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विविधा - 20

20-फिल्मों में हास्य को गंभीरता से

क्यों नहीं लिया जाता ?

 इस तनाव युक्त आधुनिक जीवन में मनोरंजन और हास्य का महत्व अधिक है। एक अजीब समय आया है, हर व्यक्ति भाग दौड़, तनाव में जी रहा है। इससे बचने हेतु सामान्य आदमी फिल्मों की ओर दौड़ता है और फिल्मों में हास, परिहास और व्यंग्य ढुंढता है। 

 आईये, देखें कि फिल्मों में हास्य का स्तर कैसा है और किन लोगों ने फिल्मी हास्य के चेहरे का संवारा है या बिगाड़ा है। 

 जिन लोगों ने चार्ली चेपलिन की या अन्य विदेशी हास्य फिल्में देखी हैं वे अवश्य ही इनके हास्य के स्तर से प्रभावित हुए होंगे। 

 भरत मुनि ने भी नाट्य शास्त्र में हास्य रस को अत्यंत महत्व दिया है, लेकिन हमारी भारतीय फिल्मों में हास्य की स्थिति और महत्व शोचनीय है। हमारे यहां पर ‘हमस ब चोर हैं’, ‘जोहर महमूद इन गौवा’, ‘अल्टी गंगा’, ‘भूत बंगला’, ‘कुंवारा बाप’, रफू चक्कर’, ‘मस्ताना’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, आदि जैसी फिल्में बनती रहीहैं।इन फिल्मों हास्य कम और हस्यास्पद स्थितियां ज्यादा होती हैं। 

 संसार का सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाला देश हास्य के मामले में अत्यंत गरीब है। हमारी फिल्मों में हास्य अभिनेता की आवश्यकता केवल इसलिए है कि फिल्म में सभी मसालें होने चाहिए और हंसी मजाक भी एक मसाले के रुप में प्रयुक्त होता है।

 निर्माता निर्देशक फिल्मों में हास्य केवल इसलिए डाल देते है कि कहीं दर्शक कमी के कारण फिल्म को फ्लाप नहीं कर दे। 

क्या हमारे पास अच्छे हास्यकलाकार, अच्छे हास्य पटकथाकार नहीं हैं ? नहीं ऐसा नहीं है। असली बात है उनके सही उपयोग की। विदेशी फिल्मों में हास्य को अत्यंत गंभीरता से लिया जाता है। वहां हास्य कलाकार के इर्द गिर्द कथा का ताना-बाना बुना जाता है और दर्शक सचमुच फिल्म को पसंद करते हैं। लारेल हार्डी या चेपलिन, डेनी के, टोनी कर्टीस, पीटर सेलर्स, जोवेल ग्रे जैसे अभिनेताओं ने हास्य फिल्मों को नई उंचाईयां दी। 

हिन्दी फिल्मों में हास्य अभिनेताओं में बी. एच. देसाई का नाम सर्व प्रथम आता है। बाद वे दिनों में गोप दीक्षित, केरी, याकूब, राधाकृप्ण आदि अभिनेताओं ने अपने अभिनय और संवाद ष्शैली की छाप दर्शकों पर छोड़ी। 

‘अलबेला’ फिल्म से भगवान को दर्शकों ने पहचाना फिर जानीवाकर ‘श्री मती 420, सबसे बड़ा रुपया’ आये, और तुरन्त बाद महमूद ने अपनी अलग पहचान बनाई। फिर तो फिल्मों में हास्य अभिनय को कुछ प्रमुखता दी जाने लगी। इस दौर के हास्य अभिनेताओं में मुकरी, जगदीप,राजेन्द्रनाथ, केश्टोमुखर्जी आदि आये। 

आगे जाकर स्थिति इतनी बदली कि दर्शक को हंसाने के लिए निकर पहने गये, पुरुपों को स्त्रियों की पोशाकों में नचाया गया, सभा में पैन्ट का उतर जाना जैसे हास्यास्पद कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। लेकिन इस भीड़ में देवेन वर्मा और जयपुर के असरानी ने शिप्ट मधुर और उच्च स्तरीय हास्यकला का प्रदर्शन किया। असरानी की सलाम मेमसाहब और चला मूरारी हीरो बनने अच्छे हास्य के उदाहरण हैं। पर अब वे भी पटरी से उतर गये हैं। 

हिन्दी फिल्मों में हास्य को रोमान्टिक कामेंडी के रुप में भी दिया गया। तुमसा नहीं देखा, लव इन शिमला, जंगली, प्यार किये जा, जवानी दिवानी, मस्ताना, खट्टा मीठा आदि ऐसी ही फिल्में हैं। इसी दौर में कुछ नायकों ने भी सफल हास्य अभिनय किये। मोतीलाल की मि. सम्पत एक अच्छी हास्य फिल्म है। अशोक कुमार ने विक्टोरिया नं. 203, आदि फिल्मों में चार्ली चेपलिन जैसा अभिनय कर दिखाया। किशोर कुमार ने भी बेवकूफ, भागमभाग, मेम साहब,शाबाश डैडी जैसी फिल्मों में हास्य अभिनय कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। काश किशोर अपने हास्य अभिनय को जारी रखते।

हास्याभिनय का सरलतम तरीका है जोड़ियों द्वारा हास्य उत्पन्न करना। जोड़ी दो मर्दो की, एक औरत एक आदमी या दो औरतों की हो सकती है। अशोक कुमार-प्राण,अमिताभ-विनोद खन्ना, राजकपूर, राजेन्द्र कुमार, अशोक कुमार, अमोल पालेकर, जानीवाकर, कुमकुम, महमूद ष्शोभा खोटे, अरुणा इरानी आदि जोड़ियों ने हास्य के क्षेत्र में बहुत कमाल दिखाये हैं। हास्य के क्षेत्र में महिला कलाकार कुछ कम ही हैं। टुनटुन इंदिरा बंसल, प्रीति गागुंली, अरुणा इरानी, शोभा खोटे, आदि को छाकड़ कर अन्य नाम सुनाई नहीं पड़ते। वे उलजलूल भोंडे लटके ही इस्तेमाल करती हैं। 

 कुल मिलाकर हिन्दी फिल्मों में हास्य की स्थिति अभी भी शोचनीय ही है। कई बार घटिया तरीकों से तथा टाइप्ड विधियों से जो हास्य उत्पन्न किया जाता है वह बेहूदा होता है। देवन वर्मा और असरानी ऐसे अभिनेता हैं जो टाइप्ड होने से कहीं कहीं बचे हैं। 

इधर चार पांच वर्पो में कुछ ऐसी फिल्में बनी हैं, जो स्वस्थ हास्य दे गयी हैं। शरद जोशी ने संवादों ने माध्यम से ‘छोटी सी बात’ में शिप्ट हास्य दिया। रजनीगंधा, चित-चोर, पति-पत्नी, और वह, दामाद, दिल्लगी आदि फिल्मों में अच्छा हास्य है और यह एक शुभ स्थिति है। उम्मीद की जानी चाहिए कुछ अन्य अच्छी, हास्य से ओत प्रोत फिल्में दर्शकों को मिलेंगी। 

 

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