Pal Pal Dil ke Paas - 17 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पल पल दिल के पास - 17

पल पल दिल के पास - 17

भाग 17

राज

आपने पिछले भाग में पढ़ा की नीता मिनी को लेकर बाहर जाती है और नीना को ये बात नहीं बताती है क्योंकि उसे नियति को मिनी से मिलवाना था। देर होने पर नीना देवी शांता से मिनी को अपने पास लाने को बोलती है। शांता मिनी को लेने जाती है। अब आगे पढ़े।

शांता जानती थी की मिनी नीता के साथ है बाहर लॉन में। वो बाहर आई। शाम का धुंधलका अब रात के अंधेरे में बदलने लगा था। शांता मन ही मन सोचने लगी इतनी देर तक तो नीता दीदी मिनी बेबी के साथ बाहर नहीं रहेगी। वो अवश्य ही मिनी बेबी के कमरे में उसे लेकर गई होंगी। इस लिए वो लॉन से वापस अंदर लौट आई। ऊपर बने कमरे में जिसमे मिनी खेलती थी, देखने जाने लगी। ऊपर जा कर देखा तो कमरा खाली था। शांता सोच में पड़ गई की आखिर नीता दीदी मिनी के साथ कहां चली गई। उसे कुछ अंदेशा था की हो सकता है की नीता दीदी मिनी को बहू रानी से मिलवाने गई हो। अब इस बात को कैसे छिपाए नीना देवी से ..? वो तो मिनी को अपने पास बुला रही है। पर अब वो कुछ भी नहीं कर सकती थी।

फिर नीचे आकर शांता ने नीना को बताया, " दीदी..! मिनी बेबी और नीता दीदी ना तो बाहर है और ना ही ऊपर वाले कमरे में। आप परेशान ना हो ..! यही कही गई होंगी । अभी थोड़ी देर में आ जायेगी।" कह कर शांता ने बात को टालने की कोशिश की। फिर बोली, "दीदी आप चाय पियेंगी ..? मैं अभी बना लाती हूं।"

नीना देवी बोली, " ना ..! अभी नही पहले मिनी को ले आ फिर चाय पिऊंगी। ठीक से देखा बाहर.. ! वो बाहर ही कहीं होंगी। अंदर जाते तो मैने नही देखा। वही कही दोनो खेलती होगी। नीता भी तो बिलकुल बच्ची ही बन जाती है बच्ची के साथ। मिनी ने कहा होगा घुमाने को तो नीता उसे लेकर चली गई होगी घुमाने। मिनी तो बच्ची है जिद्द करती है, पर नीता तो उससे भी ज्यादा बच्ची बन जाती है मिनी के साथ खेलते खेलते। चल मैं भी चलती हूं तेरे साथ।"

इतना सब कहते हुए नीना देवी शांता के साथ मिनी को देखने बाहर लॉन में चली आई।

(नीता का अपना कोई बच्चा नहीं था। शादी के इतने साल गुजरने के बाद भी वो मां नही बन पाई थी। इस कारण वो अपना सारा ममत्व मयंक पर ही उड़ेलती थी। मयंक पर ही अपना प्यार लूटा कर वो अपने अतृप्त मातृत्व को तृप्त करती थी। मयंक के साथ ही उसके सपने भी आकार लेते गए थे। जैसे जैसे वो बढ़ता गया, नीता का मयंक से प्यार भी बढ़ता गया। जब वो हंसा नीता भी हंसी, जब वो बीमार हुआ तो पूरी रात बिना पलक झपकाए, सिरहाने बैठ कर पूरी रात काट दी। पति के इस दुनिया से चले जाने के बाद नीना देवी को अपना बिजनेस भी देखना होता था। नीता के इस तरह मयंक की जिम्मेदारी लेने से नीना भी अपना पूरा समय बिजनेस की देखभाल में लगाती थी। नीता के पति आर्मी में थे। इस कारण वो हर पोस्टिंग पर सिर्फ कुछ दिनों के लिए घूमने जाती थी। वो भी मयंक और नीना के साथ। मयंक के साथ इस लगाव को नीता के पति सुहास भी समझते थे। उन्हे प्रसन्नता होती थी की कम से कम नीता बाकी उन औरतों की तरह हमेशा औलाद न होने से दुखी नहीं रहती। कोई जरूरी नहीं की मां बन के ही मातृत्व को महसूस किया जाए। किसी भी बच्चे को अपना मान कर उस पर अपनी ममता लुटाई जा सकती है। अब वो बच्चा किसी रिश्तेदार का भी हो सकता है! अनाथ भी हो सकता है! वो कभी नीता को किसी बात के लिए मना नही करते थे। नीता की खुशी में ही उसके पति सुहास को अपनी भी खुशी महसूस होती थी। नीता और सुहास ने यही किया था।

