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चरित्रहीन - (भाग-5)

चरित्रहीन.....(भाग-5)

अब मन परेशान हो या मुझे टेंशन थी, जो भी था वो नेचुरल ही था.....। मम्मी पापा जैसे ही निकले मैंने नीरज को फोन करके बता दिया। पंजाबी बाग से रानी बाग बहुत दूर तो था नहीं, पर गाड़ी उनको एक पार्क के सामने ही लगानी पड़ती और वहाँ से अंदर पैदल जाने में जो वक्त लगना था, वही तो था टेंशन का मुद्दा......नीरज बोल रहा था, "तुम टेंशन मत लो मैं बाहर चला जाऊँगा उन्हें घर नहीं ढूँढना पड़ेगा और कार भी पारिक करा दूँगा"! उसकी बात सुन कर थोड़ी तसल्ली को हुई थी....पर चिंता और बातों की भी तो थी।जब तक सब लोग वापिस नहीं आए तब तक किसी काम में मन नहीं लग रहा था। तकरीबन 2-3 घंटे के बाद नीरज का फोन आया कि, वो लोग यहाँ से निकल गए हैं.....यहाँ सब ठीक रहा और हमें तुम्हारे वहाँ आने को कह गए हैं बाकी तुम्हें पता ही चल जाएगा कि उन्हें सब कैसा लगा, मुझे फोन करना "! थोड़ी देर बाद मम्मी पापा आ ही गए...
पीछे पीछे वरूण भी आ गया। मम्मी पापा से तो कुछ पूछने के लिए झिझक तो हो ही रही थी साथ में हिम्मत भी नहीं हो रही थी.....पापा और मम्मी फ्रेश होने और चेंज करने के लिए चले गए सिर्फ अब मैं और वरूण थे। "वरूण कैसा लगा मम्मी पापा को उन लोगो से मिल कर"? "वैसे तो सब ठीक लगा मुझे, अंकल आंटी भी अच्छे लगे....पर गलियाँ बहुत छोटी हैं। मार्किट में घर है तो हमारे यहाँ जैसी शांति तो नही है......और पापा को तो शोर से कितनी चिढ़ है, ये तो आपको पता ही है....अब उनको आने को कहा है तो बुधवार को आँएगे, एक बार वो भी आप से मिल लें तो पता चलेगा"! वरूण की बात सुन कर "हाँ" में सिर हिला दिया।
मम्मी चेंज करके आयी तो बोलीं," घर तो बहुत बेकार बना हुआ है, तीन मंजिला है, ऊपर दोनो चाचा रहते हैं नीचे ये लोग। कमरे भी ज्यादा बड़े नहीं हैं....रसोई में तो एक ही जन खड़ा हो सकता है...सिर्फ लड़का देखने से क्या होता है? शादी सिर्फ लड़के से नहीं उसके परिवार से होती है, लड़के के माँ बाप सीधे ही लग रहे थे पर आगे का कहाँ किसे पता होता है!! कल को तेरी न बनी उनसे तो कहाँ रहोगे? नीरज अभी इतना भी नहीं कमाता कि तुम आराम से घर भी चला लोगी और खुश भी रहोगी, कुछ भी कहो मुझे तो ये बेमेल शादी लग रही है, आगे तेरी मर्जी"!! मम्मी का जवाब सुन कर दिल में दर्द हुआ....मम्मी समझ ही नहीं रही कि मैं कितना प्यार करती हूँ नीरज से और प्यार में हो तो सब निभा सकता है इंसान.......मम्मी की बातें सुन कर पापा भी आ गए।" अनुभा तुम क्यों नहीं समझ रही हो की हमारी बेटी ने हमसे राय नहीं अपना फैसला बताया है तो इतना कुछ कहना सुनाना क्यों? हमारे दोनो बच्चों को लगता है कि अब ये लोग बड़े हो गए हैं , अपना भला बुरा समझते हैं तो ठीक है..... जो ये चाहते हैं, अब वही होगा और अब तुम भी टोका टाकी कम किया करो। वसु को घर के काम सीखाना शुरू कर दो, वहाँ जा कर रसोई के काम भी करने तो होंगे ही साथ ही कपड़े धोना वगैरह भी....यहाँ मेड आती है, वहाँ वो लोग अपना सारा काम खुद ही करते हैं तो इसे अपने आप को ढालना तो पड़ेगा ही उनके मन मुताबिक....."! पापा बोलते बोलते चुप हो गए....मुझसे कुछ बोलते नहीं बना और बोलना ठीक भी नहीं था। उस वक्त मुझे लग रहा था कि मैं और नीरज सब संभाल लेंगे। मम्मी पापा बेकार में चिंता कर रहे हैं शायद....