Charitrahin - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

चरित्रहीन - (भाग-3)

चरित्रहीन.........(भाग-3)

मैं चुपचाप जा कर गाड़ी में बैठ गयी। पापा पूरा रास्ता बिल्कुल चुप रहे शायद ड्राइवर की वजह से कुछ नहीं बोल रहे थे। मैं पापा के पूछने वाले सवालो के जवाब मन ही मन तैयार कर रही थी। कार में पसरी चुप्पी तूफान के आने से पहले वाली शांति लग रही थी... ऐसा लग रहा था कि घर न जाने कितना दूर है। कुछ तो सड़क पर जाम लगा था पहले शक्तिनगर चौक पर फिर बिरतानिया की रेडलाइट पर तो अक्सर बहुत टाइम लग जाता था....आगे पंजाबी बाग जनरल स्टोर पर भी वही रेडलाइट की जाम....
लंबी लंबी रेडलाइट उस दिन बहुत ज्यादा उबाऊ तो थी ही और धड़कने भी बढाती जा रही थी। ड्राइवर सालों से हमारी कार चला रहा था तो उसको भी अँदाजा था कि सेठ जी गुस्से में हैं इसलिए हमेशा कि तरह हमारी साइटस की कोई बात नहीं बता रहा था। पापा से वो वर्कर्स की शिकायत भी करता तो कभी किसी की तारीफ भी....पापा को लगता था कि उसे इंसान पहचानने की समझ है। बीस साल का था जब वो काम पर आया था, अब वो 35साल का है। शादी भी हो चुकी है और एक बेटा भी है जो गाँव में पूरे परिवार के साथ रहती है। वैसे तो उसका नाम सुखदेव है....पर पापा उसको "सुखिया" कहते हैं....हमारी मम्मी हम को कहती थी कि तुम लोग भैया कहा करो। मुझे ये बात पसंद नही आती थी। मैंने स्कूल में अपनी ज्यादातर सहेलियों को उनके नौकरो को नाम से बुलाते देखा था, फिर मैं तो "ड्राइवर या सुखदेव" ही कहा करती थी। पापा ने भी कभी टोका नहीं तो मेरी हिम्मत भी बढनी ही थी, पर मम्मी की आदत थी, मुझे हमेशा ठीक करने की। वरूण तो हमेशा "सुखदेव भैया" ही कहता था। खैर घर पहुँच ही गए और मेरे दिल की धड़कने और तेज हो गयी थी। घर पहुँच कर पापा सीधे बाथरूम में चले गए और मैं अपने कमरे में चली गयी। मम्मी हम दोनो को साथ देख कर हैरान थी....मम्मी मेरे पीछे पीछे कमरे में आ गयीं...." क्या हुआ वसु तू तो देर से आने वाली थी ना फिर इतनी जल्दी पापा के साथ कैसे आ गयी? उनके सवालों के जवाब क्या दूँ? क्या सब बता दूँ या नहीं? वैसे भी पापा मम्मी को अभी सब बता ही देंगे? "क्या सोच रही है वसु ? मैं कुछ पूछ रही हूँ"! "कुछ नहीं सोच रही हूँ मम्मी, मैं और नीरज कमला नगर में चाट खा रहे थे तो पापा उधर से ही आ रहे थे, मुझे वहाँ देखा तो रूक गए और सुखदेव को भेज मुझे बुला लिया इसलिए मैं और पापा साथ आए हैं"। मैंने एक ही सांस में अपनी बात बोल कर खत्म कर दी। "नीरज तो तेरे कॉलेज में साथ पढता था न ? तुम लोग अभी भी मिलते हो? साथ में और कौन कौन था"? मम्मी के सवाल खत्म होने को ही नहीं आ रहे थे, पर उस वक्त मम्मी से तुनक कर बात करने की कंडीशन में नहीं थी, क्योंकि एक तो दिल वैसे ही बहुत जोरो से धड़क रहा था बिल्कुल राजधानी एक्सप्रैस की स्पीड से, दूसरा उस वक्त मुझे मम्मी का साथ भी चाहिए था सो मैंने बाकी बातों के जवाब देने शुरू कर दिए....."हाँ मम्मी वही कॉलेज वाला नीरज, साथ में कोई और
दोस्त या सहेली नहीं था, बस हम दोनो ही संडे एँजाय करने निकले थे, पर पापा कमला नगर कैसे चले गए "? वो मेरी बात सुन कर चुप हो गयीं और बोली, "शायद किसी काम से गए होंगे, घर से तो वो तेरै सामने ही निकले थे, साथ आए हो तो तूने नहीं पूछा"? मम्मी की गहरी नजरे मुझ पर थीं और शायद मेरे हाव भावों पर भी...."नहीं मैंने भी नहीं पूछा"! कह कर मैं कपड़े बदलने चली गयी और मम्मी चाय बनाने किचन में चली गयीं.....।
