Andhera Kona - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

अंधेरा कोना - 5 - अंधेरी मौत

मैं राजन, गलती से मैं हमारे इलाके "अंधेरा कोना" मे जाकर अपनी जिंदगी खतरे में डाली थी, लेकिन मैं और राज वहा से जिंदा वापस आए थे। उन दिनों हमारा समर वेकेशन चल रहा था, इसलिए हमने सोचा कि हम सभी क्लासमेट घूमने जाते हैं, हमने प्लान बनाया की सभी लोग राजपुर जाए, राजपुर जोकि हमारे अनंतगढ़ से 200 किलोमीटर दूर एक आया एक हिलस्टेशन था, वहां बहुत बड़ी डायवर्सिटी थी जिसमें बहुत सारी प्रजाति के पेड़, पौधे और जानवर थे वहा एक राष्ट्रीय उद्यान था और वाइल्ड- लाइफ सेंचुरी भी थी। हम कुल 15 लोग थे जिसमें शालिनी, प्रीति, नेहा, सीमा, विदिशा, विनीता, शर्मिला, ईमरान, नीलेश तावडे, दीपाली, पूजा, कामिनी, भावेश, राज और अखिर मे मैं। हम सबने ट्रेन में राजपुर गए और वहा पर नीलेश ने पहले से ही एक होटल में पांच कमरे बुक करवा लिए थे, हम सब सोमवार को दोपहर के समय में पहुचे थे, वही होटल में खाना खाने के बाद हम सबने आराम किया, शाम को राजपुर की बाजार में घूमने गए, लड़कियों ने तरह तरह के ओर्नामेन्टस खरीदे। उस बाजार हम लड़कों के लिए थी ही नहीं, हम लड़कों के लिए सिर्फ एक ही चीज थी खरीदने को और वो थी बाल बनाने के लिए कंगी! उस दिन रात के 11.00 बजे मुजे नींद नहीं आ रही थी, इसलिए मैं होटल के बाहर फ़ुटपाथ पर बेंच पर बैठा मोबाईल घूमा रहा था, उधर एक गोरा सा दिखने वाला इंसान मेरे पास आया, बेंच पर बैठकर उसने मेरे साथ बात करनी शुरू की

वो : घूमने आए हो?

मैं : जी हाँ, हम सब ग्रुप मे आए हैं।

वो : ठीक है, यहां एक जगह है घूमने के लिए, "सूइसाइड पॉइन्ट ऑफ राजपुर" वहाँ जरूर से घूमने जाना। सुन्दर जगह तो है ही लेकिन वहाँ "चमकार" भी है।

अचानक मुजे लगा कि मेरे पैर में कोई कीड़े ने काटा है इसलिये मैं नीचे झुका फिर उपर उठकर देखा तो वो शख्स नहीं था, कहीं अगल बगल मे भी नहीं था

मुजे तो लगा कि वो कोई पागल आदमी होगा, मैं थोड़ा बैठकर वापस होटल पर चला गया। सुबह मैंने हमारे ग्रुप को ये बात बताई, फिर हमने भी उधर जाने का सोचा, हम लोग दरअसल राजपुर की वाइल्ड लाइफ़ सेंचुरी मे जाने वाले थे दोपहर के बाद हमने शाम को 5.00 बजे सूइसाइड पॉइंट जाने का सोचा। जब हमने ये बात हमारे मेनेजर को बताई, उसने हमारी बात सुनते ही आह भरी और सिर्फ एक ही बात कही, " हो सके तो उधर मत जाना", उसकी बात हमे अजीब लगी लेकिन हम उधर जाने की तैयारी करने लगे, सेंचुरी की विजिट के बाद हम सब लोग शाम 4.30 बजे वैली ऑफ राजपुर जो कि एक जगह थी जहा पर ये सूइसाइड पॉइंट आया था, वहा जाने के लिए सीढ़ियां उतरकर जाना था, पत्थर को काट कर सीढिया बनाई गई थी।

वो सूइसाइड पोंटिंग इसलिए कहा जाता है क्युकी वहाँ पर एक अंग्रेज अधिकारी ने सन 1910 मे उधर की खाई में गिर के आत्महत्या कर ली थी। सीढिया उतरकर जब हम उस जगह गए तो हम देखकर हैरान रह गए, वो एक बहुत ही सुंदर और रमणीय जगह थी, वहा एक बड़ा सा घास का मैदान था, वहा के पौधे पर रंगबिरंगी फूल आए थे, लंबे लंबे पेड़ थे उधर, एसा लग रहा था कि मानो हम स्वित्झरलेन्ड आए हों, हिल स्टेशन होने की वज़ह से वहा का तापमान भी कम था इसलिए हमे उधर अच्छा मेहसूस हो रहा था, नीलेश ने कैमरा निकाला और फूल पर बैठी तितलियों की फोटो खिंचने लगा। हमारे ग्रुप की लड़किया फोन के कैमरे से सेल्फीयां लेने लगी। विनीता खुश होकर गाना गा रही थी, "आज मे उपर, आसमा नीचे" वो बोलते हुए उल्टा पीठ की तरफ चल रही थी कि एक आदमी की पीठ से टकरा गई, वो घूम गई और वो शख्स भी घूम गया, दोनों एक दूसरे को सॉरी - सॉरी बोलने लगे, हम सबने उस शख्स को देखा।