जब मम्मी का गुस्सा शांत हुआ तो मैंने रात को उनसे बात करने की कोशिश की और उन्हें अपने मन की बात बतायी, पर मम्मी का कहना था कि, "सिर्फ प्यार से घर नहीं चलता और भी बहुत कुछ होता है, पर न तो तुम मानोगी मेरी बात और न तेरे पापा तो करो जो दोनो ने करना है".....! अगले दो दिन फिर टेंशन में बीते क्योंकि नीरज की फैमिली आने वाली थी। घर में एक टेंशन का माहौल बना हुआ था तो मैं अपना ज्यादा से ज्यादा टाइम ऑफिस मैं ही बिताना चाह रही थी। नीरज को कोई टेंशन नही थी, उसको विश्वास था कि सब ठीक होगा और हमारी शादी धूमधाम से होगी तो मैं खुश तो हो जाती पर एक अजीब सी घबराहट के साथ एक डर भी लग रहा था.....बुधवार को वो लोग बिल्कुल ठीक टाइम पर आ गए....उनके साथ नीरज की नेहा दीदी और सतीश जीजू भी आए थे। हमारे घर में तनाव जरूर था पर उनके आने पर मम्मी पापा ने बहुत अच्छे से उन्हें अटैंड किया। पापा के बिजनेस और बाकी काम से रिलेटिड बातें होती रहीं...."भाई साहब आप वसुधा को बुला लीजिए हम लोग मिल लेंगे"! नीरज के पापा ने कहा तो वरूण मुझे बुलाने आया........सब को नमस्ते करके मैं दीदी के पास जा कर बैठ गयी। बहुत सारी बातें होती रही जिसमें पढाई, हॉबीज और कुकिंग से जुड़े सवाल जो बहुत बार हिंदी फिल्मों मे हम देखते ही आ रहे थे और सुनते भी आ रही थी, बिल्कुल वैसा कुछ ही तो था। शायद फर्क ये था कि लड़का और लड़की पहले एक दूसरे को पसंद कर चुके हैं, बस घर वालों की औपचारिक बातें भर थी, बस यहीं मैं गलत हो गयी थी। सब बातचीत होने के बाद नीरज के पापा ने कहा , "भाई साहब आप का घर और रहन सहन देख कर हम ये रिश्ता नहीं कर सकते। आप को नहीं लगता कि वसुधा बिटिया हमारे घर में एडजस्ट नहीं हो पाएगी".....! मम्मी और पापा मेरी शक्ल देखने लगे और मैंने अपने आँसू मुश्किल से रोक रखे थे जो उनकी बात सुन कर बाहर निकलने का रास्ता ढूँढ रहे थे।"भाई साहब हमारे बच्चे एक दूसरे को पसंद करते हैं, इसलिए हम तैयार हो गए, बाकी आप लोग जैसा चाहें वैसा कर लीजिए क्योंकि बिना आप लोगो की मर्जी के तो ये शादी हो नहीं सकती"। पापा ने नीरज के पापा को उनकी बात का जवाब दिया।"अँकल जी आप बुरा मत मानिएगा हमारी बात का, आप की बेटी बहुत अच्छी है इसमें कोई शक नहीं, पर ये बात भी सच है कि हमारी संकरी गली में तो आपकी गाड़ी भी नहीं जा सकती, वसुधा बचपन से जिस परिवेश में रही है, उससे निकल कर वो हमारे घर में चाह कर भी कंफर्टेबल नहीं हो पाएगी और फिर लव मैरिज एक फितूर की तरह होता है जो शादी के बाद कुछ महीनों में उतर जाता है, जब घर संभालने का टाइम आता है तब कम पैसों में घर चलाना या कोई और परेशानी लड़ाई झगड़े की शक्ल लेते देर नहीं लगती। हम नीरज को समझा देंगे आप भी वसुधा के लिए अपनी हैसियत वाला घर देखिए ये अच्छा रहेगा दोनो बच्चों के लिए"। दीदी ने एक लंबा सा लेक्चर ही दे दिया पापा को......पापा से कुछ बोलते ही नहीं बना और कहते भी क्या? "नेहा बेटा तुमने बिल्कुल ठीक कहा,पर हमारे लिए वसु की खुशी सबसे ऊपर थी, इसलिए हमने अपनी सहमति दी थी। आप लोगो को ये रिश्ता मंजूर नहीं है तो कोई बात नहीं, जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है"! मम्मी ने इस बार जवाब दिया। वो चुपचाप वापिस चले गए, वरूण बाहर तक उन्हें छोड़ कर आया। मैं अपने कमरे में चली गयी, मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि कहाँ क्या गलत हुआ है? नीरज तो कह रहा था कि सब ठीक होगा, मम्मी पापा को सब बता दिया है, उन्हें कोई दिक्कत नही है.....