Junoon Se Bhara Ishq - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

Junoon Se Bhara Ishq - 8

Abhay ki zid


अभय की सदॅ आवाज सुन प्रिया को डर के मारे हिला भी नही गया।

अभय :- तुमने अभी तक शुरु नही किया। मतलब मेरी मदद की जरूरत है तुम्हे।

उसका जवाब सुन प्रिया हडबडा गई।

प्रिया :- नही ! नही !

प्रिया बोल कर बाथटब मे पडे पानी को लेकर अपने उपर डालने लगी। उसके हाथ डर के मारे कांप रहे थे। उसे शमॅ भी आ रही थी। क्योकी वो सनकी आदमी वही खडे होकर उसे ही घूर रहा था। या यू कहे की उस पर नजर रख रहा था।



प्रिया :- क्या आप, दूसरी तरफ मूड कर खडे हो जायेगे ?

अभय :- नही ! तुम तो ऐसे रियेक्ट कर रही हो जैसे मै ने कभी तुम्हे देखा ही नही हो।


उसके जवाब पर प्रिया चुप हो गई। अब उसके पास बोलना के लिए कुछ भी बचा नही था। ये इंसान सच मे ही सनकी था। क्या इसने कभी औरतो को नहाते हुए नही देखा ? शायद इसीलिए यहा खडा है। पर प्रिया इस मामले मे सही निकली।



अभय ने किसी औरत को देखा तो दूर छूआ तक नही था। पर प्रिया वो पहली लडकी थी। जिसको उसने अपनी मजीॅ से छूआ भी और उसके पास आना उसे अजीब भी नही लगा।



अब क्योकी प्रिया अब उसकी थी इसलिए उसे प्रिया को ऐसे देखना भी गलत नही लग रहा था। अभय उसे टका टकी लगाए देख रहा था। वही, प्रिया का दिल कर रहा था की वो कही जाकर छूप जाये।



जहा इस सनकी की नजरे ना पहोचे। वो जल्द से जल्द नहाकर बाहर आना चाहती थी। इसलिए वो बाथटब से बहार आने लगी। पर इससे पहले वो अपना कदम बाथटब से बहार निकाल पाती तभी उसे अभय की आवाज आई।


अभय :- अभी नही ! अभी तुम पूरी तरह से साफ नही हुई हो।

प्रिया उसे मनमे गाली देते हुए वापस पानी मे बैठ गई। इसके अलावा वो कुछ कर भी नही सकती थी। उसने एक बार भी अभय की तरफ नही देखा।



इसलिए वो इस बात से अंजान थी की प्रिया को जलती हुई निगाहो से देखे जा रहा था। जैसे वो अभी उसे खा जायेगा। प्रिया गुस्से मे अपने हाथो को रगड़ने लगी।


कुछ देर बाद अभय को लगा की वो पूरी तरह से उसके लायक हो गई है तब उसने कहा।

अभय :- मेरे ख्याल से अब तुम पूरी तरह से साफ हो गई हो।

अपनी बात बोलते ही टब मे से प्रिया को अपनी बाहो मे ले लिया। प्रिया उसका विरोध करती रही।

प्रिया :- ये क्या तरीका है ? मुझे नीचे उतारो ! उतारो मुझे नीचे !


और अभय के कान मे से उसकी आवाज पहुंची ही नही। उसने प्रिया को लेजाकर बेड पर पटक दिया। प्रिया उसे आंखे फाड़े देख रही थी। अभय उसकी आंखो मे देख रहा था और बोला।

अभय :- " आज से और अभी से तुम मेरी हो। जैसा की तुम चाहती थी तुम अब तुम्हे उन सबके लिए ज्यादा मेहनत नही करनी पडेगी। अब से तुम्हारी हर चीज मुझसे जुडी हुई है। "

और अब तुम ने किसी और आदमी की तरफ आंख उठा या उसे ललचाने की कोशिश की तो याद रखना तुम्हारा हर दिन मौत से बद्तर होगा।