वो एक अंग्रेज था, 6 फीट लंबा, हैंडसम लड़का था, उसकी उम्र करीबन 33-34 साल की होगी, वो वहा की तस्वीर खिंच रहा था, उसने अपना नाम स्टीफन बताया, वो बहुत ही मीठी बाते कर रहा था, अंग्रेज होते हुए भी उसे हिन्दी अच्छी आती थी, एसा लग रहा था कि मानो सालो से भारत मे रह रहा हो। हमने उसके पास हमारी ग्रुप फोटो भी ली, हम उनसे बाते करने लगे,

स्टीफन : ये जगह को सूइसाइड पॉइंट क्यु कहा जाता है?

शालिनी : यहा एक अंग्रेज ने सूइसाइड किया था।

स्टीफन : अच्छा?!! कहा से किया था?

प्रीति : वहां वो जो बोर्ड दिख रहा है ना, वहा से कूदा होगा।

स्टीफन बोर्ड के पास गया

स्टीफन : यहा से?

हमे थोड़ा अजीब लग रहा था

सीमा : हाँ, वहीं से शायद

स्टीफन : एसे कूदा होगा न?

इतना बोल के स्टीफन ने वहां की बाउंड्री वॉल कूद के खाई मे छलांग लगा दी!!!

हम सब भौचक्के रह गए, हम सब उधर दौड़कर गए और खाई में देखने लगे, वो 2500 से 3000 फिट गहरी खाई थी, वहां अंधेरे के सिवा और कुछ नहीं दिखा, दो तीन लड़कियों को चक्कर आने लगे, हमने उन लोगों को सम्भाला।

मैं : चलो वापस चलो, ये जगह सही नहीं है, यहा पर मुजे भी चक्कर आ रहे हैं।

पूजा : मुजे कोई बुला रहा है, मुजे कूदना है इसमे।

कामिनी : मुजे भी कूदना है, चलो हटो मुजे जाने दो

नेहा : अरे ये क्या बोल रही हो तुम दोनों, खाई मे हमारा कोई संबंधी नहीं बैठा होगा, मौत होगी मौत!!

हम सब उन दोनों को खिंचते हुए वहा से भागे, हम सब सीढिया चढ़ते हुए भागने लगे, हम सब बाल बाल उपर पहुचे, तभी हमने चैन की साँस ली! हम सब होटल गए वहाँ के मेनेजर को हमने ये बात बताई, तब उसने कहना शुरू किया,

मेनेजर : 1910 की साल मे एक अंग्रेज अधिकारी स्टीफन ने उधर खाई मे गिरकर सूइसाइड किया था, क्युकी उसकी बीवी ने उसे धोखा दिया था और सारी जायदाद अपने नाम करवा ली थी और किसी दूसरे अंग्रेज के साथ भाग गई थी, आजादी के सालो बाद उधर जब खाई के उपर जब भारत सरकार ने बाउंड्री बनाना शुरू किया तब कई मजदूरों को वो स्टीफन का प्रेत दिखा था, सिर्फ इतना ही नहीं बलकि उधर खाई मे देखने पर कुछ लोग खाई मे गिरने के लिए हिप्नोटाइज भी हो जाते हैं, और वहां 2-3 मजदूर और एक सिविल इंजीनियर ने भी कूदकर अपनी जान दी है,तब से वो सरकार ने भी वहा का काम अधूरा ही छोड़ दिया, यहा जो कोई भी घूमने आते हैं उन्हें यहा के लोग उस सूइसाइड पॉइंट पर घूमने ना जाने की सलाह देते हैं इसीलिए मैं आपको मना कर रहा था, आप लोग खुशकिस्मत हो कि सभी के सभी लोग सलामत बाहर आ गए।


हम सभी के पैरों तले की जमीन खिसकी हुई थी, हम सबके होश उड़े हुए थे,मैं ये सोच रहा था कि हमारी जो ग्रुप फोटो थी वो किसने ली होंगी!! हमे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उस सुन्दर सी जगह सही मे मौत का अंधेरा था।