हाथ मुँह धो और कपड़े बदल कर बाथरूम से बाहर निकली तो वरूण खड़ा था......"दीदी जल्दी से बाहर आ जाओ, पापा बुला रहे हैं"! वो तो कह कर चला गया पर मुझे ऐसा लगा जैसे पैर जकड़ गए हों किसी मजबूत रस्से से, हिल ही नहीं रहे थे अपनी जगह से, फिर खुद को ही हौंसला दिया, वसु हिम्मत तो करनी पड़ेगी आज नहीं तो कल ये सिचुएशन तो आनी ही थी......भारी मन और भारी कदमों से चलती हुई बाहर आ गयी। पापा चाय पी रहे थे और मम्मी पास बैठी थी...."पापा आपने मुझे बुलाया, मैंने पूछा तो बोले हाँ बुलाया है, कुछ बात करनी है, बैठ जाओ"! मैं उनके सामने ही सोफे की कुर्सी पर बैठ गयी। वरूण भी देख रहा था कि हर वक्त पापा पापा करने वाली बहन आज पापा के सामने ऐसे क्यों बैठी है? उसकी आँखो में सवाल तो था, पर वो खुश सा भी दिख रहा था मुझे। वैसे ये मेरा वहम था.....वो मेरी हालत देख कर कंफ्यूजन में लग रहा था। जब पापा फिर भी कुछ बोले नहीं, तो मैंने उनकी तरफ हिम्मत करके देखा तो उनकी आँखों में गुस्सा था और झिझक भी..... वो मुझे सटीक शब्द ढूँढते से लगे, कुछ देर और चुप्पी पसरी रही, फिर खुद ही बोले,"कौन था वो लड़का ? कब से चल रहा है ये सब? क्या करता है लड़का" ? "पापा उसका नाम नीरज है, हम एक ही क्लॉस में थे, अभी वो जॉब कर रहा है" हम कॉलेज टाइम से ही एक दूसरे को पसंद करते हैं पापा, हम दोनो चाहते थे कि पहले उसे नौकरी मिल जाए फिर आपसे और मम्मी से बात करेंगे"! पापा कुछ देर चुप रहे,तो मम्मी बोलीं, "वसु अगर हम मना कर दें तो"? मम्मी की बात सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा और गुस्सा भी आया।फिर अपने आप को कंट्रोल कर लिया और धीरे से कह दिया, "मम्मी हम दोनो एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं, शादी तो मैं नीरज से ही करूँगी वरना कहीं नही करूँगी"। मेरे जवाब के बदले मम्मी ने एक जोर से तमाचा मेरे गाल पर जड़ दिया।मेरी आँखों में आँसू आ गए, मम्मी दूसरा थप्पड़ लगाने वाली थी कि पापा ने उन्हें रोक दिया और बोले," अनुभा मारना और गुस्सा करना किसी बात का हल नही है, हम लड़के और उस परिवार से पहले मिल लेते हैं, क्या पता हमारी वसु की पसंद अच्छी हो"! पापा की बात सुनकर मम्मी बहुत हैरानी से उनकी तरफ देखने लगीं......और मेरे चेहरे पर रोते रोते मुस्कुराहट आ गयी।
"वसु पहले तुम नीरज को घर बुला लो कल शाम को, मैं उससे मिलना चाहता हूँ"! "जी पापा", मैं बोल देती हूँ, मेरी आवाज और चेहरे पर चमक आ गयी! वरूण भी मुस्कुरा दिया और मैं पापा के गले लग गयी। "पापा थैंक्यू सो मच, आप दुनिया के बेस्ट पापा हो"! पापा भी हल्के से मुस्कुरा दिए और उनको मुस्कराते देख मम्मी भी शांत हो गयी। मैंने अपने कमरे में जा कर नीरज को फोन करके सब बता दिया और अगले दिन घर आने के लिए भी कह दिया। रात को खुशी के मारे नींद ही नहीं आयी, पूरी रात नीरज के साथ अपने भविष्य को देखती और बुनती रही। पापा की तरफ से एक खटका भी था कि कहीं वो मना न कर दें, पर मैंने उस खटके को मन से निकाल फेंका, आखिर पापा ने खुद ही तो मिलने को बुलाया है, फिर छोटा सा परिवार है नीरज का। न उसमें कोई ऐब है न बुराई, फिर नौकरी भी करता है तो मुझे कोई कमी दूर दूर तक नजर नहीं आ रही थी....।
क्रमश: