Charitrahin - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

चरित्रहीन - (भाग-4)

चरित्रहीन......(भाग-4)

उस रात खुली आँखों से इतने सपने सजा लिए थे कि आँखे बंद करने से भी डर लग रहा था.....कितनी कपोल कल्पनाएँ चल रही थी मन में.....नीरज कैसे पापा से बात करेगा? पापा के पैर छुएगा या ऐसे ही नमस्ते करेगा? पैर छू कर नमस्ते करे तो ज्यादा अच्छा होगा, नीरज नर्वस न हो जाए? पापा उससे स्टेटस की बातें न करने लगे? जब पापा नीरज को मिल कर हाँ करेगें तो नीरज कैसे रिएक्ट करेगा? पता नहीं सैकडो़ं सवाल थे जिनका जवाब जब नीरज शाम को घर आएगा, तब मिलना था। ऐसा इंतजार करना बहुत मुश्किल लग रहा था.......जब हम किसी का इंतजार कर रहे होते हैं तो लगता है समय बीत ही नहीं रहा...सुबह हुई और काम शुरू हो गया। पापा तो जल्दी चले गए थे, सुबह का राउण्ड लगाने....उसके बाद पापा ऑफिस में बैठते थे... तो मैं तैयार हो गयी ऑफिस जाने के लिए। नाश्ता करके ऑफिस पहुँची तो पापा मुझे ऑफिस में रूकने का बोल कर किसी काम से बाहर चले गए। मैं काम में अपना ध्यान लगाने की कोशिश कर रही थी, पर ध्यान तो नीरज पर था और धीरे धीरे बीतते टाइम पर......नीरज ने बोल दिया था कि वो शाम को वो 7-8 के बीच में आ जाएगा। काम करने के लिए मन को समझाया बुझाया और बैठ गयी एक ऑफिस का नक्शा खोल कर.....! लंच टाइम में नीरज को फोन किया और उससे सब डिस्कस कर लिया, वो भी बहुत नर्वस था। मैंने अपने पापा के गुस्से के बारे मैं बता रखा था तो उसका घबराना भी वाजिब था.....उसको मैंने कहा भी कि कल वो गुस्सा नही हुए और तुम चिंता मत करो सब ठीक होगा...बस आराम से उनकी हर बात का जवाब देते जाना ......फोन पर उसको दिलासा तो दे दी पर उसकी हालत जान मैं भी घबरा गयी। शाम को 5:30 बजे घर पहुँची तो पापा घर पर ही थे। मम्मी और पापा कुछ बातें कर रहे थे, मुझे देख वो लोग चुप हो गए....मम्मी उठ कर किचन में चली गयीं। मैं अपने कमरे में सामान रख और फ्रेश हो कर बाहर लिविंग रूम में आ गयी।
" पापा आप कब आए"? "5 बजे आया था, तुम बताओ वो काम हुआ कोठारी साहब के ऑफिस का"? पापा ने पूछा!
"हाँ जी पापा हो गया"। मम्मी तब तक चाय ले आयीं, वरूण भी तब तक अपने कमरे से बाहर आ गया। "वसु कब तक आने को कहा है उस लड़के ने ?क्या नाम
बताया था तूने"? मम्मी ने पूछा तो मैं जवाब देती उससे पहले ही वरूण धीरे से बोला, "मम्मी उसका नाम नीरज है"! "मम्मी वो 7-8 बजे के बीच आ जाएगा"!"अनुभा लड़का सीधा ऑफिस से आएगा, रात के खाने की तैयारी कर लो, खाना खिला कर भेजना"। पापा ने कहा तो मम्मी उनकी तरफ देखने लगीं। "क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो? हमारे खाने का समय है तो हम उसे खाना खिला कर ही भेजेगें"। "जी ठीक है", मम्मी किचन में जाने लगी तो मैं भी किचन में चली गयी उनकी मदद करने।
