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चरित्रहीन - (भाग-10)

चरित्रहीन.......(भाग -10)

उस दिन बुरा तो बहुत लगा था, पर किसी को कुछ कहना ही बेकार था। मैंने घर से ही काम करने को ठीक समझा। वरूण और मेरे पास वो दूर-दूर के रिश्तेदार आने लगे जिनसे हम बहुत कम मिले थे। पापा के कजिंस के बच्चो का ऑफर आता वरूण की काम में मदद करने के लिए। सब अपने बच्चों को सैटल करना चाह रहे थे, हमारी मदद कौन करना चाहता है कौन नहीं ये हम दोनो बहन भाई समझ रहे थे। वरूण ने पापा के कजिन के बेटे आशीष को बुला लिया, वो नहीं चाहता था कि कोई ये कहे कि माँ बाप के जाने के बाद रिश्तेदारी निभानी हम बहन भाई को नहीं आती या हम निभाना नहीं चाहते। आशीष आ गया तो वरूण उसे अपने साथ रखता, जिससे वो काम को समझ सके....उसका व्यवहार तो अच्छा था ही...और वो वरूण और नीला की इज्जत भी करता था तो मुझे भी लगा कि चलो वरूण को कोई तो मिला जिससे वो बात कर पाएगा...। धीरे धीरे वो वरूण से पहले ही साइट पर जाने लगा, हम पर उसका विश्वास बनने लगा था। इधर आकाश की तरफ के रिश्तेदारों ने भी कुछ ज्यादा ही ध्यान रखना शुरू कर दिया। वो सब मुझे "बेचारी विधवा" वाले रूप में ही देखना चाहते थे। मैं जानती थी कि मैंने क्या खोया है, किसी की सहानुभूति मुझे वो सब वापिस नहीं ला कर दे सकती थी....पर मैं चुपचाप सब सुनती रहती थी। सब बड़े बुजुर्गों को लगता था कि आकाश की आत्मा को शांति मेरे सफेद और बेरंग कपड़ों से ही मिलेगी, मैं किस किसको समझाती कि मेरे बच्चे मुझे हर वक्त उदास देख कर दुखी होते हैं...सफेद कपड़ों में मुझे देख कर मेरे पास ही नहीं आते, अवनी कहती थी मम्मा ये ड्रैस बहुत बुरी है, मत पहनो। मुझे अपने बच्चों को देखना था, उनको खुश रखना अब सिर्फ मेरी और मेरी ही जिम्मेदारी थी। उनका बचपन रंगीन और गुलजार रहे उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती थी। कभी कभार मेरी ताई सास मिलने आ जाती थी और एक दो दिन रह कर चली जातीं, उस दौरान वो मेरी पल पल की खबर रखती। मेरे दोनो तरफ के रिश्तेदार घूमा फिरा कर कोई न कोई रिश्ता ढूँढ लाते मेरी दूसरी शादी के लिए। उधर से वरूण और नीला पर भी दवाब बनाने लगे कि वो मुझे दूसरी शादी के लिए राजी कर लें। आकाश की मामी जी ने तो मेरी ताई सास और बुआ वगैरह सब को मना लिया कि मुझे अपने देवर से ही शादी कर लेनी चाहिए। घर की बात घर में और पैसा भी घर में ही रह जाएगा। ये बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने एक दिन गुस्से में ताई सास और मामी सास को कह ही दिया कि अगर आपको मेरी शादी की ही बात करनी हो तो बेशक मत आया कीजिए क्योंकि मुझे अपने बच्चों के लिए दूसरे पापा नहीं चाहिए। सब ने पूरे परिवार में फैला दिया कि "आकाश की बीवी की जबान बहुत चलती है, पैसे का घमंड है और भी न जाने क्या क्या......कुछ ने तो ये भी कह दिया एक औरत का अपनी पूरी जिंदगी को आदमी के बिना बीताना बहुत मुश्किल है"। मुझसे बातें सुनने के बाद उनको चैन नहीं मिला तो उन्होंने विकास भैया को भी फोन करके बोला कि "वो मुझसे शादी कर ले......