Andhera Kona - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

अंधेरा कोना - 10 - अनंत का रास्ता

मैं मयूर , मैं अनंतगढ़ मे रहता हू, यह एक छोटा-सा गांव है, जहां की बस्ती सिर्फ 2000 लोगों की हैl मैं , मेरे गांव की हायर सेकंडरी स्कूल में 11th कक्षा मे पढ़ता हू, उन दिनों स्कूल मे मेरी दोस्ती एक नए लड़के से हुई थी, उसका नाम परेश था l परेश से मेरी दोस्ती बहुत गहरी होती जा रही थी, वो अच्छा लड़का था, लेकिन वो मेरे सिवा और किसी से भी ज्यादा बात नहीं करता था, मैं उसे समझाता था कि और लोगों से भी बात कर लिया करे l एक दिन वो मुजे अपने घर ले गया, मुजे आज भी याद है वो रात का समय था, उसका घर जिस इलाके में था वो बहुत ही अजीब इलाक़ा था l बाकी सारे घरों से दूर एक गली थी उस गली के शुरुआती भाग मे ही एक स्ट्रीट लाइट थी, वो लाइट से आगे अन्धेरा था, वहां अंधेरे मे आगे जाते ही उसका घर था l

हम उधर मोबाइल की लाइट की मदद से पहुंचे क्युकी स्ट्रीट लाइट से आगे सिर्फ अंधेरा ही था l परेश के घर मे उसके माता पिता, दादा दादी और एक अकेला लड़का परेश इतने लोग रह रहे थे, वहां मुजे पता चला कि उसके चाचा चाची और उनके दो बच्चे भी है लेकिन वो शहर मे रहते हैं l होल मे परेश के दादाजी बैठे थे,उनकी उम्र 65 से 70 के बीच की होंगी, उन्होंने प्यार से मुजे बुलाया और मेरे से बात करने लगे, उनकी दादी ने भी मुज से बात की वो, वो लोग बहुत अच्छे थेl परेश की मम्मी ने भी मुजे बुलाया और मुजे शर्बत पिलाया, और इसतरह परेश के घर मे मेरी अच्छी खातिरदारी हुई l थोड़ी देर बैठने के बाद मैं वहां से जाने लगा तो वो लोग मुजे खाना खाने का आग्रह करने लगे,

परेश की मम्मी : बेटा खाना खाके जाओ

दादाजी : हाँ बेटे, इधर ही खाना खा लो, मैं तो कहता हू कि अगर घर दूर हो तो यही रात रुक जाओ l

मैं : नहीं आन्टी, माफ करना आज नहीं, फिर कभी आऊंगा l

वो लोग मान गए और मैं उधर से निकल गया, रास्ते में वो अंधेरी गली पूरी हुई और बाकी के घर आने शुरू हुए, वहां एक घर के बाहर एक 85 साल के लग रहे बुजुर्ग बैठे थे, उनके मुह मे चलम थी उन्होंने मुजे इशारा करके अपने पास बुलाया l मैं उधर गया,

बुजुर्ग : उधर कहा से आ रहे हो?

मैं : जी मेरे दोस्त का घर है उधर

बुजुर्ग : क्या? घर? हाँ वहां घर तो है लेकिन सिर्फ अंधेरा ही रहता है l

मैं : नहीं चाचा, उधर घर है और लोग रहते भी है l

बुजुर्ग : उधर पहले घर हुआ करता था, वहां लोग मर गए थे, घर तो है लेकिन खाली है और आगे सिर्फ बंजर जमीन है , आगे से मत जाना l

मैंने बात को वहीं दबा दिया, और कहा

मैं : ठीक है चाचा जी, मैं ध्यान रखूँगा l

मैं वहा से निकल गया, दूसरे दिन मैंने स्कूल मे परेश से मिला और सारी बाते बताई, तब उसने कहा :

परेश : अरे, वो बुढ़े की बात मत कर l वो इंसान नहीं ब्लकि भूत है, वो हर किसीको दिखता है l कुछ करता नहीं है, सिर्फ दिखता है लोगों को, पुराने समय में वो मेरे दादाजी का दुश्मन था, एक दिन मर गया, l

मैं पूरा हिल गया था, बर्थडे के दिन शाम 7.00 बजे को मैं बर्थडे पार्टी में पहुचा l वहां घर में सभी लोग मौजूद थे, मेरे सिवा कोई बाहर का शख्स नहीं था l परेश ने खुशी से मुजे गले लगा लिया, हम लोग बैठकर बाते करने लगे थोड़ी देर बाद केक कट करना था l परेश कुछ काम से दरवाजे के पास गया, मैं उठकर अंदर कमरे में गया, मेरा ध्यान अचानक दीवार पर गया, वहा 5 लोगों की फोटो लगी थी, और ध्यान से दिखा तो वो परेश और उनके परिवार वालो की फोटो थी, मैं हिल गया जब मैंने देखा कि फोटो मे सभी लोगों की स्वर्गवास तारीख लिखी थी, 07/08/1995, मैं घबराकर कमरे से बाहर निकल गया, वहा जाकर देखा तो कमरे में कोई नहीं था l वहां कमरे में लाइट चालू थी, बीच में केक पडी थी जोकि सड़ चुकी थी, उसमे कीड़े पड़े हुए थे l

मैं अभी भी सदमे में था, ये सब हो क्या रहा था मुजे कुछ नहीं समज आ रहा था, मैंने गिफ्ट उठाई और वहा से निकल गया, मैं भागता हुआ बाहर आया l अचानक किसने मेरे कंधे पर हाथ रखकर रोका, मैंने देखा तो वो बुजुर्ग था जो मुजे रास्ते में दिखता था l मैंने कहा,

मैं : छोड़ दो मुजे, भूत हो तुम l

बुजुर्ग : मैं कोई भूत नहीं हू, इंसान हू मैं, ये देखो l

इतना कहकर उन्होंने मुजे अपने हाथ मे छुरी जैसी चीज़ से काट कर दिखाया, जिससे खून निकलने लगा l तब मुजे भरोसा हुआ l

मैं : आप इंसान हो तो फिर परेश मुजे क्यु झूठ बोल रहा था l

बुजुर्ग : बेटे तुमने जिस परिवार से, जिस दोस्त से दोस्ती रखी तो वो पूरा परिवार आज से कई साल पहले मर चुका है l

मैं : क्या??!!

मैं बौखला गया था, मुजे उन्होंने आगे कहा

बुजुर्ग : मेरी उम्र 84 साल है, 1995 मे एक दिन उसी परेश का जन्मदिन था, तभी के ज़माने में भारत देश मे नए नए गैस के सिलिंडर शुरू हुए थे, उन लोगों को एसे सिलिंडर सम्भालने नहीं आते थे, किसीकी लापरवाही के कारण सिलिंडर फ़ट गया और उन पांचो की मौत हो गई, परेश का चाचा का परिवार उस दिन नहीं था इसलिए वो लोग बच गए, उसका चाचा घर देखने को साल मे एकबार आता है l

मैं : तो फिर परेश ने झूठ क्यु बोला कि आप भूत हो l
बुजुर्ग : परेश को झूठ बोलने की बुरी आदत थी, वो अक्सर इधर की बात उधर करके लोगों के बीच झगड़ा करवाता था, इसी वज़ह से उसका कोई दोस्त नहीं था l

मैं : ओह, अब समजा, परेश सिर्फ मुज से ही बात करता था l

बुजुर्ग : हाँ, उधर सिर्फ एक वो घर ही बचा है और अगल बगल में सिर्फ बंजर जमीन है l

मुजे अभी भी ये सब बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था, मैं उस रास्ते को देख रहा था,वो स्ट्रीट लाइट से आगे का अंधेरा रास्ता जहा मुजे परेश का घर नहीं लेकिन "चमकार" दिखा था जो परेश के घर तक नहीं ब्लकि अंधेरे के साथ आकाश तक होते हुए ब्रह्मांड तक जा रहा था l