जब मयंक ने नियति को जीवन साथी के रूप में चुना तो सबसे पहले अपनी प्यारी मौसी नीता को ही बताया। नीना देवी के पास तो समय का अभाव था। मयंक अपनी सभी छोटी बड़ी बातें अपनी मौसी नीता से ही शेयर करता था। नीता के समझाने से ही नीना नियति को बहू के रूप में एक्सेप्ट कर पाई थी। नियति को इस नए घर में रचने बसने में नीता ने बहुत सहयोग किया था। फिर मिनी का इस घर में आगमन से पूरे घर में रौनक सी आ गई थी। अभी ये रौनक ठीक से घर में छा भी नही पाई थी कि अचानक हुए हादसे ने मयंक को सबसे छीन लिया। पिता का साया सर से उठने के बाद नियति को भी मिनी से अलग कर दिया गया। माता पिता के प्यार से वंचित मिनी को देख नीता का कलेजा छलनी हो जाता। वो नियति को भी मयंक जितना ही प्यार देती थी। नियति भी नीता को मां जैसा ही सम्मान देती थी। जितना प्यार नीता ने मयंक पर लुटाया था। उसका दो गुना प्यार वो मिनी पर लुटाने लगी।)

इतना कह नीना शांता के साथ बाहर मिनी और नीता को देखने चली आई। बाहर रात गहरा रही थी। लॉन में बिजली के बल्ब की रौशनी फैली हुई थी। पर स्पष्ट कुछ नहीं दिख रहा था। इधर उधर आवाज लगाते हुए नीना और शांता मिनी और नियति को ढूढने लगी। पर न ही नीता दिखी, ना ही मिनी।

ना मिलने पर शांता और नीना देवी बाहर मेन गेट की ओर आ गई। जैसे ही गेट पर वो दोनों पहुंची देखा मिनी को गोद में लिए नीता तेज कदमों से चली आ रही है। उसे आते देख नीना के जान में जान आई।

नीना आगे बढ़ कर लपक कर मिनी को नीता के हाथों से ले लिया। और सवाल दागा, "अरे!!! नीता तू कहां चली गई थी मिनी को लेकर रात में? मैं तो घबरा ही गई थी।" इतना कह कर नीना मिनी के साथ अंदर चली आई। पीछे पीछे नीता और शांता भी अंदर आ गई। अंदर आकर सोफे पर मिनी को बिठा कर नीना देवी ने देखा तो मिनी के हाथों में चॉकलेट नजर आई। चॉकलेट से उसका पूरा चेहरा पुता हुआ था। साथ ही हाथ में एक बड़ी सी चॉकलेट और भी थी। नीना मना करती थी ज्यादा चॉकलेट मिनी को खिलाने से। नीता ने जब देखा की जीजी गौर से चॉकलेट देख रहीं है और चेहरे का भाव बदल रहा है। वो समझ गई की जीजी नाराज होंगी। एक तो रात में बाहर जाने से दूसरा चॉकलेट देने से। अब उसे डर भी लग रहा था की कहीं जीजी के आगे भेद न खुल जाए की वो मिनी को नियति से मिलाने ले गई है। अगर पता चल गया तो..? आगे वो सोचना नहीं चाहती थी। खैर ...अब जो होगा उसका सामना तो करना ही होगा।

नीना तेज नजरों से घूरते हुए नीता से बोली, "ये क्या नीता???? मैने मना किया था ना..! कि मिनी को चॉकलेट नहीं खिलाना है। अभी दो दिन पहले ही उसके दांतों में दर्द हुआ था। कितना रोई थी मिनी दर्द से। तुमने भी तो देखा था। डॉक्टर ने मीठी चीजे खाने से बिल्कुल भी मना किया था। फिर भी तुमने उसे इतनी सारी चॉकलेट दे दी...!"

नीता थोड़ा अटकते हुए बोली, "वो जीजी मिनी चॉकलेट देख कर मचलने लगी। आपको तो पता है मैं किसी भी चीज के लिए मिनी को मना नहीं कर पाती! उसने जिद्द की तो मैंने दिला दी।"

नीना ने शांता को बोला टॉवेल ले कर आए। शांता टॉवेल ले कर आई और बोली, "दीदी आप रहने दो मैं साफ कर देती हूं।" टॉवेल को नीना देवी को न देकर शांता खुद ही साफ करने लगी। मिनी के नन्हे नन्हे हाथों को साफ करते हुए अनायास ही शांता पूछ बैठी, "मिनी को चॉकलेट बहुत अच्छी लगती है ना…! मिनी को चॉकलेट नीता मौसी ने दिलाई! मौसी आपको बहुत प्यार करती है ना!" इतना कहते हुए शांता ने उसकी उंगलियों को पोंछ कर साफ किया और उठते हुए प्यार से गालों को सहला दिया। चॉकलेट में पूरे चेहरे पर फैलाए मिनी बेहद क्यूट लग रही थी। शांता को अंदाजा भी नहीं था की उसके इस छोटे से प्रश्न से क्या तूफान उठने वाला है? वो जा ही रही थी की अचानक मिनी बोल उठी, "नई.. छांता दादी……. चॉकलेट मम्मा ने दी।" नन्ही मिनी शांता नही बोल पाती थी। इस कारण शांता को छांता दादी ही कह कर बुलाती थी।

मिनी के मुंह से निकले इन चंद शब्दों ने वहां मौजूद सभी के चेहरे के भाव बदल दिए। मिनी के हाथ साफ कर वापस जाती हुई शांता के कदम ठहर गए।

अब शांता का जी आने वाले तूफान की सोच कर धड़क उठा।

नीना देवी की क्या प्रतिक्रिया हुई? ये जानकर की नीता मिनी को लेकर नियति के पास मिलवाने गई थी? नीता ने क्या सच कबूल किया? क्या नीना देवी ने नीता की गलती को नजर अंदाज कर दिया…? या फिर ..? पढ़े अगले भाग में ।

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very nice part

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