हमारे घर का ये नियम था कि रात का खाना 8:30बजे तक खा लिया जाता है और खाने के टाइम चाहे दिन हो या रात कोई भी आ जाए, उसे बिना खाना खाए नहीं जाने दिया जाता। नीरज 7:30 बजे आ गया था......उसने मम्मी और पापा को नमस्ते करके पैर छूए तो मम्मी पापा ने भी उसको खुश रहो का आशीर्वाद दिया। गर्मियों के दिन थे तो पापा ने नींबू पानी बना कर लाने को कहा। मैं किचन में चली गयी और मम्मी पापा उससे बातें करने लगे। पापा उसकी जॉब के बारे में पूछ रहे थे, वो भी आराम से जवाब दे रहा था। मैं नींबू पानी लायी तब तक वरूण भी अपने कमरे से बाहर आ कर चुपचाप सोफे पर बैठ था। मम्मी तो पापा के सामने कम ही बोलती थीं, पर उन्होंने नीरज की फैमिली के बारे में पूछा। धीरे धीरे नीरज कंफर्टेबल हो रहा था, जो अच्छा ही था। "आओ बेटा खाना खाते हैं, वसु खाना लगाओ"! "अंकल जी मैं चलता हूँ, मम्मी पापा इंतजार कर रहे होंगे"! नीरज ने पापा को कहा तो पापा बोले," थोड़ा सा खा लो, खाने के वक्त तुम्हे ऐसे नहीं जाने देंगे"। नीरज "न" नहीं कर पाया। "चलो मैं आपको अपना रूम दिखाता हूँ", कह कर वरूण उसे अपने कमरे में ले गया तब कर हमने टेबल पर खाना लगा दिया। नीरज ने बहुत कम ही खाया, जब सब ने खा लिया तो वो जाने के लिए उठ गया। पापा और वरूण उसे बाहर तक छोड़ने गए। मैं भी जाना चाहती थी, पर मम्मी ने आँखो से न जाने का इशारा कर दिया। मुझे मन मार कर रूकना पड़ा। काफी देर के बाद वरूण और नीरज अंदर आए थे। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था कि न जाने क्या क्या कहा होगा पापा ने और अब तो वरूण भी पापा की तरह बात करने लगा था। पापा से तो कुछ नहीं पूछ सकती थी पर वरूण से पूछ सकती हूँ, सोच ही रही थी कि पापा ने मम्मी और मुझे अपने रूम में बुला लिया।"अनुभा हम रविवार को नीरज के घर जा रहे हैं", फिर हम उनको अपने घर बुला लेंगे। सब कुछ सही रहेगा तो शादी भी जल्दी कर दूँगा, मैं लोगो को बाते बनाने का मौका नहीं देना चाहता"! मम्मी बहुत हैरान थी और थोड़ा परेशान भी, " मैं कहती हूँ कि इतनी जल्दी क्या है? लड़के की छानबीन करवा लीजिए और अभी उसकी तन्ख्वाह भी बहुत ज्यादा नहीं है, खुले हाथ से खर्च करने वाली हमारी वसु उस घर मैं कैसे रहेगी? जहाँ गिने हुई सैलरी के हिसाब से रहना पड़ेगा, कुछ दिन की बात तो है नहीं ये इसके भविष्य का सवाल है"! मैं मम्मी के मुँह की तरफ देख रही थी क्योंकि उनको पापा के सामने बोलते कहाँ देखा था हमने? वो तो हमेशा पापा की बात सुनती रही हैं और वही करती भी हैं।"अनुभा
जो तुम कह रही हो, वो सब मैं भी सोच चुका हूँ, पर हमारे पास ये सब सोचने के लिए बचा ही नही है, वसुधा ने जब मन बना ही लिया है, तो अपने आप सीख जाएगी एडजस्ट करना, सिर्फ यहीं क्यों जिस भी परिवार में हम इसकी शादी करते तो अपने को उनके हिसाब से चलना सीखना पड़ता ही न"! मम्मी की चिंता तब मुझे बचकानी लग रही थी। मम्मी कुछ कहती पर उससे पहले ही पापा बोले, "वसु मैंने नीरज को तो बोल दिया है, तुम भी ध्यान से सुन लो, अगर उसके परिवार ने तुझे पसंद किया और उन्हें इस शादी से ऐतराज न हुआ तभी शादी होगी वरना नहीं"! "जी पापा", बोल कर मैं अपने कमरे में आ गयी। वरूण और मेरी ज्यादा बनती तो नहीं थी, फिर भी हम दोनो एक दूसरे की हेल्प कर ही देते थे। वरूण भी मेरे पीछे पीछे आ गया, शायद उसको भी पता चल गया था कि मुझे उससे पूछना था कि बाहर क्या क्या बातें पापा और नीरज की...."