मैंने तो फिल्मों में देखा था कि अमीर आदमी गरीब से रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता पर मेरे साथ तो उल्टा ही हो गया। काफी देर तक रोती रही,नीरज को फोन किया तो वो बोला कि बाद में बात करता हूँ। वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती। वरूण बुलाने आया खाने के लिए मैं नहीं गयी, मम्मी ने बुलाया तब भी नही गयी उसके बाद पापा ही खाना ले कर मेरे कमरे में आ गए। पापा ने बहुत प्यार से मेरे सर पर हाथ रखा और खाना खाने को कहा।मम्मी और वरूण भी तो मेरे कमरे में ही आ गए थे। वरूण और मम्मी की आँखो में भी आँसू थे, पापा भी परेशान थे मेरी हालत देख कर....मैं उठ कर हाथ मुँह धो कर खाने के लिए बैठ गयी। "वसु अगर नीरज का परिवार हमारे साथ रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता तो हम जबरदस्ती तो शादी करवाएँगे नहीं, और अब अगर नीरज जैसे तैसे उनको शादी के लिए मना भी लेगा तब भी अब वहाँ शादी नहीं करूँगा तुम्हारी.....क्या पता कल को वो गुस्सा तुझ पर उतारेंगे और हर वक्त न तो नीरज तुम्हारे आस पास होगा न ही हम"! इस बार पापा की बात मुझे ठीक से समझ आ रही थी और ये भी समझ गयी थी कि वो मुझसे कितना प्यार करते हैं। "वसु पापा ठीक कह रहे हैं....हमारी बेटी हो तुम, जानबूझकर हम तुझे तकलीफ में नहीं डाल सकते, जिन्हें हम पसंद करते हैं तो जरूरी नही वो हमारी जिंदगी का हिस्सा भी बन पाएँ.....तो अपनी पसिद को एक अच्छी याद के साथ छोड़ देना चाहिए और आगे बढना चाहिए"। मम्मी और पापा अपनी जगह बिल्कुल ठीक थे। उनकी चिंता भी समझ आ रही थी, पर मैं भी तो दिल के हाथों मजबूर थी। रात को नीरज का फोन आया तो उसने पूछा "क्या हुआ था वहाँ"? मैंने उसे सब बताया
और उससे पूछा," हमारे घर से जाने के बाद तुम्हारी क्या बात हुई"? "उसकी फैमिली में किसी को मैं पसंद नहीं आयी, उनको लग रहा है कि जरूर कोई बात है इसलिए इतने पैसे वाले हमारे साथ रिश्ता जोड़ने को तैयार हो गए हैं, उसने कहा कि मैंने उन्हें बहुत समझाया है कि हम दोनो एक दूसरे को पसंद करते हैं, ऐतराज वसुधा के परिवार को होना चाहिए, आपको क्या परेशानी है उसके स्टेटस से? वसु को हमारे साथ रहना है और वो रहेगी, उससे मैंने कुछ छिपाया ही नहीं है, पर मेरे जीजू और दीदी कह रहे हैं कि वहाँ रिश्ता किया तो हम लोगो को मरा हुआ समझ लेना और मम्मी पापा भी उनकी हाँ में हाँ मिला रहे हैं! अब तुम कहो वसु क्या करें? मैं तो कहता हूँ, हम मंदिर में शादी कर लेते हैं, फिर तो मेरी फैमिली को मानना ही पड़ेगा! क्या बोलती हो वसु"? वो बोलता जा रहा था और मैं सुन रही थी, जब वो चुप हुआ तो मेरे बोलने का इंतजार कर रहा था, मेरा कुछ कहने का मन नहीं हुआ....वो बोले जा रहा था...क्या हुआ वसु? क्या सोच रही हो? कुछ तो बोलो.....मैं पता नहीं क्या क्या सोचती रही और फिर मैंने फोन काट दिया.... उसने कई बार फोन किया पर मैं काटती रही फिर मैंने फोन ऑफ ही कर दिया.....कुछ घंटों में कितनी बातें हो गयी थीं, जो नहीं सोचा वही हो गया था मेरे साथ.....मेरा अनजाना डर सच हो ही गया था.....!!
क्रमश: