तो बस थोड़ी देर के लिए। नीता किसी तरह बहाने बना कर मिनी को ले कर आती नियति से मिलवाने। पर... ये पल इतनी जल्दी बीत जाता की नियति की ममता मिनी से मिल कर और ज्यादा तड़प उठती। ये ऐसा ही होता जैसे किसी भूखे को खाने की थाली दिखा कर हटा लेना। सिर्फ देख भर लेना काफी नहीं होता..! इतने थोड़े से समय में नियति की ममता तृप्त न हो पाती। नीता को भी ये डर सताता की अगर जरा सा भी नीना को शक हो गया तो फिर मिनी का ये जो नियति से मिलना है वो भी बंद हो जायेगा। फिर नियति कैसे सब्र करेगी? इस कारण नीता इस बात का खास ख्याल रखती कि किसी को पता न चले। नीता को अपनी बहन का रवैया बिलकुल भी नही भाता था, उसका दिल चाहता इसकी खिलाफत करने का। पर वो नियति के मदद की सोच कर खामोश रह जाती। वो यहां रह कर नीना की सारी चालों को समझना चाहती थी। फिर नियति की मदद करना चाहती। अगर जीजी का विरोध कर वो यहां से चली गई तो फिर यहां क्या हो रहा है ये न उसे पता चलता, ना नियति को । यही कारण था की नीता अपनी बहन नीना की सही, गलत सभी बातों को बर्दाश्त कर रही थी।

उधर चंचल अपने ससुराल जाने के बजाय ननद नीना के घर ही डेरा डाले हुए थी। चंचल को इस घर की सुख शांति बिलकुल भी नहीं भाती। वो हर पल कुछ ऐसा करने के जुगाड़ में रहती की नीना बस उसी की बातों का भरोसा करें। बाकी सब नीना से दूर हो जाए। इसमें भी उसका स्वार्थ निहित था। उसका पति मदन (नीना का भाई) एक नंबर का निकम्मा और आलसी था। काम करना उसे जरा भी नहीं सुहाता था। उसकी नज़र दीदी नीना के धन दौलत पर ही लगी रहती। पहले तो आता जाता रहता था क्योंकि मयंक को उसकी आदतें पसंद नहीं थी। वो उसे टिकने नही देता था। भले ही मदन मयंक का मामा था पर मयंक उन्हे जरा भी पसंद नहीं करता था। जब तक मयंक था मामा मदन के आने के कुछ दिन पश्चात ही उसे वापस उसके घर भेज देता। मयंक के रहते जब उसकी दाल नहीं गली तो अब उसके जाने के बाद मदन अपने मंसूबे कामयाब करना चाहता था। मदन मयंक के मृत्य के समय आया तो फिर वापस नहीं गया। ये कह कर रुक गया की, "नीना दीदी मैं भी चला जाऊंगा तो आप बिल्कुल अकेली हो जाएंगी। मैं आपको इस तरह अकेला छोड़ कर नहीं जा सकता दीदी। मैं यहीं रुकूंगा आपके पास। आपकी मदद करूंगा। आखिर इतना बड़ा बिजनेस आप अकेले कैसे संभाल पाएंगी।" इसी तरह अपनी मीठी मीठी बातों से मदन खुश किए रहता दीदी नीना को। जब भी नीना बिजनेस के सिलसिले में बाहर जाना या ऑफिस जाना चाहती वो रोक देता। कहता, "दीदी आप कहां परेशान होगी? मैं हूं ना सब संभाल लूंगा। मेरे रहते आप काम क्यों करोगी..? मैं हूं ना..! आप बस आराम करो। "

नीना को भी अपने इस भाई पर ज्यादा भरोसा नहीं था। इस लिए जब वो कहती की, "नहीं मैं सब संभाल लूंगी। तुम रहने दो।"

तब वो इमोशनल कार्ड खेलता कहता, "हां दीदी अब मैं तो हूं ही बाहरी। मुझे भरोसा आप थोड़ी ना करोगी! हां! ठीक है मैं रहने देता हूं आप जाओ। मैं तो इसलिए रुका हुआ हूं की मयंक के जाने से आप अकेली हो गई हो। मैं आपका कुछ सहयोग कर सकूं। पर जब आप नहीं चाहती तो मैं आज ही चंचल को ले कर गांव चला जाऊंगा।"