वरना मैं किसी दूसरे आदमी से करूँगी तो सारा पैसा मैं अपने साथ ले जाऊँगी"! विकास भैया वैसे भी मुझसे और बच्चों से बात करने के लिए फोन करते रहते थे, तभी उन्होंने बताया कि उनके पास बार बार फोन करके ऐसी सलाह दे रहे हैं तो उसने बोल दिया है कि वो मेरी सिर्फ भाभी ही नहीं एक बहन भी है और अगर उन्हें कोई पसंद आया, तो मैं खुद उनकी शादी करा दूँगा"!उसने ये भी कहा कि आप किसी की चिंता मत करो आराम से रहिए और उन्होंने अपना नया नं भी दे दिया, आगे से कॉल उस नं पर की जाए और ये नं किसी को न दिया जाए। नं बदल कर विकास भैया ने तो अपना पीछा छुडवा लिया पर वरूण भी अपने छुपे रिश्तेदारों की सलाहों से परेशान हो गया था। जब से आशीष घर आया था, उसके दो महीने बाद ही बुआ जी आ गयीं अपने इलाज के बहाने फिर पीछे पीछे फूफा जी और आशीष की बहन भी....। नीला बहुत परेशान रहने लगी थी। बच्चों को ठीक से देख नहीं पा रही थी। गर्मियों की छुट्टियाँ होने वाली थीं....मैंने वरूण को बच्चों को घूमा लाने के लिए कहा तो वो बोला कैसे जाऊँ दीदी सब आए हुए हैं, कह तो वो ठीक रहा था, मैंने उसे नीला और बच्चों को उसके मायके भेजने को कहा, जिससे वो कुछ दिन आराम कर आएगी। वरूण ने पहली ही छुट्टी पर नीला और बच्चों को ड्राइवर के साथ ये कह कर भेज दिया कि "इसकी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है, वो कुछ दिनों के लिए बुला रही हैं"। नीला के बच्चों को एक मेड देखती थी, उसको भी वो साथ ले गयी। कुक वहाँ कोई था नहीं तो बुआ जी और उनकी बेटी को तीनों टाइम खाना बनाना पड़ा। महीनों से सबको नीला के हाथ का अलग वैराइटी में सब चाहिए होता था। उसके मायके जाने के बाद सादे परांठे ही खाए जाने लगे। एक हफ्ते में ही बुआ जी की तबियत बिल्कुल ठीक हो गयी और उन्होंने वापिस जाने की तैयारी कर ली फूफा जी और बेटी के साथ। इस दौरान मैं भी वहाँ नही गयी, पर वरूण दोनो टाइम आ जाता था खाना खाने के लिए। बुआ जी को वरूण ने खाया या नहीं इससे कोई मतलब नहीं होता था। ऐसे थे हमारे रिश्तेदार......!
इतना होता तो भी संतोष होता, वरूण ने आशीष पर भरोसा किया ये सोच कर कि घर का लड़का है, अपना काम समझ के करेगा....पर ठेकेदारों की शिकायते आने लगी कि पैमेंट टाइम से नहीं मिल रहा और आपका भाई कह रहा है कि अभी पैसे नहीं है, जल्दी ही इंतजाम करके आपको पैसे वरूण भाई दे देंगे। वरूण ने उसे तो कुछ कहा नहीं, आशीष को फोन करके जल्दी मेरे यहाँ पर आने को कहा। वो जल्दी आ भी गया।वरूण ने जो पैसे पैमेंट करने के लिए दिए थे, उसका हिसाब पूछा.....उसने बताना शुरू किया।