प्रिया उसकी बात सुन सन्न रह गई।

प्रिया :- क्या ? ? क्या मतलब है की मै आपकी हुई। देखिए, प्लिस समज ने की कोशिश किजिए। वो सिर्फ एक गलती थी। मुझे तो एक्सजेक्ली पता भी नही की उस रात क्या हुआ था।

प्लिस मुझे जाने दिजिए। प्लिस।


अभय :- तुम्हे लगता है ? मै तुम्हे जाने दुंगा, जिस लडकी ने मेरे साथ रात गुजारी हो उसे कोई और छूये ये मेरे बदाॅश बाहर है। मुझे बार बार अपनी बात रिपीट करने का शौक नही है।

पर फिर भी एक और बार फिर बता रहा हू तुम्हे। " अब से तुम मेरी हो और मै तुम्हारा। " " तुम्हारी जिंदगी मुज तक हि सिमित रहेगी, वैसे भी मुज तक आने वाली लडकी को मौत के घाट उतार चुका होता।

पर तुम्हे एक मौका दिया। तुम्हे तो इस चिज के लिए मेरा शुक्र गुजार होना चाहिए। "



प्रिया :- शुक्र गुजार वो भी आपका ! जो इंसान मुझसे मेरी आजादी छिनना चाहता हो, उसके लिए मै कभी शुक्र गुजार नही हो सकती !

मै फिर एक बार कह रही हू। प्लिस मुझे जाने दो ! क्या उस रात को एक भूल समज कर नही भूल सकते।


प्रिया का इतना कहना था की अभय ने गुस्से मे उसकी गदॅन को पकड लिया।

अभय :- ठीक है ! अगर तुम्हे मेरी बात मान कर नही रहना तो तुम्हे मरना होगा। अब फैसला तुम्हारा है। तुम्हे जो ठीक लगे वो चूज कर लो।


प्रिया की आंखे डर से बडी हो गई। वो अपने दांतो से होठो को चबाने लगी। अब उसके पास कोई और ओप्शन नही बचा था। या तो इस सनकी की बात मान लो या मौत का रास्ता।



उसकी आंखो मे आंसु आ गए। क्या जिंदगी हो गई थी उसकी। बस उस एक रात के बाद उसने अभय के डर और मजबूरी मे अपना सर हा मे हिला दिया।




उसके हा करते ही अभय ने तुरंत उसके गीले कपडो को उसके जिस्म से अलग कर दिया। वो रात प्रिया के लिए काफी लंबी थी।

कुछ घंटो बाद प्रिया ने अपनी बॉडी पर जैसे ही आंखो को उठाया और अभय को देखा।

प्रिया :- अब तो बता दो आप हो कौन ?

अभय :- " अभय . . . . . . . अभय राठौर। "

नाम सुन प्रिया दिन भर की थकान की वजह से, गहरी नींद मे चली गई। वही, अभय उसे सोते हुए देखने लगा। नजाने क्या था इस लडकी मे जो उसे उसका छूना हमेशा सूकून दे रहा था।




प्रिया एक मुलायम सी गुडिया की तरह जो अब अभय की बाहो मे थी। अब अभय रात को चैन से सो सकता था। कुछ ही देर मे वो भी सो गया।






सुबह प्रिया ने धीरे से अपनी आंखे खोली। और जैसे ही उठने के लिए थोडा सा हिली तो उसे अपनी बॉडी मे अजीब सा ददॅ हुआ। और साथ ही अकडन भी। ददॅ महसूस करते ही उसे कल रात हुआ वाक्य याद आ गया।



सब कुछ याद आते ही वो खुद ही शमॅ से सिमट गई। वो उठ कर बैठ ही थी की तभी दरवाजे पर किसीने नॉक किया।


दरवाजे की आवाज सुन प्रिया ने जल्दी चादर से अपने आप को ढक लिया। वो नही चाहती थी की कोई भी उसे ऐसे देखे। पर वो कुछ कर भी नही सकती थी।

दरवाजा अब दोबारा नॉक हुआ।




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