ये कह कर मदन जाने का ड्रामा करने लगता। और फिर गांव जाने की तैयारी करने लगता। साथ ही नीना देवी को भावुक करने के लिए तरह तरह की बातें करता। नीना घबरा जाती की अगर ये दोनों भी चले जायेंगे तब मैं अकेले इस घर में कैसे रहूंगी? मयंक के जाने से नीना बिलकुल टूट सी गई थी। नियति को उसने घर से निकाल ही दिया था। मिनी और भाई भौजाई के सहारे वो अपना अकेलापन बांट रही थी। अब जब नियति ने मिनी की कस्टडी का केस फाइल कर दिया था तो वो और भी डर गई थी। कहीं अगर नियति केस जीत गई! मिनी की कस्टडी उसे मिल गई। तब वो कैसे जिएगी? मदन ने ही नीना के कहने पर रस्तोगी को लालच दिया था। हर तारीख पर वो आगे तारीख लेता रहे। बस उसे केस जितना हो सके लंबा खींचना है। हर तारीख के बाद रस्तोगी को एक मोटी रकम मदन पहुंचा देता। धीरे धीरे मदन ने सारा बिजनेस संभाल लिया। नीना कभी कभी आती। सिर्फ साइन करने।

और इधर घर के अंदर का दारोमदार चंचल ने संभाल लिया था। वो सास बहू में जितनी दूरी पैदा कर सकती थी, कर रही थी। जैसे सच अचानक से ही जबान पर आ जाता है। वैसे ही कभी अगर अनायास ही नीना के मुंह से नियति की कोई अच्छाई जुबान पर आ जाती तो चंचल तुरंत ही बात का रुख मोड़ कर नियति की गलतियों का पिटारा खोलने लगती। कहती, "जीजी आप तो लगता है की भूलने लगी हो की उसी करमजली की वजह से आज अपना मयंक बेटा हमारे पास नहीं है।"

नीना के कानो में ये शब्द पड़ते ही उसका चेहरा कठोर हो जाता। नियति के प्रति एक नफरत का भाव उसके चेहरे पर छा जाता। पास खेलती मिनी को उठा कर सीने से चिपका लेती। नियति कही उसके जीने का सहारा न छीन ले। वो मन ही मन बुदबुदाती, "मैं किसी भी कीमत पर मिनी को किसी नहीं दूंगी। कोई मेरे मयंक की निशानी मुझसे नहीं छीन सकता।"

नीना के पास आ कर चंचल आग में घी डालने का काम करती। कहती, "जीज्जी बचाके रखिए गुड़िया को उस मायावी जादूदरनी से। जिसके भी करीब आती है उसे इस दुनिया से ही विदा कर देती है। अब देखिए मयंक पे जादू चला कर वश में कर लिया। जब तक उसे इस दुनिया से रुखसत नही कर दिया, उसे नहीं छोड़ा।"

इतना कह नीना के पास आकर कंधे को धीरे से दबा कर कहती, "जिज्जी आप तो खुद ही समझदार हो...। मैं तो बस इतना कहूंगी आप बस सावधान रहना।"

इतना कह वहां से चंचल चली जाती। क्योंकि उसे पता था की उसका काम यहां हो गया है। जो आग नीना के दिल में सुलग रही थी, उसमे घी डाल कर हवा वो दे चुकी थी। फिर नीना के पास रुकने का कोई अर्थ नहीं था। नीना की नजर हटते ही अपनी चल में कामयाब होने पर मुस्कुराती हुई चली जाती।

मैने रस्तोगी से जल्दी डेट लेने को बोला था। उसने फोन करके मुझे बताया की सात तारीख की डेट लगी है। सात तारीख में अभी बारह दिन बाकी थे। मैं अब अपनी सारी भावनाओ को किनारे कर एक काबिल वकील की भूमिका में आ गया। जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ अपने मुवक्किल को न्याय दिलाना हो गया था। रस्तोगी से मैं हर छोटी बड़ी बात शेयर करने को पहले ही बोल चुका था। अब बस इंतजार था तो तारीख का।

अगले भाग में पढ़े तारीख पर क्या करवट लिया इस केस ने। क्या नियति की मंशा सफल हुई? क्या रस्तोगी ने अपना पक्ष सही ढंग से रक्खा?