आशीष के हिसाब से उसने सब की पैमेंट कर दी है......वरूण ने फोन मिलाया उसी ठेकेदार का और स्पीकर पर फोन डाला। उसे कहा वरूण ने कि पैमेंट आशीष ने कर तो दी है...मेरे सामने सब हिसाब लिखा है! उसने बहुत गंदी गंदी गालियाँ आशीष को दी, जो मैंने कभी सुनी भी नहीं थी। आशीष बुरी तरह से डर गया और वो हमसे माफी माँगने लगा।वरूण उसको घर ले गया, उसके मम्मी पापा और बहन वैसे भी जाने वाले थे....वरूण ने उन्हें जाने ही नहीं दिया। मैॆ भी पीछे पीछे पहुँच गयी, पाँच लाख रूपए दिए थे, उसको लेबर को देने के लिए। वो कैश उसकी मम्मी के पास से निकला। वरूण तो पुलिस को बुला कर उसे जेल भेजना चाहता था, पर मैंने उसे रोका.....पैसा तो तो वो नीला से भी ले जाता रहा वरूण भइया ने मंगवाएँ हैं कह कर, पर नीला ने कभी क्रास चेक नही किया वरूण से क्योंकि उसे भी तो विश्वास था घर के लड़के पर। खड़े पैर रात को ही पूरे परिवार के साथ रवाना कर दिया आशीष को और हमने कसम खा ली, कभी किसी रिश्तेदार को काम पर नहीं बुलाएँगे। अगर रिश्तेदार ऐसे निकलें तो दुश्मन की कहाँ जरूरत है? आशीष कह कर पैसे लेता तो कभी तकलीफ न होती। अपनी गलती तो कोई किसी को बताता नहीं, पर अपने घर जाकर उन लोगो ने सब को कहा, "मेरे बेटे को खाना ठीक से नहीं देते थे, हमें नौकरों की तरह रखा वरूण और उसकी बीवी ने! हमारे बेटे को नौकरी पर रखा, पर सैलरी नहीं दी और भी न जाने कितनी बातें थी जिन्हें सुन कर हम तीनों को बहुत दुख हुआ" ,पर फिर सोचा कि जो हुआ अच्छा ही हुआ। लोगो का काम ही कुछ न कुछ कहना ही होता है। समय बहुत बलवान होता है, बड़े से बड़े जख्म को भर देता है। माँ बाप की कमी कोई भी रिश्ता पूरी नहीं कर सकता। हम दोनो बहन भाई ने मम्मी पापा को खोया और मेरे बच्चों ने अपने पापा को.....विकास भैया ने मम्मी पापा के साथ भाई जो दोस्त भी था, उनको खोया। वो वापिस अपने देश नहीं आना चाहते थे, पर मैं भैया को बार बार कह रही थी कि शादी कर लो, फिर जहाँ मर्जी रहना.......तब भैया आए थे अपनी गर्लफ्रैंड सोफिया के साथ। वहाँ तो वैसे भी शादी करके ही साथ रहा जा सकता है, ऐसी कोई बात नहीं थी। काफी टाइम से दोनो साथ काम कर रहे थे और रह भी रहे होंगे, ये बात मैंने तो पूछी नहीं, सोफिया को मुझसे मिलवाने भी लाए और हमारे रीति रिवाज से ही शादी करनी है, सोफिया का कहना था तो हमने झटपट शादी की तैयारी कर ली। आकाश और बच्चों के दादा दादी के साथ साथ नाना नानी की भी कमी खल रही थी। उस हादसे के पूरे दो साल बाद हम कोई खुशी मना रहे थे.......बच्चे तो बहुत खुश थे चाचू की शादी को ले कर।बड़े होते बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था। थोड़े बहुत मेहमानों और खास रिश्तेदारों के बीच शादी बहुत अच्छे से हो गयी। कुछ रीति रिवाज ऐसे थे जो मैं नहीं कर सकती थी, विधवा जो थी तो मैंने नीला से करवा लिए। सोफिया और विकास दोनो ही नाराज हो गए। फिर भी मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती थी, जिससे हमारे रिश्तेदार कुछ बोलें या हमें सुनाएँ.......उस दिन आकाश की बहुत याद आयी, बच्चों के सामने हमेशा मजबूत रहने वाली वसुधा अंदर ही अंदर बिखर रही थी......वरूण सब समझता था, मैं हमेशा कहती थी कि वो मम्मी जैसा है, पर नहीं वो बिल्कुल पापा जैसा है, जो बिना कहे मेरी बात समझ जाता है......
क्रमश;