दीदी पापा को भी नीरज ठीक लगा है, पर उनकी फैमिली का स्टैंडर्ड और स्टेटस हम से मैच नहीं करता, क्या आप रह लोगी 3 कमरे के छोटे से घर में? कॉमन बाथरूम और टॉयलेट होगा वहाँ? यहाँ तो आप अपने बाथरूम में किसी को जाने नहीं देती? ये छोटी छोटी बातें हैं, पर इस को सोचना होगा क्योंकि ये आपको बड़ी बड़ी लग सकती हैं"!सब एक जैसे ही सोच रहे थे, पर मुझे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। "वरूण तू ठीक कह रहा है, मैं भी काम करूँगी तो सब संभाल लेंगे। हम बड़ा घर भी तो ले सकते हैं"? "हाँ दीदी ठीक कह रही हो आप, चलो उनके घर से हो कर आएँगे मम्मी पापा तो पता चलेगा,उनके पैरेंटस को भी तो आप पसंद आनी चाहिएँ", वरूण बोला । "हम्म ठीक कह रहा है भाई, देखो क्या होता है"! वरूण तो बातें करके अपने कमरे में पढने चला गया पर मैं सब बातों के बारे में सोचने लगी.....पापा इतनी आसानी से मान गए, जिसके बारे में सपने मे भी उम्मीद नही थी। मम्मी को ज्यादा पसंद नहीं आया नीरज, तभी मम्मी ने पापा के सामने सब कुछ कहा होगा। उस टाइम तो जो लड़के लड़कियाँ लव मैरिज करते थे, वो बेशर्म कहलाते थे खास कर लड़कियाँ। मैं तो सोच रही थी कि नीरज फोन या मैसेज करेगा पर उसने नहीं किया.....सुबह बात करूँगी सोच कर मैंने भी नहीं किया।उसने अपने पैरेंटस से बात की होगी या नही? वो मिलने के लिए क्या कहेंगे? रात को यही सब सोचते सोचते कब गहरी नींद सो गयी, पता ही नहीं चला......! अगले दिन नीरज से बात हुई तो उसने बताया कि, "उसने अपने घर पर बात कर ली है। संडे को हमारे फैमिली मिल लेगी तो पता चलता है कि क्या डिसाइड होगा? मेरे यहाँ से तो कोई प्रॉब्लम शायद ही हो पर तुम्हारे पैरेंटस को हमारा घर और रहन सहन कितना पसंद आएगा पता नहीं, पंजाबी बाग और रानीबाग एरिया में ही बहुत फर्क दिखेगा तुम सब को, इसलिए टेंशन हो रही है"।
उसकी बात सुन कर तो मुझे भी टेंशन होना शुरू हो गयी। संडे भी आ गया....मम्मी पापा और वरूण नीरज के घर जाने की तैयारी करने लगे।नीरज ने एड्रेस बता ही दिया था। मैंने देखा हुआ था रानी बाग 1-2 बार नीरज को कॉलेज टाइम में छोडा था....कभी भी मैंने उसे घर तक नहीं छोड़ा था क्योंकि ज्यादातर उस सड़क पर बहुत भीड़ रहती है। कहने को रानी बाग बहुत फेमस रहा है आस पास के एरिया में क्योंकि यहाँ पर हर चीज के रेट काफी जायज रहते थे, पर एक ही सीधी सड़क है रानी बाग उस में अँदर गलियों में दुकाने भी हैं और घर भी। छोटी छोटी गलियाँ और गलियों में से और गलियाँ मुझे तो भूल भूलैया सा लगा, जब मैं एक बार गाड़ी को दूसरी तरफ रोक कर नीरज के साथ पैदल चली थी, अपना दुपट्टा लेने के लिए सोच कर...पर भीड़ और गलियाँ देख कर वापिस आ गयी थी। मम्मी पापा कैसे जाँएगे ये सोच कर मन सचमुच परेशान हो गया था....
फिर दिमाग में आया कि पापा को तो उस एरिया के बारे में सब पता है..........
क्रमश: